Monday 30 May 2016

सीएम और एमडी से अधिक वेतन पाते हैं मेट्रो के अफसर

महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे से अधिक 6 अफसर वेतन पा रहे हैं। अधिक वेतन पानेवालों में प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुबोध गुप्ता, सिस्टम डायरेक्टर अजयकुमार भट्ट, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर रमन्ना, सीएफओ इंद्रनील सरकार, इलेक्ट्रिकल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर के शर्मा और सिविल विभाग के जनरल मैनेजर चरुहस जाधव अग्रक्रम पर होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड ने दी हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड से मार्च 2016 में सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अदा किए हुए वेतन की जानकारी मांगी थी। मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड के डिप्टी अकाउंटेंट और पब्लिक इनफार्मेशन गणेश घुले ने अनिल गलगली को 119 अधिकारियों और कर्मचारियों की लिस्ट दी । इस लिस्ट का अध्ययन करने के बाद यह स्पष्ट हुआ कि महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस और मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे से अधिक 6 अफसर वेतन पा रहे हैं। अधिक वेतन पानेवालों में प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुबोध गुप्ता ( रु 2,08,706/-) , सिस्टम डायरेक्टर अजयकुमार भट्ट ( रु 2,03,346/-), इलेक्ट्रिकल के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर के शर्मा ( रु 1,92,945/-), एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर रमन्ना ( रु 1,82,688/-) , सीएफओ इंद्रनील सरकार ( रु 1,51,936/-) और सिविल विभाग के जनरल मैनेजर चरुहस जाधव ( रु 1,51,936/-) टॉप पर हैं। कई वर्ष इललीगल तरीके से कार्यरत आर रमन्ना को एमएमआरडीए से सरकार के आदेश पर हटाने की पहल के बाद उसने इस्तीफा दिया और आनन फानन में आश्चर्यजनक तरीके से मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड में नौकरी पाई। जबकि महाराष्ट्र के सीएम देवेंद्र फडणवीस को रु 57,000/- और मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड की मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे को रु 1,43,051/- इतना वेतन हैं। मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड की मुखिया के तौर पर मैनेजिंग डायरेक्टर पद पर महाराष्ट्र सरकार ने अश्विनी भिडे को प्रतिनियुक्ति पर भेजा हैं और इनका फैसला अंतिम होता हैं। मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड के कुल 119 अधिकारियों और कर्मचारियों में से 21 एमएमआरडीए का रिटायर्ड स्टाफ हैं। इनमें 5 एडवाइजर और 5 ओएसडी हैं। सबसे अधिक वेतन 1-1 लाख रुपए सीजीएम ट्रैक डी जी दिवटे और सिविल एडवाइजर के तौर पर एस आर नन्दर्गिकर को अदा किए जाते हैं। जबकि रिटायर्ड हुए लोगों रखने पर रोक है और डॉ जगन्नाथ ढोणे बनाम महाराष्ट्र सरकार की कोर्ट केस में इसपर रोक लगी थी। 119 में से 63 रेगुलर, 15 डेपुटेशन, 20 डायरेक्ट कॉन्ट्रैक्ट और 21 रिएम्प्लोयेड( रिटायर्ड ) हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली के अनुसार वेतन के साथ वरिष्ठ अफसरों को निवास और गाडी की सेवा भी दी जाती हैं। इतना भारी वेतन जिन अफसरों को दिया जाता हैं उनके काम का जायजा हर 3 महीने में लेना चाहिए ताकि जो धन सरकारी तिजोरी से इनपर खर्च हो रहा हैं उसके मुताबिक उनसे काम लिया जाए।

सीएम आणि एमडी पेक्षा जास्त पगार घेतात मेट्रोचे अधिकारी

महाराष्ट्राचे सीएम देवेंद्र फडणवीस आणि मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडच्या मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे यांच्या पेक्षा मेट्रोचे 6 अधिकारी जास्त पगार घेत आहेत. जास्त पगार घेणा-यांमध्ये प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुबोध गुप्ता, सिस्टम डायरेक्टर अजयकुमार भट्ट, एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर रमन्ना, सीएफओ इंद्रनील सरकार, इलेक्ट्रिकल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर के शर्मा आणि सिविल विभागाचे जनरल मैनेजर चारुहस जाधव प्राधान्य क्रमावर असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ता अनिल गलगली यांस मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडने दिली आहे. आरटीआय कार्यकर्ता अनिल गलगली यांनी मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडकडे मार्च 2016 या महिन्यात अधिकारी आणि कर्मचा-यांस अदा केलेल्या पगाराची माहिती मागितली होती. मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेेडचे डिप्टी अकाउंटेंट आणि जन माहिती अधिकारी गणेश घुले यांनी अनिल गलगली यांस 119 अधिकारी आणि कर्मचा-यांची यादी दिली. या यादीचा अभ्यास केला असता स्पष्ट झाले की महाराष्ट्राचे सीएम देवेंद्र फडणवीस आणि मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडच्या मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे यांच्या पेक्षा 6 अधिका-यांस जास्त पगार आहे. जास्त पगार घेणा-यांत प्रोजेक्ट डायरेक्टर सुबोध गुप्ता ( रु 2,08,706/-) , सिस्टम डायरेक्टर अजयकुमार भट्ट ( रु 2,03,346/-), इलेक्ट्रिकल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर के शर्मा ( रु 1,92,945/-), एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर आर रमन्ना ( रु 1,82,688/-) , सीएफओ इंद्रनील सरकार ( रु 1,51,936/-) आणि सिविल विभागाचे जनरल मैनेजर चारुहस जाधव ( रु 1,51,936/-) टॉप वर आहेत. पुष्कळ वर्षे अनधिकृतपणे कार्यरत असलेले आर रमन्ना हे एमएमआरडीएतून सरकारी आदेशानंतर राजीनामा देत बाहेर पडले पण आश्चर्यरित्या मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेड यात नोकरी मिळविली. याउलट महाराष्ट्राचे सीएम देवेंद्र फडणवीस यांस रु 57,000/- आणि मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडच्या मैनेजिंग डायरेक्टर अश्विनी भिडे यांस रु 1,43,051/- इतका पगार आहे. मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडच्या प्रमुख आणि मैनेजिंग डायरेक्टर असलेल्या अश्विनी भिडे यांस महाराष्ट्र सरकारने प्रतिनियुक्तीवर पाठविले आणि त्यांचा निणर्य अंतिम असतो. मुंबई मेट्रो रेल कारपोरेशन लिमिटेडच्या एकूण 119 अधिकारी आणि कर्मचा-यांपैकी 21 एमएमआरडीएचा सेवानिवृत्त अधिकारी वर्ग आहे. यात 5 एडवाइजर आणि 5 ओएसडी आहे. सर्वाधिक पगार प्रत्येकी 1-1 लाख रुपये सीजीएम ट्रैक असलेले डी जी दिवटे आणि सिविल एडवाइजर या पदावर कार्यरत असलेल्या एस आर नन्दर्गिकर यांस अदा केले जाते. सेवानिवृत्त असलेल्या लोकांना कामावर ठेवण्यास बंदी आहे आणि डॉ जगन्नाथ ढोणे बनाम महाराष्ट्र सरकार या न्यायालयीन प्रकरणात बंदी घातली होती. 119 पैकी 63 रेगुलर, 15 डेपुटेशन, 20 डायरेक्ट कॉन्ट्रैक्ट आणि 21 रिएम्प्लोयेड( सेवानिवृत्त ) आहेत. आरटीआय कार्यकर्ता अनिल गलगली यांच्या मते भरगच्च पगारासोबत या अधिका-यांस निवास आणि गाडयाची सुविधा सुद्धा आहे.इतका भरगच्च पगार ज्यांस दिला जातो त्यांच्या कामाचा आढावा प्रत्येक 3 महिन्यात घेणे आवश्यक आहे कारण यांच्यावर ज्या पद्धतीने सरकारी तिजोरीतून पैसा खर्च केला जातो त्यापद्धतीने काम करुन घेतले पाहिजे.

Mumbai Metro Rail Corporation Officers salaries higher than CM and MD

Maharashtra CM Devendra Fadnavis and Mumbai Metro Rail Corporation Ltd MD Ashwini Bhide's salaries are far lesser as compared to 6 officials working with the Corporation. The 6 officials who are getting higher salaries are Project Director Subodh Gupta, System Director Ajay Kumar Bhat, Executive director R Ramanna, CFO Indraniel Sarkar, Executive Director (Electrical) R K Sharma, GM Civil Charuhas Jadhav are leading the pack as per information provided to RTI Activist Anil Galgali by the Mumbai Metro Rail Corporation Ltd. RTI Activist Anil Galgali had sought information about the salaries of officials and staff of the Mumbai Metro Rail Corporation Ltd for the month of March 2016 . The Dy Accountant and Public Information officer of the MMRCL Ganesh Ghule provided Anil Galgali with a list of 119 officials and employees. After going through the list it came to be understood that 6 officials enjoy higher salaries than even their bosses , CM Devendra Fadnavis and MD Ashwini Bhide. The officials on the top are Project Director Subodh Gupta (Rs 2,08,706/-), System Director Ajay Kumar Bhat (Rs 2,03,346/-), Executive Director (Electrical) R K Sharma (Rs 1,92,945/-), Executive Director R Ramanna (Rs 1,82,688/-), CFO Indraniel Sarkar (Rs 1,51,936/-), GM Civil Charuhas Jadhav (Rs 1,51,936/-) Mr R Ramanna the Executive Director was previously working illegally with the MMRDA and after the Govt's order to remove him had resigned and then obtained job at the Mumbai Metro Rail Corporation Ltd. The Maharashtra CM's salary is Rs 57,000/- and the MD of the MMRCL, Mrs Ashwini Bhide receives a salary of Rs 1,43,051/-. Mrs Ashwini Bhide has been posted as MD of the Mumbai Metro Rail Corporation Ltd by the Maharashtra government and functions as it's chief and is the final decision maker in the Corporation. Almost 21 officials who have retired from the MMRDA consist of the total 119 officials and staff. Out of the 21 retired officials 5 have been rehabilitated as Advisors and 5 as OSD. CGM (Track) D G Divte and Civil Advisor S R Nandirgirkar receive the maximum salary of 1 Lakh per month each amongst the retired rehabilitated category. It is significant to point here that there is a stay on the appointments of retired officials after the order of the courts in the Dr Jagannath Dhone V/S State of Maharashtra. Out of the 119 , 63 are regular, 15 are on deputation, 20 on direct contract and 21 are re-employed (Retired). RTI Activist Anil Galgali expressed his views that, apart from the salaries, these officials enjoy perks like government accommodation, vehicles etc. The government should monitor and conduct evaluation of the performance of such officials every 3 months to ensure that proper output of work is taken from those who have been appointed as the money being paid to them goes from the government exchequer.

Tuesday 24 May 2016

मुंबई के बेघर नागरिको को 'सूचना का अधिकार' का प्रशिक्षण

'सूचना का अधिकार' यानी आरटीआई को जन जन तक लेकर जाने की पहल के तहत मुंबई स्थित सेंट जेवियर्स कॉलेज में 100 बेघर नागरिको को 'सूचना का अधिकार 2005' का प्रशिक्षण दिया गया। जाने माने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने करीब 1 घंटे के प्रशिक्षण कार्यक्रम में बेघरों को उनके अधिकार प्राप्ती में कैसे आरटीआई सहायक साबित होगी, इसकी टिप्स दी। 'पहचान' संस्था के अध्यक्ष ब्रिजेश आर्य के आयोजन में 100 बेघर नागरिकों का समूह सेंट जेवियर्स कॉलेज में इकठ्ठा हुआ था। अनिल गलगली ने बताया कि 'सूचना का अधिकार' कानून 2005 में पुरे देश में लागू हुआ। इस कानून के माध्यम से कोई भी भारतीय नागरिक किसी भी सरकारी अधिकारी,सरकारी विभाग और सरकार के सवाल पूछ सकते है जिसका उनको जबाब देना होगा अगर जबाब नहीं मिलता है हम अपील कर सकते है। इसके श्री गलगली ने सूचना का अधिकार 2005 कैसे अर्जी करना है उसके बारे में बतया कैसे सूचना का अधिकार के माध्यम से अलग अलग विषयों पर जानकारी ले सकते है । अपने हक़ और अधिकारों ले सकते है । पहचान संस्था के अध्यक्ष ब्रिजेश आर्य ने बताया कि 5 मई 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी सरकारों को निर्देश दिया था की हर 5 लाख और उससे अधिक आबादी शहर में हर एक लाख जनसंख्या पर एक शेल्टर होम होना चाहिए पर मुंबई में अभी एक भी शेल्टर होम नहीं है जबकि मुंबई महानगरपालिका 7 बच्चो के लिए शेल्टरहोम होने का दावा कर रही है । लाखों का फंड कागज पर ही खर्च किया जा रहा हैं। सेंट जेवियर्स कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ.अग्नेलो मेनेज़ेस ( ऐगी सर ) ने सभी बेघर साथियो का स्वागत किया ।

मुंबईतील बेघर नागरिकांना माहितीचा अधिकार प्रशिक्षण

' माहितीचा अधिकार ' म्हणजे आरटीआय कायदास तळागाळातील लोकांपर्यंत घेऊन जाण्याच्या उद्देश्याने मुंबईतील सेंट जेवियर्स कॉलेजात 100 बेघर नागरिकांना ' माहितीचा अधिकार कायदा 2005' चे प्रशिक्षण दिले गेले. प्रख्यात आरटीआय कार्यकर्ता अनिल गलगली यांनी 1 तासाच्या प्रशिक्षण कार्यक्रमात बेघर नागरिकांना त्यांस असलेल्या अधिकार प्राप्त करण्यासाठी कश्याप्रकारे आरटीआय सहायक सिद्ध होईल त्याबाबतीत मार्गदर्शन केले. 'पहचान' संस्थेचे अध्यक्ष ब्रिजेश आर्य यांच्यास पुधाकाराने आयोजित 100 बेघर नागरिकांच्या समूहास सेंट जेवियर्स कॉलेज परिसरात आमंत्रित केले गेले होते. अनिल गलगली यांनी यावेळी सांगितले की 'माहितीचा अधिकार कायदा 2005' संपूर्ण देशात लागू झाला आहे. या कायदाच्या माध्यमातून कोण्याही भारतीय नागरिकास कोणत्या सरकारी अधिकारी, सरकारी विभाग आणि सरकारला सुद्धा प्रश्न आणि माहिती विचारण्याची मुभा आहे. ज्यास उत्तर दयावे लागते आणि उत्तर मिळाले नाही तर अपील करण्याची सोय आहे. गलगली यांनी 'माहितीचा अधिकार 2005' अंतर्गत अर्ज कसा करावा आणि माहितीचा अधिकाराच्या माध्यमातून विविध विषयांवर माहिती मिळवित आपल्या हक्क आणि अधिकार प्राप्त करु शकता. पहचान संस्थेचे अध्यक्ष ब्रिजेश आर्य यांनी सांगितले की 5 मे 2010 रोजी सुप्रीम कोर्टाने सर्वच राज्य सरकारला आदेश दिले होते की प्रत्येक 5 लाख आणि त्यापेक्षा जास्त लोकसंख्या असलेल्या शहरात एका लाखाच्या लोकसंख्येवर एक शेल्टर होम असले पाहिजे. मुंबईत एक सुद्धा शेल्टर होम नसून मुंबई मनपा 7 शेल्टरहोम मुलांसाठी असल्याचा दावा करत आहे. लाखों रुपयांचा निधी कागदावर खर्च होत आहे. सेंट जेवियर्स कॉलेजचे प्रिंसिपल डॉ.अग्नेलो मेनेज़ेस ( ऐगी सर ) यांनी सर्व बेघर नागरिकांचे स्वागत केले.

Training for Mumbai's 100 homeless citizens on Right to Information Act at St Xavier's College.

A special initiative taken by the St Xavier's College along with NGO "Pechchaan" brought 100 homeless Mumbaikars and imparted them training on the important issue and usage of Right to Information Act ie RTI. Noted Right to Information activist Anil Galgali delivered a speech for an hour to these 100 homeless Mumbaikars on what are their rights and how to demand for those. This initiative was held at the prestigious St Xaviers College located near Azad Maidan Mumbai. NGO "Pehchaan's" head Brijesh Arya gathered these 100 homeless people and arrnaged for the lecture at the college. Anil Galgali imparted many facts in regard to the act since its inception in the country since 2005. He strained on the fact that through RTI which is a boon to our country, any government person, government department has become answerable to the citizens of the country and if the queries are not answered, appealing on the same will definitely give results and desired answers, explained Galgali. Galgali also explained them the procedure as to how an RTI is made and how information can be sought in various subjects. Pehchaan's Brijesh Arya in his speech said that as per notification of the Supreme Court on the 5th May 2010, it is mandatory for every city which has a population of 5 lakhs to build ONE shelter home on per lakh citizens. But this dosent happen so. He said Mumbai's BMC claims to have build 7 shelter homes which remains far from reality. Many funds allocated for shelter homes are spent only on papers. Principal Dr. Agnelo Menezes of The St Xavier's College welcomed each and every of the 100 homeless citizens on this occasion.

Friday 20 May 2016

OMG! 26 महीने में 159 करोड़ का मोनोरेल घाटा

देश की पहली मोनोरेल मुंबई में शुरु करने का महाराष्ट्र सरकार की पहल महंगी साबित होने से गत 26 महीने में159 करोड़ का घाटा होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एमएमआरडीए प्रशासन ने दिए हुए दस्तावेजों से सामने आ रही हैं। अब तक योजना की मूल लागत में रु 220 करोड़ की वृद्धी इस मोनोरेल योजना में हुई हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से मोनोरेल की योजना की विभिन्न जानकारी मांगी थी। मोनोरेल के परिवहन नियोजक शंतनु वाघ और परिवहन ऑपरेशन विभाग के विशेष कार्यकारी अधिकारी पी एल कुरियन से प्राप्त हुई जानकारी देते हुए जन सूचना अधिकारी वरुण वैश ने अनिल गलगलीे को बताया कि चरण 1 वडाला से चेंबूर मार्गिका दिनांक 2 फरवरी 2014 को यात्रियों के लिए शुरु की गई हैं। फरवरी 2014 से मार्च 2016 इन 26 महीनों में कुल 1,21,64,831 इतने यात्रियों ने यात्रा की हैं जिनके टिकट बिक्री से 9,24,95,331 इतनी आय हुई हैं लेकिन मोनोरेल का कार्य और देखरेख खर्च 168 कोटी हुआ हैं जो आय की तुलना में 158,75,04,669 इतना सीधा घाटा हुआ हैं। हर महीने को रु 6.11 करोड़ का घाटा एमएमआरडीए उठा रही हैं। मोनोरेल योजना में हुई देरी और अनियोजन की मार सिर्फ कार्य और देखरेख में हुआ होता तो वह मुंबईकरों का सौभाग्य होता लेकिन कुल खर्च में अब तक 220 करोड़ की वृद्धि हुई हैं। यह योजना रु 2460 करोड़ की थी जिसमें 220 करोड़ की वृद्धि हुई हैं। विशेष यानी एमएमआरडीए प्रशासन ने रु 2310/- करोड़ ( योजना खर्च, वृद्धि की रकम और कार्य व देखरेख खर्च) अदा करने की उदारता दिखाई हैं। जिसमें एल एंड टी और स्कोमी यह प्रमुख कंपनियां ठेकेदार हैं।यानी 81 प्रतिशत रकम मोनोरेल योजना शतप्रतिशत पूर्ण होने के पहले ही देने की अतिउदारता दिखाई गई। चरण 1 और चरण 2 इन कामों में हुई देरी को देखते हुए चरण 2 कब तक सुरु होगा, इसकी जानकारी अनिल गलगली ने पूछते ही उन्हें बताया गया कि संत गाडगे महाराज चौक से वडाला इस मार्गिका का काम प्रगतीपथ पर हैं जो जुलाई 2016 तक पूर्ण होने का अनुमान हैं। अब तक 5 बार एक्सटेंशन दिया गया हैं। सबसे पहले दिनांक 22 नवंबर 2012 , दूसरी बार 31 दिसंबर 2013, तिसरी बार 30 जून 2014, चौथी बार 26 सितंबर 2015 और पाचवी बार 19 अगस्त 2016 ऐसा क्रम हैं। अबतक हुई 10 दुर्घटना में 6 की मौत और 7 घायल ऐसी संख्या हैं । एमएमआरडीएने हर्जाना देते हुए 34.52 लाख रुपए मृतक परिवार को दिए हैं। वहीं अबतक ठेकेदार से सुरक्षित मामलों पर रु 36.50 लाख इतनी रकम का जुर्माना वसूल किया गया हैं। इसके अलावा रु 50 लाख इतनी रकम बिल में से पेंडिंग रखी हैं। अनिल गलगली के अनुसार मोनोरेल विश्व से तडीपार होने के दौरान राजनेता और आला अफसरों ने निर्जन स्थान पर मोनोरेल का शुभारंभ कर अपरोक्ष तौर पर आम मुंबईकरों से बड़ा मजाक किया हैं। जिस बिल्डर लॉबी के फायदे के लिए ऐसे स्थान का चयन किया गया उस निर्णय लेनेवाले सभीओं की जांच कर 159 करोड़ वसूल करने का नई पहल सरकार करती हैं तो भविष्य में ऐसी बड़ी गलती की पहल कोई नहीं करेगा।

अबब! 26 महिन्यात 159 कोटीचा मोनोरेल घाटा

देशातील पहिली मोनोरेल मुंबईत सुरु करण्याचा महाराष्ट्र शासनाचा प्रयोग महागात पडला असून गेल्या 26 महिन्यात 159 कोटीचे नुकसान झाल्याची बाब आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस एमएमआरडीए प्रशासनाने दिलेल्या कागदपत्रावरुन समोर येत आहे तर आतापर्यंत रु 220 कोटीची वाढ या मोनोरेल प्रकल्पात झालेली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडे मोनोरेलच्या प्रकल्पाची विविध माहिती मागितली होती. मोनोरेलचे परिवहन नियोजक शंतनु वाघ आणि परिवहनचे ऑपरेशन विभागाचे विशेष कार्यकारी अधिकारी पी एल कुरियन यांच्याकडून प्राप्त झालेली माहिती देत जन माहिती अधिकारी वरुण वैश यांनी अनिल गलगली यांस कळविले टप्पा 1 वडाळा ते चेंबूर मार्गिका दिनांक 2 फेब्रुवारी 2014 रोजी प्रवाशांसाठी खुली करण्यात आली आहे. फेब्रुवारी 2014 ते मार्च 2016 या 26 महिन्यात एकूण 1,21,64,831 इतक्या प्रवाश्यांनी प्रवास केला असून तिकीटाच्या विक्रीतून 9,24,95,331 इतके उत्पन्न प्राप्त झाले पण मोनोरेलच्या कार्य आणि देखभाल खर्च 168 कोटी झाला असून उत्पन्नाच्या तुलनेत 158,75,04,669 इतके नुकसान झाले आहे. प्रत्येक महिन्यास रु 6.11 कोटीचे नुकसान एमएमआरडीए सोसत आहे. मोनोरेल प्रकल्पात झालेली दिरंगाई आणि अनियोजनाचा फटका फक्त कार्य आणि देखभालीत झाला असता तर मुंबईकरांचे सुदैव ठरले असते पण एकूण खर्चात आतापर्यंत 220 कोटीची वाढ झाली आहे. हा प्रकल्प रु 2460 कोटीचा होता ज्यात 220 कोटीची वाढ झाली आहे. विशेष म्हणजे एमएमआरडीए प्रशासनाने रु 2310/- कोटी ( प्रकल्प खर्च, वाढीव रक्कम आणि कार्य व देखभाल खर्च) अदा करण्याचा उदारपणा दाखविला आहे ज्यात एल एंड टी आणि स्कोमी या प्रमुख कंपन्या कंत्राटदार आहेत. म्हणजे 81 टक्के रक्कम प्रकल्प शतप्रतिशत पूर्ण होण्याआधीच देण्याचा अतिउदारपणा दाखविला आहे. टप्पा 1 आणि टप्पा 2 या कामास लागलेला विलंब पहाता टप्पा 2 केव्हा पर्यंत सुरु होणार याची माहिती अनिल गलगली यांनी विचारली असता त्यांस कळविले की संत गाडगे महाराज चौक ते वडाळा या मार्गिकेचे काम प्रगतीपथावर असून जुलै 2016 मध्ये पूर्ण होणे अपेक्षित आहे.आतापर्यंत 5 वेळा मुदतवाढ दिली गेली असून प्रथम मुदतवाढ ही दिनांक 22 नोव्हेंबर 2012 , दूसरी 31 डिसेंबर 2013, तिसरी 30 जून 2014, चौथी 26 सष्टेंबर 2015 आणि पाचवी 19 ऑगस्ट 2016 अशी आहे. आतापर्यंत झालेल्या 10 दुर्घटनेत 6 मृत्यु आणि 7 जखमी अशी संख्या असून एमएमआरडीएने नुकसानभरपाई देत 34.52 लाख रुपये मृतांच्या कुटुंबियांस दिले आहे तर आता पर्यंत कंत्राटदाराकडून सुरक्षित बाबींवर रु 36.5 लाख इतक्या रक्कमेचा दंड आकारला आहे तसेच रु 50 लाख इतकी रक्कम देयकातून राखून ठेवली आहे. अनिल गलगली यांच्या मते मोनोरेल जगातून हद्दपार होत असताना राजकारणी आणि सनदी अधिका-यांनी निर्जन जागी मोनोरेलचा शुभारंभ करत एकप्रकारे सर्वसामान्य मुंबईकरांची क्रूर चेष्टाच केली आहे. ज्या बिल्डर लॉबीसाठी अश्या जागेची निवड केली त्यात निर्णय घेणा-या सर्वाची चौकशी करत 159 कोटी वसूल करण्याचा नवीन प्रयोग शासनाने केल्यास भविष्यात अश्या घोडचुकीचा प्रयोग कोणीच करणार नाही.

Monorail losses Rs 159 crores in 26 months

The country's first Monorail project in Mumbai has become an costly affair, has been revealed in MMRDA's response to an RTI query filed by Anil Galgali. The loss of Rs 159 crores has been mounted in last 26 months, this apart from the cost escalation of Rs 220 crores since conceptualisation of the project. RTI Activist Anil Galgali had sought various information from the MMRDA regarding the Monorail project. The Public Information officer Mr Varun Vaish provided the information on the basis of information provided by Monorail Transport planner Mr Shantanu Wagh & Mr P L Kurian the CEO of the Transport operation dept. It was informed that the 1st phase from chembur to wadala was opened for public on 2nd February 2014. Since February 2014 till March 2016, ensued 26 months 1,21,64,831 people travelled and a revenue of Rs 9,24,95,331 was generated. But in the meantime during that period the total expenditure on maintenance and operations was Rs 168 crores, thereby showing a loss of Rs 158,75,04,669 crores averaging the loss to Rs 6.11 crores per month which is being borne by MMRDA. The delay due to poor planning has resulted in further cost escalation of project apart from operations and maintenance. The escalation is to the tune of Rs 220 crores. Initial cost was pegged at 2460 crores. Surprisingly the MMRDA has already paid Rs 2310 crores (project cost, escalated cost, and maintenance cost) to the contractors namely L&T and Scomi without even nearing completion. Almost 81% funds have been disbursed showing undue favours to the contractors Looking at the faltering timelines given out by MMRDA, Galgali sought to know the due date finalised for completion. In a response MMRDA informed that in 2nd phase from Wadala to Sant Gadge Maharaj chowk is in a progressive stage and is expected to be completed by July 2016. Till now the 5 extended dates were 22 November 2012, 31st December 2013, 30th June 2014, 26th September 2015 & 19th August 2016. Till now there has been 10 accidents on the project in which 6 people have lost their lives and 7 people were Injured, for which the MMRDA paid compensation of Rs 36.50 lakhs to the families of the dead and has recovered penalties of Rs 36.5 lakhs from the contractors and has further withheld Rs 50 lakhs from the payments. Anil Galgali has expressed that at a time when the Monorail is becoming extinct all over the world, the political and beareaucrats have made a mockery of Mumbaikars by planning the Monorail through a low population area. This has been done to facilitate some builder lobbies. Hence a enquiry should be launched against all involved in the planning to help builders and should set a precedent by recovering Rs 159 crores, which will ensure such favouritism will not take place in future.

Tuesday 17 May 2016

22 railway workers die every year on city’s tracks

As many as 22 railway workers die every year on the city suburban network that carries 80 lakh passengers on Western Railway and Central Railway.These include gangmen and railway employees, who work on maintenance of tracks, signalling and over head equipment. Most accidents happen when these workers are run over by trains but there are cases of electrocution too. Information procured under the Right to Information (RTI) reveal that as many as 131 workers have died since 2010. RTI activist Anil Galgali said, "This shows that safety measures are not in place while carrying out maintenance work." Most deaths in this period have occurred under Dadar railway police station with 19 casualties followed by 17 under Kurla railway police that falls between Mulund and Kurla. "The work that is being carried on tracks is not as per the engineering manual of Indian Railways. For example, there needs to be two people ahead of the working team-one showing the flag and another blowing the whistle to alert the gangmen to stay clear of the tracks. However in Mumbai, the flag and the whistle is held by the same person. This can lead to error in judgment and can result in the loss of life." untrained people are deputed for such risky work. In other railways, block is taken to carry out such work but in Mumbai it is not possible as the train system runs almost throughout the day with a frequency of 4 minutes "Most railway workers, who meet with accidents, are not professional and are not familiar with the working of the system. Their families also suffer as in such cases compensation is not easy to obtain." On February 19, four contract labourers died but compensation was denied because they were of-duty. Railway unions said that they are given accommodation close to tracks it is likely they can meet with the accident. In such cases, compensation should not be denied.

मुंबई की रेल पटरी ने ली 131 कर्मियों की बलि

मुंबई उपनगरी रेलवे की पटरी पर होनेवाली दुर्घटनाओं में सिर्फ रेलवे के यात्रियों को मौत होती हैं ऐसा नहीं हैं। रेलवे की विभिन्न कामों में सक्रिय रेलवे के कर्मचारियों की भी मौत होती हैं। हर साल औसतन 22 बलि लेनेवाली रेलवे पटरी पर हुई दुर्घटना में गत 6 सालों 131 रेलवे कर्मचारियों का दर्दनाक मौत होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली की रेलवे पुलिस ने दी हैं। सर्वाधिक 19 बलि दादर पुलिस स्टेशन के दायरे में हुई हैं और उसके बाद 17 बलि लेनेवाली कुर्ला का नंबर लगता हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने साल 2010 से 2015 इस दौरान रेलवे की पटरी पर हुए दुर्घटना में रेलवे के मजदूर, ठेके पर कर्मचारी और गैंगमेन की जानकारी रेलवे प्रशासन से मांगी थी। रेलवे पुलिस ने अनिल गलगली को जानकारी दी कि रेलवे पुलिस आयुक्तालय के सभी रेलवे पुलिस स्टेशन के अंतर्गत गत 6 साल में कुल 131 कर्मियों की मौत रेलवे की पटरी पर हुए दुर्घटना में हुई हैं। रेलवे के 16 पुलिस स्टेशन में से सर्वाधिक मौत दादर रेलवे स्टेशन के दायरे में हुई हैं जिसकी संख्या 19 हैं। उसके बाद 17 कुर्ला, कल्याण 14, डोंबिवली 13, सीएसटी 11, ठाणे 10, कर्जत 5, 7 पालघर,7 बोरीवली, 6 वसई रोड, 6 अंधेरी , 4 वाशी, 4 बांद्रा, 4 मुंबई सेंट्रल, पनवेल 3, वडाला 1 ऐसी संख्या हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने साल 2010 से 2015 इस दौरान रेलवे की पटरी पर हुए दुर्घटना में रेलवे के मजदूर, ठेके पर कर्मचारी और गैंगमेन को दिए गए मुआवजे रकम की जानकारी रेलवे प्रशासन से मांगी थी। रेलवे पुलिस ने अनिल गलगली को जानकारी दी कि मुआवजा रेलवे प्रशासन से दिया जाता हैं जिसके चलते यह जानकारी उनका कार्यालय और संबंधित पुलिस स्टेशन के पास उपलब्ध नहीं हैं। रेलवे की पटरी पर दुर्घटना होते ही हमेशा रेलवे यात्रियों के मत्थे दोष मढ़नेवाली रेलवे प्रशासन रेलवे कर्मियों की दुर्घटनाओं को नजरअंदाज करने का आरोप अनिल गलगली में लगाया हैं। ऐसी दुर्घटनाओं पर नियंत्रण रखने में रेल प्रशासन असफल होने की टिप्पणी अनिल गलगली ने की हैं।

मुंबई उपनगरी रेल्वेच्या 131 कर्मचा-यांचा रेल्वे ट्रैकने घेतला बळी

मुंबई उपनगरी रेल्वेच्या ट्रैकवर होणा-या अपघातात रेल्वे प्रवाशांचा मृत्यु होतो अशाचा भाग नसून रेल्वेच्या विविध कामात असलेले कर्मचा-यांचा सुद्धा बळी जातो. दरवर्षी सरासरी 12 बळी घेणा-या रेल्वेच्या ट्रैकवर झालेल्या अपघातात गेल्या 6 वर्षात तब्बल 131 कर्मचा-यांचा दुर्दैवी मृत्यु झाल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस लोहमार्ग पोलीसांनी दिली आहे.सर्वाधिक 19 बळी दादर पोलीस ठाण्याच्या हद्दीत झाले असून त्यानंतर 17 बळी घेणा-या कुर्ल्याचा नंबर लागतो. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी वर्ष 2010 ते 2015 या कालावधीत रेल्वे टैकवर अपघात झालेले रेल्वे कामगार, कंत्राटी कामगार आणि गैंगमेन यांची माहिती रेल्वे प्रशासनाकडून मागितली होती. लोहमार्ग पोलीसांनी अनिल गलगली यांस कळविले की मुंबई पोलीस लोहमार्ग पोलीस आयुक्तालयातील सर्व पोलीस ठाण्याच्या अंतर्गत गेल्या 6 वर्षात एकूण 131 कर्माचा-यांचा मृत्यु रेल्वे ट्रैकवर झालेल्या अपघातात झाला आहे. रेल्वेच्या 16 पोलीस ठाण्याच्या हद्दीत सर्वाधिक मृत्यु दादर रेल्वेच्या हद्दीत झाले असून त्याची संख्या 19 आहे. त्यानंतर 17 कुर्ला, कल्याण 14, डोंबिवली 13, सीएसटी 11, ठाणे 10, कर्जत 5 प्रत्येकी 7-7 मृत्यु पालघर,बोरीवली, प्रत्येकी 6-6 मृत्यु वसई रोड, अंधेरी , प्रत्येकी 4-4 वाशी, बांद्रा आणि मुंबई सेंट्रल, पनवेल 3, वडाळा 1 अशी क्रमवारी आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी वर्ष 2010 ते 2015 या कालावधीत रेल्वे टैकवर अपघात झालेले रेल्वे कामगार, कंत्राटी कामगार आणि गैंगमेन यांची माहिती रेल्वे प्रशासनाकडून मागितली होती. लोहमार्ग पोलीसांनी अनिल गलगली यांस कळविले की नुकसानभरपाई रेल्वे प्रशासनाकडून दिली जाते त्यामुळे सदरची माहिती इकडील कार्यालयाकडे आणि संबंधित पोलीस ठाण्याकडे उपलब्ध नाही. रेल्वे टैकवर अपघात होताच नेहमीच रेल्वे प्रवाश्यांना दोष देणारे रेल्वे प्रशासन रेल्वे कर्मचा-यांच्या अपघाताकडे दुर्लक्ष करत असल्याचा आरोप अनिल गलगली यांनी केला आहे. अश्या अपघातावर नियंत्रण ठेवण्यास रेल्वे प्रशासन अपयशी ठरले आहे,अशी टीका अनिल गलगली यांनी केली आहे.

Wednesday 11 May 2016

4 दशक का रेकॉर्ड नहीं था फिर कैसे मिली मोदी की डिग्री ?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बीए की डिग्री सार्वजनिक करनेवाली दिल्ली विश्वविद्यालय ने सितंबर 2015 में मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को जबाब दिया था कि 4 दशक का रेकॉर्ड उनके पास नहीं हैं और वर्ष 1978 में उत्तीर्ण छात्रों और छात्राओं की जानकारी संबंधित महाविद्यालय से संपर्क करे। अनिल गलगली ने अब इसके खिलाफ दिल्ली विश्वविद्यालय में अपील दायर की है आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने दिल्ली विश्वविद्यालय से 11 सितंबर 2015 को वर्ष 1978 में उत्तीर्ण छात्र और छात्राओं की जानकारी मांगते हुए उनकी लिस्ट देने का अनुरोध किया था। दिल्ली विश्वविद्यालय की केंद्रीय जन सूचना अधिकारी जय चंद्रा ने अनिल गलगली को सूचित किया था कि सहायक परीक्षा नियंत्रक(परिणाम) तथा सांख्यिकीय अधिकारी(योजना इकाई) ने मांगी गई जानकारी 4 दशक पुरानी होने से सूचना उनके विभाग में उपलब्ध नही हैं। सहायक परीक्षा नियंत्रक(परिणाम) के अनुसार परीक्षा परिणामों की प्रतियां परीक्षा विभाग द्वारा संबंधित महाविद्यालयों को भेज दी जाती हैं। अत: जानकारी के लिए प्रार्थी संबंधित महाविद्यालयों से संपर्क स्थापित कर सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री स्वयं दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा सार्वजनिक करते ही दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें दिग्भ्रमित करने की बात कहते हुए अनिल गलगली ने दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रथम अपील दायर करते हुए उन्हें मोदी की तर्ज पर वर्ष 1978 में बीए में उत्तीर्ण सभी छात्र और छात्राओं की लिस्ट देने की मांग की हैं। अनिल गलगली ने दिल्ली विश्वविद्यालय वाईस चांसलर योगेश त्यागी और रजिस्टार तरुण राज को चिठ्ठी लिखकर इसतरह दोहरे मापदंड पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए उन अधिकारियों पर कारवाई कर उन्हें वर्ष 1978 में उत्तीर्ण सभी छात्र और छात्राओं की लिस्ट जारी करने की मांग की हैं।

4 दशकाचा अभिलेख नाही मग कशी मिळाली मोदी यांची पदवी ?

पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांची बीएची पदवी सार्वजनिक करणा-या दिल्ली विश्वविद्यालयाने सप्टेंबर 2015 मध्ये मुंबईतील आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस कळविले होते की 4 दशकाचा अभिलेख त्यांच्याकडे उपलब्ध नाही आहे आणि वर्ष 1978 मध्ये उत्तीर्ण झालेल्या विद्यार्थी आणि विद्यार्थीनी यांची माहितीसाठी संबंधित महाविद्यालयास संपर्क करावा. अनिल गलगली यांनी आता याविरोधात दिल्ली विश्वविद्यालयात अपील दाखल केले आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी दिल्ली विश्वविद्यालयकडे 11 सप्टेंबर 2015 रोजी वर्ष 1978 मध्ये उत्तीर्ण विद्यार्थी आणि विद्यार्थीनी यांची माहिती मागत यादी देण्याची मागणी केली होती. दिल्ली विश्वविद्यालयातील केंद्रीय जन माहिती अधिकारी जय चंद्रा यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की सहायक परीक्षा नियंत्रक(परिणाम) आणि सांख्यिकीय अधिकारी(योजना इकाई) यांनी मागितलेली माहिती 4 दशक जुनी असल्यामुळे ही माहिती त्यांच्या विभागात उपलब्ध नाही आहे.सहायक परीक्षा नियंत्रक(परिणाम) यांच्या मते परीक्षा परिणामाची प्रति परीक्षा विभागातर्फे संबंधित महाविद्यालयास पाठविल्या जातात त्यामुळेच माहिती साठी अर्जदार हे संबंधित महाविद्यालयाकडे संपर्क स्थापित करु शकतात. पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांची 1978 ची पदवी दस्तुरखुद्द दिल्ली विश्वविद्यालय तर्फे सार्वजनिक केली गेली आणि तेच दिल्ली विश्वविद्यालय त्यांची दिशाभूल करण्याचा आरोप करत अनिल गलगली यांना दिल्ली विश्वविद्यालयास प्रथम अपील दाखल करत मोदी यांच्याच धर्तीवर वर्ष 1978 मध्ये बीए मध्ये उत्तीर्ण झालेल्या सर्व विद्यार्थी आणि विद्यार्थीनी यांची यादी देण्याची मागणी केली आहे.अनिल गलगली यांनी दिल्ली विश्वविद्यालयाचे वाईस चांसलर योगेश त्यागी आणि रजिस्टार तरुण राज यांस लेखी पत्र पाठवून या दोहेरी भूमिकेवर आश्चर्य व्यक्त करत त्या अधिका-यांवर कारवाई करत त्यांस वर्ष 1978 मध्ये उत्तीर्ण झालेल्या सर्व विद्यार्थी आणि विद्यार्थीनी यांची माहिती देण्याचे आदेश देण्याची पुनश्च मागणी केली आहे.

DU didn't have records of 4 decades back, then how did they produce Modi's degree?

The Delhi University which produced PM Narendra Modi's degree pertaining to 1978, had replied RTI Activist Anil Galgali in September 2015, that they did not have records of past more that 4 decades, and for obtaining the list of passed out students for the year 1978, Galgali should approach the concerned Degree colleges affiliated to the Delhi University. Anil Galgali has now filed an appeal in the matter. RTI Activist Anil Galgali had filed an query with the Delhi University on 11th September 2015, seeking detailed list of students who has passed out in the year 1978. In a reply the Public Information Officer of Delhi University Mr Jay Chandra informed Galgali that, the Asst Controller of Examinations (Results) & IT Officer (Planning cell) have stated that the query pertains to records almost 4 decades old and hence department does not have the details. According to the Asst Controller of Examinations (Results) the copies of the examination results are sent by the examinations department to the respective colleges, hence for seeking the information the applicant may approach the respective colleges. After the Delhi University made public the degree of the PM Narendra Modi, Galgali has alleged that, it has now become clear that the Delhi University had mislead him in its reply, as the issue of PM Modi's degree too pertained to year 1978 and it has made the details public, means that the Delhi University has in its possession the details of all the students passed out in the year 1978 and hence Galgali has now filed a 1st appeal in the Delhi University seeking the detailed list of all the passed out students of BA of the year 1978. Also in a letter addressed to Vice Chancellor Yogesh Tyagi & Registrar Tarun Raj has expressed surprise over the double standards of the University officials, he further demanded action against the officials who has mislead him by not providing information and also demanded that the University provides him with the detailed list of passed out students in the year 1978.

Monday 9 May 2016

कॉन्ट्रैक्ट पर प्यून का मुख्यमंत्री कार्यालय को ऐसा भी मोह

राज्य की भाजपा सरकार का शिपाई पर होनेवाला दृढ विश्वास और मोह अनाकलनीय हैं क्योंकि एमएमआरडीए से वेतन लेनेवाले 2 कॉन्ट्रैक्टी प्यून मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत होने की कबूलनामें की जानकारी एमएमआरडीए प्रशासन ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली दी हैं। विशेष यानी इसमें में से एक शिपाई जगन्नाथ आचार्य मुख्यमंत्री कार्यालय से जमादार इस पद से भले ही सेवानिवृत्त हुआ हैं लेकिन असल में आज भी वहीं पर कार्यरत हैं और मुख्यमंत्री की किसी भी तरह की मंजूरी नहीं हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से मुख्यमंत्री कार्यालय के लिए एमएमआरडीए प्राधिकरण ने नियुक्त किए अधिकारी और कर्मचारियों की जानकारी मांगी थी। एमएमआरडीए प्राधिकरण ने अनिल गलगली को बताया कि विश्वास दादासाहेब बनसोडे और जगन्नाथ तंगवेल आचार्य कॉन्ट्रैक्टी प्यून हैं। एमएमआरडीए प्राधिकरण के जरिए इन 2 शिपाई की सेवा मुख्यमंत्री कार्यालय में उपलब्ध कराकर दी गई हैं और उनका वेतन प्राधिकरण से अदा किया जाता हैं। बनसोडे यह 1 नवंबर 2014 और जगन्नाथ आचार्य यह 1 जुलाई 2015 से मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत हैं। यह दोनों कॉन्ट्रैक्टी प्यून जिन्होंने एक भी दिन एमएमआरडीए में काम तो नहीं किया बल्कि जिस दिन कॉन्ट्रैक्टी प्यून के तौर पर एमएमआरडीए प्राधिकरण की सेवा में शामिल हुए उसी वक्त से मुख्यमंत्री कार्यालय में सक्रिय हुए । आचार्य यह सेवानिवृत्त जमादार थे और दिनांक 1 जुलाई 2015 को आवेदन करते ही उसी दिन उप महानगर आयुक्त और अतिरिक्त महानगर आयुक्त संजय सेठी ने ताबड़तोब मंजूरी देते हुए कार्यालयीन आदेश जारी किया था। उसी दिन से मुख्यमंत्री कार्यालय ने आचार्य की आदर्श सेवा लेने को आरंभ भी किया। आचार्य के अलावा आदर्श सेवा देनेवाले विश्वास बनसोडे अपनी एमएमआरडीए में नियुक्ती के उसी दिन मुख्यमंत्री कार्यालय में कार्यरत हैं। इसकी मंजूरी नियुक्ती के 19 दिन के बाद यानी 19 नवंबर 2014 को मुख्यमंत्री कार्यालय को लोन बेसिस पर उपलब्ध कराकर देने के लिए मुख्यमंत्री के अवर सचिव किरण हडकर ने एमएमआरडीए के उपमहानगर आयुक्त से अनुरोध किया। एमएमआरडीए बनसोडे को 1 नवंबर 2014 त से 30 दिसंबर 2015 तक रु 12,000/- इतना मासिक वेतन दे रही थी और उसके बाद दिनांक 1 जनवरी 2016 से मासिक रु 13,200/- इतना वेतन दे रही हैं वहीं आचार्य को रु 17,500/- इतना मासिक वेतन दिया जा रहा हैं। अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री महोदय ने इस मामले में जारी किए आदेश की कॉपी मांगने पर उन्हें एमएमआरडीए ने मुख्यमंत्री कार्यालय के उप सचिव के तौर पर कार्यरत किरण हडकर के पत्र की कॉपी दी। असल में कॉन्ट्रैक्टी प्यून के तौर पर सेवानिवृत्त कर्मचारियों की नियुक्ती करने के लिए सरकार की अनुमती लेने की जरुरत होते हुए इन प्यून के मामलों में वैसी कारवाई नहीं की गई। डॉ जगन्नाथ ढोणे बनाम महाराष्ट्र सरकार के न्यायालयीन केस में सरकार ने न्यायालय को शपथ पर आश्वत किया था कि सेवानिवृत्त कर्मचारी की नियुक्ती आगे से नहीं करेंगे और एकदम जरुरत होने पर सरकार की अनुमती ली जाएगी। जिसका उल्लंघन खुद से मुख्यमंत्री कार्यालय ने ही करने पर अनिल गलगली ने अफ़सोस जताया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को अंधेरे में रखकर कुछ अधिकारी मुख्यमंत्री कार्यालय का दुरुप्रयोग तो नहीं कर रहे ना? ऐसा सवाल गलगली ने करते हुए आचार्य जैसे सेवानिवृत्त जमादार पर मुख्यमंत्री कार्यालय किस लिए और कौनसे प्रयोजन के लिए निर्भर हैं, इसकी जांच करने की मांग की हैं।

कंत्राटी शिपायांचा मुख्यमंत्री कार्यालयास असाही मोह

राज्यातील भाजपा सरकारचे शिपायावर असलेला दृढ विश्वास आणि मोह अनाकलनीय असून एमएमआरडीएतून पगार घेणारे 2 कंत्राटी शिपाई मुख्यमंत्री कार्यालयात कार्यरत असल्याची कबूली एमएमआरडीए प्रशासनाने आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिली आहे. विशेष म्हणजे यातील एक शिपाई जगन्नाथ आचार्य मुख्यमंत्री कार्यालयातून जमादार या पदावरुन सेवानिवृत्त जरी झाले होते पण प्रत्यक्षात आज ही तेथेच कार्यरत आहे आणि मुख्यमंत्र्यांची कोणतीही मंजूरी नाही. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडून मुख्यमंत्री कार्यालयासाठी एमएमआरडीए प्राधिकरणाने नेमलेल्या अधिकारी आणि कर्मचा-यांची माहिती मागितली होती. एमएमआरडीए प्राधिकरणाने अनिल गलगली यांस कळविले की विश्वास दादासाहेब बनसोडे आणि जगन्नाथ तंगवेल आचार्य कंत्राटी शिपाई असून प्राधिकरणामार्फत या 2 शिपायांच्या सेवा मुख्यमंत्री कार्यालयात उपलब्ध करून देण्यात आल्या आहेत आणि त्यांचे वेतन प्राधिकरणाकडून अदा करण्यात येते. बनसोडे हे 1 नोव्हेंबर 2014 आणि जगन्नाथ आचार्य हे 1 जुलै 2015 पासून मुख्यमंत्री कार्यालयात कार्यरत आहे. हे दोन्ही कंत्राटी शिपाई यांनी एकही दिवस एमएमआरडीएत काम केले नसून ज्या दिवशी कंत्राटी शिपाई या नात्याने एमएमआरडीए प्राधिकरणात रुजू झाले त्याच क्षणापासून मुख्यमंत्री कार्यालयात सक्रिय झाले. आचार्य हे सेवानिवृत्त जमादार असून दिनांक 1 जुलै 2015 रोजी अर्ज करताच त्याच दिवशी उपमहानगर आयुक्त आणि अतिरिक्त महानगर आयुक्त संजय सेठी यांनी तत्काळ मंजूरी देत कार्यालयीन आदेश जारी केले आणि मुख्यमंत्री कार्यालयाने त्याच दिवसांपासून आचार्य यांची आदर्श सेवा घेण्यास प्रारंभ सुद्धा केला. दुसरे असे आदर्श सेवा देणारे विश्वास बनसोडे नियुक्तीच्या त्याच दिवसापासून मुख्यमंत्री कार्यालयात कार्यरत आहे. त्याची मंजूरी नंतर 19 नोव्हेंबर 2014 रोजी मुख्यमंत्री कार्यालयास उसनवारी तत्वावर उपलब्ध करुन देण्यासाठी मुख्यमंत्र्यांचे अवर सचिव किरण हडकर यांनी एमएमआरडीएचे उपमहानगर आयुक्तांस विनंती केली. एमएमआरडीए बनसोडे यांस 1 नोव्हेंबर 2014 ते 30 डिसेंबर 2015 पर्यन्त रु 12,000/- इतके दरमहा वेतन देत होते आणि त्यानंतर दिनांक 1 जानेवारी 2016 पासून दरमहा रु 13,200/- इतके वेतन देण्यास सुरुवात केली तर आचार्य यांस रु 17,500/- इतके दरमहा वेतन दिले जात आहे. अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री महोदयानी याबाबतीत जारी केलेल्या आदेशाची प्रत मागितली असता एमएमआरडीएने मुख्यमंत्री कार्यालयातील उप सचिव असलेले किरण हडकर यांच्याच पत्राची प्रत दिली. खरे पाहिले तर कंत्राटी पद्धतीवर सेवानिवृत्त कर्मचा-याची नियुक्ती करताना शासनाची परवानगी घेणे आवश्यक असताना शिपायांच्या बाबतीत तसे केले गेले नाही. डॉ जगन्नाथ ढोणे बनाम महाराष्ट्र शासन न्यायालयीन केस मध्ये शासनाने न्यायालयास शपथेवर कळविले होते की सेवानिवृत्त कर्मचारी यांची नियुक्ती करणार नाही आणि नितांत गरज असल्यास शासनाची परवानगी घेतली जाईल ज्याची पायमल्ली दस्तुरखुद्द मुख्यमंत्री कार्यालयाने केल्याची खंत अनिल गलगली यांनी व्यक्त केली. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस अंधारात ठेवून काही अधिकारी मुख्यमंत्री कार्यालयाचा दुरुप्रयोग तर करत नाही ना असा सवाल गलगली यांनी करत आचार्य सारख्या सेवानिवृत्त जमादारावर मुख्यमंत्री कार्यालय कश्यासाठी आणि कोणत्या प्रयोजनासाठी अवलंबून आहे? याची चौकशी करण्याची मागणी केली आहे.

CM office's obsession with contractual peons

The extra ordinary love and trust for contractual peons is being exhibited by the BJP govt in Maharashtra. The acceptance by the MMRDA in a reply to RTI Activist Anil Galgali, it has revealed that two peons employed on contract by it has been on deployment at the CM's office. Pertinent to note here is that, one of the appointed peon Jagannath Acharya had retired from the CMO as Jamadar, but continues to function there and surprisingly there is no approval of the CM taken for the appointment. RTI Activist Anil Galgali had sought Information from the MMRDA about its staff deployed at the CM's office. In a reply the MMRDA administration informed Galgali that, Vishwas Dadasaheb Bansode and Jagannath Tungvel Acharya are employed on contract as peons and have been deployed at the CM's office. The salaries of the two peons are being paid by MMRDA. Bansode has been appointed from 1st November 2014 onward and Acharya has been appointed from 1st July 2015 onwards. Both the peons have not even worked for a single day at the MMRDA. Right from the day of their appointment on contract they have been working at the CMO. Acharya who had retired from the CMO as Jamadar submitted his application for the job on 1st July 2015 and on the very same day the Dy Metropolitan Commissioner and the Additional Metropolitan Commissioner Sanjay Sethi sanctioned his approval and issued internal order for appointment and the very same day onwards Acharya resumed work at the CMO. The other Ideal (Adarsh) peon Vishwas Bansode has been working since 1st November 2014, but his approval was was taken on 19 th November 2014, with the CMO's Under Secretary Kiran Hadkar writing to the Dy Metropolitan Commissioner seeking Bansode's services on loan basis. The MMRDA paid Bansode Rs 12000/= per month from 1st November 2014 to 30th December 2015 and thereafter Rs 13200/=. Acharya is being paid Rs 17500/= per month since his appointment. Anil Galgali sought the copy of the order of the CM, but MMRDA provided the copy of the request letter issued by Under Secretary Hadkar. In actuality it is binding to take the Government's approval for appointment of retired person's on contract basis, but the rules seems to have been ignored in both the cases. In a case of Dr Jagannath Dhone v/s Govt of Maharashtra, the state government has filed it's affidavit stating that the government would not appoint it's retired personal on contract and incase of extreme emergency due approval from the government would be taken. The affidavit has itself been violated by the CMs office regretted Galgali. Expressing surprise, Galgali wondered that has the CM been kept in dark about such activities by some officers in the CMO and misusing the office. He further said that it is a matter of investigation for the reason and purpose of importance of a retire Jamadar Acharya's actual requirement in the CMO. Galgali further sought enquiry in the matter.

Friday 6 May 2016

मनपा के नए नवीन काम के ठेके की जांच हो, लोक आयुक्त से मांग

मुंबई मनपा ने सडक काम में हुए भ्रष्टाचार और धांदली के चलते जांच कर 6 ठेकेदारों पर एफआईआर दर्ज की। इस सच्चाई को नकारते हुए जिन ठेकेदारों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई हैं उनमें से ही आरपीएस इन्फ्रा प्रोजेक्ट और जे कुमार को हँकॉक के अलावा यारी रोड, मिठी नदी और विक्रोली उड्डाणपूल का नया ठेका बहाल करना और गोरेगाव-मुलुंड लिंक रोड इस 1300 करोड़ के काम में दोबारा एफआईआर दर्ज ठेकेदारों में से ही ठेकेदारों पर दिखाई गई मेहरबानी की जांच करने की मांग आरटीआई कार्यकर्ते अनिल गलगली ने राज्य के लोक आयुक्त एम एल तहलियानी के पास की हैं। आरटीआई कार्यकर्ते अनिल गलगली ने राज्य के लोक आयुक्त एम एल तहलियानी के पास शिकायत में आश्चर्य व्यक्त किया हैं कि एकओर ठेकेदार पर मनपा एफआईआर दर्ज करती हैं दूसरीओर उसी ठेकेदारों को नया ठेका देती हैं। यह विचित्र मामला हैं। इसके अलावा गोरेगाव-मुलुंड लिंक रोड इस 1300 करोड़ो के काम में भी एफआईआर दर्ज हुए ठेकेदारों पर मनपा मेहरबान हैं और हाल ही में शार्ट लिस्टिंग में उनमें से ही 2 ठेकेदार वैध साबित हुए हैं। एक बार मनपा फस गई है जिससे बदनामी होते हुए उसी ठेकेदारों को नया नया काम देने से मनपा की भूमिका पर संदेह निर्माण हो रहा हैं। अनिल गलगली की लोक आयुक्त से मांग हैं कि सभी मामले को गंभीरता से लेते हुए महानगरपालिका आयुक्त से हँकॉक के अलावा यारी रोड, मिठी नदी और विक्रोली उड्डाणपूल एवं गोरेगाव-मुलुंड लिंक रोड इस नए काम का वस्तुस्थिती पर आधारित रिपोर्ट मंगवाकर मुंबईकरों की और मनपा की होनेवाला फ्रॉड को रोके और दर्ज एफआईआर के मद्देनजर सू-मोटो लेते हुए कार्यवाही करे तथा मुंबई महानगरपालिका के अंतर्गत सड़क काम में सक्रिय मनपा अधिकारी और ठेकेदारों पर करते हुए इन्हीं ठेकेदारों को नया काम देने के प्रयास की जांच करे।

पालिकेच्या नवीन कामाच्या कंत्राटाची चौकशी करावी, लोक आयुक्तांकडे मागणी

मुंबई महानगरपालिकेने रस्ते कामात झालेला भ्रष्टाचार आणि सावळा गोंधळ लक्षात घेता चौकशी करत 6 कंत्राटदारावर गुन्हे दाखल केले. ही वस्तुस्थिती असताना ज्या कंत्राटदारावर गुन्हे दाखल झाले त्यापैकी आरपीएस इन्फ्रा प्रोजेक्ट आणि जे कुमार यांस हँकॉकसह यारी रोड, मिठी नदी आणि विक्रोळी उड्डाणपूलाचे नवीन कंत्राट बहाल करणे तसेच गोरेगाव-मुलुंड लिंक रोड या 1300 कोटीच्या कामात पुनश्च कंत्राटदारावर दाखविलेली मेहरबानीची चौकशी करत कार्यवाही करण्याची मागणी आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी राज्याचे लोक आयुक्त एम एल तहलियानी यांच्याकडे केली आहे आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी राज्याचे लोक आयुक्त एम एल तहलियानी यांच्याकडे पाठविलेल्या तक्रारीत आश्चर्य व्यक्त केले आहे की एकीकडे ज्या कंत्राटदारावर पालिका गुन्हे दाखल करते त्याच कंत्राटदाराना नवीन काम देते, हा प्रकार विचित्र आहे. त्याचशिवाय गोरेगाव-मुलुंड लिंक रोड या 1300 कोटीच्या कामात सुद्धा एफआयआर दाखल झालेल्या कंत्राटदारावर पालिका मेहरबान झाले असून नुकतेच निविदेच्या छाननीअंती त्यापैकीच 2 पात्र ठरले आहेत. एकदा पालिका फसली असून त्यामुळे मोठी बदनामी झाली असताना पुनश्च त्याच त्याच कंत्राटदाराना नवनवीन कामे दिली जात असल्यामुळे पालिकेच्या हेतूवर संशय निर्माण होत आहे. अनिल गलगली मागणी केली आहे की सर्व बाबीची दखल घेत महानगरपालिका आयुक्तकडून हँकॉकसह यारी रोड, मिठी नदी आणि विक्रोळी उड्डाणपूल तसेच गोरेगाव-मुलुंड लिंक रोड या नवीन कामाचा वस्तुस्थितीवर आधारित अहवाल मागवित मुंबईकरांची आणि पालिकेची होणारी फसवणूक थांबवावी तसेच यापूर्वी दाखल गुन्ह्याबाबत सू-मोटो घेत कार्यवाही करावी आणि मुंबई महानगरपालिका अंतर्गत रस्ते कामात गुंतलेले पालिका अधिकारी आणि कंत्राटदारावर कार्यवाही करणे आणि नुकतेच अश्या कंत्राटदाराना नवीन काम देण्याचा सुरु असलेला प्रयत्न पहाता चौकशी करावी.

BMC should investigate new awarded contracts, urges activist to Maharashtra Lokayukta

BMC which has found itself under the lens due to the tremendous corruption and irregularities in the road contracts of the island city, has once again managed top grab eyeballs due to its allocation of works yet again to couple of Accuse contractors. Already there have been FIR's lodged on 6 of the contractors, who have been found guilty of shoddy works. But again not learning from any of their past mistakes, BMC has gone ahead and awarded two of the 6 Accused contractors, M/s RPS Infra Projects and M/s J Kumar works at Hackock Yari Road, Mithi River and Vikroli Flyover. To add salt to the wound BMC has also managed to help them get listed as one of the party to fill in the tender for the ambitious 1300 crore project of the Goregaon Mulund link road. RTI Activist Anil Galgali has written in this regard to the Maharashtra Lokayukt Justice (retd) M L Tahaliyani to inquire of the entire episode and accordingly initiate action on the BMC and its officials responsible for creating such a mess. In his letter to the Lokayukta, Anil Galgali has expressed his displeasure and surprise at the attitude of the BMC who on one side has lodged FIR's and on the second hand goes out of the way to promote these firms in getting works. Also the biggest surprise comes or rather it invites suspicion on the attitude of the BMC, who have helped these 2 companies to get works for the Goregaon-Mulund Link road project. As usual, at the end of short listing of tendering only 2 companies were left who were to compete against each other for the work to get allocated. This is surely inviting suspicion against the BMC, quips Galgali. Anil Galgali has asked the Lokayukta to get factual reports from the Municipal Commissioner himself for the works happening at the Hackock, Yari Road, Mithi River and Vikroli Flyover and the tendering process of Goregaon Mulund link road. Also, under su-motto the Lokayukta should initiate action against these 6 contractors who have been found guilty, alongside the officials involved and stop this practice of fooling the Mumbaikars, concludes Galgali.

Wednesday 4 May 2016

नौकरशाह के मकड़जाल में फंसी केजरी सरकार

परिवर्तन और आम जनता का राज का राग अलापने वाली दिल्ली की केजरी सरकार नौकरशाह के मकड़जाल में पुरी तरह फंस चुकी हैं। आरटीआई से विज्ञापन की जानकारी न मिलने पर दिल्ली आने का न्यौता के खिलाफ सीधे सीएम अरविंद केजरीवाल से अनिल गलगली ने गृहार लगाई थी जिसके बाद सीएम के ओएसडी जी के माधव ने डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के ओएसडी राजीव गुप्ता और डिप्टी सीएम के ओएसडी ने सूचना एवं प्रसारण विभाग को गलगली की शिकायत अग्रेषित कर अपना पल्ला झाड़ लिया हैं। मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने 8 मार्च 2016 को दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रसार संचालनालय से दिल्ली में वर्तमान सरकार गठित होने के 1 वर्ष पूर्ण होने पर जारी किए गए विभिन्न विज्ञापनों की जानकारी के साथ शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में 1 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में जारी किए विभिन्न विज्ञापनों की भी जानकारी मांगी थी। अनिल गलगली ने आगे यह भी जानने की कोशिश की थी कि सरकार दिल्ली में कार्यरत होते हुए दिल्ली के बाहर विज्ञापन देने के लिए आम दिल्लीवासियों की राय मंगाने के लिए की हुई पहल की जानकारी दे। दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रसार संचालनालय के उप निदेशक राजीव कुमार ने 15 मार्च 2016 को गलगली का आवेदन विज्ञापन, शब्दार्थ और क्षेत्रीय प्रचार यूनिट को हस्तांतरित किया गया। क्षेत्रीय प्रचार यूनिट के उप निदेशक एम सी मौर्य ने 17 मार्च 2016 को उनके कार्यालय स्थित रेकॉर्ड का निरीक्षण करने की सलाह देते हुए संबंधित विभाग के जन सूचना अधिकारी से स्वतंत्र तौर पर सूचना जमा करने को कहा। शब्दार्थ के जन सूचना अधिकारी ने 4 अप्रैल 2016 को उनका विभाग सूचना एवं प्रसार निदेशालय के आदेश पर विज्ञापन जारी करने की जानकारी देते हुए अन्य मांगी हुई सूचना उनसे संबंधित न होने का दावा किया। विज्ञापन की जन सूचना अधिकारी नलिन चौहान ने गलगली को जबाब दिया कि मांगी गई जानकारी संकलित रुप में उपलब्ध नही हैं। अत: आवेदक उनके कार्यालय में आकर संबंधित फाइलों का निरीक्षण कर सकता हैं जिससे मांगी गई जानकारी की फोटोप्रति भुगतान पर दी जा सके। गलगली ने केजरी सरकार के इसतरह के जबाब पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें लगा था कि शायद केजरी सरकार पारदर्शक और स्वच्छ कामकाज के तहत विज्ञापन की जानकारी और उसपर हुए खर्च के आंकड़े ताबड़तोब देगी लेकिन आंकड़े तो दूर की बात उन्हें दिल्ली बुलाकर फाइलों का निरीक्षण करने का जबाब सरासर आरटीआई कानून का उल्लंघन हैं क्योंकि उन्होंने अपने आवेदन में फाइल निरीक्षण का जिक्र तक नहीं किया था। गलगली ने मुंबई में प्रकाशित विज्ञापन पर होनेवाला खर्च फिजुलखर्च बताते हुए इसे सरकारी फंड का दुरुप्रयोग बताते हुए केजरीवाल से लिखित तौर पर अपील की थी कि कुछ तो पारदर्शक बने और विज्ञापन खर्च का एक एक पैसे का हिसाब जनता को देते हुए सार्वजनिक करे। अनिल गलगली की शिकायत पर सीधे कारवाई करने के बजाय सीएम अरविंद केजरीवाल के ओएसडी ने उनकी शिकायत को डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के ओएसडी के पास भेजा। डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के ओएसडी ने सीधे कारवाई करने के बजाय गलगली की शिकायत को सूचना एवं प्रसारण विभाग को भेजकर अपना पल्ला झाड़ दिया। अनिल गलगली को ना केजरी सरकार आरटीआई से मांगी विज्ञापन पर हुए खर्च की जानकारी दे रही हैं ना सीएम और डिप्टी सीएम कार्यालय कारवाई कर रहा हैं उल्टे आप पार्टी के कार्यकर्ता ट्विटर पर विज्ञापन खर्च के आंकड़े उनके हिसाब से बताने की कोशिश में जुटे हुए हैं। अनिल गलगली का सिर्फ इतना ही कहना हैं कि जो दिल्ली और दिल्ली के बाहर विज्ञापन दिए है उसका खर्च सार्वजनिक कर खर्च का ब्यौरा ऑनलाइन करे और इतना पैसा खर्च करने के पहले आम जनता की राय ली हो तो उसे बता दे।

नोकरशाहीच्या जाळयात अडकली केजरी सरकार

परिवर्तन आणि आम जनतेचे राज्य असा दावा करणारी दिल्ली येथील केजरी सरकार नोकरशाहीच्या जाळयात संपूर्ण रित्या अडकली आहे. आरटीआय च्या माध्यमातून जाहिरातीची माहिती न मिळाल्यामुळे दिल्लीस पाचारण केल्याच्या विरोधात अनिल गलगली यांनी डायरेक्ट मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल यांस कडे तक्रार केली होती. त्या तक्रारीवर कारवाई करण्याऐवजी मुख्यमंत्र्याचे ओएसडी राजीव गुप्ता यांनी उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया यांचे ओएसडी जी के माधव आणि उप मुख्यमंत्री यांच्या ओएसडी यांनी माहिती आणि प्रसारण विभागास गलगली यांची तक्रार अग्रेषित करत आपले हाथ झटकले आहे. आरटीआय कार्यकर्ता अनिल गलगली यांनी 8 मार्च 2016 रोजी दिल्ली सरकारच्या माहिती आणि प्रसार संचालनालयाकडे दिल्लीतील स्द्याचे सरकार स्थापन होण्यास 1 वर्ष पूर्ण झाल्यानिमित्त जारी केलेल्या विविध जाहिरातीची माहिती सोबत शीला दीक्षित सरकारच्या कालावधीत 1 वर्ष पूर्ण होण्याच्या निमित्त जारी केलेल्या विविध जाहिरातीची माहिती मागितली होती. अनिल गलगली यांनी पुढे हे ही जाणून घेण्याचा प्रयत्न केला होता की सरकार दिल्लीत कार्यरत असताना दिल्लीच्या बाहेरील राज्यात जाहिराती देताना सामान्य दिल्लीवासियांचे मत जाणून घेण्यासाठी केलेल्या पुढाकाराची माहिती द्या। दिल्ली सरकारच्या माहिती आणि प्रसार संचालनालयाचे उप संचालक राजीव कुमार यांनी 15 मार्च 2016 रोजी गलगली यांचा अर्ज जाहिरात, शब्दार्थ आणि क्षेत्रीय प्रचार यूनिट या 3 विभागाकडे हस्तांतरित केला. क्षेत्रीय प्रचार यूनिटचे उप संचालक एम सी मौर्य यांनी 17 मार्च 2016 रोजी त्यांच्या कार्यालयातील अभिलेखाचे निरीक्षण करण्याचा सल्ला देत संबंधित विभागाच्या जन माहिती अधिकारी यांसकडून स्वतंत्र अर्ज करत माहिती घेण्यास सांगितले. शब्दार्थ विभागातील जन माहिती अधिकारी यांनी 4 एप्रिल 2016 रोजी त्यांचा विभाग माहिती आणि प्रसार निदेशालयाच्या आदेशावर जाहिराती जारी करण्याची माहिती देत अन्य मागितलेली माहिती त्यांच्याशी संबंधित न होण्याचा दावा केला.जाहिरात विभागाचे जन माहिती अधिकारी नलिन चौहान यांनी गलगली यांस कळविले की मागितलेली माहिती संकलित स्वरुपात उपलब्ध नाही आहे. त्यामुळे अर्जदाराने त्यांच्या कार्यालयात उपस्थित राहत संबंधित फाइलचे निरीक्षण करु शकतात त्यानंतर मागितलेली माहितीची फोटोप्रति शुल्क अदा केल्यानंतर दिले जाऊ शकते. अनिल गलगली यांनी केजरीवाल सरकारच्या अश्या प्रकारच्या उत्तरावर आश्चर्य व्यक्त करत सांगितले की त्यांस वाटले होते की केजरीवाल सरकार पारदर्शक आणि स्वच्छ कारभाराच्या अंतर्गत जाहिराताची माहिती आणि त्यावर झालेल्या खर्चाची आकडेवारी तत्काळ देतील परंतु आकडेवारी देणे तर दूर राहिले त्यांस दिल्लीला येत फाइलीचे निरीक्षण करण्याचे उत्तर शत प्रतिशत आरटीआय कायदाचे उल्लंघन आहे कारण त्यांनी आपल्या अर्जात कोठेही फाइलचे निरीक्षण करण्याचा साधा उल्लेखही केला नव्हता .गलगली यांनी मुंबईत प्रकाशित होणा-या जाहिरातीवर केला जाणारा खर्च पैसाची उधलपट्टी करार देत यास सरकारी फंडाचा दुरुप्रयोग सांगत केजरीवाल यांस अपील केले की काही प्रमाणात तरी पारदर्शक बना आणि जाहिरातीवर झालेल्या एक एक पैसाच्या खर्चाचा हिशोब जनतेस देत त्यास सार्वजनिक करा. अनिल गलगली यांस केजरी सरकार आरटीआयत जाहिरातीवर खर्च झालेली माहिती देत नाही ना मुख्यमंत्री आणि उप मुख्यमंत्री कार्यालय कारवाई करत आहे उलट आप पार्टीचेे कार्यकर्ते ट्विटर वर जाहिरातीचा खर्चाचा आकडेवारी त्यांच्या पद्धतीने सांगण्याचा केविळवाणा प्रयत्न करत आहेत. अनिल गलगली यांचे म्हणणे आहे की दिल्ली आणि दिल्लीच्या बाहेर जाहिरातीवर जो खर्च झाला आहे त्याची माहिती सार्वजनिक करत सर्व खर्चाचे विवरण ऑनलाइन करा आणि इतका पैसा जाहिरातीवर खर्च करण्यापूर्वी आम जनतेची मत मागविले असल्यास त्याची माहिती दया.

Kejri government stuck in the Web of bureaucracy

It appears that, Arvind Kejriwal, who rode to power on his claims of providing a transparent, clean and rule of common man, has itself got stuck in the vicious Web of the bureaucracy. Anil Galgali, who was denied information on the expenses of advertisements by the Delhi government and instead told to personally visit Delhi and inspect the files, had written a letter to CM Arvind Kejriwal asking for intervention. Instead of acting and issuing directions, the letter of Galgali was forwarded to the OSD of the Dy CM Manish Sisodiya by the Rajeev Gupta ,OSD of the CM. Furthermore the GK Madhav, OSD of the Dy CM forwarded the letter to the Information and Broadcasting department, thereby shirking of the responsibility of taking action. Following the series of the advertorials in almost all the dailies in the Mumbai city in the month of February, Anil Galgali had filed an RTI with Delhi government seeking details of expenditure incurred in the giving through ads on 8 March 2016. After Anil Galgali filed query, his application was forwarded by Rajeev Kumar, Dy Director of Directorate of Information and Publicity to three departments ie Shabdarth, Advt and Field Publicity. Interesting that non of the three departments gave him reply. Replying to Galgali query on March 17, 2016, Directorate of Information and Publicity of Delhi Government MC Mourya said that Applicant may be requested to inspect the information available on the records in the files of the FP (field Publicity) unit, so that the desired information can be provided on the payment of prescribed fee. While Shabdarth department, a new departmenton April 4, 2016 replied that Shabdarth issues the advertisements on the basis of order given by the Directorate of Information and Publicity Department and further said that information asked was not related with this department. Finally, on April 13, 2016, Directorate of Information and Publicity Department's Advertise Section Public Information Officer Nalin Chouhan replied to the Galgali query saying that desired information asked by the applicant was not available with the office, however, applicant can personally inspect the documents. Terming these replies as a nefarious attempt to hide the splurged money of Aam Aadmi. Galgali alleged that The motive of this government is very much clear that it does not wish to share the common tax payers money spent of advertisement. Galgali further added that Spending money upto certain limits with the periphery of NCR was a bit Ok. But this government nonsensically splurged money across all the major cities of the country, that I wanted to know. Delhi chief minister Arvind Kejariwal seems to suffer from a mis-coordination of sorts when it comes to keep a track of its own expenditure. Anil Galgali has sent an email to Delhi CM Arvind Kejriwal to upload all the information related at the website immediately. It has now been understood that the Delhi government is neither providing information on the query filed by Anil Galgali nor the CM Arvind Kejriwal and Dy CM Manish Sisodiya are taking action against the Information and Broadcasting department for not providing information. Apart from this, some worker's of Aam Admi Party are circulating vague figures of expenses on advertisements on Twitter and other social media. On the issue Anil Galgali stated that, the Kejriwal government in Delhi should publish the information of the expenses incurred on the advertisement of the government in Delhi and outside Delhi on its website and should also declare if they had taken the opinion of the common man on incurring such expenses