Friday 22 February 2019

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पत्रकार सम्मेलन की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय के पास नहीं

देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा बुलाया गया पत्रकार सम्मेलन तथा सीधे दी गई इंटरव्यू की जानकारी प्रधानमंत्री कार्यालय के रेकॉर्ड पर न होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को प्रधानमंत्री कार्यालय ने दी हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने प्रधानमंत्री कार्यालय से 8 दिसंबर 2018 को ऑनलाईन आवेदन कर प्रधानमंत्री कार्यालय से जानकारी मांगी थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्यकाल में बुलाया पत्रकार सम्मेलन, स्थान, दिनांक और पत्रकार सम्मेलन का विषय की जानकारी दी जाए। साथ ही में प्रसारमाध्यम के कितने प्रतिनिधियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सीधा इंटरव्यू या रेकॉर्डिंग की है ऐसे इंटरव्यू का दिनांक, स्थान, विषय, प्रसारमाध्यम के प्रतिनिधि का नाम औ प्रसारमाध्यम का नाम की जानकारी मांगी थी। प्रधानमंत्री कार्यालय के अवर सचिव प्रवीण कुमार ने दिनांक 7 जनवरी 2019 को अनिल गलगली को बताया कि यह मामला इस कार्यालय की प्रक्रियाधीन आहे और जबाब/सूचना शीघ्र ही आपको भेजी जाएगी। प्रधानमंत्री कार्यालय से किसी भी प्रकार का जबाब और जानकारी न मिलने पर अनिल गलगली ने 68 दिन के बाद यानी 14 फरवरी 2019 को प्रथम अपील दायर की। प्रथम अपील करते ही प्रधानमंत्री कार्यालय के ही अवर सचिव प्रवीण कुमार ने प्रक्रियाधीन मामले के तहत गलगली के आवेदन को जबाब देते हुए सूचित किया कि प्रधानमंत्री ने प्रसार माध्यम के प्रतिनिधियों से होनेवाला संवाद यह दोनों संरचित और असंरचित हैं। इसके चलते मांगी गई जानकारी इस रेकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं हैं।

अनिल गलगली के अनुसार ऑनलाईन आवेदन करने के बाद तत्काल जबाब की अपेक्षा थी लेकिम प्रधानमंत्री कार्यालय ने लेटलतीफी नीतियों का अवलंब किया और जानकारी देने में जानबूझकर समय व्यर्थ गंवाया। प्रथम अपील दायर करने के बाद जो जानकारी दी गई है वह दिग्भ्रमित करनेवाली अधूरी जानकारी हैं। प्रधानमंत्री कार्यालय स्पष्ट करे कि पत्रकार सम्मेलन बुलाया गया था कि नहीं बुलाया गया था? ऐसी अपील करते हुए गलगली ने कहा कि इसतरह जानकारी को नकारते हुए अपरोक्ष तौर पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने उल्टे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विवादित बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी हैं। 


पंतप्रधान नरेंद्र मोदींच्या पत्रकार परिषदेची माहिती पंतप्रधान कार्यालयाकडे नाही

देशाचे पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी बोलाविलेली पत्रकार परिषद तसेच प्रत्यक्षात दिलेल्या थेट मुलाखतीची माहिती पंतप्रधान कार्यालयाच्या अभिलेखावर नसल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस पंतप्रधान कार्यालयाने दिली आहे. 

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी पंतप्रधान कार्यालयाकडे 8 डिसेंबर 2018 रोजी ऑनलाइन अर्ज करत पंतप्रधान कार्यालयाकडे माहिती विचारली होती की पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांनी आपल्या कार्यकाळात बोलाविलेल्या पत्रकार परिषद, स्थान, दिनांक आणि पत्रकार परिषदेचा विषय याची माहिती देण्यात यावी. तसेच प्रसार माध्यमांच्या किती प्रतिनिधींनी पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांची थेट मुलाखत किंवा रेकॉर्डिंग केली आहे अश्या मुलाखतीचा दिनांक, स्थान, विषय, प्रसारमाध्यमच्या प्रतिनिधींचे नाव आणि प्रसारमाध्यमाचे नाव याची माहिती मागितली होती. पंतप्रधान कार्यालयातील अवर सचिव प्रवीण कुमार यांनी दिनांक 7 जानेवारी 2019 रोजी अनिल गलगली यांस कळविले की हे प्रकरण त्यांच्या कार्यालयाच्या प्रक्रियेचे अधीन आहे आणि उत्तर लवकरच पाठविले जाईल. पंतप्रधान कार्यालयाकडून कोणत्याही प्रकारचे उत्तर तसेच माहिती न मिळाल्यामुळे अनिल गलगली यांनी 68 दिवसानंतर म्हणजे 14 फेब्रुवारी 2019 रोजी प्रथम अपील केले. प्रथम अपील करताच पंतप्रधान कार्यालयातील अवर सचिव प्रवीण कुमार यांनी प्रक्रियाधीन असलेेेल्या गलगली यांच्या अर्जाला उत्तर देत कळविले की पंतप्रधान यांचे प्रसार माध्यमांच्या प्रतिनिधींशी होणारा संवाद हा दोन्ही संरचित आणि असंरचित आहे. म्हणूनच विचारलेली माहिती ही अभिलेखावर उपलब्ध नाही.

अनिल गलगली यांच्या मते ऑनलाइन अर्ज केल्यानंतर ताबडतोब उत्तराची अपेक्षा होती पण पंतप्रधान कार्यालयाने वेळखाऊ धोरणांचा अवलंब केला आणि माहिती देण्यास जाणूनबुजून दिरंगाई केली. प्रथम अपील दाखल केल्यानंतर जी माहिती दिली गेली आहे ती दिशाभूल आणि अर्धवट आहे. पंतप्रधान कार्यालयाने स्पष्ट करावे की पत्रकार परिषदेचे आयोजन केले आहे किंवा नाही? असे आवाहन पंतप्रधान कार्यालयास करत गलगली म्हणाले की अश्याप्रकारे माहिती नाकारत अप्रत्यक्षपणे पंतप्रधान कार्यालयाने उलट पंतप्रधान नरेंद्र मोदी यांस वादग्रस्त बनविले आहे.


Prime Minister's Office does not have record about PM's Press Conference

RTI activist Anil Galgali has been informed by the Prime Minister's Office that the information related to Prime Minister Narendra Modi's press conference and actual live interview is not on the record of Prime Minister's Office.

RTI activist Anil Galgali had asked the Prime Minister's Office on December 8, 2018, asking to provide him with information about the location, date and subject of  press conference called by Prime Minister Narendra Modi during his tenure. Similarly, how many representatives of the media had asked for the interview, place, subject, name of the media representatives and the name of the media house that directly interviewed or recorded the interview. Pravin Kumar, Under Secretary of the Prime Minister's Office first informed Anil Galgali on 7th January, 2019 that this matter is subject to the procedure of his office and the reply will be sent soon. Anil Galgali did not receive any reply or information from the Prime Minister's Office thereafter, hence, after 68 days on February 14, 2019 filed RTI first appeal to seek information sought by him. Upon first appealing, the Prime Minister's Office, Under Secretary Praveen Kumar, responded to the request of Galgali quickly, that The Prime Minister's interaction with Press Representatives are both structured and unstructured and, thereafter information asked for is not available on record.

According to Anil Galgali, PMO was expected to reply immediately after online application, but the Prime Minister's Office adopted time-consuming policies and deliberately delayed the information. The information that was given after the filed first appeal appeared to be misleading and partial. PM office should clarify whether a press conference is organized or not? Galgali appealed to the Prime Minister's office that, in such a case of denial of information, indirectly the Prime Minister's Office has put the Prime Minister Narendra Modi himself in a controversial position.

Tuesday 19 February 2019

एमएमआरडीए की कार्पोरेटवाली नई मुद्रा पर 3.54 लाख का खर्च

मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली एमएमआरडीए प्रशासन ने अपनी नई पहचान निर्माण करने के लिए एमएमआरडीए प्रशासन की मुद्रा यानी लोबो बदल दी हैं और मुद्रा की डिजाईन पर 3.54 लाख का खर्च करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एमएमआरडीए प्रशासन ने दी हैं। गत 44 वर्ष से इस्तेमाल होनेवाली मुद्रा बदलने से अब सभी स्थानों पर कार्पोरेट लूक वाली नई मुद्रा पर 30 लाख का खर्च अपेक्षित हैं।


आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से नई मुद्रा और उसपर हुए खर्च की जानकारी मांगी थी। एमएमआरडीए प्रशासन ने अनिल गलगली को बताया कि 2 चरणों मे नई मुद्रा बनाने के लिए मेसर्स डिजाईन ओरबी इस कंपनी को 3 लाख 54 हजार रुपए दिए गए हैं। एमएमआरडीए प्रशासन ने उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों के आधार पर एमएमआरडीए प्रशासन ने नई मुद्रा बनाने के लिए एमएमआरडीए प्राधिकरण की मंजुरी ली थी। मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1974 की धारा 3(2) में महानगर प्राधिकरण यह एक कानून द्वारा संस्थापित संस्था होगी, उसकी अखंड अधिकार परंपरा होगी और उसकी  एक सामान्य मुद्रा होगी। उसके अनुसार प्राधिकरण ने दिनांक 11 मई 1975 को मुद्रा को मान्यता दी। महानगर आयुक्त का दावा ऐसा था कि वर्तमान में प्राधिकरण द्वारा जो विभिन्न  ढांचागत सुविधा योजना हाथों में लिया गया जिसकी परिकल्पना स्थापना के दौरान नहीं की गई थी। प्राधिकरण में होनेवाला संस्थात्मक बदलाव और मेट्रो, सड़क और उड्डानपूल इसकी संकल्पना स्पष्ट के तौर पर परिभाषित करने वाली नई मुद्रा हैं।यह प्रस्ताव 10 जुलाई 2015 से विचारधीन था। इसतरह पैसों की फिजूलखर्ची ठीक नहीं हैं।


इस मुद्रा के सिर्फ डिजाईन पर अब 3.54 लाख खर्च भले ही हुए हैं लेकिन भविष्य में सभी स्थानों पर एमएमआरडीए प्रशासन की पुरानी मुद्रा बदलने के लिए एमएमआरडीए प्रशासन को और 30 लाख खर्च आने से उसका प्रावधान किया गया हैं। अनिल गलगली के अनुसार मुद्रा बदलने से काम में भी बदलाव होना आवश्यक हैं जबकि पुरानी मुद्रा स्वयंस्पष्ट थी। एमएमआरडीए प्राधिकरण के अध्यक्ष स्वयं मुख्यमंत्री होने से कार्पोरेट के बजाय सेवा और गुणवत्तापूर्ण देनेवाली एमएमआरडीए ऐसी पहचान निर्माण होने की जरुरत होने की बात गलगली ने कही।

एमएमआरडीएच्या नवीन कार्पोरेट मुद्रेवर 3.54 लाखांचा खर्च

मुख्यमंत्री अध्यक्ष असलेल्या एमएमआरडीए प्रशासनाने आपली नवीन ओळख निर्माण करण्यासाठी एमएमआरडीए प्रशासनाची मुद्राच बदलली असून या मुद्रेच्या डिझाइनवर 3.54 लाखांचा खर्च केला असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस एमएमआरडीए प्रशासनाने दिली आहे. गेल्या 44 वर्षांपासून असलेल्या मुद्रा बदलामुळे सर्वत्र कार्पोरेट लूक असलेली नवीन मुद्रा बसविण्यासाठी 30 लाखांचा खर्च अपेक्षित आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडे नवीन मुद्रा आणि त्यावर आलेल्या खर्चाची माहिती मागितली होती. एमएमआरडीए प्रशासनाने अनिल गलगली यांस कळविले की 2 टप्प्यात नवीन मुद्रा बनविण्यासाठी मेसर्स डिझाइन ओरबी या कंपनीला 3 लाख 54 हजार रुपये देण्यात आले आहे. एमएमआरडीए प्रशासनाने उपलब्ध करुन दिलेल्या कागदपत्रांनुसार एमएमआरडीए प्रशासनाने नवीन मुद्रा बनविण्यासाठी एमएमआरडीए प्राधिकरणाची मंजुरी घेण्यात आली होती. मुंबई महानगर प्रदेश विकास प्राधिकरण अधिनियम, 1974 चे कलम 3(2) मध्ये महानगर प्राधिकरण ही एक कायद्याने संस्थापित संस्था असेल, त्याची अखंड अधिकार परंपरा असेल व त्याची एक सामान्य मुद्रा असेल. त्यानुसार प्राधिकरणाने दिनांक 1 1 मे 1975 रोजी मुद्रेला मान्यता दिली. महानगर आयुक्तांचा दावा असा होता की सद्या प्राधिकरणामार्फत जे विविध पायाभूत सुविधा प्रकल्प हाती घेण्यात आले आहेत त्याची परिकल्पना स्थापनेच्यावेळी करण्यात आलेली नव्हती. प्राधिकरणात घडत असलेल्या संस्थात्मक बदल आणि मेट्रो, मोनो, रस्ते आणि उड्डाणपूल याची संकल्पना स्पष्टपणे परिभाषित करणारी नवीन मुद्रा आहे. हा प्रस्ताव 10 जुलै 2015 पासून एमएमआरडीएच्या विचारधीन होता. 

या मुद्रेवर फक्त डिझाइनसाठी आता 3.54 लाख खर्च केले असले तरी भविष्यात सर्वत्र एमएमआरडीए प्रशासनाची पूर्वीची मुद्रा बदलण्यासाठी एमएमआरडीए प्रशासनाला अजून 30 लाख खर्च येणार असून त्याची तरतूद करण्यात आली आहे. अनिल गलगली यांच्या मते मुद्रा बदलामुळे कामात बदल होणे आवश्यक असून पूर्वीची मुद्रा स्वयंस्पष्ट होते. एमएमआरडीए प्राधिकरणाचे अध्यक्ष दस्तुरखुद्द मुख्यमंत्री असून कार्पोरेट ऐवजी सेवा आणि दर्जा देणारी एमएमआरडीए अशी ओळख निर्माण करण्याची गरज असल्याची अपेक्षा गलगली यांनी व्यक्त केली आहे. अशाप्रकारे पैश्यांची उधळपट्टी ठीक नाही.

Can you believe it... ?? MMRDA splurges Rs 3.54 lakh in redesigning it's new logo

What could be called as complete lackadaisical and unprofessional conduct of the officers of the Metropolitan Regional Development Authority (MMRDA), it has spent whopping Rs 3.54 lakh in redesigning its new logo to give it a corporate look. To make the thing even worst, this small ticket project full four years to complete it. This has been revealed by an Right to Information (RTI) query filed by RTI Activist Anil Gavali.

RTI Activist Anil Galgali had filed an RTI query with this MMRDA and had sought details of money spent on re-designing of its new logo. Replying the the query, MMRDA Establishment department of the body stated that it outsourced the job of re-designing its corporate like new logo to M/s Design ORB and paid Rs 3 lakh in two instalments. MMRDA also paid Rs 54,000 as CGST and SGST, taking total expenditure upto Rs 3.54 lakh to its exchequer.
     
According to the invoice, attached with the RTI reply, M/s Design ORB firm is registered under speciality design service including interior design, fashion design, industrial design and other speciality design services. The copy of the establishment department note, which was attached with the reply, said that the aim of the re-designing its new logo was to have a new logo reflect the essence of the organisation that is positive, stable, professional, cropoate look and reliable. The copy reads, "MMRDA need to have a professionally re-designing its new logo. The current logo is the logo that is carried out till now from the beginning og the organisation.,"

 "So there is need to have and freshly designed company logo which identify the area of the operation and bring out its essence," administrative note filed on July 10, 2015 said. Notably, The current logo was being used used by since last 44 years by the MMRDA, when this body came into existence. MMRDA estimated 30 lakhs another expenditure for change this old logo to new logo. This initiative of changing the logo, was not welcomed by the activist Anil Galgali, who termed it "unnecessary and wasteful" expenditure

          Galgali said, "MMRDA should first and foremost prove itself by executing the various long-pending projects in time. This logo-redesigning project itself shown mirror to the agency that it took over four years to change the logo. One can easily understand why MMRDA take so long to execute any project,". Galgali also said that MMRDA should rather focus to provide its qualitative services to the people, rather being involved in wasteful expenditures." 

Wednesday 13 February 2019

वसई के शिरवली गाव में महिला प्रशिक्षण शिबिर का आयोजन

वसई पूर्व स्थित शिरवली गाव में केंद्र और राज्य सरकार द्वारा संचालित योजना की जानकारी देते हुए उसके लिए महिलाओं को 2 दिवसीय महिला प्रशिक्षण शिबीर का आयोजन किया गया। इस मौके पर बोलते हुए वसई- विरार महानगरपालिका के महापौर रुपेश जाधव ने कहा कि महिलाओं को स्वयंरोजगार देने के लिए महानगरपालिका कटिबद्ध हैं और उसके लिए महिलाओं को पहल करनी चाहिए।

पंचशील युवक मंडल और श्रम व रोजगार मंत्रालय द्वारा आयोजित शिबिर का उद्घाटन सूचना अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली ने किया। अनिल गलगली ने सरकार की  विभिन्न योजनाओं की जानकारी देते हुए अपील कि हर महिलाओं की योजना और उसका कार्यान्वयन की प्रक्रिया समझकर लेने की आवश्यकता हैं। शिक्षा अधिकारी हसमुख जारीया ने कहा कि सरकार हमेशा महिलाओं को विभिन्न जरिए प्रोत्साहन देने का कार्य करती हैं। प्रोफेसर अफरोज शेख ने रोजाना जीवन की महत्वपूर्ण टिप्स दी। आयमन कांचवाला ने कहा कि महिलाओं को स्वयं की ताकत परखने की जरुरत हैं।

इस मौके पर स्थायी समिती सदस्य वैभव पाटील, उप आरोग्य सभापती भुपेंद्र पाटील, ग्राम पंचायत सदस्य वैशाली उबाले, ग्राम सेवक श्रीकांत मोरे, सुभाष गायकवाड, किरण बढे, नितीन गायकवाड, शंकर उथले, भूषण मोने, दिनेश मधुकुंटा, उपेंद्र सोनटक्के, अरुण भोईर, राजेंद्र उबाले, किरण जाधव, प्रणाली मुकणे, हेमंत गायकवाड, पंकज जाधव, मिलिंद उबाळे, रमेश उबाले, उदय जाधव, रघुनाथ जाधव उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन प्रकाश उबाले ने किया।


वसई येथील शिरवली गावांत महिला प्रशिक्षण शिबिराचे आयोजन

वसई पूर्व येथील शिरवली गावांत केंद्र आणि राज्य शासनातर्फे संचालित योजनेची माहिती देत त्यासाठी महिलांना 2 दिवसीय महिला प्रशिक्षण शिबीर आयोजित करण्यात आले. यावेळी बोलताना वसई- विरार महानगरपालिकेचे महापौर रुपेश जाधव म्हणाले की महिलांना स्वयंरोजगार देण्यासाठी महानगरपालिका कटिबद्ध असून महिलांनी पुढाकार घ्यावा.

पंचशील युवक मंडळ आणि श्रम व रोजगार मंत्रालयातर्फे आयोजित शिबिरांचे उद्घाटन माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी केले. अनिल गलगली यांनी शासनाच्या विविध योजनेची माहिती देत आवाहन केले की प्रत्येक महिलांनी योजना आणि त्याच्या अंमलबजावणीची प्रक्रिया समजून घेणे आवश्यक आहे. शिक्षण अधिकारी हसमुख जारीया म्हणाले की शासन नेहमीच महिलांना विविध माध्यमातून प्रोत्साहन देण्याचे कार्य करत आहे. प्रोफेसर अफरोज शेख यांनी दैनंदिन जीवनातील महत्वाच्या टिप्स दिल्यात. आयमन कांचवाला यांनी सांगितले की महिलांनी स्वतःची ताकद ओळखण्याची गरज आहे. 

यावेळी स्थायी समिती सदस्य वैभव पाटील, उप आरोग्य सभापती भुपेंद्र पाटील, ग्राम पंचायत सदस्य वैशाली उबाळे, ग्राम सेवक श्रीकांत मोरे, सुभाष गायकवाड, किरण बढे, नितीन गायकवाड, शंकर उथळे, भूषण मोने, दिनेश मधुकुंटा, उपेंद्र सोनटक्के, अरुण भोईर, राजेंद्र उबाळे, किरण जाधव, प्रणाली मुकणे, हेमंत गायकवाड, पंकज जाधव, मिलिंद उबाळे, रमेश उबाळे, उदय जाधव, रघुनाथ जाधव उपस्थित होते.कार्यक्रमाचे संचालन प्रकाश उबाळे यांनी केले.

Monday 11 February 2019

मुंबई यूनिवर्सिटी की 9 लाख डिग्रीयां ऑनलाइन

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय शैक्षणिक निक्षेपागार (एनएडी) के तहत सभी शैक्षणिक अभिलेखों का डिजिटल बैंक का प्रारंभ किया हैं। मुंबई यूनिवर्सिटी की 9 लाख डिग्रीयांस डिजिटल बैंक के तहत ऑनलाइन होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई यूनिवर्सिटी ने दी हैं। वर्ष 2014 से वर्ष 2018 की डिग्रीयां ऑनलाइन होने से फर्जी एजुकेशनल सर्टिफिकेट पर लगेगी रोक लगेगी।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई यूनिवर्सिटी से जानकारी मांगी थी कि राष्ट्रीय शैक्षणिक निक्षेपागार (एनएडी) के तहत पंजीकृत की गई डिग्री और उसकी संख्या दे। मुंबई यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ यंत्रणा प्रोग्रामर ने अनिल गलगली को बताया कि 22 फरवरी 2018 से इस योजना का आरंभ किया गया हैं। उन्होंने वर्ष 2014 से वर्ष 2018 इन 5 वर्षों की जानकारी दी। इस जानकारी से पता चलता हैं कि वर्ष 2014 से वर्ष 2018 के दौरान आर्ट्स, कॉमर्स, साइंस, मैनजमेंट, टेक्नोलॉजी और लॉ की कुल 8 लाख 99 हजार 60 डिग्रीयां केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शैक्षणिक निक्षेपागार (एनएडी) पर अपलोड की गई हैं। 5 वर्ष की तुलना की जाए तो वर्ष 2014 में सर्वाधिक 1 लाख 93 हजार 398 डिग्रीयां ऑनलाईन की गई हैं। वहीं वर्ष 2018 में कुल 1 लाख 89 हजार 538 डिग्रीयां ऑनलाईन की जा चुकी हैं। फैकल्टी वाईज सर्वाधिक डिग्रीयां कॉमर्स फैकल्टी की हैं जिसकी संख्या 3 लाख 98 हजार 650 हैं। उसके बाद आर्ट्स की 1 लाख 50 हजार 680, टेक्नोलॉजी की 1 लाख 29 हजार 603 वहीं साइंस की 1 लाख 11 हजार 625 डिग्रीयां आती हैं। मैनजमेंट की 76 हजार 851 और लॉ की 31 हजार 652 संख्या हैं। 

इस योजना पर बताते हुए मुंबई यूनिवर्सिटी ने अनिल गलगली को जो बातें लिखित तौर पर दी गई हैं। इस सेवा के लिए किसी भी तरह की फीस नहीं ली जाती हैं। इस योजना के तहत डिग्रीयां और अन्य सर्टिफिकेट ऑनलाईन उपलब्ध हैं।

अनिल गलगली ने इसे केंद्र सरकार का क्रांतिकारक निर्णय बताते हुए कहा कि इसकी स्थापना होने से फर्जी शैक्षिक प्रमाण पत्रों की समस्या को रोकने में काफी हद तक सफलता प्राप्त हो रही हैं। इसके साथ चयन के बाद सत्यापन की लंबी प्रक्रिया से भी मुक्ति मिल जाएगी। जहां इस योजना से छात्रों की उपाधि का सत्यापन आसानी से होगा। वहीं छात्र अपनी डिग्रीयां और शैक्षिक डुप्लीकेट प्रमाणपत्रों को ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं। 

मुंबई विद्यापीठाच्या 9 लाख पदव्या ऑनलाइन

केंद्र सरकारने राष्ट्रीय शैक्षणिक निक्षेपागार (एनएडी) या अंतर्गत सर्व शैक्षणिक अभिलेखांची डिजीटल बँकेची सुरुवात केली आहे. मुंबई विद्यापीठाच्या 9 लाख पदव्या डिजीटल बँकेच्या अंतर्गत ऑनलाइन करण्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई विद्यापीठाने दिली आहे. वर्ष 2014 पासून वर्ष 2018 या कालावधीतील पदव्या ऑनलाइन झाल्याने बोगस शैक्षणिक प्रमाणपत्रावर अंकुश लागेल.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई विद्यापीठाकडे माहिती मागितली होती की राष्ट्रीय शैक्षणिक निक्षेपागार (एनएडी) या अंतर्गत नोंदणीकृत पदव्याची माहिती मागितली होती. मुंबई विद्यापीठाच्या वरिष्ठ यंत्रणा प्रोग्रामर यांनी अनिल गलगली कळविले की केंद्र सरकारच्या संकेतस्थळावर पाच वर्षांची पदवीची 22 फेब्रुवारी 2018 पासून सुरु करण्यात आली आहे. यात वर्ष 2014 पासून वर्ष 2018 या 5 वर्षांची माहिती देण्यात आली आहे. या माहितीमुळे जी आकडेवारी दिली आहे त्यानुसार वर्ष 2014 पासून वर्ष 2018 या कालावधीत आर्टस् कॉमर्स, सायन्स, मैनजमेंट, टेक्नोलॉजी आणि लॉ अंतर्गत एकूण 8 लाख 99 हजार 60 पदव्या केंद्र सरकारच्या राष्ट्रीय शैक्षणिक निक्षेपागार (एनएडी) या संकेतस्थळावर टाकण्यात आल्या आहेत. 5 वर्षाच्या पदव्याची तुलना केली असता वर्ष 2014 या वर्षात सर्वात जास्त 1 लाख 93 हजार 398 पदव्या ऑनलाईन करण्यात आल्या आहेत. तर वर्ष 2018 या वर्षात एकूण 1 लाख 89 हजार 538 पदव्या ऑनलाईन केल्या गेल्या आहेत. विद्या शाखा स्तरावर सर्वात जास्त पदव्या या कॉमर्स विद्या शाखेच्या आहेत. ज्याची संख्या 3 लाख 98 हजार 650 इतक्या आहेत. त्यानंतर आर्ट्स विद्या शाखेच्या 1 लाख 50 हजार 680, टेक्नोलॉजी विद्या शाखेच्या 1 लाख 29 हजार 603 आणि साइंस विद्या शाखेच्या 1 लाख 11 हजार 625 पदव्या आहेत. मैनजमेंट विद्या शाखेच्या 76 हजार 851 आणि लॉ विद्या शाखेच्या 31 हजार 652 संख्या आहेत. या योजनेची माहिती देताना मुंबई विद्यापीठाने अनिल गलगली यांस ज्या बाबी लेखी स्वरुपात दिल्या आहेत त्यात सेवेसाठी कोणत्याही प्रकारचे शुल्क आकारले जात नाही. या योजनेअंतर्गत पदव्या आणि अन्य प्रमाणपत्र ऑनलाईन उपलब्ध आहेत.

अनिल गलगली यांनी केंद्र सरकारचा हा क्रांतिकारक निर्णय असल्याचे सांगत म्हणाले की यामुळे बोगस शैक्षणिक प्रमाणपत्र रोखण्यासाठी यश प्राप्त झाले आहे.यामुळे प्रमाणपत्राचे सत्यापनाची लांब आणि जटिल प्रक्रियेपासून मुक्ती मिळेल. तसेच विद्यार्थी आणि विद्यार्थींना आपल्या पदव्या आणि शैक्षणिक नक्कल प्रमाणपत्र ऑनलाइन प्राप्त होईल.

9 Lakhs Degrees from Mumbai University Online Which prevent use of fraudulent educational certificates

Central government under its National Academic Depository initiative has started digital archiving of educational certificates. Mumbai University has deposited 9 lakhs degree certificates as informed by it under a RTI query to RTI activist Anil Galgali. By making available degrees from 2014 to 2018 online, it hopes to prevent use if fraudulent educational certificates.

RTI activist Anil Galgali had asked in his query that Mumbai University provide details of number of degrees that have been deposited with the National Academic Depository.  Senior systems programmer has informed him that the process was started on 22 February 2018 and in the five year period from 2014 to 2018,  a total of 8 lakhs 99 Thousand 60 Degrees from the faculties of Arts, Commerce, Science, Management, Technology and Law have been uploaded on the Central Government's National Academic Depository. Comparison of the 5 year period showed that in 2014, 1 Lakhs  93 Thousand 398 degrees were uploaded where as in  2018, 1 Lakhs 89 Thousand 538 degrees were uploaded online. Faculty wise Commerce Degrees were the largest standing at 3 lakhs 98 Thousand 650 followed by arts at 1 Lakhs 50 Thousand 680 . Number for Technology stood at 1 Lakhs  29 Thousand 603 while that for  science was 1 lakhs 11 Thousand 625, Management was 76 Thousand 851 and that for law stood at 31 Thousand 652. 

While informing Anil Galgali in writing it was stated that no fees are charged for this service and degree and other educational certificates are made available online at the depository.

Anil Galgali has said that this revolutionary initiative of government has resulted in reduction in use of fake educational certificates and that the lengthy process of verification after selection will also be consigned to history. One one side verification of degree will be now easy for students on the other, they will have access to copies of their degree and educational certificates online.


Thursday 7 February 2019

फर्जी जाति से पदमुक्त हुए भी नगरसेवक पर एफआईआर नहीं हुई दर्ज, महापौर महाडेश्वर भी शामिल

मुंबई महानगरपालिका में फर्जी जाति से नगरसेवक बने और बाद में फर्जीवाड़ा से पदमुक्त हुए किसी भी नगरसेवक पर मुंबई महानगरपालिका प्रशासन ने आज तक एफआईआर दर्ज नहीं किया हैं। यह जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई महानगरपालिका प्रशासन ने दी हैं। एफआईआर दर्ज करने को लेकर जिम्मेदारी को लेकर लीगल, सेक्रेटरी और इलेक्शन डिपार्टमेंट अपने हाथ झटक रहा हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई मनपा के सेक्रटरी डिपार्टमेंट से जानकारी मांगी थी कि गत 3 चुनावों में जिन नगरसेवकों का पद विभिन्न कारणों से रदद् हुआ हैं उनपर दर्ज एफआईआर का ब्यौरा दे। मुंबई मनपा के सेक्रेटरी विभाग ने गलगली का आवेदन लीगल, इलेक्शन डिपार्टमेंट को ट्रांसफर किया। लीगल डिपार्टमेंट में 2 स्थानों पर आवेदन जबाब देने के लिए ट्रांसफर किया गया। लीगल डिपार्टमेंट के डिप्टी लीगल ऑफिसर अनंत काजरोलकर ने दावा किया कि  किसी भी नगरसेवक तथा नगरसेविका पर एफआईआर दर्ज नहीं की गई हैं। उन्होंने आगे स्पष्ट किया कि स्मॉल कॉज कोर्ट में जरुरत के हिसाब से दावा दायर करना और याचिकाकर्ता ने दर्ज किए मुकदमें में मनपा का पक्ष रखने का कार्य देखा जाता हैं। एफआईआर दर्ज नहीं करने से जानकारी नहीं दी जा सकती हैं। गलगली का आवेदन इलेक्शन डिपार्टमेंट को भेजा गया। इलेक्शन डिपार्टमेंट ने गत 3 चुनाव में जिनका नगरसेवक पद जाति का फर्ज़ीवाड़ा से रदद् किया गया हैं उसके आदेश की कॉपी दी। कुल 21 नगरसेवकों का पद रदद् किया गया हैं उनमें वर्तमान महापौर प्रिंसिपल विश्वनाथ महाडेश्वर का नाम भी हैं। इलेक्शन डिपार्टमेंट का तर्क हैं कि इलेक्शन करवाना उनका काम हैं। मुंबई मनपा के सेक्रेटरी डिपार्टमेंट ने खुद से पल्ला झाड़ते हुए एफआईआर दर्ज करने की जिम्मेदारी से खुद को अलग किया हैं। वहीं डिप्टी लीगल ऑफिसर एस डी फुलसुंगे ने कहा कि स्मॉल कॉज कोर्ट में इलेक्शन पिटीशन दर्ज होने से आवेदन को वहाँ पर ट्रांसफर किया गया। 

अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मनपा आयुक्त को लिखे पत्र में कहा हैं कि सभी डिपार्टमेंट एफआईआर दर्ज करने से खुद को अलग कर रहे हैं। जब भी नगरसेवक का पद रदद् किया जाता हैं तब उनका अपराध साबित होने से उनपर एफआईआर दर्ज करने की आवश्यकता हैं। इनका पद लिखित तौर पर मनपा आयुक्त रदद् करता हैं लेकिन एफआईआर दर्ज नही होती हैं। गलगली ने सुझाव दिया हैं कि किसी एक डिपार्टमेंट को इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए तथा फर्ज़ीवाड़ा करनेवाले नगरसेवकों को भविष्य में चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करना चाहिए ताकि कोई भी इसतरह की गलती नहीं करेगा।

खोटया जातीमुळे नगरसेवक पद गमावल्यावर गुन्हाच दाखल नाही, महापौर महाडेश्वरांचा ही समावेश

मुंबई महानगरपालिका खोटी जात दाखवून नगरसेवक बनलेले आणि त्यानंतर खोटया जातीमुळे नगरसेवक पद गमावल्यावर एकाही नगरसेवकांवर मुंबई महानगरपालिका प्रशासनाने आजपावेतो एकही गुन्हा दाखल केला नाही. ही धक्कादायक माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई महानगरपालिका प्रशासनाने दिली आहे. गुन्हा दाखल करणार कोण? याबाबत चिटणीस, विधी, आयुक्त आणि निवडणूक कार्यालयात संभ्रम असून एकदुस-यांवर जबाबदारी झटकली जात आहे. या यादीत मुंबईचे विद्यमान महापौर प्रिंसिपल विश्वनाथ महाडेश्वर यांचाही समावेश आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई पालिका चिटणीस खात्याकडे माहिती मागितली होती की गेल्या 3 निवडणुकीत विविध कारणांमुळे ज्या नगरसेवक-नगरसेविका यांचे पद रद्द करण्यात आले आहे त्यांच्यावर दाखल गुन्ह्यांचे विवरण देण्यात यावे. मुंबई पालिका चिटणीस खात्याने अनिल गलगली यांचा अर्ज विधी, निवडणूक कार्यालयास हस्तांतरित केला. विधी खात्यात सुद्धा 2 ठिकाणी गलगली यांचा अर्ज सरकविण्यात आला. विधी खात्याचे उप कायदा अधिकारी अनंत काजरोलकर यांनी दावा केला की कोणत्याही नगरसेवक किंवा नगरसेविकावर गुन्हा दाखल करण्यात आला नाही. लघुवाद न्यायालयात आवश्यकतेनुसार दावा दाखल करणे किंवा वादीने दाखल दाव्यानुसार पालिकेची बाजू मांडणे आणि संदर्भातील कामकाज पाहिले जाते.अनिल गलगली यांचा अर्ज निवडणूक कार्यालयात सुद्धा हस्तांतरित करण्यात आला होता. निवडणूक कार्यालयाने मागील 3 निवडणुकीत ज्यांचे पद रद्द करण्यात आले आहे अश्या 21 लोकांची माहिती दिली ज्यात 20 जण ही खोटी जातीमुळे तर 1 हा दोनपेक्षा अधिक अपत्य असल्यामुळे बाद झाला होता. या 21 लोकांमध्ये मुंबईचे विद्यमान महापौर प्रिंसिपल विश्वनाथ महाडेश्वर यांचे सुद्धा नाव आहे.  निवडणूक कार्यालयाचे काम निवडणूक कार्यक्रमाची अंमलबजावणी करणे आहे तर विधी खाते फक्त पालिकेची बाजू मांडण्याचा दावा करत आहे. तर पालिका चिटणीस खात्याने सर्वत्र अर्ज हस्तांतरित करत आपली जबाबदारी झटकली आहे.

अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि पालिका आयुक्त यांस लेखी पत्र पाठवून तक्रार केली आहे की सर्व खाती गुन्हा दाखल करण्याच्या जबाबदारीतून स्वतःला वेगळे करत आहेत. जेव्हा नगरसेवकांचे पद रद्द होते तेव्हा त्याच्या गुन्ह्याची कबूली असते मग अश्या लोकांवर गुन्हा दाखल करण्याची आवश्यकता आहे. यांचे पद लेखी स्वरूपात पालिका आयुक्त स्तरावर रद्द होते परंतु गुन्हा दाखल केला जात नाही. गलगली यांची मागणी आहे की कोणी एका खात्याने जबाबदारी घेत गुन्हा दाखल केला पाहिजे जेणेकरुन खोटया जातीच्या आधारे खोटारडेपणा करणा-या प्रवृत्तीवर येत त्यांना भविष्यात निवडणूक लढविण्यास बंदी घातली पाहिजे. असे झाले तर कोणीच अशी घोडचूक करणार नाही.


No FIR against 21 disqualified BMC corporators including Mayor Vishwanath Mahadeshwar yet 

A Right to Information (RTI) query has revealed how much BMC administration is soft on those offenders who first dare to produce fake caste certificates and become corporator and when they are found guilty of it, BMC dose not take any action them, which encourages them to repeat the same. RTI Activist Anil Galgali had filed an RTI with the Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) and wanted to know how many corporators were disqualified for producing fake caste certificates, and reply given to Galgali has revealed not even a single councillor has been booked for producing fake caste certificates to win the civic election in the last three election held in 2007, 2012 and 2017.

RTI Activist Anil Galgali's queries was filed with Municipal Secretary's office which was later transferred to the Legal and Election department of the BMC. Replying to the query, officer of the legal department of the BMC Smt S D Fulsunge replied that no case has been filed against any councillor for procuring fake caste certificates, however, the details about such cases (FIR) can be obtained from the deputy legal officer of the Small Causes Court. The deputy law officer of the Small Causes Court Anant Kajrolkar too replied that no FIR has been filed against any disqualified councillors in the last three elections. Clarifying the legal department's stand in such cases, the officer further replied, The legal department files election petitions in the Small Causes Court and then verify the submissions made by the either sides. 

While election department in its reply said that that total 21 corporators were disqualified in 2007, 2012 and 2017 election. Out of 21 disqualified corporators, 20 were disqualified for procuring fake caste certificate while one corporator was disqualified for having more the two children, which a restriction to become a corporator in BMC. In this list Mumbai Mayor Vishwanath Mahadeshwar name also include.

Reacting over the BMC's lethargical approach,  Galgali slammed the babus of the civic body and termed it as "unprofessional". Galgali also dashed off a letter to Chief minister. In his letter written to the Chief Minister Devendra Fadnavis and Municipal Commissioner Ajoy Mehta, Galgali said, "This is absolutely absurd and unprofessional. There should be a clarity that which department will take legal action against the offenders."

Galgali wrote, "When corporators have been disqualified after founding procuring fake caste certificates, then why not BMC initiate criminal cases against these offenders? If BMC start taking action against these fraudulent people, then this will act as deterrent, otherwise, in every election, candidates will keep procuring fake certificate."