Monday 31 August 2015

Only one Degree college given approval in past 2 years

Maharashtra which is known as an educational hub, has given approval to just one college in the past 2 years, though it received 298 applications for approval in the same period, another 15.5% applications were issued LOI but not a single new college has come up in the past 2 years, this information was provided to RTI activist Anil Galgali RTI ACTIVIST ANIL GALGALI had filed an RTI query with the Higher and Technical Education dept of the Govt of Maharashtra seeking information about new colleges and additional new divisions in existing colleges. Shri Ranjit Ahire the Public Information officer and the Desk officer of the Higher and Technical Education dept informed Galgali that dept received 130 applications for new colleges in the year 2014-15. Out of the 130 applications received, only 1 was approved namely Jalgaon Vidyapeeth, out of the pending 129 applications 46 were issued LOI. Mr Ahire further informed that in the year 2015-16, applications for 168  new colleges were submitted to the govt, but the govt has taken a decision to not give permission to any new college hence all the applications have been reverted back to the respective University's. 16 applications for new colleges were received from Aurangabad, 11 from Buldhana, 9 each from Pune and Yavatmal, 8 from Nashik, 7 each from Chandrapur and Akola, 6 from Mumbai, 5 each from Hingoli, Solapur and Amravati, 4 each from Parbhani and Gadchiroli, 3 each from Nagpur, Latur, Jalgaon, Nandurbar, Osmanabad, 2 each from Satara, Ahmed Nagar, Nanded, Dhule, Kolhapur, Thane, Beed and 1 each from Raigad, Vasai, Ratnagiri, Baramati and Sangli. Anil Galgali has expressed that the government's decision to not grant permission to any new college is not correct. He further stated that education business in Maharashtra has become a fiefdom of few privileged people and the decision of the Govt against permitting new colleges is in tune with continued control of the education field for the privileged few. By permitting new colleges the new avenues for education is opened up said Galgali

2 वर्षों में 298 में से सिर्फ एक ही नए महाविद्यालय को सरकारी मंजूरी

शिक्षा की पंढरी समझने जाने वाले  महाराष्ट्र में नए महाविद्यालय को अनुमति देने पर रोक होने से गत 2 वर्षों में 298 में से सिर्फ एक नए महाविद्यालय को सरकारी मंजूरी देने की जानकारी उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को दी हैं। सरकार ने सिर्फ 15.50 प्रतिशत महाविद्यालय को एलओआय ( उद्देश्य पत्र) जारी करने के बावजूद असल में एक भी नए महाविद्यालय को शुरु नही किया गया हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग से नए महाविद्यालय और अतिरिक्त डिवीज़न की जानकारी मांगी थी। उच्च व तंत्र शिक्षा विभाग के कार्यासन अधिकारी और जन सूचना अधिकारी रणजीत अहिरे ने अनिल गलगली को बताया कि नए महाविद्यालय का शैक्षणिक वर्ष 2014-15 के लिए कुल 130 प्रस्ताव प्राप्त हुए थे। 130 प्रस्ताव में से सिर्फ एक ही प्रस्ताव को मान्यता दी गई है। जलगाव विद्यापीठ मान्यता प्राप्त हैं। उसके बाद शेष 130 प्रस्ताव में से 46 प्रस्तावों को एलओआय ( उद्देश्य पत्र) दिया गया हैं। श्री अहिरे ने आगे और जानकारी देते हुए बताया कि शैक्षणिक वर्ष 2015-16 के लिए कुल168 नए महाविद्यालय के प्रस्ताव सरकार को प्राप्त हुए थे। लेकिन सरकार ने शैक्षणिक वर्ष 2015-16 के लिए एक भी नए महाविद्यालय को मंजूर न करने का फैसला लिया है। इसी के चलते सभी प्रस्ताव विद्यापीठ के पास बेरंग लौटाएं गए हैं। नए महाविद्यालय के लिए सर्वाधिक आवेदन औरंगाबाद से प्राप्त हुए है।कुल 16 आवेदन औरंगाबाद से है और उसके बाद 11 बुलढाणा,  9 पुणे, 9 यवतमाल , 8 नाशिक, 7 चंद्रपुर, 7 अकोला, 6 मुंबई, 5 हिंगोली, 5 सोलापूर, 5 अमरावती, 4 परभणी, 4 गडचिरोली, 3 नागपूर, 3 लातूर, 3 जळगाव, 3 नंदुरबार, 3 उस्मानाबाद, 2 सातारा, 2 अहमदनगर, 2 नांदेड, 2 धुळे, 2 कोल्हापूर, 2 ठाणे, 2 बीड,  1 रायगड, 1 वसई,1 रत्नागिरी, 1 बारामती और 1 सांगली ऐसा क्रम हैं। अनिल गलगली के अनुसार इसतरह एक भी नए महाविद्यालय को मंजूरी न देने का सरकार का फैसला योग्य नही हैं। आज महाराष्ट्र में शिक्षा क्षेत्र में कुछ लोगों का वर्चस्व है और इसतरह का सरकार का  मुगलाई फैसला उनके लिए बढ़ावा देने जैसा ही हैं। नए महाविद्यालय को मंजूरी देने पर निश्चित तौर पर महाविद्यालयीन प्रवेश का नया नया मौक़ा बड़े पैमाने पर उपलब्ध होगा, ऐसा अनिल गलगली का कहना हैं।

मागील 2 वर्षात 298 पैकी फक्त एका नवीन महाविद्यालयास सरकारी मंजूरी

शिक्षणाचे माहेरघर समजल्या जाणा-या  महाराष्ट्रात नवीन महाविद्यालयास परवानगी दिली जात नसून मागील 2  वर्षात 298 पैकी फक्त एका नवीन महाविद्यालयास सरकारी मंजूरी दिल्याची माहिती उच्च व तंत्र शिक्षण विभागाने आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिली आहे. सरकारने फक्त साढे पंधरा टक्के महाविद्यालयास एलओआय ( उद्देश्य पत्र) दिली असली तरी प्रत्यक्षात एकही नवीन महाविद्यालय सुरु झाले नाही आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी उच्च व तंत्र शिक्षण विभागाकडे नवीन महाविद्यालय आणि अतिरिक्त तुकडयाची माहिती मागितली होती. उच्च व तंत्र शिक्षण विभागाचे कार्यासन अधिकारी आणि जन माहिती अधिकारी रणजीत अहिरे यांनी अनिल गलगली यास कळविले की नवीन महाविद्यालयाचे  शैक्षणिक वर्ष 2014-15 साठी एकुण 130 प्रस्ताव प्राप्त झाले होते. 130 प्रस्तावांपैकी फक्त एका प्रस्तावास मान्यता देण्यात आलेली आहे. जळगाव विद्यापीठास मान्यता देण्यात आलेली आहे. त्यानंतर उर्वरित 130 प्रस्तावांपैकी 46 प्रस्तावांना एलओआय ( उद्देश्य पत्र) देण्यात आलेले आहे. श्री अहिरे यांनी पुढे आणखी माहिती देत दावा केला आहे की शैक्षणिक वर्ष 2015-16 साठी एकुण 168 नवीन महाविद्यालयाचे प्रस्ताव शासनास प्राप्त झाले होते. तथापि शासनाने शैक्षणिक वर्ष 2015-16 साठी एकही नवीन महाविद्यालय मंजूर न करण्याचा निर्णय घेतला आहे. यास्तव सर्व प्रस्ताव विद्यापीठांना परत पाठविण्यात आले आहेत. नवीन महाविद्यालयासाठी सर्वाधिक अर्ज औरंगाबाद येथून प्राप्त झाले होते.एकुण 16 अर्ज असून त्या खालोखाल 11 बुलढाणा, प्रत्येकी 9-9 पुणे आणि यवतमाळ, 8 नासिक, प्रत्येकी 7-7 चंद्रपुर आणि अकोला, 6 मुंबई, प्रत्येकी 5-5 हिंगोली, सोलापूर, अमरावती, प्रत्येकी 4-4 परभणी आणि गडचिरोली, प्रत्येकी 3-3 नागपूर, लातूर, जळगाव, नंदुरबार, उस्मानाबाद, प्रत्येकी 2-2 सातारा, अहमदनगर, नांदेड, धुळे, कोल्हापूर, ठाणे, बीड तर प्रत्येकी 1-1 रायगड, वसई,रत्नागिरी, बारामती, सांगली असा क्रम आहे. अनिल गलगली यांच्या मते अश्याप्रकारे  एकाही नवीन महाविद्यालयास मंजूरी न देण्याची सरकारच भूमिका योग्य नाही. आज महाराष्ट्रात शिक्षण क्षेत्रात मक्तेदारी झाली असून सरकारचा असा मुघलाई निर्णय त्यांच्या पथ्यात पडला आहे. नवीन महाविद्यालयास मंजूरी दिल्यास निश्चितपणे प्रवेशांची नव-नवीन संधी उपलब्ध होईल, असे मत अनिल गलगली यांनी व्यक्त केले आहे.

Friday 28 August 2015

मुसलमानों की आबादी बढ़ी लेकिन हज का कोटा घटा

देश में मुसलमानों की आबादी बढ़ने के बावजूद भारत से हज यात्रा को जाने के लिए तय कोटा हर वर्ष कम होने से  में 21 प्रतिशत की कटौती होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने दी है। पिछले वर्ष 99,914 लोग हज यात्रा पर गए थे जिसमें उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक और उसके पीछे-पीछे पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र से हज की यात्रा पर जानेवालों की संख्या है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने हज कमिटी ऑफ़ इंडिया से हज यात्रा के संबंध से जुडी विभिन्न जानकारी मांगी थी। हर एक मुसलमान जीते-जी कमसे कम एक बार हज की यात्रा करने की मंशा रखता है। हज कमिटी ऑफ़ इंडिया के जन सूचना अधिकारी अब्दुल शेख ने अनिल गलगली को वर्ष 2011 से वर्ष 2014 इन 4 वर्षों के आंकड़े दिए। इनमें सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेश से है। वर्ष 2014 में 99,914 हज यात्रा में जानेवालों में से 24,622 अकेले उत्तर प्रदेश से थे।उसके पीछे पश्चिम बंगाल का दूसरा क्रमांक हैं। पश्चिम बंगाल से ये संख्या 9,358 इतनी है। उसके बाद महाराष्ट्र (8,490), जम्मू और कश्मीर ( 6,984), केरला (6,517),बिहार (6,224), आंध्र प्रदेश ( 5,775), कर्नाटक (5,337),  राजस्थान (3,942) और गुजरात ( 3,779) ऐसे आंकड़े हैं। विशेष यानी इसमें सरकारी कोटा सिर्फ 500 था और 468 लोगों ने इस सुविधा का लाभ लिया। वर्ष 2011, वर्ष 2012 और वर्ष 2013 की तुलना में वर्ष 2014 में 20 से 25 हजार की जबरदस्त कटौती की गई। वर्ष 2011 में 3 लाख 2 हजार 616 लोगों ने आवेदन करने पर 1 लाख 25 हजार कोटा के तहत 1 लाख 24 हजार 901 लोग हज यात्रा पर जा सके। वर्ष 2012 में कोटे में सिर्फ 110 की मामूली वृद्धि होने से ये संख्या 1 लाख 25 हजार 110 इतनी हुई थी। उस वर्ष 3 लाख 7 हजार 309 आवेदन आए थे जिनमें से 1 लाख 25 हजार 64 लोगों को हज जाने का मौका मिला। वर्ष 2013 में कोटा कम होने से 1 लाख 21 हजार 420 इस कोटे के लिए भले ही 2 लाख 98 हजार 325 आवेदन प्राप्त हुए थे लेकिन 1 लाख 21 हजार 338 लोग ही हज यात्रा पर भेजे गए।  वर्ष 2014  में इसमें जबरदस्त कटौती होने से 1 लाख 104 इतना ही कोटा मंजूर हुआ जिसमें से 99 हजार 914 लोगों को हज यात्रा पर जाने का भाग्य प्राप्त हुआ। वर्ष 2011 की तुलना में वर्ष 2014 में 21 प्रतिशत की जबरदस्त कटौती हुई थी।अनिल गलगली के अनुसार सऊदी प्रशासन से बात कर भारत सरकार को कोटा को बढ़ाने के लिए दबाव बनाने की जरुरत है। # महाराष्ट्र से सर्वाधिक आवेदन भले ही सर्वाधिक कोटा उत्तर प्रदेश के हिस्से में आता है लेकिन हर वर्ष महाराष्ट्र से सर्वाधिक आवेदन प्राप्त होने का रिकॉर्ड हैं। वर्ष 2011 से वर्ष 2013 इन 3 वर्षों में 1 लाख 21 हजार 957 आवेदन प्राप्त हुए जिसमें से 32 हजार 790 लोगों के नसीब में  हज यात्रा पर जाना लिखा था। # सरकारी कोटा भी हुआ कम मूल कोटे में होती कटौती के मद्देनजर केंद्र सरकारबीने भी स्वयं का कोटा एकदम कम करते हुए उसे 500 तक सीमित कर दिया। वर्ष 2011 में 6760, वर्ष 2012 मध्ये 735, वर्ष 2013 में 500 और फिर  वर्ष 2014 में 500 ऐसी संख्या घटती गई। # सूटकेस पर 51 करोड़ का खर्च हज यात्रा पर जानेवाले सब ने एक ही स्टाईल की सूटकेस लेकर आए ताकि यात्रा में कोई दिक्कत न हो, ऐसी सऊदी प्रशासन की ताकीद होने से विदेश मंत्रालय ने मेसर्स वीआईपी इंडस्ट्रीज को 2 लाख सूटकेस आपूर्ती करने का ठेका बहाल क़िया। 2 सूटकेस के लिए रु 5100/- हा दाम तय होने से 51 करोड़ का टर्नओवर होता हैं। ये रकम हज जानेवाले यात्रियों से वसूली जाती हैं।

मुस्लिमांची लोकसंख्या वाढली पण हज जाणा-यांच्या कोटयात घट

देशात मुस्लिमांची लोकसंख्या वाढली असताना भारतातून  हज यात्रेला जाणा-यांच्या कोटयात 21 टक्यांची लक्षणीय घट झाल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस हज कमिटी ऑफ़ इंडिया ने दिली आहे. गेल्या वर्षी 99,914 जण हज यात्रेस गेले असून उत्तर प्रदेशातून सर्वाधिक तर खालोखाल पश्चिम बंगाल आणि महाराष्ट्रातून हज यात्रेस जाणा-यांची संख्या आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी हज कमिटी ऑफ़ इंडिया कडे हज यात्रेच्या अनुषंगाने विविध माहिती विचारली होती. प्रत्येक मुसलमान हा आयुष्यात एकदा तरी हज यात्रा करण्याचे स्वप्न उराशी बागळतो. हज कमिटी ऑफ़ इंडियाचे जन माहिती अधिकारी अब्दुल शेख यांनी अनिल गलगली यांस वर्ष 2011 ते वर्ष 2014 या 4 वर्षातील आकडेवारीची माहिती दिली आहे. यामध्ये सर्वाधिक संख्या उत्तर प्रदेशातून आहे वर्ष 2014 मध्ये 99,914 पैकी 24,622 एकटया उत्तर प्रदेशातून होते. खालोखाल पश्चिम बंगालचा दूसरा क्रमांक आहे. पश्चिम बंगालातून ही संख्या 9,358 इतकी आहे. त्यानंतर महाराष्ट्र (8,490), जम्मू आणि कश्मीर ( 6,984), केरला (6,517),बिहार (6,224), आंध्र प्रदेश ( 5,775), कर्नाटक (5,337),  राजस्थान (3,942) आणि गुजरात ( 3,779) अशी आकडेवारी आहे. विशेष म्हणजे यात सरकारी कोटा फक्त 500 असून 468 लोकांनी या सुविधेचा लाभ घेतला आहे. वर्ष 2011, वर्ष 2012 आणि वर्ष 2013 च्या तुलनेत वर्ष 2014 मध्ये 20 ते 25 हजारांची लक्षणीय घट झाली आहे. वर्ष 2011 मध्ये 3 लाख2 हजार 616 लोकांनी अर्ज केला असता 1 लाख 25 हजार कोटा अंतर्गत 1 लाख 24 हजार 901 लोक हज यात्रेवर जाऊ शकले. वर्ष 2012 मध्ये कोटयात फक्त 110 ची वाढ झाल्यामुळे ही संख्या 1 लाख 25 हजार 110 इतकी झाली. त्यावर्षी 3 लाख 7 हजार 309 अर्ज आले असून 1 लाख 25 हजार 64 लोकांना हज जाण्याची संधी मिळाली. वर्ष 2013 मध्ये कोटा कमी झाल्यामुळे 1 लाख 21 हजार 420 या कोटयासाठी जरी 2 लाख 98 हजार 325 अर्ज आले असले तरी 1 लाख 21 हजार 338 लोकांना हज यात्रा करु शकले. वर्ष 2014  मध्ये लक्षणीय घट झाल्यामुळे 1 लाख 104 इतकाच कोटा मंजूर झाला त्यापैकी 99 हजार 914 लोकांना हज यात्रेस जाण्याचे भाग्य प्राप्त झाले. वर्ष 2011 च्या तुलनेत वर्ष 2014 मध्ये 21 टक्यांची घट झाली आहे. अनिल गलगली यांच्या मते सऊदी प्रशासनाशी बोलणी करुन हा कोटा वाढविण्यासाठी भारताने दबाव बनविला पाहिजे. # महाराष्ट्रातून सर्वाधिक अर्ज जरी सर्वाधिक कोटा उत्तर प्रदेशाच्या वाटयास आहे पण प्रत्येक वर्षी महाराष्ट्रातून सर्वाधिक अर्ज प्राप्त होण्याचा रिकॉर्ड आहे. वर्ष 2011 ते वर्ष 2013 या 3 वर्षात 1 लाख 21 हजार 957 अर्ज प्राप्त झाले असून त्यापैकी 32 हजार 790 लोकांना हज यात्रेवर जाण्याचे नशीबात होते. # सरकारी कोटा झाला कमी मूळ कोटा कमी होत पहाता केंद्र सरकारने सुद्धा स्व:ताचा कोटा एकदम कमी करत 500 वर आणला. वर्ष 2011 मध्ये 6760, वर्ष 2012 मध्ये 735, वर्ष 2013 मध्ये 500 आणि  वर्ष 2014 मध्ये 500 अशी संख्या घटली आहे. # सूटकेस वर 51 कोटी खर्च हज यात्रेवर जाणारे सर्वानी एकाच प्रकारची सूटकेस आणावी, अशी सऊदी प्रशासनाची ताकीद असल्यामुळे परराष्ट्र मंत्रालयाने मेसर्स वीआयपी इंडस्ट्रीजला 2 लाख सूटकेस पूर्तता करण्याचे कंत्राट बहाल केले. प्रति 2 नग सूटकेस साठी रु 5100/- हा दर निश्चित झाल्यामुळे 51 कोटीचा व्यवहार होत असून सदर रक्कम हज जाणा-या यात्रेकरुनांच अदा करावी लागते.

Haj quota curbed despite Growth in  Population of Muslim

Even if the latest figures show a rapid growth of Muslim population in India , there has been a revelation in regard to every Muslim wanting to visit Haj once in his lifetime, showing a decline as per the quota available and its curbed. The decline has been marked at 21% last year. The information was sought by RTI activist Anil Galgali. The Haj Committee of India in it's reply to the RTI Activist Anil Galgali has said that in 2014 a total of 99,914 pilgrims have travelled to the Saudi Arabia for Haj, Uttar Pradesh topping the list of maximum Muslims travelling, followed by West Bengal and then Maharashtra.   RTI Activist Anil Galgali ask a various information to Haj Committee. Abdul Shaikh, public information officer of the Haj Committee of India has provide the figures to Galgali for the period of 2011 to 2014. In 2014, a total of 99,914 people travelled to Haj. Of that, 24,622 alone came from Uttar Pradesh, and 9,358 came from West Bengal. Maharashtra sent 8,490, followed by Jammu and Kashmir (6984), Kerela 6,517) Bihar (6,224) Andhra Pradesh (5,775)Karnataka (5,337) Rajasthan (3,942) and Gujrat (3,779). One special thing needs a mention here, that there is a quota of 500 out of which 468 people have benefited under this quota to travel to Haj.  As compared to 2011, 2012 and 2013 and 2014 has seen a sharp decline of of at-least 20,000 to 25,000 of people travelling. In 2011 a total of 3,02,616 people had applied for travelling to their place of pilgrimage. Out of the 1,25,000 of the allotted quota, only 1,24,901 were able to travel. In 2012, the quota was merely increased by 110 seats, in all making the quota of 1,25,110. A total of 3,07,309 people had applied for the same. 1,25,064 people were able to travel. But in 2013, surprisingly the quota was reduced to a number of 1,21, 420. Again 2,98,325 applied for their once in a lifetime wish but only 1,21,338 could make it in the list as per the quota. Now the situation for Haj travellers is far from better. The Haj Committee of India had brought down the quota to 1,00,104 and only 99,914 people were able to make it. So in comparison to 2011, in 2014 a decline of 21% has been seen for Haj pilgrims. Govt of India should pressure on Saudi Arabia to increase Haj Quota, said Galgali. #Maharashtra tops in application Even thought Uttar Pradesh tops in the number of people travelling to Haj, there is always a record from Maharashtra, for applications for the same. From the period of 2011 to 2013 1,21,957 applications have been sent by the people of Maharashtra and out of those 32,790 people have got their opportunity.  # Government Quota reduced The basic quota has been reduced forcing the Centre also to reduce its numbers reserved reducing it to just 500 seats. In 2011 quota was 6760, in 2012 it was 735, in 2013 it was 500 and in 2014 also 500 seats had been reduced. #  51 crore spent on suitcases. People coming for the Haj yatra have been warned by the Saudi Arabia Government to follow strict norms in the suitcases they bring along. A special design with measurements have been made available to External Ministry. The Ministry has already assigned the tender of procuring 2 lakhs of suitcases. Each pair would be costing Rs. 5,100, the amount which is collected form the people wanting to travel thus making the spending to reach 51 crore for the suitcases ordered.   

Monday 24 August 2015

मिठी नदी विकास को पीठ दिखाते मुख्यमंत्री

मुंबई में 26 जुलाई 2005 की तूफानी बारिश ने मुंबईकरों की नींद जिस मिठी नदी से उड़ाई थी उस पर उपाययोजना के तौर पर राज्य सरकार ने मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया था। मुख्यमंत्री जैसा तगडा अध्यक्ष होते हुए भी मिठी नदी नमकीली होने के पीछे मुख्यमंत्री अनास्था सामने आई है जिन्होंने गत 5 वर्ष से एक भी बैठक न लेने का सनसनीखेज कबूलनामा मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली से किया है। पिछले 10 वर्ष से मीठी नदी का धीमी गती से चलनेवाला विकास काम और अन्य कामों को लेकर एमएमआरडीए और मनपा प्रशासन से फॉलो अप करनेवाले अथक सेवा संघ के अध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण से वर्ष 2005 से आज तक हुई बैठक की जानकारी मांगी थी। प्राधिकरण के उप नियोजक और जन सूचना अधिकारी शिवराज पवार ने अनिल गलगली को बताया कि मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण का गठन दिनांक 19 अगस्त 2005 को किया गया और मुख्यमंत्री ये प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं। गत 10 वर्षों में प्राधिकरण की कुल 6 बैठक हुई है। वर्ष 2005 में 2 वहीँ वर्ष 2006 में 1, वर्ष 2007 में 1, वर्ष 2008 में 1 और वर्ष 2010 में 1 बैठक हुई हैं। गत 5 वर्ष में मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण और वर्तमान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक भी बैठक नही ली है। इसके अलावा मुख्य सचिव अध्यक्षावाली मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण की शक्ती प्रदत्त समिती की 11 बैठक होने से उसका आलेख तकरीबन डबल है। इसमें वर्ष 2005 में 1 और वर्ष 2012 में 1 बैठक हुई है। वर्ष 2006 में 2 और वर्ष 2008 में 2 वहीँ सर्वाधिक 5 बैठक वर्ष 2013 में हुई है। मुख्य सचिव सहारिया और स्वाधीन क्षत्रिय ने भी मुख्यमंत्री के पदचिन्हों पर चलते हुए शायद बैठक न लेने की प्रतिज्ञा लेने की बात दिख रही हैं। मुख्य सचिव ने वर्ष से कितनी बैठक लेना अनिवार्य है, ये पूछने पर गलगली को बताया कि ऐसा कोई भी जिक्र सरकारी निर्णय में नहीँ है। कुल 17.8 किलोमीटर वाली मिठी नदी में मनपा के अंतर्गत विहार तलाव से सीएसटी पूल दौरान 11.8 किलोमीटर और एमएमआरडीए के पास सीएसटी पूल से माहिम कॉजवे ऐसा 6 किलोमीटर तथा वाकोला नाले का हिस्सा आता है।मीठी नदी के प्रकोप के बाद महाराष्ट्र सरकार ने मीठी नदी क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण की स्थापना कर उसकी साफसफाई और विकास काम की जिम्मेदारी एमएमआरडीए और मनपा प्रशासन पर सौंपी है। मुख्यमंत्री के अनास्था से 1200 करोड़ खर्च करने के बाद मिठी नदी का काम संतोषजनक नही होने की टिपण्णी अनिल गलगली ने करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से बैठक लेकर अबतक हुए काम का जायजा लेने की मांग की हैं। मुख्य सचिव मिठी नदी को सरकारी शक्ती प्रदान क्यों नही करती है? ऐसा सवाल अनिल गलगली ने करते हुए राज्य दरबार में मिठी नदी की  होनेवाली उपेक्षा को रोकने की अपील मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से की है।

मिठी नदी विकासापासून मुख्यमंत्र्यानी फिरवली पाठ

मुंबईतील 26 जुलै 2005 च्या भयानक पावसाने मुंबईकरांची झोप ज्या मिठी नदीमुळे उडाली होती त्यावर उपाययोजना म्हणून राज्य शासनाने मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरणाची स्थापना केली होती. मुख्यमंत्री सारखा तगडा अध्यक्ष असूनही मिठी नदी खारट असण्यामागे मुख्यमंत्र्याची अनास्था समोर आली असून गेल्या 5 वर्षापासून एकही बैठक न झाल्याची धक्कादायक कबूली मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरणाने आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली जे मिठी नदी अंतर्गत विविध बाबीवर सतत पाठपुरावा करत असून मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरणाकडे त्यांनी वर्ष 2005 पासून आजमितीपर्यन्त झालेल्या बैठकीची माहिती मागितली होती. प्राधिकरणाचे उप नियोजक आणि जन माहिती अधिकारी शिवराज पवार यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरणाची स्थापना दिनांक 19 ऑगस्ट 2005 रोजी करण्यात आली असून मुख्यमंत्री हे प्राधिकरणाचे पदसिद्ध अध्यक्ष आहेत.गेल्या 10 वर्षात प्राधिकरणाची एकूण 6 बैठका झाल्या असून वर्ष 2005 मध्ये 2 तर प्रत्येकी एक -एक वर्ष 2006, वर्ष 2007, वर्ष 2008 आणि वर्ष 2010 मध्ये झाली आहे. गेल्या 5 वर्षात मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण, पृथ्वीराज चव्हाण आणि सद्याचे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी एकही बैठक घेतली नाही. याशिवाय मुख्य सचिव अध्यक्ष असलेल्या मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरणाची शक्ती प्रदत्त समितीच्या बैठकीचा आलेख जवळपास दुप्पट असून 11 बैठका झाल्या आहेत. यामध्ये  प्रत्येकी एक-एक वर्ष 2005 आणि वर्ष 2012 मध्ये झाली आहेत. प्रत्येकी दोन-दोन वर्ष 2006 आणि वर्ष 2008 मध्ये तर सर्वाधिक 5 बैठका वर्ष 2013 मध्ये झाल्या आहेत. मुख्य सचिव सहारिया आणि स्वाधीन क्षत्रिय यांनी सुद्धा मुख्यमंत्र्याची अनास्था पाहता बैठका न घेण्याची प्रतिज्ञाच केली आहे, असे दिसून येते. मुख्य सचिव यांनी वर्षातून किती बैठका घेण्याचे बंधनकारक आहे याबाबत  विचारले असता गलगली यांस सांगण्यात आले की असा कोणताही उल्लेख शासन  निर्णयात नाही. मिठी नदी 17.8 किलोमीटर असून पालिकेकडे विहार तलाव ते सीएसटी पूल दरम्यान 11.8 किलोमीटर तर एमएमआरडीएकडे सीएसटी पूल ते माहिम कॉजवे असा 6 किलोमीटर तथा वाकोला नाल्याचा भाग येतो। मीठी नदीच्या प्रकोपानंतर महाराष्ट्र शासनाने मीठी नदी क्षेत्रीय विकास प्राधिकरणाची स्थापना करत त्याची साफसफाई आणि विकास कामाची जबाबदारी एमएमआरडीए आणि पालिका प्रशासनाची आहे. मुख्यमंत्र्याच्या या अनास्थेमुळे 1200 कोटी खर्चूनही मिठी नदी काम असमाधानकारक असल्याची टीका अनिल गलगली यांनी करत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस बैठक घेत सर्व कामाचा आढावा घेण्याची मागणी केली आहे. मुख्य सचिव मिठी नदीस सरकारी शक्ती प्रदान का करत नाही? असा सवाल अनिल गलगली यांनी करत राज्य दरबारी  मिठी नदीस होणारी हेळसांड थांबविण्याचे आवाहन मुख्यमंत्री आणि मुख्य सचिवांस केले आहे.

Development of Mithi River not a priority for CM

Mumbai was shaken by the Monsoon deluge on the 26th July 2005, and the Mithi river was the most important reason for the disasterous situation faced by the mumbaikars on that day. To ensure that there is no repetition of the situation, the state government decided to restore the glory of the Mithi river which has got converted into a nalla, for the same the govt established a separate body naming it the Mithi river development and conservation Authority under the Chairmanship of the CM. It has now come to light that the respective CM's in the past 5 years have failed to give due importance to the conservation activity of the Mithi river, as it has come to light that the Mithi river Authority has not held a single meeting in the past 5 years, this information was provided to RTI activist Anil Galgali by the Mithi River Development and Protection Authority. RTI activist Anil Galgali has been continuesly pursuing the development issue of the Mithi river since 2005 sought information from the Mithi river Authority about the details of meetings held by it on the issue of developing the river since 2005. The Dy Planner and Public Information officer of the authority, Shri Shivraj Pawar informed Galgali that, the Mithi River Development and Protection Authority was established on 19th August 2005, and the CM is the Chairman of the Authority. In the last 10 years a total of 6 meetings were held since 2005. 2 meetings were held in 2005, and 1-1 meeting was held in the years 2006, 2007, 2008, and 2010. In the past 5  years since 2011-2015 CM's namely Ashok Chavan, Prithviraj Chavan and currently Devendra Fadnavis have not held a single meeting till date. Apart from the CM, the Chief Secretary has been made the Chairman of the High power committee of the Authority, the said committee too has met 11 times since establishment. Of the 11 meetings, 1 meeting each was held in the years 2005 & 2012, 2 meetings each was held in the year's 2006 &  2008, and a maximum of 5 meetings were held in 2013 alone. Chief Secretaries J Saharia and Swadheen Kshatriya to seem to share the disinterest exhibited by the CM's and seem to have pledged not convene meetings in their respective tenure's. On being queried about how many meetings have to be held mandatory in a year, Galgali was informed that no such rule is in the govt resolution. The length of the Mithi river is 17.8 kms. Of which the MCGM looks after the development of 11.8 kms from Vihar Lake to CST bridge. The MMRDA is responsible for developing the balance 6 kms from CST bridge to Mahim causeway including the Vakola nalla portion. After the Mithi river disaster in 2005 the maharashtra government formed the Mithi River Development and Protection Authority and fixed the responsibility of cleaning and development work on the MMRDA and the MCGM. Though Rs 1200 crores has been spent on the development activities of the Mithi river till date the work remains non satisfactory due to the disinterest of the respective CM's alleged Galgali, further Galgali has demanded that the CM Devendra Fadnavis should immediately look into the matter and immediately convene the meeting of the Authority. Galgali further questioned the motives of the Chief Secretary for not providing the necessary power and thrust to the activities though heading the High power committee. Galgali has further appealed to the state government to change its attitude and stop ignoring the developmental activity from the CM and the Chief Secretary.

Friday 21 August 2015

एमएमआरडीए के कार्यालयीन 'आईकॉनिक' बिल्डिंग का काम कछुवागति से

महाराष्ट्र राज्य की सूखाग्रस्त स्थिती और किसानों की आत्महत्या के मद्देनजर प्रभावितों को मदद के लिए आगे पीछे करनेवाले सत्ताधारी और सरकारी बाबू स्वयं की सुख सुविधा पर करोडो रुपए की फिजूलखर्ची कैसे करते है यह देखने के लिए जनता बीकेसी स्थित एमएमआरडीए के 'आईकॉनिक'बिल्डिंग का एक बार दर्शन जरुर ले. गत 92 महीने के बाद भी अधूरी नई बिल्डिंग पर रु 106 करोड का खर्चा होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एमएमआरडीए प्रशासन ने दी है. कछुवागति से शुरु काम से एमएमआरडीए की तिजोरी से 19 करोड़ का अतिरिक्त धन इस योजना पर अधिक खर्च हुआ है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से बीकेसी स्थित एमएमआरडीए मुख्यालय के पीछे निर्माणधीन नई 'आईकॉनिक'बिल्डिंग के काम की जानकारी मांगी थी.एमएमआरडीए के कार्यकारी अभियंता और जन सूचना अधिकारी श्री मो.य.पाटील ने अनिल गलगली को बताया कि बिल्डिंग का काम दिनांक 24.12.2007 को मंजुर किया गया था. काम की मूल रकम रु 87 करोड थी और दिनांक 31.12.2012 को काम पूर्ण होना जरुरी था. 3 बार काम की समय अवधि बढाई गयी है. प्रथम अवधि दिनांक 15.09.2013, दूसरी अवधि 31.12.2014 और अब दिनांक 31.05.2015 यह नई सीमा अवधि है. रु 106 करोड नई रकम होने से कुल 19 करोड की वृद्धि हुई है. अनिल गलगली ने काम प्रलंबित होने के कारण की जानकारी मांगने पर एमएमआरडीए प्रशासन ने मूल प्लान और अन्य कामों में किया गया बदलाव के साथ मनपा, पर्यावरण विभाग और अन्य विभाग की एनओसी मिलने में होनेवाली देरी का कारण आगे किया। बिल्डिंग का निर्माण मेसर्स रेलकॉन इन्फ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड,भीतरी डेकोरेशन का काम मेसर्स गोदरेज कंपनी लिमिटेड और इलेक्ट्रिक एवं एयर कंडीशन से जुडा काम मेसर्स प्रविण इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड इन कंपनियों द्वारा किया जा रहा है. 9 मंजिल एवं 2 सर्विस मंजिल ऐसी कुल 11 मंजिल वाली यह नई बिल्डिंग है. 92 महीने के बाद भी काम अधुरा है और वर्तमान एमएमआरडीए प्रशासन का मुख्यालय प्रशस्त होते हुए भी रु 106 करोड की फिजूलखर्ची होने की बात अनिल गलगली ने कही. विशेष यानि प्रस्तावित आलिशान बिल्डिंग से सटकर तंत्री नाम की अत्याधुनिक बिल्डिंग एमएमआरडीए प्रशासन की है. एक ओर महाराष्ट्र का बडा हिस्सा सूखाग्रस्त और दुसरी ओर किसानों की आत्महत्या में वृद्धि होते हुए भी स्वंय मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली एमएमआरडीए द्वारा किया जानेवाला करोडो रुपए का खर्चा सूखाग्रस्तों और किसान परिवारों के जख्म पर नमक छिड़कने समान है, ऐसी तीखी प्रतिक्रिया अनिल गलगली ने व्यक्त की है. अब नए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एमएमआरडीए प्रशासन की इस फिजूलखर्ची पर कैसे लगाम कसेगें? यह देखने लायक होगा.

एमएमआरडीएची कार्यालयीन 'आयकॉनिक' इमारतीचे काम कासवगतीने

महाराष्ट्र राज्यातील दुष्काळग्रस्त परिस्थिती आणि वाढत्या शेतकरी आत्महत्या लक्षात घेता मदत करण्यासाठी चालढकल करणारे राज्यकर्ते आणि सरकारी बाबू स्व:ताच्या सुख सुविधासाठी कोटयावधी रुपयांचा अक्षरश: कशा चुराडा करतो ते पाहण्यासाठी जनतेने बीकेसी येथील एमएमआरडीएच्या 'आयकॉनिक' इमारतीचे दर्शन जरुर घ्यावे. गेल्या 92 महिन्यानंतरही रखडलेल्या नवीन इमारतीवर रु 106 कोटीचा उत्तुंग खर्च होणार असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांना एमएमआरडीए प्रशासनाने दिली आहे. कासवगतीने सुरु असलेल्या कामाचा फटका एमएमआरडीएच्या तिजोरीवर बसला असून योजना खर्चात 19 कोटीची वाढ झाली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडे बीकेसी येथील एमएमआरडीए मुख्यालयाच्या पाठील बाजुला सुरु असलेल्या नवीन'आयकॉनिक'इमारतीच्या कामाची माहिती मागितली होती. एमएमआरडीएचे कार्यकारी अभियंता आणि जन माहिती अधिकारी श्री मो.य.पाटील यांनी अनिल गलगली यांना कळविले की इमारतीचे काम दिनांक 24.12.2007 रोजी मंजुर झाले होते. कामाची मुळ रक्कम रु 87 कोटी असुन दिनांक 31.12.2012 रोजी पूर्ण होणे आवश्यक होते. तीन वेळा मुदतवाढ दिली गेली असुन प्रथम वाढीव दिनांक 15.09.2013, दूसरी 31.12.2014 आणि आताची दिनांक 31.05.2015 आहे. वाढीव रक्कम रु 106 कोटी असुन एकुण 19 कोटीची वाढ झाली आहे. काम प्रलंबित होण्याची कारणे बाबत  एमएमआरडीए प्रशासनाने मूळ नकाशात आणि कामात बदल करणे तसेच वेगवेगळ्या यंत्रणेची एनओसी मिळण्यात होणारा विलंब कारणीभूत असल्याचे अनिल गलगली यांस कळविले आहे. इमारतीचे बांधकाम मेसर्स रेलकॉन इन्फ्राप्रोजेक्ट्स लिमिटेड, अंतर्गत सजावटीची कामे मेसर्स गोदरेज कंपनी लिमिटेड तसेच विद्युत व वातानुकुलित यंत्रणा संबंधित कामे मेसर्स प्रविण इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड या कंपन्या करत असुन 9 मजले व 2 सर्विस मजले अशी 11 माळयाची इमारत आहे. 92 महिन्यानंतरही काम अर्धवट असुन सद्याचे एमएमआरडीए प्रशासनाचे मुख्यालय प्रशस्त असताना रु 106 कोटीचा हा चुराडा असल्याची टीका अनिल गलगली यांनी केली आहे. विशेष म्हणजे प्रस्तावित उत्तुंग इमारतीच्या बाजुला लागून तंत्री नावाची अत्याधुनिक इमारत एमएमआरडीए प्रशासनाची आहे. एकीकडे महाराष्ट्रातील मोठा भाग दुष्काळग्रस्त  आणि दुसरीकडे शेतकरी आत्महत्या संख्येत होणारी वाढ होत असताना दस्तुरखुद्द मुख्यमंत्री अध्यक्ष असलेली एमएमआरडीए प्रशासनाचा कोटयावधीचा खर्च दुष्काळग्रस्ताच्या जखमेवर मीठ चोळणारा आहे, अशी तिखट प्रतिक्रिया अनिल गलगली यांनी व्यक्त केली आहे. आता नवीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस एमएमआरडीए प्रशासनाच्या या उधळपट्टीवर कशा लगाम लावतील? ही बाब बघण्यासारखी असेल.

MMRDA lavish & Iconic headquarter building work going on slow pace

When one part of Maharashtra is facing extreme drought and the other part is experiencing suicides of the farmers. Forget Drought and other misries, MMRDA's Babus need 106 lavish & iconic headquarter to work from there.To experience one more example of how state exchequer is misused, one should travel to the BKC and have a look at the “Iconic” Building of the MMRDA, which will be the new workplace for MMRDA, right behind its current office.RTI activist Anil Galgali has sought information through RTI and revealed even after spending Rs. 106 crore the proposed new office of MMRDA remains incomplete after 92 months. Slow pace work cause extra Rs 19 crore losses to MMRDA. RTI Activist Anil Galgali had sought information from the MMRDA Authority in regards to the construction of a new building going on behind their current office at BKC is on the banks of Mithi river.Executive Engineer as well as the Public information officer of MMRDA, Mr M.Y. Patil, informed Galgali that the said proposal for construction of new office building to the MMRDA was given on 24.12.2007. The basic cost approved was that of Rs. 87 crore and it was to be completed by 31.12.2012. But in spite of giving three extensions, first till 15.09.2013, Second till 31.12.2014 and the latest one being, 31.05.2015, the work still remains incomplete. Work has increase cost Rs 19 crore because it's not completed stipulated time frame. The MMRDA Authority has blame other authorities like MCGM, Environment Department's NOC. Change in Original Plan was also the reasons of the delay. The said project is been done by M/s Relcon Infraprojects Limited, the interior decoration contract has been awarded to M/s Godrej Company Limited and finally the electrification and air-conditioning contract has been given to M/s Pravin electrical limited. The said modern office 11th floor building of MMRDA  have 9 floors along with 2 service floors. “In spite of having its own building to work in the heart of Mumbai city, MMRDA had no need to spend Rs. 106 crores on construction of a new office for itself. It is a complete waste of both money and resources, blame by Anil Galgali. Even after 92 Months , work remains incomplete. This is like having fun at a cost of people living in drought prone areas and where farmers are committing suicide. Also next to this proposed office, there is another building, Tantri, that also belongs to the MMRDA and is equipped with the latest technology and know-how. So the need of a new office is not understood” said Galgali.   It has to be seen how the Chief Minister of Maharashtra Devendra Fadnavis, also the chairman of MMRDA, takes a stand. The expenses are definitely rubbing salt on the wounds of the drought affected people & farmers,concluded Galgali.  

Tuesday 18 August 2015

सरकारी पदों पर नियुक्ती के लिए नागपूर पर मेहरबान मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री हमेशा अपने जिला को अधिकाधिक मजबूत करने के लिए प्रयास कर उसका विकास काम करने के लिए सोचता है। 'अंधा बांटे रेवडी अपने को ही दे' ये कहावत नए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर इसलिए फिट बैठ रही है क्योंकि वे नागपूर पर मेहरबान है जबकि नागपूर की तुलना में अमरावती, कोकण, पुणे और नासिक में रिक्त पदों का प्रतिशत अधिक होते हुए भी सरल सेवा और प्रमोशन से नियुक्ती के लिए नागपूर/अमरावती/ औरंगाबाद/नासिक ऐसा अग्रक्रम निश्चित करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को महाराष्ट्र सरकार ने दी है। इस नए चक्राकार रिवाज से कोकण और पुणे को हमेशा के लिए नई सरकार ने उपेक्षा किया है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार से सरल सेवा और प्रमोशन से नियुक्ती के लिए जारी की अधिसूचना और चक्राकार रिवाज की जानकारी मांगी थी। सामान्य प्रशासन विभाग के अवर सचिव और जन सूचना अधिकारी ए.का.गागरे ने अनिल गलगली को बताया कि सरकार ने 28 अप्रैल 2015 को महाराष्ट्र शासकीय गट अ एवमं गट ब(राजपत्रित व अराजपत्रित) पदों पर सरल सेवा एवमं प्रमोशन से राजस्व विभाग वितरण नियम,2015 को अमल में लाने के लिये परिपत्रक जारी किया था।ये सरकारी फैसला लेने के पहले मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के दिनांक 3 मार्च 2015 के आदेश के बाद विभागीय संरचना व विभागीय संवर्ग वितरण की नियमावली-2010 में बदलाव करने का प्रस्ताव पेश किया तब वर्ष 2014 की आखिर में राज्य के कुल रिक्त पदों का प्रतिशत 13.79 था जिसमें सर्वाधिक रिक्त पद अमरावती विभाग से थी और उसका प्रतिशत 16.61 था। उसके बाद कोकण 15.30, पुणे 14.18, नासिक 13.18, नागपूर 12.26 और औरंगाबाद 11.14 ऐसा प्रतिशत था। ये सच्चाई होते हुए मुख्यमंत्री नागपूर पर मेहरबान हुए। सरकारी अधिसूचना के अंतर्गत गट अ व गट ब पदों पर सरल सेवा और प्रमोशन से नियुक्ती के लिए नागपूर, अमरावती, औरंगाबाद और नासिक इस क्रम के अनुसार चक्राकार रिवाज से राजस्व विभाग वितरित किया जाएगा। विशेष यानी इस अधिसूचना में विधवा और परित्यक्त्या को छोड़कर अन्य महिलाओं को स्थान न देकर अन्याय किया गया हैं। इस नए अधिसूचना को बढ़ते विरोध के बाद मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय ने 21 मई 2015 को राज्य के 11 विभिन्न संगठन के पदाधिकारियों की बैठक लेकर उन्हें पटाने की कोशिश भी की थी। सरल सेवा और प्रमोशन से नियुक्ती के लिए दिनांक 8 जून 2010 की नियमावली रद्द कर नए नियमावली को मंत्रिमंडल ने 9 अप्रैल 2015 को मान्यता दी लेकिन नई नियमावली लॉ के नजरिए से जायज होने का अभिप्राय बाद में लिया गया। उसके बाद दिनांक 16 जून 2015 को हुई मंत्रिमंडल की बैठक में कुछ बदलाव कर जिसमें पती-पत्नी एकत्रीकरण और सेवानिवृत्ती को 3 वर्ष शेष होनेवालों को अधिसूचना के बाहर रखा गया। अधिसूचना को अमल लाने से पुलिस विभाग और विक्रीकर विभाग के अधिकारियों के लिए 1 वर्ष तक स्थगन दिया गया। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली का कहना है कि आज संपूर्ण राज्य में बड़े पैमाने पर रिक्त पदों की संख्या होते हुए इसतरह कुछ विभाग पर मुख्यमंत्री द्वारा मेहरबानी रखना गलत है। जहां पर अधिक रिक्त पद वहां पर नियुक्ती ये सिंपल और सरल गणित होते हुए नागपूर से अधिक पद रिक्त वाले कोकण और पुणे पर ये एकतरह से अन्याय ही है, ऐसा अनिल गलगली में कहते हुए राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय को पत्र लिखकर समान न्याय की मांग की है। # 1,30,251 पद है रिक्त महाराष्ट्र के नागपूर, अमरावती, औरंगाबाद, कोकण, नासिक और पुणे ऐसे 6 विभाग में कुल 1,30,251 पद रिक्त हैं। मंजूर पद 9,44,713 है और सिर्फ 8,14,462 पदों पर अधिकारी और कर्मचारी कार्यरत हैं। सर्वाधिक किल्लत कोकण विभाग में है जहां पर 32,703 पद रिक्त है। उसके बाद 27,040 पुणे, 18,400 अमरावती, 18,300 नासिक, 18,256 औरंगाबाद और आखिर में 15,552 नागपूर ये आंकडे होते हुए मुख्यमंत्री नागपूर पर ही क्यों मेहरबान है ? इसपर अनिल गलगली अचरज जता रहे हैं।

शासकीय पदांवर नियुक्तीकरिता नागपूरला मुख्यमंत्र्याचे झुकते माप

मुख्यमंत्री नेहमीच आपला जिल्हा जास्तीत जास्त मजबूत करण्यासाठी धडपडतो आणि विकास काम करुन घेण्यासाठी आग्रही असतो. असाच काही प्रकार नवीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी करत नागपूरला झुकते माप दिले पण प्रत्यक्षात नागपूरच्या तुलनेत अमरावती, कोकण, पुणे आणि नाशिक येथे रिक्त पदांची टक्केवारी जास्त असताना सरळ सेवेने आणि पदोन्नतीने नियुक्तीसाठी नागपूर/अमरावती/ औरंगाबाद/नाशिक असा अग्रक्रम निश्चित केल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस महाराष्ट्र शासनाने दिली आहे. या नवीन चक्राकार पद्धतीने कोकण आणि पुणे नवीन सरकारने कायमचे हद्दपार केल्याचे स्पष्ट झाले आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी महाराष्ट्र शासनाकडे सरळ सेवेने आणि पदोन्नतीने नियुक्तीसाठी जारी केलेल्या अधिसूचनेची आणि चक्राकार पद्धतीची माहिती मागितली होती. सामान्य प्रशासनाचे अवर सचिव आणि जन माहिती अधिकारी ए.का.गागरे यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की शासनाने 28 एप्रिल 2015 रोजी महाराष्ट्र शासकीय गट अ व गट ब(राजपत्रित व अराजपत्रित) पदांवर सरळसेवेने व पदोन्नतीने नियुक्तीसाठी महसूली विभाग वाटप नियम,2015 च्या अंमलबजावणीबाबत परिपत्रक जारी केले होते. हा शासन निणर्य घेण्यापूर्वी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांच्या दिनांक 3 मार्च 2015 च्या आदेशानंतर विभागीय संरचना व विभागीय संवर्ग वाटप याबाबत नियमावली-2010 मध्ये बदल करण्याचा प्रस्ताव सादर झाला तेव्हा वर्ष 2014 च्या अखेरीस राज्यातील एकूण रिक्त पदांची टक्केवारी 13.79 होती ज्यात सर्वाधिक रिक्त पदे अमरावती विभागात असून त्याची टक्केवारी 16.61 होती. त्यानंतर कोकण 15.30, पुणे 14.18, नाशिक 13.18, नागपूर 12.26 आणि औरंगाबाद 11.14 अशी टक्केवारी होती. अशी वस्तुस्थिती असताना मुख्यमंत्र्यानी नागपूरला झुकते माप दिले. शासनाच्या अधिसूचनेप्रमाणे गट अ व गट ब पदांवर सरळसेवेने व पदोन्नतीने नियुक्तीसाठी नागपूर, अमरावती, औरंगाबाद आणि नाशिक या क्रमानुसार चक्राकार पद्धतीने महसूली विभाग वाटप केले जाणार आहे. विशेष म्हणजे या अधिसूचनेत विधवा आणि परित्यक्त्या यांस सोडून इतर महिलांना स्थान न देत अन्याय करण्यात आला आहे.या नवीन अधिसूचनेस झालेला कडाडून विरोधानंतर मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय यांनी 21 मे 2015 रोजी राज्यातील 11 विविध संघटनेच्या पदाधिकारीची बैठक घेत बोळवण करण्याचा प्रयत्न केला आहे. सरळ सेवेने आणि पदोन्नतीने नियुक्तीसाठीची दिनांक 8 जून 2010ची नियमावली रद्द करत नवीन नियमावलीस मंत्रीमंडळाने 9 एप्रिल 2015 रोजी मान्यता दिली पण नवीन नियमावली विधी विषयक दृष्टीकोनातून उचित असल्याबाबतचे अभिप्राय नंतर घेण्यात आले. त्यानंतर दिनांक 16 जून 2015 रोजी झालेल्या मंत्रीमंडळ बैठकीत काही बदल केले ज्यात पती-पत्नी एकत्रीकरण आणि सेवानिवृत्तीस 3 वर्षे शिल्लक असलेल्यांना वगळण्यात आले. अधिसूचनेची अंमलबजावणी पोलीस दलातील आणि विक्रीकर विभागातील अधिकारी यांचेकरिता 1 वर्षाची स्थगित ठेवण्यात आली. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांच्या मते आज संपूर्ण राज्यात मोठया प्रमाणात रिक्त पदांची संख्या असून अश्याप्रकारे काही विभागास मुख्यमंत्र्यानी झुकते माप देणे चुकीचे आहे. जेथे जास्त रिक्त पद तेथे नियुक्ती असे साधे आणि सोपे गणित असून नागपूर पेक्षा जास्त पद रिक्त असलेल्या कोकण आणि पुण्यावर हा एकप्रकारे अन्यायच असल्याची टीका अनिल गलगली यांनी व्यक्त करत राज्याचे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि मुख्य सचिव स्वाधीन क्षत्रिय यांस पत्र पाठवून समान न्यायाची अपेक्षा व्यक्त केली आहे. # 1,30,251 पदे रिक्त महाराष्ट्रातील नागपूर, अमरावती, औरंगाबाद, कोकण, नाशिक आणि पुणे अश्या 6 जिल्ह्यांत एकूण 1,30,251 पदे रिक्त आहेत. मंजूर पदे 9,44,713 असून फक्त 8,14,462 पदांवर अधिकारी आणि कर्मचारी कार्यरत आहे. सर्वाधिक तुटवडा कोकण विभागात असून तेथे 32,703 पदे रिक्त आहेत त्यानंतर 27,040 पुणे, 18,400 अमरावती, 18,300 नाशिक, 18,256 औरंगाबाद आणि सरतेशेवटी 15,552 नागपूर अशी आकडेवारी असताना मुख्यमंत्री नागपूरलाच झुकते माप का देत आहे? याचे कुतूहल अनिल गलगली यांस आहे.

CM's favoritism for Nagpur for filling government job vacancies

Every CM tries to develop his home district, the current CM Devendra Fadnavis is no different,due to the favoritism the CM's Nagpur district is receiving full priority for filling up the govt vacancies though it is way down in the list requiring attention. Amravati, konkan, Pune and nasik are way above in the list requiring attention as the vacancies are higher in these areas.The CM has now finalised the priority of Nagpur, Amravati,Aurangabad and nasik in cyclical order to fill up the pending vacancies through direct recruitment or promotions to the posts. This information has been provided by the govt to RTI activist Anil Galgali. In this cyclical process the regions of konkan and Pune have been given a short shrift. RTI activist Anil Galgali, had filed a query with the state government seeking information about the GR issued on filling up the vacancies for various posts either through direct recruitment or through promotions in the region wise rotation for recruitment. The GAD's Under Secretary and Public information officer Shri A K Gagare informed Galgali that, the government on 28 April 2015 issued a GR for filling up vacancies in the revenue dept for Group A and Group B of gazetted and non gazetted officers through direct recruitment or through promotions. Prior to the notification, the CM on 3rd March 2015 issued order in supersession of the Divisional Cadre structure and Divisional Cadre allotment for direct appointment by nomination to the posts of Group A and Group B Gazzetted and Non Gazzetted of Government of Maharashtra rules 2010, in which the vacancies in the end of year 2014 all over state was 13.79%, with Amravati division being the highest at 16.61%, followed by konkan division at 15.3%, Pune division at 14.18%, Nasik at 13.18%, Nagpur at 12.26%, and Aurangabad division at 11.14%. In view of the situation the CM issued priority for Nagpur division and issued orders for filling up the vacancies in the rotational order of Nagpur / Amravati / Aurangabad / Nasik totally overlooking the need of konkan and Pune divisions. Also in the order leaving apart category of widows and abandoned women the women recruitment has also been ignored. After widespread criticism of the GR, the chief Secretary, swadheen kshatriya had called for a meeting on 21st may 2015, inviting office bearers of 11 different unions. Recruitment through direct nomination and promotions rules of 08/06/2010 was cancelled and the new rules were approved by the cabinet in 09/04/2015, but the approval of the law dept was taken much later. There after the govt further modified it's order in the cabinet meeting held on 16/06/2015, in which the postings of spouses in the same place, persons with 3 years pending for retirement was left out, and the implementation of the order for police and sales tax dept was stayed for 1 year. RTI activist Anil Galgali has questioned the motive of CM Devendra Fadnavis on according priority to some divisions when there is widespread vacancies all over the state. Also the priority should be given to areas where there are higher percentage of vacancies in a simple understanding policy, giving priority for Nagpur over konkan and Pune divisions where the ratio of vacancy is higher than Nagpur amounts to Injustice towards konkan and Pune divisions stated Galgali. A letter address to CM & CS, Galgali demand to apply equal Justice to all division. # 1,30,251 Post Vacant The vacancies in the end of year 2014 all over state was 1,30,251 out of 9,44,713 in 6 division with Kokan division being the highest at 32,703. There was 8,14,462 Staff working throughout the 6 division. After that vacancies 27,040 Pune, 18,400 Amaravati, 18,300 Nasik,18,256 Aurangabad and 15,552 Nagpur division. Why this fact figure ignored by Chief Minister was create a question, says Galgali.

Saturday 8 August 2015

15 मंत्रियों के कार्यालय के नूतनीकरण पर 2 करोड़ रुपए की फिजूलखर्ची

राज्य का खजाना खाली होने से बचत की सलाह  देनेवाले मंत्री और राज्यमंत्री स्वयं की शान ए शौकत पर करोड़ों रुपए उड़ा रहे हैं।राज्य के 15 मंत्रियों ने कार्यालय के नूतनीकरण पर 2 करोड़ रुपए उड़ाने में गृहनिर्माण राज्यमंत्री रविंद्र वायकर और सार्वजनिक निर्माण मंत्री चंद्रकांत पाटील सबसे आगे आघाडी पर होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को सरकार ने दी है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सरकार के नए मंत्री और राज्यमंत्रियों के कार्यालय के नुतनीकरण काम पर हुए खर्च की जानकारी सामान्य प्रशासन विभाग से मांगी थी। जानकारी न मिलने पर  गलगली द्वारा दायर अपील पर हुई सुनवाई के बाद उन्हें जानकारी दी गई। कुल 28 में से 9 मंत्री और 6 राज्यमंत्रियों में स्वयं के मंत्रालय स्थित कार्यालय नूतनीकरण पर 2 करोड़ रुपए खर्च किए है। इसमें 1 करोड़ 74 लाख 74 हजार 401 रुपयर स्थापत्य और 25 लाख 16 हजार 438 रुपए विद्युत काम पर खर्च हुआ है। इनमें  सबसे अधिक खर्च गृह निर्माण राज्यमंत्री रविंद्र वायकर के कार्यालय पर हुआ है और वह रकम 33 लाख 99 हजार 170 रुपए इतनी हैं। उसके बाद सार्वजनिक निर्माण मंत्री चंद्रकांत पाटील के कार्यालय पर 31 लाख 88 हजार 67 रुपए 12  पैसे खर्च किए गए है। आदिवासी मंत्री विष्णू सावरा 20 लाख 48 हजार 271 रुपए 80 पैसे, स्कूली शिक्षा एवमं क्रिडा मंत्री विनोद तावडे 20 लाख 24 हजार 755 रुपए,  गृह राज्यमंत्री डॉ रणजीत पाटील 15 लाख 53 हजार 450 रुपए, गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता 14 लाख 27 हजार 906 रुपए 16 पैसे, सिंचाई मंत्री गिरीष महाजन 13 लाख 43 हजार 127 रुपए ऐसी 13 लाख से 33 लाख से अधिक रकम कार्यालय नुतनीकरण पर खर्च करनेवाले मंत्री और राज्यमंत्री है। 2 लाख से 10 लाख कार्यालय नूतनीकरण पर खर्च करनेवाले मंत्री और राज्यमंत्रियों में महिला एवमं बाल विकास राज्यमंत्री विद्या ठाकूर (9,98,314), राजस्व राज्यमंत्री संजय राठोड (9,96,396), सार्वजनिक निर्माण मंत्री एकनाथ शिंदे (9,92,714), सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले (4,83,864), सामाजिक न्याय राज्यमंत्री दिलीप कांबले (4,67,864), खाद्य एवमं आपूर्ती मंत्री गिरीष बापट (4,46,798), वित्त एवमं ग्रामविकास राज्यमंत्री दीपक केसरकर (4,00,336) और ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले (2,19,750) का समावेश हैं। नए सरकार के मंत्री और राज्यमंत्री के कार्यालय नुतनीकरण काम पर हुए खर्च की जानकारी पहले अनिल गलगली को नही दी गई। अपील सुनवाई के बाद जानकारी तो दी गई पर प्रशासनिक मंजूरी न लेते हुए मंत्रालय के मंत्री और राज्यमंत्रियों के कार्यालय नुतनीकरण काम पर करोड़ों रुपए खर्च हुआ है जो एकतरह से अवैध होने के बात स्पष्ट होने के बात बताते हुए अनिल गलगली ने ये इसतरह मंत्रालय में कानून बनानेवाले मंत्री महोदय कानून तोड़ने की शिकायत मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के पास की है। एक ओर राज्य का खजाना खाली होने का दावा करनेवाली सरकार दुसरी ओर करोड़ों रुपए की फिजूलखर्ची करने पर अनिल गलगली ने चिंता व्यक्त की है।

15 ministers spend 2 crores to refurbish their office

At a time when the state government is facing financial crunch and the govt itself advising reductions in expenses, the ministers themselves are seem to be indulging themselves by refurbishing their offices. Minister of state for housing Mr Ravindra Waikar and PWD Minister Chandrakant Patil are taking a lead in the spending of Rs 2 crores by in all 15 ministers. This information was provided to RTI activist Anil Galgali by the government. RTI activist Anil Galgali had sought information from the state government regarding the expenses on refurbishing of the office by the new ministers. The GAD dept refused to provide information on the first application, on which an appeal was filed by Galgali. A hearing was conducted on the appeal in which the following information was provided. Out of the 28 ministers 9 cabinet and 6 ministers of state in all spent Rs 2 crores. Of the 2 crores Rs 1 crore 74 lakhs 74 thousand 401 was spent on permanent fixtures and Rs 25 lakhs 16 thousand 438 was spent on light fixtures. The highest expenditures was incurred by Ravindra Waikar on his office, which was Rs 33 lakhs 99 thousand 170 followed by Chandrakant Patil who spent Rs 31 lakhs 88 thousand 67.12. Followed by tribal minister Vishnu Sawra 20 lakhs 48 thousand 271.80, Schools education minister Vinod Tawde spent Rs 20 lakhs 24 thousand 755, MOS Home Dr Ranjit Patil spent 15 lakhs 53 thousand 450, Housing minister Prakash Mehta spent 14 lakhs 27 thousand 906.16, irrigation minister Girish Mahajan 13 lakhs 43 thousand 127. This is the break up of how various ministers spent between 13-33 lakhs on their office refurbishing There are also some minister who spent between 2-10 lakhs on office refurbishing they are as follows MOS for women and children welfare Mrs Vidya Thakur (9,98,314), mos revenue Sanjay Rathod (9,96,396), PWD minister Eknath Shinde (9,92,714), social welfare minister Rajkumar Badole (4,83,864), MOS social welfare Dilip Kamble (4,67,864), Food and civil supplies minister Girish Bapat (4,46,798), MOS Finance Deepak Kesarkar (4,00336), Power Minister Chandra shekhar Bawankule (2,19,750) The information on expenses incurred by the new ministers were refused by the govt. This was only provided in a appeal, it is also come to know that no administration approvals were taken for carrying out the expenses of refurbishing of the offices by the ministers going up to 2 crores, which makes the refurbishing work illegal expressed Galgali. Anil Galgali further stated that,  Ministers who are entrusted with the responsibility of framing laws are themselves breaking laws that too in the mantralaya itself. In a complaint letter addressed to CM Devendra Fadnavis Galgali has questioned the motives of the ministers who at one end claim that the coffers of the government is empty and on the other end are splurging on luxurious office refurbishment.

15 मंत्र्याच्या कार्यालय नूतनीकरणावर उडवले 2 कोटी

राज्याची तिजोरी खाली असून काटकसरीचा सल्ला देणारे मंत्री आणि राज्यमंत्री स्व:ताच्या शान ए शौकतीवर कोटयावधी रुपयांची उधळपट्टी करत आहे. राज्यातील 15 मंत्र्याच्या  कार्यालय नूतनीकरणावर 2 कोटी रुपये उडवले असून गृहनिर्माण राज्यमंत्री रविंद्र वायकर आणि सार्वजनिक बांधकाम मंत्री चंद्रकांत पाटील आघाडीवर असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस शासनाने दिली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी शासनाकडे नवीन सरकारच्या मंत्री आणि राज्यमंत्री यांच्या कार्यालय नुतनीकरण कामावर झालेल्या खर्चाची माहिती मागितली होती. सामान्य प्रशासन विभागाने प्रथम माहिती दिली नाही. अनिल गलगली यांनी दाखल केलेल्या अपील अर्जावर झालेल्या सुनावणीनंतर त्यांस माहिती देण्यात आली. एकुण 28 पैकी 9 मंत्री आणि 6 राज्यमंत्री यांनी स्व:ताच्या कार्यालय नूतनीकरणावर 2 कोटी रुपये खर्च केले आहेत. यामध्ये 1 कोटी 74 लाख 74 हजार 401 रुपये स्थापत्य आणि 25 लाख 16 हजार 438 रुपये विद्युत कामावर खर्च केले आहे. यामध्ये सर्वात जास्त खर्च गृह निर्माण राज्यमंत्री रविंद्र वायकर यांच्या कार्यालयावर खर्च झाले असून ती रक्कम 33 लाख 99 हजार 170 रुपये इतकी आहे. त्यानंतर सार्वजनिक बांधकाम मंत्री चंद्रकांत पाटील यांच्या कार्यालयावर 31 लाख 88 हजार 67 रुपये 12  पैसे खर्च केले गेले. त्यानंतर  आदिवासी मंत्री विष्णू सावरा 20 लाख 48 हजार 271 रुपये 80 पैसे,  शालेय शिक्षण व क्रिडा मंत्री विनोद तावडे 20 लाख 24 हजार 755 रुपये,  गृह राज्यमंत्री डॉ रणजीत पाटील 15 लाख 53 हजार 450 रुपये, गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता 14 लाख 27 हजार 906 रुपये 16 पैसे, जलसंपदा मंत्री गिरीष महाजन 13 लाख 43 हजार 127 रुपये असे 13 ते 33 लाखाच्या अधिक रक्कम कार्यालय नुतनीकरणावर खर्च करणारे मंत्री आणि राज्यमंत्री आहेत. 2 लाख ते 10 लाख कार्यालय नूतनीकरणावर खर्च करणा-या मंत्री आणि राज्यमंत्र्यामध्ये महिला व बाल विकास राज्यमंत्री विद्या ठाकूर (9,98,314),  महसूल राज्यमंत्री संजय राठोड (9,96,396), सार्वजनिक बांधकाम मंत्री एकनाथ शिंदे (9,92,714), सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले (4,83,864),सामाजिक न्याय राज्य मंत्री दिलीप कांबले (4,67,864), अन्न व नागरी पुरवठा मंत्री गिरीष बापट (4,46,798), वित्त व ग्रामविकास राज्यमंत्री दीपक केसरकर (4,00,336) आणि ऊर्जा , नवीन व नवीनीकरण ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुले (2,19,750) यांचा समावेश आहे. नवीन सरकारच्या मंत्री आणि राज्यमंत्री यांच्या कार्यालय नुतनीकरण कामावर झालेल्या खर्चाची माहिती प्रथम दिली गेली नाही. अपील सुनावणीनंतर माहिती दिली गेली असून प्रशासनिक मंजूरी न घेता मंत्र्यालयातील मंत्री आणि राज्यमंत्री यांच्या कार्यालय नुतनीकरण कामावर कोटयावधी रुपये खर्च झाले असून हे काम एकप्रकारे अनधिकृत असल्याची बाब स्पष्ट झाल्याचे सांगत अनिल गलगली यांनी या अश्याप्रकारे भर मंत्र्यालयातच कायदा बनविणा-या मंत्र्यानी कायदा तोडल्याची तक्रार मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस केली आहे. एकीकडे राज्याच्या तिजोरी खाली असल्याचा दावा करणारे सरकार दुसरीकडे कोटयावधी रुपयांचा चुराडा करत असल्याची खंत अनिल गलगली यांनी व्यक्त केली आहे.

Monday 3 August 2015

बेस्ट को रोजाना 2.26 करोड़ का घाटा

बृहन्मुंबई महानगरपालिका की बृहन्मुंबई विद्युत आपूर्ती और परिवहन उपक्रम यानी  बेस्ट प्रशासन को रोजाना रु 2.26 करोड़ का घाटा होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को बेस्ट प्रशासन ने दी है। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने बेस्ट प्रशासन से प्रति किलोमीटर आनेवाला खर्च, यात्री किराया आय और कुल यात्री संख्या ऐसी जानकारी मांगी थी।  बेस्ट प्रशासन के सहायक डेपो मैनेजर अभय शेलार ने अनिल गलगली को बताया कि रोजाना औसतन 28.39 लाख यात्री यात्रा करते है। बस संचालन का कुल रोजाना खर्च रु 6.16 ( मई, 2015 के उपलब्ध आंकड़ो के आधार पर) करोड़ है और प्रति किलोमीटर रु 97.75 इतना खर्च आता है। वहीँ यात्रियों से वसूले जानेवाले यात्री किराया के जरिए बेस्ट उपक्रम को प्राप्त होनेवाली रोजाना की आय जून 2015 के आंकड़ो के अनुसार रु 3.90 करोड़ इतनी है। रोजाना बेस्ट को रु 2.26 करोड़ का सीधा घाटा हो रहा है। वर्तमान में बस का किराया न्यूनतम रु 8 ऑर्डिनरी , रु 8 लिमिटेड और रु 10 एक्सप्रेस के लिए है वही एसी बस सेवा के लिए रु 30 हैं। अनिल गलगली ने बड़ा घाटा उठाते ने के बाद भी लाखों मुंबईकरों को 'बेस्ट' सेवा देनेवाली बेस्ट प्रशासन को साधुवाद देते हुए मुंबई की भीड़भाड़ और तंग रास्तों पर  'बेस्ट डेडिकेटेड मार्ग' बनाने की मांग मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से की हैं। जिससे  ट्रैफिक जाम से रोजाना अतिरिक्त खर्च होनेवाले लाखों रुपए की बचत होगी और बेस्ट के यात्री संख्या में भी वृद्धि होगी।

BEST Looses Rs 2.26 crore everyday

The MCGM's Brihanmumbai Electric Supply and Transport popularly known as our BEST buses are indeed a tight spot after reporting losses of Rs. 2.26 crore per day. Its reveal in a query filed by RTI Activist Anil Galgali. RTI Activist Anil Galgali had sought information in regards to the working of BEST buses which is one of the important lifeline's of Mumbai city.  The RTI had demanded expenses in regard to per kilometer incurred by the BEST, along with the income generated by the BEST per day and number of people using the services. In reply to the query, Asst Manager BEST Abhay Shelar informed Anil Galgali that as per the figures available with them of May 2015, the expense mounts to rupees 6.16 crore per day and as per June 2015  the total income through fares for BEST is rupees 3.90 crore per day. Per Kilometer expenditure is Rs 97.75 .Also on an average 28.39 lakh people use the services. BEST Looses 2.26 crore everyday to provide services to Mumbaikar. As on today Rupee 8 is charged as Base fare for Regular Best, Rs.8 again for Limited buses of BEST, Rs.10/- for express buses and Rs. 30 for BEST AC services. Galgali has indeed praised the management of BEST for serving selflessly day in and out for our Mumbaikars. Galgali has also written to the Chief Minister demanding seperate lanes for BEST buses as a lot of money can be saved as it will be able to avoid high traffic snarls everyday. Also this will automatically help to increase and motivate more and more people to use the services, add Galgali.

बेस्टला दररोज 2.26 कोटीचे नुकसान

बृहन्मुंबई महानगरपालिकेचा बृहन्मुंबई विद्युत पुरवठा आणि परिवहन उपक्रम म्हणजेच बेस्ट प्रशासनला दररोज 2.26 कोटीचे नुकसान होत असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस बेस्ट प्रशासनाने दिली आहे. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस बेस्ट प्रशासनाकडे प्रति किलोमीटर येणारा खर्च, प्रवासी भाडे उत्पन्न आणि एकुण प्रवासी संख्या अशी माहिती विचारली होती. बेस्ट प्रशासनाचे सहाय्यक आगार व्यवस्थापक अभय शेलार यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की दररोज सरासरी 28.39 लाख प्रवासी प्रवास करतात. बसप्रवर्तनाचा एकूण दैनंदिन खर्च रु 6.16 ( मे, 2015 च्या उपलब्ध आकडेवारीनुसार ) कोटी आहे आणि प्रति किलोमीटर खर्च रु 97.75 इतका आहे. तसेच प्रवाशांकडून आकारण्यात येणा-या प्रवासभाडयाच्या माध्यमातून बेस्ट उपक्रमाला प्राप्त होणारे दैनंदिन उत्पन्न जून 2015 च्या आकडेवारीनुसार रु 3.90 कोटी एवढे आहे. दररोज बेस्टला रु 2.26 कोटीचे सरळ नुकसान होत आहे. सद्या बसचे भाडे कमीत कमी रु 8 साध्या, रु 8 लिमिटेड आणि रु 10 एक्सप्रेससाठी आहे तर एसी बस सेवेसाठी रु 30 आहे. अनिल गलगली यांनी प्रचंड तोटा सहन करुनही लाखों मुंबईकरांना 'बेस्ट' सेवा देणा-या बेस्ट प्रशासनाचे कौतुक करत मुंबईतील गर्दी आणि वर्दळीच्या मार्गावर 'बेस्ट डेडिकेटेड मार्ग' बनविण्याची मागणी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांसकडे केली जेणेकरुन ट्रैफिक जाममुळे होणारे दररोजचे लाखों रुपयांची बचत होईल आणि बेस्ट प्रवासी संख्येत सुद्धा वाढ होईल.

Saturday 1 August 2015

पंकजा मुंडे दांडीबहाद्दुर

महाराष्ट्र के नए सरकार के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और जल आपूर्ती मंत्री बबनराव लोणीकर को छोड़ा जाए तो सभी मंत्रियों ने मंत्रिमंडल की बैठक में शतप्रतिशत उपस्थिती दर्ज नही की है। विवादित ग्रामीण एवमं महिला व बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे  तो दांडी मारने में नंबर वन होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुख्य सचिव कार्यालय ने  दी हैं। 5 टॉप दांडी बहाद्दुर मंत्रियों में पंकजा मुंडे, एकनाथ शिंदे, डॉ दीपक सावंत, सुधीर मुनगंटीवार और राजकुमार बडोले का नंबर लगता हैं। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुख्य सचिव कार्यालय से मंत्रिमंडल की बैठक और मंत्रियों की उपस्थिती की जानकारी मांगी थी। मुख्य सचिव कार्यालय के अवर सचिव और जन सूचना अधिकारी नि.भा. खेडेकर ने अनिल गलगली को बताया कि दिनांक 11 दिसंबर 2014 से जून 2015 इस दरम्यान  कुल 28 मंत्रिमंडल की बैठक हुई। इसके पहले 8 बैठक हुई थी तब पूर्ण मंत्रिमंडल का गठन नही हुआ था। मुख्यमंत्री और अन्य 17 मंत्रियों से सिर्फ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और जल आपूर्ती मंत्री बबनराव लोणीकर का अपवाद छोड़ा जाए तो 16 के 16 मंत्री दांडी मारने का मौका नही चुके। इन दांडी बहादुर मंत्रियों में विवादित ग्रामविकास और महिला बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे ने नंबर वन हासिल कर 28 में से 9 बार अनुपस्थित रही है। उसके बाद  सार्वजनिक निर्माण मंत्री एकनाथ शिंदे ने 7 बार अनुपस्थित रहकर दुसरा नंबर हासिल किया हैं । इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री डॉ दीपक सावंत 6, वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार 5, सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले 5, गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता 4 , पर्यावरण मंत्री रामदास कदम 4 , उच्च व तंत्र शिक्षा मंत्री विनोद तावडे 3, राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे 3 , ऊर्जा चंद्रशेखर बावनकुळे 3 एक के बाद आते है। राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में अनुपस्थित रहनेवाले मंत्रियों को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने वार्निंग देने को लेकर जानकारी मांगने पर ऐसी कोई जानकारी मौजूद न होने का दावा मुख्य सचिव कार्यालय ने किया है वहीँ कितने बैठक में लगातार उपस्थित न होने पर पद रद्द होता है, इसको लेकर किसी भी तरह का नियम न होने की जानकारी अनिल गलगली को दी गई। मंत्रिमंडल की बैठक में राज्य के विकास और पॉलिसी पर महत्वपूर्ण चर्चा होने से इन बैठक में शेष काम छोड़कर उपस्थित रहने की अपेक्षा मंत्रियों से अनिल गलगली ने जताई है।

पंकजा मुंडे दांडी मारण्यात अव्वल

महाराष्ट्रातील नवीन सरकारातील मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि पाणी पुरवठा मंत्री बबनराव लोणीकर यांचा अपवाद सोडता सर्वच मंत्र्यानी  मंत्रिमंडळाच्या बैठकीस शतप्रतिशत उपस्थिती राहिले नसून वादग्रस्त ग्रामीण आणि महिला बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे दांडी मारण्यात अव्वल असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुख्य सचिव कार्यालयाने दिली आहे. 5 टॉप दांडी बहादुर मंत्र्यामध्ये पंकजा मुंडे, एकनाथ शिंदे, डॉ दीपक सावंत, सुधीर मुनगंटीवार आणि राजकुमार बडोले यांचा क्रमांक लागतो. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुख्य सचिव कार्यालयाकडे मंत्रिमंडळाच्या बैठकी आणि मंत्र्याची उपस्थितीची माहिती मागितली होती. मुख्य सचिव कार्यालयाचे अवर सचिव आणि जन माहिती अधिकारी नि.भा. खेडेकर यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की दिनांक 11 डिसेंबर 2014 पासून  जून 2015 या कालावधीत एकूण 28 मंत्रिमंडळाच्या बैठकी झाल्या आहेत. यापूर्वी 8 बैठका झाल्या होत्या त्यावेळी पूर्ण मंत्रिमंडळाची स्थापना झाली नव्हती. मुख्यमंत्री आणि अन्य 17 मंत्र्यापैकी फक्त मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि पाणी पुरवठा मंत्री बबनराव लोणीकर यांचा अपवाद वगळता 16 मंत्र्यानी दांडी मारली. या दांडी बहादुरीत वादग्रस्त ग्रामीण आणि महिला बाल विकास मंत्री पंकजा मुंडे यांनी अव्वल क्रमांक पटवित 28 पैकी 9 वेळा अनुपस्थित होत्या. त्यानंतर सार्वजनिक बांधकाम मंत्री एकनाथ शिंदे यांनी 7 वेळा अनुपस्थित राहत दुसरा क्रमांक पटकविला. यानंतर आरोग्य मंत्री डॉ दीपक सावंत 6, वित्त मंत्री सुधीर मुनगंटीवार 5, सामाजिक न्याय मंत्री राजकुमार बडोले 5, गृह निर्माण मंत्री प्रकाश मेहता 4 , पर्यावरण मंत्री रामदास कदम 4 , उच्च व तंत्र शिक्षण मंत्री विनोद तावडे 3, महसूल मंत्री एकनाथ खडसे 3 , ऊर्जा मंत्री चंद्रशेखर बावनकुळे 3 यांची क्रमवारी आहे. राज्य मंत्रिमंडळाच्या बैठकीत अनुपस्थित राहणा-या मंत्र्याना मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी समज दिल्याबाबत माहिती विचारली असता त्याबाबतची माहिती उपलब्ध नसल्याचा दावा मुख्य सचिव कार्यालयाने केला आहे तर किती बैठकीत सलग उपस्थित नसल्यास पद रद्द होते, याबाबतीत कोणताही नियम नसल्याची माहिती अनिल गलगली यांस दिली आहे. मंत्रिमंडळाच्या बैठकीत राज्याचा विकास आणि धोरणाबाबत महत्वाची चर्चा होत असून अश्या बैठकीत मंत्र्यानी सर्व कामे सोडून उपस्थित राहण्याची अपेक्षा अनिल गलगली यांनी व्यक्त केली.

Pankaja Munde tops absentee ministers list

The new government headed by Devendra Fadnavis also faces absenteeism of its ministers from the important cabinet meetings.  Barring CM Devendra Fadnavis and water supply Minister Babanrao Lonikar who have attended all cabinet meetings rest all do not have a 100% track record. Leading the list of Minister's in remaining absent from meetings is the Rural & Women Child welfare Minister Pankaja Munde, followed by Eknath Shinde, Dr Deepak Sawant, Sudhir Mungantiwar, Rajkumar Badole constituting the top 5. This information was provided to RTI activist Anil Galgali by chief Secretary office. RTI activist Anil Galgali had filed a RTI query with the chief Secretary office seeking details of the total number of cabinet meetings held by the state government and the attendance of ministers.  The Under Secretary and the public information officer Shri N B Khedekar informed Galgali that, since 11 December 2014 to  23 June 2015 a total of 28 cabinet meetings were held. Prior to this 8 meetings were held in the period when the complete ministry was not constituted. Out of the 18 ministers Barring CM Fadnavis and Lonikar rest 16 ministers have been absent in some or other cabinet meetings. Pankaja Munde remained absent in 9 out of the 28 cabinet meetings, PWD minister Eknath Shinde was absent in 7, Health minister Dr Deepak Sawant was absent in 6, Finance minister Sudhir Mungantiwar in 5, Social Justice Minister Rajkumar Badole in 5, Housing minister Prakash Mehta in 4, Environment minister Ramdas Kadam in 4, Higher and technical minister Vinod Tawde in 3, Revenue minister Eknath Khadse in 3,  Energy Minister Chandrashekhar Bawankule  in 3. Anil Galgali further sought to know if any advisory was given by the CM Fadnavis to  curb the absenteeism, to which the CS office replied in negative stating it has no record of the same. Galgali also queried if there is any rule for removal of the minister for remaining continuously absent from the cabinet meeting to which he was informed that no such rule is in existence. The cabinet meetings are held for important issues to properly govern the state and hence it is important that the Minister's attend all the meetings expressed Anil Galgali.