Sunday 31 May 2015

मनपा विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार की सेवा 1 जून 2015 से खत्म

मुंबई महानगरपालिका के विभिन्न विभागों में सेवानिवृत्ती के बाद कॉन्ट्रैक्ट पर विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार इन पदों पर गत 5 वर्ष में 40 नियुक्ती कर मनपा ने करीब 1.70 करोड़ रुपए खर्च करने का मामला आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली द्वारा उजागर करते ही मनपा आयुक्त अजोय मेहता ने विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार की सेवा 1 जून 2015 से खत्म करने का आदेश जारी किया है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने दिनांक 1 जनवरी 2010 से 28 फरवरी 2015 इन 5 वर्षो में नियुक्त किए गए 40 विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार का मामला उजागर किया था। मनपा ने करीब 1.70 करोड़ खर्च किए थे। अनिल गलगली की शिकायत को गंभीरता से लेते हुए मनपा आयुक्त अजोय मेहता के आदेश से दिनांक 27 मई 2015 को सर्कुलर जारी कर 1 जून 2015 से विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार की सेवा खत्म करने की सूचना जारी हुई है। इस आदेश में स्पष्ट किया है कि आयुक्त की सीधी मंजूरी लेकर इसतरह की नियुक्तियां हुई होगी तब भी उन नियुक्तियों को खत्म करना है। आगे इसतरह की नियुक्तियों को लेकर किसी भी तरह का नया प्रस्ताव पेश न करने की ताकीद देते हुए 1 जून 2015 के बाद भी विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार की नियुक्तियां रद्द न कर उसे शुरु रखनेपर उसकी जिम्मेदारी उस विभाग की मुखिया तथा सहायक आयुक्त की होगी। मनपा आयुक्त अजोय मेहता का आभार मानते हुए अनिल गलगली ने कहा कि इससे कार्यरत अधिकारियों का मनोबल बढ़ेगा क्योंकि सेवानिवृत्ती के बाद भी विशेष कार्य अधिकारी/ सलाहकार के नाम पर काम करनेवालों से वर्तमान अधिकारी और कर्मचारियों का मनोबल टूटते जा रहा था। # टॉप 10 लखपती मनपा की जान पर करीब 40 अधिकारियों का गत 5 वर्ष में ठीकठाक भला हुआ हैं। न.ह.कुसनुर को 29 लाख 50 हजार, शि.सं.पालव को 13 लाख 10 हजार, स्नेहा खांडेकर को 10 लाख 47 हजार, प्र.वि.कुलकर्णी को 9 लाख 87 हजार, ना.भि. आचरेकर को 9 लाख 50 हजार, एस.डी.खंदारे को 9 लाख, शशिकांत शिंदे को 7 लाख 20 हजार, गोविंद राठोड को 6 लाख, उदय माडे को 5 लाख 71 हजार और बाबासाहेब पवार को 5 लाख 37 हजार 880 रुपए दिए गए है। # नियम को तोड़ा गया था उसवक्त के आयुक्त ने सरकार की किसी भी तरह की अनुमति लिए बिना पुरे 40 अधिकारियों की अच्छी व्यवस्था की है। इस मामले में मनपा आयुक्त कार्यालय ने सरकार की अनुमति न लेने की बात को स्वीकारते हुए मनपा के सर्कुलर का आधार लिया है। डॉ जगन्नाथ ढोणे बनाम महाराष्ट्र सरकार इस मुंबई हायकोर्ट के एक आदेश के बाद सरकार ने दिनांक 14 जनवारी 2010 को आदेश जारी कर विशिष्ट परिस्थिती में ही इसतरह की नियुक्ती करते वक्त सरकार की अनुमति लेने की शर्त रखी हैं।गत सरकार ने मुख्य सूचना आयुक्त रत्नाकर गायकवाड को भी झटका देते हुए राज्य सूचना आयोग में कॉन्ट्रेक्ट पर नियुक्त किए गए खोब्रागडे नामक 68 वर्षीय सेवानिवृत्त अधिकारी की घरवापसी की थी। अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय और मनपा आयुक्त अजोय मेहता के पास शिकायत करते ही मनपा आयुक्त ने उक्त कारवाई की है।

पालिका विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार सेवा 1 जून 2015 पासून येणार संपुष्टात

मुंबई महानगरपालिकेच्या विविध खात्यात सेवानिवृत्तीनंतर करार पद्धतीवर विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार या पदावर गेल्या 5 वर्षात 40 नियुक्त्या झाल्या असून यावर पालिकेने तब्बल 1.70 कोटी रुपये खर्च केल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी उघडकीस आणताच पालिका आयुक्त अजोय मेहता यांनी विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार सेवा 1 जून 2015 पासून संपुष्टात आणण्याचे आदेश जारी केले आहेत. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी दिनांक 1 जानेवारी 2010 ते 28 फेब्रुवारी 2015 या 5 वर्षात नियुक्त झालेल्या 40 विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार प्रकरण बाहेर आणले होते. पालिकेने जवळपास 1.70 कोटी खर्च केले. अनिल गलगली यांच्या तक्रारीची गंभीर दखल घेत पालिका आयुक्त अजोय मेहता यांच्या आदेशाने दिनांक 27 मे 2015 रोजी परिपत्रक काढत विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार यांच्या सेवा दिनांक 1 जून 2015 पासून संपुष्टात आणण्याबाबत सूचना जारी झाल्या आहेत. यामध्ये स्पष्ट केले आहे की जरी आयुक्तांची थेट मंजूरी प्राप्त करुन घेऊन नियुक्ती केलेली असल्यास , सदर नियुक्त्या देखील संपुष्टात आणावयाच्या आहेत. यापुढे अश्या नियुक्त्या बाबत नवीन प्रकरणे सादर न करण्याची सूचना करत दिनांक 1 जून 2015 नंतर विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार यांच्या नियुक्त्या रद्द न होता चालू राहिल्यास, त्यांची जबाबदारी संबंधित खाते प्रमुख/ सहाय्यक आयुक्त यांची राहिल. आयुक्त अजोय मेहता यांचे आभार मानत अनिल गलगली यांनी यामुळे कार्यरत अधिकारी यांचे मनोबल उंचावेल, अशी आशा व्यक्त केली कारण सेवा निवृत्तिनंतर विशेष कार्य अधिकारी/ सल्लागार या नावावर काम करणा-यांमुळे सेवेतील अधिकारी-कर्मचा-यांचे खच्चीकरण होत होते. # टॉप 10 लखपती पालिकेच्या जीवावर जवळपास 40 अधिका-यांचे गेल्या 5 वर्षात चांगलेच भले झाले आहे. न.ह.कुसनुर यांस 29 लाख 50 हजार, शि.सं.पालव यांस 13 लाख 10 हजार, स्नेहा खांडेकर यांस 10 लाख 47 हजार, प्र.वि.कुलकर्णी यांस 9 लाख 87 हजार, ना.भि. आचरेकर यांस 9 लाख 50 हजार, एस.डी.खंदारे यांस 9 लाख, शशिकांत शिंदे यांस 7 लाख 20 हजार, गोविंद राठोड यांस 6 लाख, उदय माडे यांस 5 लाख 71 हजार आणि बाबासाहेब पवार यांस 5 लाख 37 हजार 880 रुपये देण्यात आले आहे. # नियम धाब्यावर बसविला होता त्यावेळेच्या पालिका आयुक्तांनी शासनाची कोणतीही परवानगी न घेता चक्क 40 अधिका-यांची चांगलीच सोय केली. याबाबत पालिका आयुक्त कार्यालयाने शासनाची परवानगी न घेण्याची बाब कबूल करत पालिकेच्या परिपत्रकांचा आधार घेतला आहे. डॉ जगन्नाथ ढोणे बनाम महाराष्ट्र सरकार या मुंबई हायकोर्टातील एका आदेशानंतर शासनाने दिनांक 14 जानेवारी 2010 रोजी आदेश जारी करत विशिष्ट परिस्थितीत अश्या नियुक्त्या करताना शासनाची पूर्व परवानगी घेण्याची अट घातली होती. मागील सरकारने मुख्य माहिती आयुक्त रत्नाकर गायकवाड यांनाही दणका देत राज्य माहिती आयोगात अश्या प्रकारे कंत्राटी पद्धतीवर नियुक्त केलेल्या खोब्रागडे नामक 68 वर्षीय सेवानिवृत्त अधिकारांस घरी पाठविले होते. अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय आणि पालिका आयुक्त अजेय मेहता यांस तक्रार केल्यानंतर सदर कारवाई करण्यात आली आहे.

BMC OSD/ Consultant appointment discontinued from 1 June 2015

After a shocking revelation made by RTI Activist Anil Galgali, In the various offices and departments of the Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC), as many as 40 Officers on Special Duty (OSD) as well as Consultants have been appointed n Contractual Basis in the last 5 years, and a whopping sum of Rs. 1.70 crores have been spent on them as fees for their services. Bmc Commissioner Ajoy Metha has decided to discontinued OSD /Consultant Services from 1 June 2015. RTI Activists Anil Galgali had sought information from the BMC Commissioner office of such appointments of such consultants and OSDs. BMC provided Anil Galgali with a list of 40 officers who have been deputed and retained by the BMC from 1st January 2010 till the 28th February, 2015. . In all, BMC has spurlged a whopping 1.70 crores for taking care of these Retired Employees in these 5 years. After Anil Galgali expose this malpractice and demand to review there work, Bmc Commissioner Ajoy Mehta issue a circular Dated 27 May 2015 to discontinued all OSD/ Consultant from 1 June 2015. The circular clearly stated that if any one appointment sanction by even bmc Commissioner, also be discontinued. Circular strictly instructed that in future no new proposal should not submit and if any OSD / Consultant without discontinued found working then its was responsibility of Head of the Department and Assistant Municipal Commissioner. Anil Galgali who follow-up OSD/ Consultant issue with Govt and Bmc level, say thanks to Ajoy Mehta for his bold decision. Galgali stated that its was help to increase self confidence in other staff who was neglected promotion and other responsibility by appointment this retired staff as a OSD /Consultant # TOP 10 Lakhpatis ...Thank you Commissioner! Nearly 40 Officers have made merry in the last 5 years, thanks to special efforts taken by the then BMC commissioner. The Commissioner did not take the government in confidence, had it done that, it would have been a cakewalk as it is seen, claim sources. The monies earned by these OSDs cum Consultants will definitely raise some eyebrows. NH Kusoor 29.50 lakhs, SS Palav 13.10 lakhs, Sneha Khandekar 10.47 lakhs, PV Kulkarni 9.87 lakhs, SD Khandare 9 lakhs, Shashikant Shinde 7.20 lakhs, Govind Rathod 6 lakhs, Uday Mande 5.71 lakhs and Babasaheb Pawar has managed to earn 5.37 lakhs. # All rules were flouted!!! The BMC Commissioner has not sought any permission from the Government, and did make sure that these 40 officers make merry. The worst is Commissioners office has agreed to not take any permission, but has taken support of various Notices and Orders to ensure these officers are on board, in the RTI. In a special order passed by the Court in the Dr jagganath Dhone v/s Government of Maharashtra, on the 14th January, 2010, the Court had directed to make such appointments but only after getting the necessary permission from the Government. The earlier Government on learning such Contractual appointments had sent home An Officer named Khobragade aged 68, who was appointment by now CIC Ratnakar Gaikwad then. After Anil Galgali follow up and Complaint to CM Devendra Fadnavis along with Chief Secretary Swadhin Kshatriya and BMC chief Ajoy Mehta, Mr Mehta quickly took decision and discontinued all type of OSD/ Consultant service from Bmc who was enjoy after retirement.

Saturday 30 May 2015

मुंबई मेट्रो की सुरक्षा पर एमएमआरडीए सालाना करती है 28.14 करोड़ का खर्च, प्रॉफिट कमाती है अंबानी की मुंबई मेट्रो कंपनी

पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप योजना के तहत बनकर दौड़नेवाली मुंबई मेट्रो ने मनमानी तरीके से किराया बढ़ाकर मुंबईकरों की कमर तोड़ते हुए सरकार को कोर्ट में जाने के लिए विवश किया है। मनमानी तरीके से किराया बढ़ाकर प्रॉफिट कमानेवाली अनिल अंबानी की मुंबई मेट्रो वन कंपनी पर मेहरबानी कर मुंबई मेट्रो की पुरी सुरक्षा उठानेवाली एमएमआरडीए प्रशासन आज भी सालाना 28.14 करोड़ का खर्च करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को प्राप्त हुई है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से मुंबई मेट्रो की सुरक्षा पर किए जानेवाले खर्च की जानकारी मांगी थी। एमएमआरडीए प्रशासन ने अनिल गलगली को जानकारी दी कि कुल सालाना सुरक्षा अग्रीमेंट खर्च 21.77 करोड़ ( रु.4.27 करोड़ जमा करनेवाली सुरक्षा रकम को छोड़कर+ 1 महीने की एडवांस रकम) के अलावा स्नीफर डॉग्स का अब तक का संभावित खर्च रु. 28.80 लाख इतना हैं। ये सब रकम 28 करोड़ 13 लाख 80 हजार इतनी होती हैं। एमएमआरडीए प्रशासन ने अब तक अप्रैल 2014 से जनवरी 2015 इन 10 महीनों में महाराष्ट्र स्टेट सिक्यूरिटी कॉरपोरशन को 8 करोड़ 69 लाख 66 हजार 64 रुपए अदा किया है। मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड इस कंपनी को हर महीने रु.3.20 लाख के हिसाब से 20 महीने में 32 लाख दिया है। मुंबई मेट्रो को सुरक्षा देने का फैसला 22 अक्टूबर 2010 को मुख्य सचिव और मुंबई पुलिस के साथ हुई बैठक में लिया गया और एमएमआरडीए प्रशासन ने उसपर मुहर लगाई है। मेट्रो कंपनी ने उनके जरिए तैनात किए गए प्राइवेट सुरक्षा व्यवस्था द्वारा स्थिती पर नियंत्रण लाने की बात रखी गई थी। मुंबई पुलिस ने मेट्रो और मोनोरेल की महत्ता और सॉफ्ट टार्गेट होने की आशंका जताते हुए सीआयएसएफ जैसे प्रशिक्षित एजेंसी पर विश्वास रखा। इसके चलते एमएमआरडीए प्रशासन को अब सालाना करोड़ों रुपए मुंबई मेट्रो की सुरक्षा पर खर्च करने की मजबूरी आन पड़ी हुई हैं। इतना पैसा खर्च करने के बाद भी मुंबई मेट्रो कंपनी एमएमआरडीए की रत्ती भर भी सुनती नही है और मेट्रो प्रोजेक्ट ये प्राइवेट संपत्ति होने की गुमान में बर्ताव कर रही हैं। ऐसी टिपण्णी कर अनिल गलगली ने ये खर्चा मुंबई मेट्रो कंपनी द्वारा करने की मांग की है। क्योंकि इस प्रोजेक्ट से एमएमआरडीए प्रशासन को एक छद्दम दमडी की कमाई नही हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय और एमएमआरडीए आयुक्त यूपीएस मदान को लिखे हुए पत्र में मांग की है कि सुरक्षा खर्च मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनी से वसूल करे और भविष्य में सुरक्षा की जिम्मेदारी एमएमआरडीए प्रशासन के बजाय प्रॉफिट कमानेवाली मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनी पर निश्चित करे।

मुंबई मेट्रोच्या सुरक्षेवर एमएमआरडीए करते वार्षिक 28.14 कोटीचा खर्च, नफा कमविते अंबानीची मुंबई मेट्रो कंपनी

सार्वजनिक खाजगी भागीदारी तत्वावर बांधून धावणारी मुंबई मेट्रोने अन्यायकारक भाडेवाढ करत मुंबईकरांचे कंबरडे मोडताना सरकारला कोर्टात जाण्यास बाध्य केले. मनमानी भाडे वाढवित नफा कमविणा-या अनिल अंबानीच्या मुंबई मेट्रो वन कंपनी वर मेहरबानी दाखवित संपूर्ण मुंबई मेट्रोच्या सुरक्षेवर एमएमआरडीए प्रशासन आजही वर्षाला 28.14 कोटीचा खर्च करत असल्याची धक्कादायक माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस प्राप्त झाली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडे मुंबई मेट्रोच्या सुरक्षेवर केलेल्या खर्चाची माहिती मागितली होती. एमएमआरडीए प्रशासनाने अनिल गलगली यांस कळविले की एकुण वार्षिक सुरक्षा करार खर्च 21.77 कोटी ( रु.4.27 कोटी जमा करायची सुरक्षा रक्कम वगळून+ 1महिन्याची आगाऊ रक्कम) तसेच स्नीफर डॉग्स चा आतापर्यन्तचा अंदाजित खर्च रु. 28.80 लाख इतका आहे. ही सर्व रक्कम 28 कोटी 13 लाख 80 हजार इतकी होते. एमएमआरडीए प्रशासनाने आतापर्यंत एप्रिल 2014 ते जानेवारी 2015 या 10 महिन्यात महाराष्ट्र स्टेट सिक्यूरिटी कॉरपोरशनला 8 कोटी 69 लाख 66 हजार 64 रुपये अदा केले आहे. मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड या कंपनीला दरमहा रु.3.20 लाख याप्रमाणे 32 लाख दिले आहे. मुंबई मेट्रोस सुरक्षा देण्याचा निर्णय 22 ऑक्टोबर 2010 रोजी मुख्य सचिव आणि मुंबई पोलीस यांच्या सोबत झालेल्या बैठकीत घेण्यात आला होता आणि एमएमआरडीए प्रशासनाने त्याबाबतीत निर्णय घेतला. मेट्रो कंपनीने त्यांच्यामार्फत तैनात खाजगी सुरक्षा व्यवस्थेद्वारे स्थितीवर नियंत्रण करण्याचे सांगण्यात आले. मुंबई पोलिसांनी मेट्रो आणि मोनोरेल ची महत्ता आणि सॉफ्ट टार्गेट असण्याची भीती व्यक्त करत सीआयएसएफ सारख्या प्रशिक्षित एजेंसीवर विश्वास ठेवला. यामुळे एमएमआरडीए प्रशासनास आता वार्षिक कोटयावधी रुपये मुंबई मेट्रोच्या सुरक्षेवर खर्च करण्याची पाळी आली आहे. इतके पैसे खर्च करुनही मुंबई मेट्रो कंपनी एमएमआरडीएला जुमानत नसून मेट्रो प्रकल्प ही खाजगी संपत्ति असल्याचा तो-यात वागत आहे, अशी टीका करत अनिल गलगली यांनी सदर खर्च मुंबई मेट्रो कंपनी मार्फत करण्याची मागणी केली आहे कारण या प्रकल्पातुन एमएमआरडीए प्रशासनास एक नवीन दमडीची कमाई नाही आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय आणि एमएमआरडीए आयुक्त यूपीएस मदान यांस लिहिलेल्या पत्रात मागणी केली आहे की सुरक्षा खर्च मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनीकडून वसूल करावा आणि भविष्यात सुरक्षेची जबाबदारी एमएमआरडीए प्रशासनाने घेण्याऐवजी ती नफा कमविणा-या मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनीची निश्चित करावी.

Mumbai Metro security cost borne by MMRDA and profit cornered by Ambani's MMOPL

Mumbai Metro One which was constructed on a PPP Platform, and has inflicted burden on the common Mumbaikars by unilateral increase in its fares, forcing the Govt to approach the Courts. Though the unprecedented and unilateral increase of the fares by Ambani controlled MMOPL may be earning its profits, the actual cost of the security for its smooth run is being paid for by the MMRDA . In a shocking revelation it has now come to knowledge through a reply to a RTI query by Activist Anil Galgali that in the past one year the MMRDA has spent almost Rs 28.14 crores on the security of the Metro. RTI Activist Anil Galgali had filed an RTI query seeking details of expenditure incurred on the security of Mumbai Metro One. MMRDA administration, in reply to the query informed Anil Galgali that, a total annual security agreement cost was Rs 21.77 crores, also Rs 4.27 was paid as security deposit, as well as one month advance charges, also an expected cost of Rs 28.80 Lakhs was fixed for provision of Sniffer Dogs totalling Rs 28 crores 13 lakhs 80 thousand. From April 2014 to January 2015, MMRDA has made a payment of Rs 8 crores 69 lakhs 66 thousand to the Maharashtra State Security Corporation in past 10 months. MMRDA has also paid Rs 32 Lakhs @ of Rs 3.20 lakhs per month for the past 10 months on account of Sniffer Dogs to the MMOPL against its own estimated cost of Rs 28.80 Lakhs for 12 months for the dogs. The decision of the security was taken on 22nd October 2010 in a meeting held along with the Chief Secretary and the Mumbai Police. The Metro company had expressed its opinion of provision of security through Private companies, where as the Police dept cited that the Metro as well as Mono Rails were soft targets for anti social elements and hence the security be provided to trained govt security agencies like CISF etc. Because of this the responsibility of security came on MMRDA, which has to now spend crores of public funds on security of a private partnership venture, through which it has yet not earned a single rupee and is operated by the Reliance group as its own private venture and has not even bothered to listen to MMRDA on important public issues, alleged Anil Galgali. Galgali further stated that, this expenses should be solely borne by the MMOPL as MMRDA has not earned any thing out of this project, neighter is there any chance for it. In a letter addressed to CM Devendra Fadnavis, Chief Secretary Swadheen Kshatriya and MMRDA Commissioner UPS Madan, RTI Activist Anil Galgali has demanded that the expenses incurred on security be recovered from MMOPL, also the responsibility of arranging and paying for the cost of security be fixed on the profit making MMOPL instead of MMRDA.

Tuesday 26 May 2015

5 महिने में मंत्री और सचिव ने डकारा 4.66 लाख का बिसलेरी पानी

मंत्रालय के सभी मंत्री, राज्यमंत्री, सचिव और अन्य लोगों ने 5 महीने में 4.66 लाख का बिसलेरी पानी डकारने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को महाराष्ट्र सरकार ने दी है। मंत्री और सचिव द्वारा पीये हुए 24 हजार 648 लीटर बिसलेरी पानी के लिए सरकार ने लाखों रुपए पानी की तरह बहाए है जबकि इतने ही पानी के लिए मनपा सिर्फ 171 रुपये लेती है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार से मंत्रालय में इस्तेमाल होनेवाले बिसलेरी पानी के लिए अदा किए गए कुल शुल्क और कुल लीटर पानी की जानकारी मांगी थी। मंत्रालय कैंटीन के महा प्रबंधक और जन सूचना अधिकारी ज. म. सालवी ने अनिल गलगली को बताया कि दिसंबर 2014 से अप्रैल 2015 इन 5 महीनों में सप्लाई किए गए बिसलेरी बॉटल की संख्या 83 हजार 628 है जिसकी कुल किंमत 4 लाख 66 हजार 19 रुपये और 88 पैसे इतनी है। इसमें सर्वाधिक इस्तेमाल किए गए 250 मिली बिसलेरी बॉटल की संख्या 68 हजार 976 है जिसपर 3 लाख 67 हजार 642 रुपए और 08 पैसे खर्च किया गया है वहीँ 14 हजार 496 बिसलेरी बॉटल ये 500 मिली की थी जिसपर सरकार ने 96 हजार 688 रुपए और 32 पैसे खर्च किया है। 1 लीटर की बिसलेरी बॉटल ये सिर्फ 156 इस्तेमाल करते हुए उसकी किंमत 1 हजार 689 रुपए और 48 पैसे अदा की गई है। मंत्रालय में अक्वागार्ड की उत्तम सुविधा भी उपलब्ध है। अनिल गलगली ने मंत्रालय में कुल इस्तेमाल होनेवाला पानी और बिल की रकम इस जानकारी के अलावा रोजाना आपूर्ति होनेवाला पानी के अलावा बिसलेरी पानी का इस्तेमाल करने के लिए सरकार ने जारी किए हुए आदेश की कॉपी मांगने पर उन्हें अब तक सरकार ने जानकारी नही दी है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के अनुसार बिसलेरी पानी पर लाखों रुपए सरकार भले ही उड़ा रही है लेकिन इतना ही पानी सिर्फ 171 रुपए में मनपा प्रशासन द्वारा मुंबईकरों को मुहैय्या कराती हैं। मनपा द्वारा 1 हजार लीटर पानी पर 4.32 रुपये और सीवरेज शुल्क (4.32+ 2.592=6.912 रुपए ) ऐसा चार्ज वसूलती है। सूखाग्रस्त और दूर दराज गांवों में जनता पानी की बूंद बूंद के लिए तरसती होते हुए मंत्रालय में जनता के लिए कामकाज़ चलानेवाले लाखों रुपए बिसलेरी पानी पर उड़ाना नैतिकता के लिहाज से योग्य न होने की टिप्पणी करते हुए अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र भेजकर मांग की है कि मनपा का पानी क्वालिटीयुक्त और साफ़ होने से उसका इस्तेमाल करने का आदेश दे। इसके बावजूद अगर किसी मंत्री या सचिव को बिसलेरी पानी का इस्तेमाल करना ही है तो वह उसे खुद ही अपनी जेब से करे।

5 महिन्यात मंत्री आणि सचिवाने गटकले 4.66 लाखाचे बिसलेरी पाणी

मंत्रालयातील सर्व मंत्री, राज्यमंत्री, सचिव आणि इतर यांनी 5 महिन्यात 4.66 लाखाचे बिसलेरी पाणी गटकल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस महाराष्ट्र शासनाने दिली आहे. मंत्री आणि सचिव यांनी पिलेल्या 24 हजार 648 लीटर बिसलेरी पाण्यासाठी शासनाने लाखों रुपये मोजले आहे त्यासाठी पालिका फक्त 171 रुपये आकारते. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी महाराष्ट्र शासनाकडे मंत्रालयात वापरण्यात येणा-या बिसलेरी पाण्यासाठी अदा केलेले एकुण शुल्क आणि लीटर याची माहिती मागितली होती. मंत्रालय उपाहारगृहाचे महाव्यवस्थापक आणि जन माहिती अधिकारी ज. म. साळवी यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की डिसेंबर 2014 ते एप्रिल 2015 या 5 महिन्यात पुरवठा करण्यात आलेल्या बिसलेरी बॉटलची संख्या 83 हजार 628 असून त्याची एकूण किंमत 4 लाख 66 हजार 19 रुपये आणि 88 पैसे इतकी आहे. यामध्ये सर्वाधिक वापरण्यात आलेली 250 मिली बिसलेरी बॉटलची संख्या 68 हजार 976 आहे ज्यावर 3 लाख 67 हजार 642 रुपये आणि 08 पैसे खर्च झाले आहेत तर 14 हजार 496 बिसलेरी बॉटल या 500 मिली च्या असून त्यावर शासनाने 96 हजार 688 रुपये आणि 32 पैसे खर्च केले आहे. 1 लीटरच्या बिसलेरी बॉटल या फक्त 156 वापरल्या गेल्या असून त्याची किंमत 1 हजार 689 रुपये आणि 48 पैसे आहे. अनिल गलगली यांनी मंत्र्यालयातील एकूण वापर होणारे पाणी आणि बिलाची रक्कम या माहिती व्यतिरिक्त दैनंदिन पाण्याअतिरिक्त किंवा बिसलेरी पाणी वापरण्याबाबत शासनाने काढलेल्या आदेशाची प्रत मागितली असता ती अजुन शासनाने दिली नाही. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांच्या मते बिसलेरी पाण्यासाठी लाखों रुपये शासनाने उधळले असून एवढेच पाणी फक्त 171 रुपयात पालिका प्रशासन मुंबईकरांना पुरविते. 1 हजार लीटर पाण्यापोटी पालिका 4.32 रुपये आणि 1/6 सीवरेज शुल्क (4.32+ 2.592=6.912 रुपये ) असा दर आकारते. मंत्रालयात अक्वागार्डची उत्तम सोय सुद्धा आहे. दुष्काळग्रस्त आणि खेडयापाडयातील जनता पाण्याच्या थेंबा-थेंबासाठी तळमळत असताना मंत्रालयात जनतेसाठी राज्य कारभार चालविणा-यांनी लाखों रुपये बिसलेरी पाण्यासाठी उधळणे योग्य नसल्याची खंत व्यक्त करत अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस पत्र पाठवून मागणी केली आहे की पालिकेचे पाणी दर्जेदार आणि स्वच्छ असून त्याचा वापर करण्याचे आदेश द्यावे. तसेच ज्या मंत्र्यास किंवा सचिवांस बिसलेरी पाण्याचा वापर करावयाचे आहे त्यांनी स्वतः खर्च करावा.

Mantralaya inhabitants gulp down mineral water worth Rs 4.66 Lakhs in 5 Months.

The Ministers, Secretaries and other govt staffers, working in Mantralaya are now accustomed to drinking bottled mineral water, as against that being supplied by the BMC, in the last 5 months they have drank up a bill of Rs 4.66 Lakhs for Bisleri water in all consuming 24,648 Litres of water. The similar quantity of BMC water supplied by the pipeline would have costed Rs 171=00 only. RTI Activist Anil Galgali had sought information from the state govt regarding the cost and quantity of consumption of Bisleri Water in Mantralaya. In a reply to the query Mr J M Salvi, General Manager & Public Information Officer of the Mantralaya Canteen informed Anil Galgali that, Between December 2014 to April 2015 comprising of 5 months a total of 83,628 Bisleri Bottles of water was purchased at the cost of Rs 4,66,019=88. Of these, the maximum usage was of 250 ML Bottles accounting for 68,976 bottles amounting to Rs 3,67,642=08, the next was 14,496 bottles of 500 ML amounting to Rs 96,688=32, The 1 Litre bottle consumed was just 156 bottles amounting to 1,689=48. Anil Galgali had also sought copies of the GR authorizing purchase of bottled water, apart from the water supply of the BMC, which has not been provided with. According to Galgali, the govt is indulging in splurging public money by using mineral water, where as the cost of BMC water for a similar quantity would have costed just Rs 171/= as the BMC charges just Rs 4.32 + Sewerage Charges totalling to Rs 6.912 for 1000 litres of water supplied through its pipelines. In Mantralaya there is a Acquaguard purified system installed by Government. In a situation where the state is reeling under severe drought, and the citizens are craving for even single drop of water, the people who are supposed to perform for the citizens are indulging in wasteful expenditure by consuming mineral water alleged Galgali in a letter addressed to CM Devendra Fadnavis. In his letter Galgali further stated that, the Water supplied by the BMC is of best quality and also pure and clean, hence the CM should instruct usage of the BMC water only for drinking purposes, also if any Minister or a Babu wants to consume bottled mineral water, then they should buy that water and pay from their own pockets.

Wednesday 20 May 2015

गलत होते हुए भी मुंबई डेवलपमेंट प्लान से मनपा ने कमाएं 60 लाख

मुंबई डेवलपमेंट प्लान में बड़े पैमाने पर गलतियां और जनता के विरोध से चर्चित होने के बावजूद 6839 लोगों ने विभिन्न डीपी रिपोर्ट, डीपी शीट और डीपी रिमार्क्स के लिए पुरे 60 लाख रुपए गिनने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को डेवलपमेंट प्लानिंग डिपार्टमेंट ने दी है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई डेवलपमेंट प्लान के तहत मनपा में पंजीकृत आवेदन, अदा की हुई फीस की जानकारी मांगी थी। मनपा के डेवलपमेंट प्लानिंग डिपार्टमेंट के प्रशासकीय अधिकारी ने अनिल गलगली को बताया कि मुंबई डेवलपमेंट प्लान के तहत डीसीआर पुस्तिका, डीपी रिपोर्ट, डीपी शीट और डीपी रिमार्क्स की विक्री से कुल 59 लाख 48 हजार 87 रुपए की रकम जमा हुई है। इसमें सर्वाधिक रकम 39 लाख 5 हजार 312 रुपए डीपी रिमार्क्स की विक्री कर जमा हुई हैं। कुल 2220 लोगों ने डीपी रिमार्क्स खरीदा है। उसके बाद 4130 लोगों ने डीपी शीट खरीदते हुए 13 लाख 950 रुपए मनपा को अदा किया है। 312 डीसीआर पुस्तिका की  विक्री से 4 लाख 25 हजार 880 रुपए जमा हुए वही डीपी रिपोर्ट 177 लोगों ने खरीदकर मनपा को 3 लाख 15 हजार 945 रुपए अदा किए है। मुंबई डेवलपमेंट प्लान के तहत प्राप्त सुझाव और आपत्ती को लेकर पूंछने पर अनिल गलगली को बताया गया कि 27 अप्रैल 2015 तक 64 हजार 867 इतने सुझाव और आपत्ती प्राप्त हुई है। मुंबई डेवलपमेंट प्लान में बड़े पैमाने पर हुई गलतियों के चलते ही मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 4 महीने के भीतर गलतियां को दुरुस्त कर नया प्लान लाने का दिया हुआ आदेश के मद्देनजर 6839 लोगों ने खरीदा हुआ विभिन्न डीपी की जानकारी भी गलत ही होगी, इसलिए उन लोगों का पैसा रिटर्न देने की मांग अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और मनपा आयुक्त को भेजे हुए पत्र में की है।

चुकीचा असूनही मुंबई विकास आराखडयातंर्गत पालिकेने कमविले 60 लाख

मुंबई विकास आराखडा लक्षणीय चुका आणि जनतेच्या विरोधामुळे गाजला असताना 6839 नागरिकांनी विविध आरक्षणाचा अहवाल ,आराखडा शीट आणि आराखडा अभिप्रायासाठी तब्बल 60 लाख मोजल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस विकास नियोजन खात्याने दिली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई विकास आराखडयातंर्गत पालिकेकडे आलेल्या अर्जाची, अदा केलेल्या शुल्काची आणि माहिती विचारली होती. पालिकेच्या विकास नियोजन खात्याचे प्रशासकीय अधिकारी यांनी अनिल गलगली यांना कळविले की मुंबई विकास आराखडयातंर्गत विकास नियंत्रण नियमावली पुस्तिका, आराखडा अहवाल, आराखडा शीट आणि आराखडा अभिप्रायच्या विक्रीपोटी एकुण 59 लाख 48 हजार 87 रुपये रक्कम जमा झाले आहे. यामध्ये सर्वाधिक रक्कम 39 लाख 5 हजार 312 रुपये विकास आराखडा अभिप्रायाची विक्री करुन जमा झाले आहे. एकुण 2220 लोकांनी विकास आराखडा अभिप्राय विकत घेतला. त्यानंतर 4130 लोकांनी विकास आराखडा शीट विकत घेत 13 लाख 950 रुपये पालिकेस अदा केले. 312 विकास नियंत्रण नियमावली पुस्तिका विक्रीमागे 4 लाख 25 हजार 880 रुपये जमा झाले तर विकास आराखडा अहवाल 177 लोकांनी विकत घेत पालिकेस 3 लाख 15 हजार 945 रुपये अदा केले. मुंबई विकास आराखडयातंर्गत प्राप्त सूचना आणि हरकती बाबत विचारले असता अनिल गलगली यांस कळविण्यात आले की 27 एप्रिल 2015 पर्यंत 64 हजार 867 इतक्या सूचना आणि हरकती प्राप्त झाल्या आहेत. मुंबईचा विकास आराखडयात झालेल्या लक्षणीय चुकामुळेच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी 4 महिन्याच्या आत चुका दुरुस्त करत नवीन आराखडा आणण्याचे दिलेले आदेश पहाता 6839 नागरिकांनी विकत घेतलेल्या विविध विकास आराखडा याची माहिती सुद्धा चुकीची असणार, त्यामुळे त्या नागरिकांचे पैसाचा परतावा करण्याची मागणी अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव आणि पालिका आयुक्तांना पाठविलेल्या पत्रात केली आहे.

Though Faulty, the DP Plan earns Rs 60 Lakhs for the BMC.

Almost 6839 citizens sought various DP Remarks, DP Sheets, DP Reports on feeling alarmed by the faults in the DP Plan prepared by the BMC. For these details they had to spend almost Rs 60 Lakhs to the BMC, revealed a information reply to RTI Activist Anil Galgali. RTI Activist Anil Galgali had sought the details from the BMC, about the total number of applications received and charges paid by the citizens seeking information about the newly prepared Mumbai Development Plan. In a reply the Administrative Officer of the DP dept revealed that, citizens sought various information's like the DCR Booklet, DP Report, DP Sheet, & DP Remarks in the process generating a revenue of Rs 59 Lakhs 48 Thousand 087. Of these, Rs 39 Lakhs 5 Thousand 312 was earned by providing DP Remarks, to about 2220 applicants. Almost 4130 citizens sought DP Sheets which earned Rs 13 Lakhs 950 to the BMC. The BMC sold about 312 DCR Booklets earning Rs 4 Lakhs 25 Thousand 880 and finally 177 citizens applied for DP Report bringing in a revenue of Rs 3 Lakhs 15 Thousand 945. On the query of total number of suggestions and objections received by the BMC, it was informed Anil Galgali that up till 27th April 2015 the BMC received a total of 64,867 suggestions and objections. Looking at the monumental mistakes committed by the BMC in preparing the new Mumbai DP Plan, CM Devendra Fadnavis has instructed BMC to correct its mistakes and come out with a fault free DP Plan in 4 months, but it is important to note here that the BMC supplied information to 6839 applicants information's from the faulty DP Plan which in itself may be faulty, hence in a letter addressed to the CM, CS & BMC Commissioner, Anil Galgali has demanded that the charges be refunded to the 6839 applicants.

Thursday 14 May 2015

मोनो रेल की सुरक्षा पर महीने का खर्च 76 लाख

भारत की प्रथम मोनो रेल जो मुंबई में चलती है उसकी सुरक्षा पर हर महीने 76 लाख का खर्च होने की जानकारी असल्याची आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एमएमआरडीए प्रशासन द्वारा दी गयी है वहीँ रोजाना औसतन 14282 यात्री मोनो रेल से सफर कर रहे है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से मोनो रेल की विभिन्न जानकारी मांगी थी। मोनो रेल के उप अभियंता और जन सूचना अधिकारी ने अनिल गलगली को बताया कि 2 फरवरी 2014 को मोनो रेल शुरु हुई है। कुल खर्च 2716 करोड़ अपेक्षित है और अब तक 2290 करोड़ रुपए खर्च किया गया है। मेसर्स स्कोमी इंजीनियरिंग बीएचडी, मलेशिया समूह (LTSE) और मेसर्स लार्सन एंड टुब्रो, इंडिया इन कंपनियों को 2290 करोड़ रुपए अदा किया गया है। मोनो रेल के 7 स्टेशन और डेपो सुरक्षा पर 75 लाख 96 हजार 77 रुपए हर महीने खर्च आ रहा है। इस सुरक्षा की पुरी जिम्मेदारी महाराष्ट्र स्टेट सिक्यूरिटी कॉरपोरेशन को दी गयी है। मोनो रेल के यात्री की संख्या और टिकट विक्री की जानकारी मांगने पर अनिल गलगली को बताया गया कि फरवरी 2014 से मार्च 2015 इन 14 महीनों में 59 लाख 98 हजार 069 यात्रियों ने मोनो रेल का लाभ लिया है। टिकट विक्री के जरिए 4 करोड़ 88 लाख 46 हजार 969 रुपए एमएमआरडीए प्रशासन की तिजोरी में जमा हुए है। एमएमआरडीए प्रशासन को हर एक फेरी पर 3131 रुपए का खर्च हो रहा है जबकि एक दिन में 131 से अधिक फेरी नही होती है। द्वितीय चरण का काम 81 प्रतिशत पूर्ण होने का दावा कर एमएमआरडीए ने शेष बचा हुआ काम दिसंबर 2015 तक पूर्ण होना अपेक्षित है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र भेजकर मांग की है कि मोनो रेल की सेवा सार्वजनिक यातायात व्यवस्था का ही एक हिस्सा होने से सुरक्षा शुल्क सरकार माफ कर मुफ़्त सुरक्षा सेवा मुहैया कराई तो मोनो रेल का होनेवाला घाटा कुछ कम होगा। साथ ही में मोनो रेल में अधिक मात्रा में सुरक्षा अधिकारी और कर्मचारी होने से जितनी जरुरत है उतनी ही सुरक्षा कार्यरत रखी जाए।

मोनो रेलच्या सुरक्षेवर मासिक 76 लाखांचा खर्च

भारतातील पहिली मोनो रेल जी मुंबईत कार्यरत आहे तिच्या सुरक्षेवर मासिक 76 लाखांचा खर्च येत असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस एमएमआरडीए प्रशासनाने दिली असून दररोज सरासरी 14282 हजार प्रवाशी मोनो रेलचा लाभ घेत आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडे मोनो रेलबाबत माहिती मागितली होती. मोनो रेलचे उप अभियंता आणि जन माहिती अधिकारी यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की 2 फेब्रुवारी 2014 रोजी मोनो रेल सुरु झाली आहे. एकूण खर्च 2716 कोटी अपेक्षित असून आतापर्यंत 2290 कोटी रुपये खर्च झाले आहेत. मेसर्स स्कोमी इंजीनियरिंग बीएचडी, मलेशिया समूह (LTSE) आणि मेसर्स लार्सन एंड टुब्रो, इंडिया या कंपन्यास 2290 कोटी रुपये अदा केले आहे. मोनो रेलच्या 7 स्टेशन आणि डेपो सुरक्षेवर 75 लाख 96 हजार 77 रुपये मासिक खर्च येत असून महाराष्ट्र स्टेट सिक्यूरिटी कॉरपोरेशन यास नियुक्त केले आहे. मोनो रेल प्रवाशी संख्या आणि तिकीट विक्रीची माहिती विचारली असता अनिल गलगली यांस कळविण्यात आले की फेब्रुवारी 2014 ते मार्च 2015 या 14 महिन्यात 59 लाख 98 हजार 069 प्रवाश्यांनी मोनो रेलचा लाभ घेतला असून तिकीट विक्रीच्या माध्यमातून 4 कोटी 88 लाख 46 हजार 969 रुपये एमएमआरडीए प्रशासनाच्या तिजोरीत जमा झाले आहे. एमएमआरडीए प्रशासनाला प्रत्येक फेरीमागे 3131 रुपये खर्च येत असून एका दिवसात 131 पेक्षा जास्त फेरी होत नाही. दुस-या टप्याचे काम 81 टक्के पूर्ण झाले असुन उर्वरित राहिलेले काम डिसेंबर 2015 पर्यंत पूर्ण होणे अपेक्षित आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस पत्र पाठवून मागणी केली आहे की मोनो रेलची सेवा सार्वजनिक वाहतुक व्यवस्थेचा एक भाग असून मासिक सुरक्षा शुल्क शासनाने माफ करत मोफत सुरक्षा सेवा पुरवली तर मोनो रेलचे होणारे नुकसान कमी होईल. तसेच काही जास्तच प्रमाणात सुरक्षा अधिकारी आणि कर्मचारी असून जितकी आवश्यकता आहे तितकीच कार्यरत ठेवावी.

MMRDA monthly spends Rs 76 lakhs on Mono Rail's Security

In a shocking revelation by the MMRDA to RTI activist Anil Galgali, a whopping sum of Rs, 76 lakhs is spent on just the security of India's first Mono Rail its stations and depots that are operational since February 2014. MMRDA in reply to the RTI have confirmed that on an average 14,282 passengers are using the services daily. A query raised by RTI Activists Anil Galgali was replied by the Deputy Engineer cum public Information Officer of Mono Rail. Monorail first began its operation on the 2nd February 2014. In all, a total sum of Rs 2716 crores was drawn as an planned expense out of which Rs 2290 is already spent by MMRDA. M/s Skomi Engineering BHD a Malaysia Group (LTSE) and M/s Larsen and Tubro are the beneficiaries of this amount spent by the MMRDA. An exact amount of Rs 75,96,077/- is been spent only on the Security of the 7 stations and depots of Monorail work of which is been awarded to Maharashtra State Security Corporation. Anil Galgali also ask the information about number of passenger and total collection. MMRDA informed that from a period of February 2014 to March 2015 i.e. In 14 months in all 59,98,069/- passengers have used the services of Mono Rail and Rs 4,88,46,969/- is the revenue generated in form of sale of tickets. One round trip costs MMRDA a sum of Rs 3131 per trip and not more than 131 trips are done daily. The second portion of the remaining work of Mono Rail is 81% complete and will be ready by December 2015. In a letter written to the CM Devendra Fadnavis, Anil Galgali has asked for relaxation on the security expense collected by the Government ex-chequer. This will lighten the burden of MMRDA and in a way can make Mono Rail project a bit viable. "It is a public transport now. It would be easier for the MMRDA if the government stops collecting these huge amounts per month just for providing security to stations and depots. I have also requested the CM in my letter to stop the overflow of people sent in by the Government for this specific purpose as security should be provided only as per the requirements." Concluded Galgali.

Wednesday 6 May 2015

सलमान खान पर फैसला, जमानत और 'घरवापसी'

बुधवार, 7 मई 2015 का दिन शायद भारतीय न्यायव्यवस्था और पुलिस प्रशासन के लिए कई मायनों से महत्त्वपूर्ण और यादगार माना जाना चाहिए। 13 वर्ष पूर्व घटित हिट एंड रन केस मामले की सुनवाई होकर उसपर फैसला आना और उससे भी तीव्र यानी 4745 दिनों की गति से मुंबई हायकोर्ट में जमानत लेकर सिर्फ 3 घंटे में 'घरवापसी' शायद सलमान खान के ही नसीब में थी। सलमान खान फिल्मी पर्दो का हिरो है और 'मैंने प्यार किया' से से लेकर 'दबंग' तक का इसका मासूम और बाद में एंग्री मैन तक बदलता चेहरा आज भी लाखों के दिलों की धड़कन है। सलमान बॉलीवुड के तमाम खान बंधुओं की तुलना में अधिक लोकप्रिय और चर्चित अभिनेता है। फिल्मी दुनिया के बाहर भी इनकी 'दुनियादारी' चलती भी है और कई बार विवाद का कारण भी बन चुकी है। परिवार से लेकर बॉलीवुड और सड़क से लेकर पॉश इलाके में सलमान का अस्तिव सबको आकर्षित करने का माद्दा रखता है। आप कितने भी अच्छे कर्म करो लेकिन एक छोटीसी गलती उसपर पानी फेरने के लिए समंदर का काम करती है। सलमान के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ और एक कार एक्सीडेंट के बाद हिरो से विलेन बन गए। 'हिट एंड रन' केस मामले में सलमान खान इतनी बार मीडिया में खबरों की सुर्खिया बन गए है कि अमिताभ बच्चन जैसे गुजरात के ब्रांड अम्बेसडर है ठीक उसीतरह आगामी काल में जब भी 'हिट एंड रन' मामले से बचने के लिए सावधानियां बरतने के लिए सरकार, ट्रैफिक पुलिस किसी भी तरह का विज्ञापन जारी करती है तो उसके लिए अमिताभ जैसे महान और अनुभवी हस्तियों की तलाश करने की नौबत नही आएंगी क्योंकि हम हमारे पास अच्छा खासा अनुभव और उससे जुड़ा एक जिम्मेदार अभिनेता के तौर पर सलमान खान जो मौजूद है। भारतीय न्यायव्यवस्था और पेंडिंग केस की संख्या आज भी 10 वर्षों की प्रतिक्षा करने के लिए हर एक पीड़ित को इंतजार करने के लिए मजबूर करती है। लेकिन जब सलमान खान केस मामले में 'झटपट' सुनवाई, फैसला,जमानत और 'घरवापसी' से 'अंधा कानून' फ़िल्म की याद जरुर आती है। इस फैसले को लेकर सोशल साईट पर भारी ट्रैफिक जाम थी। मेगा ब्लाक के बाद भी आम भारतीय जनता अपना ज्ञानचक्षु खोले ऐसा कुछ देखने की चेष्ठा में मशगूल थे ताकि हर व्यक्ती का केस सलमान खान की तर्ज पर तालिम हो और उनकी भी झटपट 'घरवापसी' हो सके। हम न्यायव्यवस्था पर टिप्पणी नही कर रहे है ना फैसले को लेकर किसी भी तरह का तीलमात्र भी संदेह करने की किंचित भी प्रयास कर रहे है। सेशन कोर्ट में फैसला आते ही रो पड़ा सलमान और उसका परिवार इस तरह की बिकट स्थिती में लाचार हो जाता है। मगर किसी ईश्वरीय शक्ती की तरह दिल्ली से मुंबई देवदूत की तरह प्रकट हुए अधिवक्ता हरीश साल्वे ने आते ही बम्पर ड्रा निकाला और सलमान खान को आननफानन में जमानत मिली। जमानत का आदेश वाली कॉपी जबतक सेशन कोर्ट में पेश नही होती है तबतक सजा सुनाए गए आरोपियों को न छोड़ने का नियम है। लेकिन कोर्ट ने 4.30 के बजाय 4.45 तक हायकोर्ट की जमानत दर्शानेवाली कॉपी देने का आदेश दिया था। कोर्ट में बिना दस्तावेज और प्रक्रिया पूर्ण किए बिना सुनवाई होना संभव नही है। मगर सेशन कोर्ट के आदेश की सर्टिफाईड कॉपी पेश किए बिना हायकोर्ट में सुनवाई हुई और सलमान को जमानत भी सशर्त मिली। हायकोर्ट का आदेश देखे बिना सेशन कोर्ट से रिहाई संभव नही थी लेकिन सलमान के लिए नियम तोड़े गए और कॉपी आने तक का लंबा इंतजार किया गया ताकि सलमान की सूर्यास्त के ठीक पहले 'घरवापसी' हो सके। आज भी मेरे जैसे करोड़ों लोगों का भारतीय न्यायव्यवस्था पर शत प्रतिशत विश्वास है। क्या, ऐसी झटपट व्यवस्था हर एक मामले में देखने के लिए मिल पाएगी ? सलमान की तर्ज पर देश की निचली से लेकर ऊपरी अदालते चल पड़ेगी तो कोई भी न्यायव्यवस्था की लेटलतीफी के विवश में दम नही तोड़ेगा।

बराक ओबामा के भारत दौरे पर हुए खर्च की जानकारी गोपनीय

अमेरिका के राष्ट्रपति भारत के दौरे पर बड़ी फौज और लोग लेकर आए थे। उनके तीन दिवसीय दौरे पर भारत सरकार ने किए खर्च की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को देने से इंकार करते हुए इससे भारत के विदेश संबंध प्रभावित होने का डर विदेश मंत्रालय ने जताया है। बराक ओबामा के भारत दौरे पर हुए खर्च की जानकारी गोपनीय होने से वह आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को देने से इंकार करते हुए उनकी अर्जी खारिज की गई है। मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने राष्ट्रपति बराक ओबामा के तीन दिवसीय भारत दौरे पर हुए सभी प्रकार के खर्च की जानकारी मांगी थी। विदेश मंत्रालय के उप मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी रोहित रथिश ने अनिल गलगली को सूचित किया है कि प्रत्येक वर्ष, भारत सरकार अनेक विदेशी गणमान्य व्यक्तियों की भारत आने पर मेजबानी करती है। ये दौरे शिष्टमण्डल के स्वरुप, प्रयोजन, वर्गीकरण, संघटन, कैसी मेजबानी की गई और कितना स्वीकार किया गया और कौन कौन से शहरों का दौरा किया, की दॄष्टी से अलग-अलग होते है और ये कहना गलत नहीँ होगा कि प्रत्येक दौरा अनोखा होता है। ऐसी परिस्थितिओं में ऐसे दौरे पर भारत सरकार द्वारा खर्च की गई राशि में दौरा-दर-दौरा अंतर होता है और सरकार के लिए यह मुद्दा संवेदनशील है। ऐसी संवेदनशील सूचना के प्रकटीकरण से निश्चित तौर पर भारत के विदेश संबंधों पर प्रतिकुल प्रभाव पड सकते है। रथिश ने आगे ये कहा है कि मांगी गई सूचना संवेदनशील स्वरुप के होने के साथ- साथ भारत के विदेश संबंधों से संबंध रखती हैं। इस आलोक में तथा संवेदनशील सूचना की गोपनीयता को बनाए रखने से संबंधित आरटीआई अधिनियम, 2005 की धारा 8(1)(क) अंतर्गत स्थापित सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए इस मामले पर आगे कोई जानकारी का प्रकटीकरण उस श्रेणीत में आता है जिसकी वजह से विदेशों के साथ हमारे संबंध प्रभावित हो सकते है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने विदेश मंत्रालय के इस दावे को अद् भुत बताते हुए इस प्रकार का खर्च सार्वजनिक करने पर भारत के संबंध कैसे प्रभावित होंगे? ये तर्क संशोधन का विषय हैं। पारदर्शक कामकाज की दुहाई देनेवाली मोदी सरकार द्वारा इसतरह का तार्किक वाद कर अपरोक्ष तौर पर करोड़ों रुपए के खर्च पर पर्दा ड़ालने का प्रयास करने की कोशिश होने का टिप्पणी अनिल गलगली ने व्यक्त की हैं। बराक ओबामा के दौरे पर हुआ एक-एक पैसे की जानकारी प्रत्येक भारतीयों को स्वयंफुर्ति से बताने की जरुरत है और ये रकम भारतीयों के पसीने से जमा हुए टैक्स की है, इसका अहसास सरकार को होना चाहिए, ऐसा अनिल गलगली ने आखिर में कहा है।

मेट्रो की फेयर फिक्सेशन कमिटी बेकार

मुंबई मेट्रो का बढ़ाया हुआ मनमानी टिकट का दाम ध्यान में रखते हुए गठित की गयी फेयर फिक्सेशन कमिटी बेकार साबित हुई है और अब इस कमिटी की मियाद दोबारा बढ़ाने के लिए सरकार को सुप्रीम कोर्ट में जाने की नौबत आन पड़ी हुई है। मुंबई मेट्रो का काम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप अंतर्गत हुआ है इसके बाद भी अनिल अंबानी की मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनी ने एग्रीमेंट का उल्लंघन कर फेयर बढ़ाने का काम किया है। ये मामला कोर्ट में जाते ही उसका लाभ मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनी को हुआ। सुप्रीम कोर्ट ने फेयर फिक्सेशन कमिटी गठित कर 30 अप्रैल 2015 तक निर्णय लेने का आदेश दिया था। लेकिन केंद्र सरकार ने वैसी जलदता न दिखाते हुए उसकी ओर लापरवाही बरती और कमिटी को देरी से गठित किया। इसके चलते ही अब दोबारा कमिटी की मियाद बढ़ाने की नौबत आन पड़ी हुई है। मुंबई मेट्रो के काम पर बराबर नजर रखनेवाले आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि सरकार और मुंबई मेट्रो वन कंपनी के बीच अभद्र फिक्सिंग से समय पर निर्णय लिया नही गया है। पिछली काँग्रेस की सरकार ने 'मेट्रो एक्ट' लाकर मदत की और अबकी भाजपा सरकार ने भी जानबूझकर फेयर फिक्सेशन कमिटी का गठन देरी से कर अपरोक्ष तौर पर मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनी को मदत ही की है, ऐसा आरोप अनिल गलगली ने लगाते हुए ये पुरे मामले को मुंबईकरों से धोखाधड़ी जैसा बताया है।

मेट्रोची दर निश्चिति समिती कुचकामी

मुंबई मेट्रोची करण्यात आलेली अवाढय तिकीट दर वाढ लक्षात घेता स्थापित करण्यात आलेली दर निश्चिति समिती कुचकामी ठरली असून आता या समितीस मुदत वाढीसाठी सरकारला पुनश्च सुप्रीम कोर्टात जाण्याची वेळ येणार आहे. मुंबई मेट्रोचे काम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप अंतर्गत झाले असून अनिल अंबानीच्या मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनीने करारनामा तोडत भाडे वाढ केली. हे प्रकरण कोर्टात जाताच त्याचा फायदा मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनीला झाला. सुप्रीम कोर्टाने दर निश्चिति समिती स्थापित करत 30 एप्रिल 2015 पर्यंत निर्णय घेण्याचे आदेश दिले. पण केंद्र सरकारने तशी चपलता न दाखविता चालढकल केली आणि समिती उशीरा स्थापित केली. त्यामुळे आता पुनश्च या समितीची मुदत वाढविण्याची पाळी आली आहे. मुंबई मेट्रोच्या कामाचा पाठपुरावा करणारे आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांच्या मते सरकार आणि मुंबई मेट्रो वन कंपनीमध्ये असलेल्या फिक्सिंगमुळेच वेळेत निर्णय घेतला गेला नाही. मागील काँग्रेसच्या सरकारने 'मेट्रो एक्ट' आणत मदत केली आणि आताच्या भाजपा सरकारने सुद्धा जाणूनबुजुन दर निश्चिति समिती स्थापन करण्यात दिरंगाई करत मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट कंपनीस एकप्रकारे मदतच केली आहे, असा आरोप अनिल गलगली यांनी लावत हा संपुर्ण प्रकार म्हणजे मुंबईकरांशी फसवणूक करण्यासारखाच आहे, असे मत व्यक्त केले

Mumbai Metro FFC lost legal validity

The Centre-appointed fare fixation committee (FFC) will not be able to fix a new fare any time soon because it has lost its legal validity. FFC failed to fix a new fare before its deadline set by the Supreme Court ended.The Supreme Court had directed the FFC to fix a new fare by April 30. Mumbai Metro construction work started after agreement between MMRDA & MMOPL which was a company related with Anil Ambani Reliance Infrastructure Ltd. But MMOPL break down his own words and increase fare. After battle in Court, Supreme court order to constitutes Fare Fixation Committee and fix the fare by 30 April 2015. RTI Activists Anil Galgali who follow up the Metro issue continuesly claim that Congress Govt first bring Mumbai Metro under ambit of 'Metro Act' and now new Bjp Government also not immediately constituted FFC which was indirectly favor to Anil Ambani company MMOPL. MMOPL fixed the new fare — Rs 10 to Rs 40 — using provisions of the Central Metro Act, against the previous fare notified by the state government — Rs 9 to 13 — calculated according to the clauses in the concession agreement.It was a Nexus between Government and Anil Ambani company MMOPL so both government has not seriously attention on dispute of Mumbai Metro fare,said Galgali

Monday 4 May 2015

बराक ओबामाच्या भारत दौ-यावर झालेल्या खर्चाची माहिती संवेदनशील- परराष्ट्र मंत्रालय

अमेरिकेचे राष्ट्रपति भारताच्या दौ-यां वर मोठा फौजफाटा घेऊन आले असून त्यांच्या तीन दिवसीय दौ-यांवर भारत सरकारने केलेल्या खर्चाची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस देण्याचे नाकारत यामुळे भारताचे परराष्ट्र संबंध प्रभावित होण्याची भीती परराष्ट्र मंत्रालयाने व्यक्त केली. बराक ओबामाच्या भारत दौ-यावर झालेल्या खर्चाची माहिती गोपनीय असल्यामुळे ती  आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस नाकारली गेली आहे. मुंबईतील आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी राष्ट्रपति बराक ओबामा यांच्या तीन दिवसीय भारत दौ-यावर झालेल्या सर्व प्रकारच्या खर्चाची माहिती मागितली होती. परराष्ट्र मंत्रालयातील उप मुख्य प्रोटोकॉल अधिकारी रोहित रथिश यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की  प्रत्येक वर्षी भारत सरकार अनेक परदेशी गणमान्य व्यक्ती ज्या भारतात येतात त्यांचे आदरतिथ्य करत असते. हे दौरे प्रतिनिधिमंडळाचे स्वरुप, प्रयोजन, वर्गीकरण, संघटन, पाहुणचार कसा केला, किती स्वीकार केला आणि कोणकोणत्या शहराचा दौरा केला गेला , या दॄष्टिकोणातुन वेगवेगळे असतात आणि हे म्हणणे चुकीचे होणार नाही की प्रत्येक दौरा अनोखा असतो. अश्या परिस्थितिमध्ये यासारख्या दौ-यांवर  भारत सरकारने केलेल्या रक्कमेत दौ-यां प्रमाणे अंतर असते आणि सरकारसाठी ही बाब संवेदनशील आहे. अशी संवेदनशील माहितीचे प्रकटीकरण केल्यास निश्चितपणे भारताच्या परराष्ट्र संबंधावर प्रतिकुल प्रभाव पडु शकतो. रथिश यांनी पुढे नमूद केले आहे की मागितलेली माहिती संवेदनशील स्वरुपाची असून त्याबरोबरच भारताच्या परराष्ट्र संबंधाशी संबंधित आहे. यामुळे तसेच संवेदनशील माहितिबद्दल गोपनीयता ठेवण्यासाठी आरटीआय अधिनियम, 2005 चे कलम 8(1)(क) अंतर्गत स्थापित सिद्धांताना लक्षात घेता या प्रकरणात पुढे कोणतीही माहितीचे प्रकटीकरण त्या श्रेणीत येते ज्यामुळे परराष्ट्राशी आमचे संबंध प्रभावित होऊ शकतात. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी परराष्ट्र मंत्रालयाच्या या दाव्यास अद् भुत सांगत अशा प्रकारचा खर्च सार्वजनिक केल्यास भारताचे संबंध कसे प्रभावित होतील? ही बाब संशोधनाची आहे. पारदर्शक कामकाजाची ग्वाही देणा-या मोदी सरकारने अशा युक्तीवाद करत एकप्रकारे झालेला कोटयावधीच्या खर्चावर पांघरुण टाकण्याचा प्रयत्न करत असल्याची टीका अनिल गलगली यांनी केली आहे. बराक ओबामा यांच्या दौ-यावर झालेल्या पै आणि पै खर्च रक्कमेची माहिती प्रत्येक भारतीयांस स्वताःहुन कळविणे गरज आहे आणि ही रक्कम भारतीयांच्या कष्टातुन जमा झालेल्या टैक्सची आहे, याची जाणीव सरकारला असणे काळाची गरज आहे, असे सरते शेवटी अनिल गलगली यांनी नमूद केले.

Sharing info on expenses incurred on Obama visit is sensitive : MEA

Recently the US President Barack Obama had come visiting India with a large contingent of dignitaries. RTI Activist Anil Galgali had sought information from the Ministry of External Affairs about the expenses incurred on the 3 day Obama visit, which was refused citing the infomation as sensitive and also it could have a bearing of the future bilateral relations with foreign states. MEA informed Galgali that the information was confidential and hence the query was rejected. RTI Activist Anil Galgali had filed an RTI query seeking details of all types of expenses incurred on the 3 day visit of the US President Barack Obama. In a reply to the query the Dy Chief Protocol Officer, Shri Rohit Rathish, of the MEA informed Galgali that, Every year the Indian Government hosts dignitaries of various foreign countries. In these visits,  the type of delegations, Reasons for the visits, Categorization, Organisation, how is that visit hosted, how much has been accepted, How many Cities does the delegation visits are different from each other and also it would not be wrong to say that every visit of a foreign delegation is unique. In such a condition the expenses incurred by the Govt on each and every visit varies and also it is sensitive for the govt. Also getting such sensitive information may negatively effect the bilateral relations with those foreign countries. Shri Rathish further informed Galgali that, the information sought is sensitive in nature and also could negatively impact the relations with other countries. Hence on the reasons stated and to maintain the confidentiality of sensitive information's as per established norms of the section 8(1)(c) of the RTI Act 2005, any process to seek information on such nature comes under the relevant section, which can hamper cordial relations in dealing with foreign affairs. RTI Activist Anil Galgali has expressed astonishment at the claim of the MEA and has questioned the motive of non revelation of the expenses incurred, he also stated that its a matter of research how revealing expenses incurred on the visit of any dignitary could hamper our foreign relations? Galgali further said the the Modi Govt, which revels in claiming transparency in its governance is actually trying to conceal the expenses running into crores of rupees by raising a bogey of sensitivity and confidentiality. Galgali said that, the govt should themselves inform every citizen on its own the various expenses they incur as the same are made from the collections from the hard earned incomes of the tax payers of the country.

Saturday 2 May 2015

लुईस बरजर कमिटीने मुंबई मेट्रो के बढ़े हुए खर्च के दावे को खारिज किया

मुंबई मेट्रो का पुरा निर्माण खर्च और फेयर तय करने को लेकर कोर्ट तक दस्तक देने के पहले ही एमएमआरडीए और मुंबई मेट्रो वन कंपनी (एमएमओपीएल) की संयुक्त मंजूरी से बनी लुईस बरजर कमिटीने मुंबई मेट्रो द्वारा बढ़े हुए खर्च के दावे को खारिज किया था। ऐसा दावा आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने फेयर फिक्सेशन कमिटी से कर मेट्रो एक्ट में सुधार कर मुंबई मेट्रो आम मुंबईकरों को उपलब्ध कराकर देने की मांग की हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार द्वारा गठित किए हुए फेयर फिक्सेशन कमिटी के पास आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने भेजे हुए पत्र में पुरी परिस्थिती का जिक्र कर मुंबई मेट्रो का फेयर कम करने का अनुरोध किया हैं।मूल योजना का खर्च रु 2356 करोड़ था और व्यवहार्यता अंतर निधी की रकम रु 650 करोड़ थी। एमएमआरडीए और मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (एमएमओपीएल) के बीच मार्च 2007 में एग्रीमेंट होते हुए भी असल में काम फरवरी 2008 ने शुरु हुआ। रिलायंस एनर्जी अब रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने दावा किया है कि खर्च बढ़कर अब कुल रकम रु 4321 करोड़ इतनी हुई है। एमएमओपीएल ने खर्च में वृद्धि होने के दावे की सत्यता जांचने के लिए एमएमआरडीए द्वारा मेसर्स लुईस बरजर कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड इस एजेंसी को नियुक्त किया गया। जिसे एमएमओपीएल ने भी उसवक्त सहयोग किया था। एमएमओपीएल द्वारा समय समय पर पेश किए दस्तावेज और उपलब्ध जानकारी के आधार पर मेसर्स लुईस बरजर कमिटी ने कुछ फर्क होने की संभावना जताई लेकिन सिर्फ 18 महीने की लेटलतीफी से योजना का खर्च रु 2356 से रु 4321 इतना होने का किया हुआ दावा गले से न उतरने की बात कहकर उसे पुरी तरह खारिज कर दिया था। अनिल गलगली ने आगे कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा मुंबई मेट्रो को 'मेट्रो एक्ट' अंतर्गत लाने से ही फेयर की असली गड़बड़ शुरु हुई है और एमएमआरडीए द्वारा बार बार अनुरोध करने के बावजूद केंद्र सरकार कारवाई करने में लेटलतीफी कर अनिल अंबानी की कंपनी को मदद ही कर रही है। क्योंकि 'मेट्रो एक्ट' से ही एमएमओपीएल की दादागिरी बढ़ी और रु 9, रु 11 और रु 13 के बजाय फेयर फिक्स कर रु 10, रु 20, रु 30 और रु 40 किया गया है। अनिल गलगली ने मांग की है की मेट्रो के खर्च में हुई वृद्धि की जांच 'कैग' द्वारा की जाए। साथ ही में मेसर्स लुईस बरजर कमिटीने ने दी हुई रिपोर्ट का अध्ययन किया जाए जिससे एमएमओपीएल द्वारा किए गए बढ़े हुए कथित खर्च के दावे की सच्चाई भी सामने आ जाएगी। तब तक एमएमओपीएल द्वारा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप काम हासिल करने के लिए एग्रीमेंट कर उसे अमल में लाने तक जो फेयर फिक्स किया गया था उसे तब तक लागू किया जाए। उससे न्याय सबको समान है, इसका अहसास मुंबईकरों में दॄढ़ होगी और अपने मुनाफे के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप योजना का गैर इस्तेमाल करनेवाली रिलायंस जैसी निजी कंपनियां भी अपने ही आप से नियंत्रण में आएगी। इससे आम मुंबईकरों को मुंबई मेट्रो से सफर करने का मौका मिलेगा, ये भरोसा अनिल गलगली ने जताया है।

लुईस बरजर समितीने मुंबई मेट्रोच्या खर्चाचा दावा ग्राहय मानला नाही

मुंबई मेट्रोच्या संपुर्ण बांधकाम खर्चावरुन कोर्टाची पायरी चढण्यापर्यन्त झालेली रस्साखेची पूर्वीच एमएमआरडीए आणि मुंबई मेट्रो वन कंपनीच्या(एमएमओपीएल) संयुक्त संमतीने बनलेल्या लुईस बरजर समितीने मुंबई मेट्रोच्या खर्चाचा दावा ग्राहय मानला नव्हता. अशा दावा आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी भाडे निश्चिती समितिकडे करत मेट्रो एक्टमध्ये सुधार करत मुंबई मेट्रो सामान्य मुंबईकरांना उपलब्ध करुन देण्याची मागणी केली आहे. सुप्रीम कोर्टाच्या आदेशानंतर केंद्र सरकारने गठित केलेल्या भाडे निश्चिती समितिकडे आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी पाठविलेल्या पत्रात संपूर्ण परिस्थितीचा ऊहापोह करत मुंबई मेट्रोचे भाडे कमी करण्याचा आग्रह केला आहे. मूळ योजनेचा खर्च रु 2356 कोटी असून व्यवहार्यता तफावत निधीची रक्कम रु 650 कोटी होती. एमएमआरडीए आणि मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (एमएमओपीएल) यांच्यात मार्च 2007 मध्ये करारनामा झाला असतानाही प्रत्यक्ष काम फेब्रुवारी 2008 मध्ये सुरु झाले. रिलायंस एनर्जी आता रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चरने दावा केला की खर्च वाढला असून आता एकूण रक्कम रु 4321 कोटी इतकी झाली आहे. एमएमओपीएलच्या दाव्याची सत्यता तपासण्यासाठी एमएमआरडीएने मेसर्स लुईस बरजर कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड या एजेंसीला नेमले ज्यास एमएमओपीएलने सुद्धा त्यावेळी सहकार्य केले. एमएमओपीएलने वेळोवेळी सादर केलेली कागदपत्रे आणि उपलब्ध माहितीच्या आधारावर मेसर्स लुईस बरजर समितीने काही फरक असण्याची शक्यता व्यक्त केली आहे पण फक्त 18 महिन्याच्या दिरंगाईमुळे योजनेचा खर्च रु 2356 पासून रु 4321 इतका होण्याचा केलेला दावा पचण्यास कठीण असल्याचे मत व्यक्त केले आहे. अनिल गलगली यांनी पुढे नमूद केले की केंद्र सरकारने मुंबई मेट्रोस 'मेट्रो एक्ट' अंतर्गत आणल्यामुळे भाडयाचा हा सर्व घोळ झाला असून एमएमआरडीए तर्फे वारंवार विनंती करुनही केंद्र सरकार कारवाई करण्यापासून चालढकल करत आहे. एकप्रकारे अनिल अंबानीच्या कंपनीला मदत करण्याचा हा डाव असल्याची शंका बळावण्यास मदतच होते. या मेट्रो एक्टमुळेच एमएमओपीएलची दादागिरी वाढली असून रु 9, रु 11 आणि रु 13 ऐवजी भाडे हे रु 10, रु 20, रु 30 आणि रु 40 करण्यात आले आहे. अनिल गलगली यांनी अशी मागणी केली आहे की मेट्रोच्या खर्चात झालेल्या वाढीची चौकशी आणि तपासणी कैग तर्फे करण्यात यावी तसेच मेसर्स लुईस बरजर समितीने दिलेल्या अहवालाचा अभ्यास करावा जेणेकरुन एमएमओपीएलने दावा केलेल्या वाढीव खर्चाची सत्यता समोर येईल. तोपर्यन्त एमएमओपीएलने पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप काम मिळवण्यासाठी करारनामा करताना आणि त्यास अंमलात आणताना निश्चित केलेले भाडे लागू करावे. यामुळे न्याय सर्वानाच समान आहे ही भावना मुंबईकरांत रुजु होईल आणि आपल्या नफ्यासाठी पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप योजनेचा गैरवापर करणा-या रिलायंस सारख्या खाजगी कंपनीवर चाप बसेल. जेणेकरुन सामान्य मुंबईकरांना मुंबई मेट्रोचा आनंद घेता येईल, अशी आशा अनिल गलगली यांनी व्यक्त केली आहे.

Louis Berger Committee Report debunks MMOPL claim of increase in project cost

RTI Activists Anil Galgali submitted his strong objection to enhanced fares of Mumbai Metro before newly formed Fare Fixation Committee and claim that Louis Berger Committee Report debunks MMOPL claim of increase in project cost which was appointed by MMRDA and MMOPL mutual understanding. Mr Galgali appeal that The Mumbai Metro 1 should be made available for use for the common man as well. RTI Activists Anil Galgali who was continusely follow up Mumbai Metro related issue. On Friday, Mr Galgali submitted strong objection in a 2 page to Fare Fixation Committee. In a letter, Galgali explains that Mumbai Metro Rail Project (Versova – Andheri - Ghatkopar Corridor) has been completed after all safety clearences from the Commissioner of Metro Railway Safety & Ministry of Railways, and the commercial operation was started on 8th June 2014. The original project cost approved by the govt is Rs 2356 Crores with Rs 650 crores being Viability Gap Funding (VGF). The project agreement was signed on March 2007 and the construction time was 5 years i.e till March 2012. The MMOPL started actual construction somewhere in February 2008. Galgali also explains that Reliance Energy Ltd now known as Reliance Infrastructure Ltd, has been claiming the the cost of the project has increased to Rs 4321 Crores for various reasons. On this ground they have been demanding for fare revision. It is important to highlight here that, to understand the claim of Reliance Infra of cost increase, the MMRDA appointed M/s Louis Berger Consulting Pvt Ltd (LBG) to carry out detailed scrutiny of the revised project cost, and justification of the increase in the revised project cost by MMOPL. Based on the information available and document submitted by MMOPL from time to time, M/s LBG submitted its report to MMRDA, in which it has observed that only fraction of the increased amount can be justified, it also contended that, it is difficult to absorb a view that the project cost of Rs 2356 crores has gone up to Rs 4321 crores due to a delay of JUST 18 months. The MMOPL had fixed their Board Meeting in May 2014, to fix the fare for initial opening of Mumbai Metro Line 1. Despite the dissent of Governament Directors on the Board of MMOPL, who demanded that fare should be in accordance to the terms of the Concession Agreement, the Reliance Energy Ltd passed the resolution for increasing the fare to Rs 10, 20, 30 & 40 as against Rs 9, 11 &13 provided in the Concession Agreement. This whole situation arose only due to the laxity of the Central Govt’s in amending the Central Metro Act, due to which the MMOPL took benefit under the Metro Railway Act, said Galgali. Anil Galgali demand that complete audit of the project be handed over to CAG to ascertain the authenticity of the MMOPL’s claim of project cost increase. Also the report of M/s Louis Berger Consulting Pvt Ltd, be studied to ascertain the justification of cost increase. Also the MMOPL should be made to adopt the fares fixed in the Concession Agreements that it had signed and executed at the time of getting the PPP project. This needs to be done to restore the confidence of the Mumbaikars that the rule of law is prevailent and the public assets are not misused by pvt players for their profits in a PPP project. The Mumbai Metro 1 should be made available for use for the common man as well,add Galgali.