Saturday 2 May 2015

लुईस बरजर कमिटीने मुंबई मेट्रो के बढ़े हुए खर्च के दावे को खारिज किया

मुंबई मेट्रो का पुरा निर्माण खर्च और फेयर तय करने को लेकर कोर्ट तक दस्तक देने के पहले ही एमएमआरडीए और मुंबई मेट्रो वन कंपनी (एमएमओपीएल) की संयुक्त मंजूरी से बनी लुईस बरजर कमिटीने मुंबई मेट्रो द्वारा बढ़े हुए खर्च के दावे को खारिज किया था। ऐसा दावा आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने फेयर फिक्सेशन कमिटी से कर मेट्रो एक्ट में सुधार कर मुंबई मेट्रो आम मुंबईकरों को उपलब्ध कराकर देने की मांग की हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार द्वारा गठित किए हुए फेयर फिक्सेशन कमिटी के पास आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने भेजे हुए पत्र में पुरी परिस्थिती का जिक्र कर मुंबई मेट्रो का फेयर कम करने का अनुरोध किया हैं।मूल योजना का खर्च रु 2356 करोड़ था और व्यवहार्यता अंतर निधी की रकम रु 650 करोड़ थी। एमएमआरडीए और मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड (एमएमओपीएल) के बीच मार्च 2007 में एग्रीमेंट होते हुए भी असल में काम फरवरी 2008 ने शुरु हुआ। रिलायंस एनर्जी अब रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने दावा किया है कि खर्च बढ़कर अब कुल रकम रु 4321 करोड़ इतनी हुई है। एमएमओपीएल ने खर्च में वृद्धि होने के दावे की सत्यता जांचने के लिए एमएमआरडीए द्वारा मेसर्स लुईस बरजर कंसल्टिंग प्राइवेट लिमिटेड इस एजेंसी को नियुक्त किया गया। जिसे एमएमओपीएल ने भी उसवक्त सहयोग किया था। एमएमओपीएल द्वारा समय समय पर पेश किए दस्तावेज और उपलब्ध जानकारी के आधार पर मेसर्स लुईस बरजर कमिटी ने कुछ फर्क होने की संभावना जताई लेकिन सिर्फ 18 महीने की लेटलतीफी से योजना का खर्च रु 2356 से रु 4321 इतना होने का किया हुआ दावा गले से न उतरने की बात कहकर उसे पुरी तरह खारिज कर दिया था। अनिल गलगली ने आगे कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा मुंबई मेट्रो को 'मेट्रो एक्ट' अंतर्गत लाने से ही फेयर की असली गड़बड़ शुरु हुई है और एमएमआरडीए द्वारा बार बार अनुरोध करने के बावजूद केंद्र सरकार कारवाई करने में लेटलतीफी कर अनिल अंबानी की कंपनी को मदद ही कर रही है। क्योंकि 'मेट्रो एक्ट' से ही एमएमओपीएल की दादागिरी बढ़ी और रु 9, रु 11 और रु 13 के बजाय फेयर फिक्स कर रु 10, रु 20, रु 30 और रु 40 किया गया है। अनिल गलगली ने मांग की है की मेट्रो के खर्च में हुई वृद्धि की जांच 'कैग' द्वारा की जाए। साथ ही में मेसर्स लुईस बरजर कमिटीने ने दी हुई रिपोर्ट का अध्ययन किया जाए जिससे एमएमओपीएल द्वारा किए गए बढ़े हुए कथित खर्च के दावे की सच्चाई भी सामने आ जाएगी। तब तक एमएमओपीएल द्वारा पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप काम हासिल करने के लिए एग्रीमेंट कर उसे अमल में लाने तक जो फेयर फिक्स किया गया था उसे तब तक लागू किया जाए। उससे न्याय सबको समान है, इसका अहसास मुंबईकरों में दॄढ़ होगी और अपने मुनाफे के लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशीप योजना का गैर इस्तेमाल करनेवाली रिलायंस जैसी निजी कंपनियां भी अपने ही आप से नियंत्रण में आएगी। इससे आम मुंबईकरों को मुंबई मेट्रो से सफर करने का मौका मिलेगा, ये भरोसा अनिल गलगली ने जताया है।

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