Wednesday 28 June 2017

मुंबई मेट्रो वन कंपनी के यू टर्न से मध्यस्थ एमएमआरडीए को चुकाना पड़ेगा 31 करोड़

वर्सोवा स्थित होमगार्ड की स्वामित्व वाली 2.4 हेक्टर जमीन कास्टिंग यार्ड के लिए लेते हुए उस जमीन पर प्रशिक्षण केंद्र बनाकर देने का अभिवचन मुंबई मेट्रो वन कंपनी ने दिया था। अब प्रशिक्षण केंद्र बनाकर न देने वाली मुंबई मेट्रो वन कंपनी 31 करोड़ 6 लाख 12 रुपए का बकाया किराया न देने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एमएमआरडीए प्रशासन ने दी हैं। इन सभी विवाद में मध्यस्थ की भूमिका निभानेवाली एमएमआरडीए संकट में आ गई हैं । गत 30 महीने से इमारत का निर्माण नहीं होने से चिढ़े होमगार्ड प्रशासन ने पूरी रकम ब्याज सहित देने का अनुरोध एमएमआरडीए प्रशासन से किया हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन से वर्सोवा स्थित होमगार्ड की स्वामित्व वाली जमीन को लेकर मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने किया हुआ एग्रीमेंट और वर्तमान स्थिती की जानकारी मांगी थी।  एमएमआरडीए प्रशासन ने अनिल गलगली ने 31 मार्च 2016 तक मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का बकाया किराया और अबतक हुआ एग्रीमेंट,पत्रव्यवहार और  बढ़ाई हुई मियांद के दस्तावेज दिए। वर्सोवा-अंधेरी-घाटकोपर कॉरिडोर एमआरटीस योजना में आनेवाली दिक्कतों को लेकर चर्चा करने के लिए मुख्यमंत्री ने 10 दिसंबर 2007 को आयोजित बैठक में मेट्रो वन के योजना प्रबंधक ने वर्सोवा स्थित होमगार्ड की स्वामित्व वाली 2.4 हेक्टर जमीन अस्थायी तौर पर कास्टिंग यार्ड के लिए देने के लिये एमएमआरडीए और होमगार्ड से अनुरोध किया था। उस वक्त 1.99 करोड़ रुपए केंद्र सरकार ने राज्य सरकार को हस्तांतरित कर प्रशिक्षण केंद्र को बनाने के लिए मंजूरी दी थी। लेकिन मेट्रो का काम ध्यान में लेते हुए जमीन को 2 वर्ष अस्थायी तौर पर मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के योजना प्रबंधक को देते हुए उसके ऐवज में होमगार्ड का प्रशिक्षण केंद्र मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी द्वारा बनाकर देने की बात तय की गई थी।

26 अप्रैल 2010 को उसतरह का एग्रीमेंट मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी और एमएमआरडीए प्रशासन के बीच हुआ था। समय पर काम न होने से मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने 4 बार मियांद बढ़ाकर ली। काम होने के बाद मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने होमगार्ड से शत प्रतिशत धोखाधड़ी करते हुए खुद को अलग किया। एग्रीमेंट की मियांद 18 अप्रैल 2010 को खत्म हो रही थी लेकिन अपर मुख्य सचिव(गृह) की अध्यक्षता में दिनांक 17 अक्टूबर 2011 को मंत्रालय में हुई बैठक में 6 महीने की अस्थायी तौर पर मियांद बढ़ाकर देते हुए  2 महीने में प्रशिक्षण केंद्र का निर्माण काम शुरु करे अन्यथा दिनांक 16 जनवरी 2009 से ब्याज की  वसूल करने का फैसला लिया गया था। इसके बाद भी किसी भी तरह का काम शुरु नहीं किया गया।

मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने 29 जून 2015 को 3 करोड़  97 लाख 98 हजार की रकम अदा भले ही की हैं लेकिन 31 मार्च 2017 तक किराया ,सर्विस टैक्स और ब्याज ऐसी कुल मिलाकर कुल 31 करोड़ 6 लाख 12 रुपए अदा करना शेष हैं। मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने की हुई धोखाधड़ी से अब होमगार्ड को दिया हुआ अभिवचन पूर्ण करने की जिम्मेदारी एमएमआरडीए प्रशासन की होने से जमीन के किराए की रकम से  प्रशिक्षण केंद्र  और सुरक्षा दीवार बनाकर देने के प्रस्ताव को एमएमआरडीए प्रशासन ने मंजूर करते किया हैं और हाल ही में सुरक्षा दीवार का काम पूर्ण किया हैं। मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने की चीटिंग से अब होमगार्ड से किया वादा पूरा करने की जिम्मेदारी एमएमआरडीए प्रशासन की हैं। जमीन के किराए की रकम से प्रशिक्षण केंद्र और सुरक्षा दीवार बनाने का वादा कर एमएमआरडीए ने सुरक्षा दीवार का काम पूर्ण किया हैं। साथ ही में 14 करोड़ मंजूर कर प्रशिक्षण केंद्र और प्रशासकीय इमारत बनाने राजी हुई हैं। लेकिन 30 किसी भी तरह का निर्माण शुरु न होने से नाराज होमगार्ड के वरिष्ठ अधिकारी संजय पांडेय ने 7 मार्च 2017 को पत्र भेजकर स्पष्ट किया कि इमारत का निर्माण एमएमआरडीए प्रशासन को करना मुश्किल हैं तो किराए की रकम ब्याज सहित लौटाई जाए ताकि निर्माण को सरकार की मंजूरी से कर सके। 

अनिल गलगली ने इस मामले को लेकर राज्य के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और एमएमआरडीए क्र महानगर आयुक्त को भेजे हुए पत्र में मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी ने की हुई धोखाधड़ी को गंभीरता से लेते हुए कंपनी पर धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने और बकाया किराया वसूलने की मांग की हैं। अनिल अंबानी जैसे  उद्योगपती की कंपनी ने की हुई धोखाधड़ी देखते हुए उनकी सभी कंपनियों को राज्य के नई योजना में हमेशा के लिए पाबंदी लगाने की मांग अनिल गलगली ने की हैं। डीएन नगर स्थित मेट्रो कार डेपो स्थित बनी बिल्डिंग होम गार्ड को देकर एमएमओपीएल मामले को सुलझा सकती हैं।

मेट्रो वन कंपनीच्या घुमजाव धोरणामुळे मध्यस्थ एमएमआरडीएस अदा करावे लागणार 31 कोटी

वर्सोवा येथील होमगार्डच्या मालकीची 2.4 हेक्टर जागा कास्टिंग यार्डसाठी घेत त्या जागेवर प्रशिक्षण केंद्र बांधून देण्याचे अभिवचन मुंबई मेट्रो वन कंपनीने दिले होते. आता प्रशिक्षण केंद्र बांधून न देणारी मुंबई मेट्रो वन कंपनी 31 कोटी 6 लाख 12 रुपयांची भाडयापोटीची थकबाकी देत नसल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस एमएमआरडीए प्रशासनाने दिली आहे. या सर्व भानगडीत मध्यस्थीची भूमिका निभावणारी एमएमआरडीए संकटात सापडली असून गेल्या 30 महिन्यापासून इमारत न बांधल्यामुळे चिडलेल्या होमगार्ड प्रशासनाने सर्व रक्कम व्याजासहित देण्याचा आग्रह एमएमआरडीए प्रशासनाकडे धरला आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एमएमआरडीए प्रशासनाकडे वर्सोवा येथील होमगार्डच्या मालकीच्या जमीनीबाबत मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने केलेला करारनामा आणि सद्यस्थितीची माहिती विचारली होती. एमएमआरडीए प्रशासनाने अनिल गलगली यांस 31 मार्च 2017 पर्यंत मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने थकविलेले भाड्याची आणि आतापर्यंत झालेला करार,पत्रव्यवहार आणि मुदतवाढीची कागदपत्रे दिली.  वर्सोवा-अंधेरी-घाटकोपर कॉरिडोर एमआरटीस प्रकल्पामध्ये येणा-या अडीअडचणी संदर्भात चर्चा करण्यासाठी मुख्य मंत्र्यांनी 10 डिसेंबर 2007 रोजी आयोजित बैठकीत मेट्रो वनच्या प्रकल्प व्यवस्थापकांनी वर्सोवा येथील होमगार्डच्या मालकीची 2.4 हेक्टर जागा तात्पुरत्या स्वरुपात कास्टिंग यार्डसाठी देण्याबाबत एमएमआरडीए आणि होमगार्ड यांस विनंती केली. त्यावेळी रुपये 1.99 कोटी केंद्र शासनाने राज्य शासनास हस्तांतरित करत प्रशिक्षण केंद्र बांधण्यास मंजूरी दिली होती. पण मेट्रोचे काम लक्षात घेता सदर जागा 2 वर्षाच्या तात्पुरत्या कालावधीकरिता मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीच्या प्रकल्प व्यवस्थापनाकडे देत त्याबदल्यात होमगार्डचे प्रशिक्षण केंद्र मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी पूर्णपणे बांधून देण्याचे निश्चित केले गेले.

26 एप्रिल 2010 रोजी तसा करार नामा मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी आणि एमएमआरडीए प्रशासनात झाला. वेळेत काम न झाल्यामुळे मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने 4 वेळा मुदतवाढ घेतली. काम झाल्यानंतर मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने होमगार्डची चक्क फसवणूक करत आपले अंग काढून घेतले. कराराची मुदत 18 एप्रिल 2010 रोजी संपुष्टात आली होती पण अपर मुख्य सचिव(गृह) यांच्या अध्यक्षतेखाली दिनांक 17  ऑक्टोबर 2011 रोजी मंत्रालयात झालेल्या बैठकीत 6 महिने तात्पुरत्या स्वरुपात मुदतवाढ देत 2 महिन्यात प्रशिक्षण केंद्राचे बांधकाम सुरु करावे अन्यथा दिनांक 16 जानेवारी 2009 पासून व्याजाची वसूली करण्याचे ठरविले गेले होते पण कोणत्याही प्रकारचे काम सुरुच झाले नाही.

मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने 29 जून 2015 रोजी 3 कोटी 97 लाख 98 हजार रक्कम अदा केली असली तरी 31 मार्च 2017 पर्यंत भाडे,सर्विस टैक्स आणि व्याज अशी एकूण 31 कोटी 6 लाख 12 रुपये अदा करणे शिल्लक आहे. मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने केलेल्या घोर फसवणूकीमुळे आता होमगार्डला दिलेले अभिवचन पूर्ण करण्याची जबाबदारी एमएमआरडीए प्रशासनाची असल्यामुळे जागेच्या भाड्याच्या रक्कमेतून प्रशिक्षण केंद्र आणि संरक्षक भिंत बांधून देण्याचे एमएमआरडीए मंजूर करत संरक्षक भिंतीचे काम पूर्ण केले आहे.मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने केलेल्या घोर फसवणूकीमुळे आता होमगार्डला दिलेले अभिवचन पूर्ण करण्याची जबाबदारी एमएमआरडीए प्रशासनाची असल्यामुळे जागेच्या भाड्याच्या रक्कमेतून प्रशिक्षण केंद्र आणि संरक्षक भिंत बांधून देण्याचे आश्वासन देत एमएमआरडीएने संरक्षक भिंतीचे काम पूर्ण केले आहे. तसेच 14 कोटी मंजूर करत प्रशिक्षण केंद्र आणि प्रशासकीय इमारत बांधण्याचे मान्य केले होते. पण 30 महिन्यापासून कोणतेही बांधकाम सुरु न झाल्याने चिडलेल्या होमगार्डचे वरिष्ठ अधिकारी संजय पांडेय यांनी 7 मार्च 2017 रोजी पत्र पाठवून स्पष्ट केले की इमारत बांधणे एमएमआरडीए प्रशासनास शक्य होत नसेल तर भाड्याची रक्कम आणि व्याज दयावे जेणेकरुन बांधकामे शासन मान्यतेने करता येतील.

अनिल गलगली यांनी याबाबत राज्याचे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि एमएमआरडीएचे महानगर आयुक्त यांस पाठविलेल्या पत्रात मुंबई मेट्रो वन प्राइवेट लिमिटेड कंपनीने केलेल्या घोर फसवणूकीची गंभीर दखल घेत कंपनीवर फौजदारी गुन्हा दाखल करत थकबाकी रक्कम वसूल करण्याची मागणी केली आहे. अनिल अंबानी सारख्या उद्योगपतीच्या कंपनीने केलेली फसवणूक पहाता त्यांच्या सर्व कंपनीस राज्यातील नवीन प्रकल्पात कायमस्वरुपी बंदी घालण्याची मागणी अनिल गलगली यांनी केली आहे. डीएन नगर येथील मेट्रो कार डेपो मधील इमारत होम गार्डला देत एमएमओपीएल तोडगा काढू शकते.

Sunday 25 June 2017

हेमंत करकरे का बुलेटप्रूफ जॅकेट मजदूर ने कचरे में फेंका - मुंबई पोलीस

एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के बुलेटप्रूफ जॅकेट के मामले में और एक सनसनीखेज जानकारी सामने आई हैं। करकरे ने इस्तेमाल किया बुलेटप्रूफ जॅकेट जेजे अस्पताल के सफाई मजदूर ने कपड़ों सहित निकालकर कचरे में फेंकने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई पुलिस ने दी हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई पुलिस से एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे के बुलेटप्रूफ जॅकेट की जानकारी मांगी थी। मुंबई पुलिस के जनसंपर्क अधिकारी सुरेश सपकाल ने गलगली को बताया कि पुलिस अधिकारी हेमंत करकरे ने मुंबई हमले के दौरान इस्तेमाल किया बुलेटप्रूफ जॅकेट यह हमले के दौरान करकरे घायल होने से उन्हें जेजे अस्पताल में इलाज के दौरान भर्ती किया गया उस वक्त वहां के सफाई मजदूर ने बुलेटप्रूफ जॅकेट और कपडे उनके शरीर से निकालकर कचरे में फेंक दिया। उस बुलेटप्रूफ जॅकेट को सभी ओर से ढूंढा गया लेकिन आखिर तक वह मिल नहीं पाया।  

बुलेटप्रूफ जॅकेट न मिलना और कचरे में फेंक देना, यह लापरवाही होने की बात कहते हुए अनिल गलगली ने कहा कि बुलेटप्रूफ जॅकेट की गुणवत्ता और मजबूती का सवाल आज भी उठाया जा रहा हैं। करकरे ने इस्तेमाल किए बुलेटप्रूफ जॅकेट की जांच होती तो निश्चित तौर पर बुलेटप्रूफ जॅकेट की खरीद फरोख्त और हुआ गोलमाल का पर्दाफाश होता था।  

हेमंत करकरेचे बुलेटप्रूफ जॅकेट कामगाराने कचऱ्यात फेकले- मुंबई पोलीस

एटीएस प्रमुख असलेले हेमंत करकरेंच्या बुलेटप्रूफ जॅकेटप्रकरणी आणखी एक धक्कादायक माहिती पुढे आली आहे. करकरे यांनी वापरलेले बुलेटप्रूफ जॅकेट जेजे रुग्णालयातील सफाई कामगाराने कपड्यासोबत काढत कच-यांत टाकल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई पोलिसांनी दिली आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई पोलिसांकडे एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे यांचे बुलेटप्रूफ जॅकेटची माहिती मागितली होती. मुंबई पोलिसांचे जनसंपर्क अधिकारी सुरेश सपकाळ यांनी गलगली यांस कळविले की माजी पोलीस अधिकारी हेमंत करकरे यांनी मुंबई हल्ल्यादरम्यान वापरलेले बुलेटप्रूफ जॅकेट हे हल्ल्यादरम्यान करकरे जखमी झाल्याने त्यांना जेजे रुग्णालय येथे उपचारादरम्यान दाखल केले असता तेथील सफाई कामगाराने त्यांच्या अंगावरील बुलेटप्रूफ जॅकेट आणि कपडे अंगावरुन काढून ते कच-यांमध्ये टाकले. सदर बुलेटप्रूफ जॅकेटचा सर्वतोपरी शोध घेण्यात आला परंतु ते शेवटपर्यंत मिळून आले नाही. बुलेटप्रूफ जॅकेट न सापडणे आणि कच-यात टाकणे, ही बाब निष्काळजीपणाचा कळस असून असे सांगत अनिल गलगली म्हणाले की बुलेटप्रूफ जॅकेटची गुणवत्ता आणि मजबुतीचा प्रश्न ऐरणीवर आहे. करकरे यांनी वापरलेल्या बुलेटप्रूफ जॅकेटची तपासणी झाली असती तर नक्कीच बुलेटप्रूफ जॅकेट खरेदी आणि झालेला गोलमाल उघडकीस आला असता, असे गलगली यांनी नमूद केले आहे.

Bulletproof jacket wear by Karkare during Mumbai attack dumped in dustbin: RTI 

A substandard bulletproof jacket that failed to protect former ATS chief Hemant Karkare from the bullets of 26/11 attackers and later kicked up a massive uproar over the safety of Mumbai police personnel ended up in a dustbin at JJ Hospital.

This startling revelation has come in the form of a reply to a Right to Information application filed by RTI Activists Anil Galgali. Apparently, the police department learnt about the lapse a year after 10 LeT men brought carnage to the streets of Mumbai, but chose to keep mum.

RTI Activist Anil Galgali file a RTI and ask the details of Bulletproof jacket of Hemant Karkare during 26/11 Mumbai Attack. Mumbai Police's Public Relation Officer Suresh Sakpal informed Galgali that the Bulletproof jacket was thrown into a dustbin by a ward boy at JJ Hospital.

Anil Galgali has termed it abject carelessness of the statement stating that the bulletproof vest has been lost and thrown in the dustbin. There exists a huge question mark on the quality and the standard of the bullet proof jacket. Had the bullet proof jacket worn by karkare been examined, the whole scam in the purchase of the jackets would have stood exposed, said Galgali.

Thursday 22 June 2017

मुंबई विद्यापीठ की लायब्ररी निर्माण को 17 महीने की देरी और 2.47 करोड़ का अतिरिक्त खर्च

मुंबई विद्यापीठ की लायब्ररी नवंबर 2015 को बनकर तैयार करने के लिए  रु 24.86 करोड़ का ठेका देने के बावजूद आज 26 महीने से लायब्ररी का निर्माण पूर्ण तो नहीं हुआ उल्टे रु 2.47 करोड़ का अतिरिक्त बोजा मुंबई विद्यापीठ पर आने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई विद्यापीठ के विद्यापीठ अभियंता शाखा ने दी हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई विद्यापीठ से कालीना परिसर में निर्माणधीन लायब्ररी के काम की जानकारी  दिनांक 24 मार्च 2017 को मांगी थी। 7 अप्रैल 2017 रोजी सहायक ग्रंथपाल ने अनिल गलगली को बताया कि वर्तमान में लायब्ररी कालीना में है और मुंबई विद्यापीठ के पास  7,70,364 इतनी किताबें हैं।लायब्ररी से जुड़ी अन्य काम की जानकारी के लिए गलगली का आवेदन विद्यापीठ अभियंता शाखा के पास हस्तांतरित किया गया। विद्यापीठ अभियंता शाखा के प्रमुख विनोद पाटील ने 2 महीने के बाद गलगली को जानकारी भेजी गई। विद्यापीठ अभियंता शाखा ने बताया कि 18 फरवरीव2015 को लायब्ररी निर्माण का काम शुरु हुआ और 9 महीने में काम को पूर्ण करने की मियांद थी। तलमंजिल और 2 मजले की इमारत में वाचन विभाग, अध्ययन कमरा, ग्रंथ रखने का स्थान, ई-वाचन, उद्यान और बैठक क्षेत्र हैं।कुल क्षेत्रफल 15,036.86 चौरस मीटरहैं और क्षमता 450 व्यक्तियों की हैं। काम शुरु हुआ तब लागत झाले की रकम 24 करोड़ 86 लाख 30 हजार 125 रुपए और 30 पैसे इतनी थी। 3 जुलाई 2017 तक नई मियांद दी गई हैं और अतिरिक्त खर्च 2 करोड़ 46 लाख 60 हजार 274 रुपए 47 पैसे इतना हैं।  अब कुल खर्च 27 करोड़ 32 लाख 90 हजार 400 रुपये 27 पैसे इतका हो चुका हैं। 

11 महीने में काम पूर्ण न होने से जर्जर अवस्था वाली मुंबई विद्यापीठ की लायब्ररी में हजारों छात्र और छात्राएं जान हथेली पर रखकर आते जाते हैं। जिससे जिस उद्देश्य से मुंबई विद्यापीठ ने लायब्ररी निर्माण काम शुरु किया हैं उसका लाभ नहीं हो रहा हैं। खर्च की रकम में हुई वृद्धि की जांच करने की मांग अनिल गलगली ने राज्यपाल के पास भेजे हुए पत्र में की हैं।। मुंबई विद्यापीठ के निर्माण स्थापत्य समिती के सर्वेसर्वा स्वयं वाईस चांसलर होते हुए 17 महीने की हुई देरी की जांच कर 2.47 करोड़ का अतिरिक्त खर्च का आर्थिक बोजा समिती के सभी सदस्यों से वसूल करने की मांग गलगली ने की हैं। 

मुंबई विद्यापीठाच्या लायब्ररी बांधकामास 17 महिन्याचा विलंब आणि 2.47 कोटींचा वाढीव खर्च

मुंबई विद्यापीठाची लायब्ररी नोव्हेंबर 2015 ला बांधून तयार करण्यासाठी रु 24.86 कोटींचे कंत्राट देण्यात आले असून 17 महिन्यानंतरही लायब्ररीचे बांधकाम पूर्ण झाले नाही उलट रु 2.47 कोटींचा वाढीव खर्चाचा बोझा मुंबई विद्यापीठावर आल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई विद्यापीठाच्या विद्यापीठ अभियंता शाखेने दिली आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई विद्यापीठाकडे कालीना परिसरात सुरु असलेल्या लायब्ररीच्या कामाची माहिती दिनांक 24 मार्च 2017 रोजी  मागितली होती. 7 एप्रिल 2017 रोजी सहायक ग्रंथपाल यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की सद्या लायब्ररी कालीना परिसरात असून मुंबई विद्यापीठाकडे 7,70,364 इतकी पुस्तके आहेत. लायब्ररीच्या अन्य कामाच्या माहितीसाठी गलगली यांचा अर्ज विद्यापीठ अभियंता शाखेकडे पाठविण्यात आला. विद्यापीठ अभियंता शाखेचे प्रमुख विनोद पाटील यांनी 2 महिन्यानंतर गलगली यांस माहिती पाठविली. विद्यापीठ अभियंता शाखेने कळविले की 18 फेब्रुवारी 2015 रोजी लायब्ररी बांधण्याचे काम सुरु झाले आणि 9 महिन्यात काम पूर्ण करण्याची मुदत होती. तळमजला आणि अधिकचे दोन मजले अशी इमारत असून यात वाचन विभाग, अभ्यास खोली, ग्रंथ ठेवण्याची मांडणी, ई-वाचन, उद्यान आणि बैठक क्षेत्र अशी मांडणी आहे. एकूण क्षेत्रफळ 15,036.86 चौरस मीटर असून क्षमता 450 व्यक्तीची आहे. काम सुरु झाले तेव्हा अपेक्षित रक्कम 24 कोटी 86 लाख 30 हजार 125 रुपये आणि 30 पैसे इतकी होती. 3 जुलै 2017 पर्यंत मुदतवाढ दिली गेली असून वाढीव खर्च 2 कोटी 46 लाख 60 हजार 274 रुपये 47 पैसे इतका आहे. आता एकूण खर्च 27 कोटी 32 लाख 90 हजार 400 रुपये 27 पैसे इतका झाला आहे.

11 महिन्यात काम पूर्ण न झाल्याने आज ही मोडकळीस आलेल्या मुंबई विद्यापीठाच्या लायब्ररीत हजारों विद्यार्थी आणि विद्यार्थिनी जीव संकटात घालत ये-जा करतात. त्यामुळे ज्या उद्देश्याने मुंबई विद्यापीठाने लायब्ररी बांधकाम सुरु केले त्यास हरताळ फासत वाढीव रक्कमेची खिराफतीची चौकशी करण्याची मागणी अनिल गलगली यांनी राज्यपालांकडे पाठविलेल्या पत्रात केली आहे. मुंबई विद्यापीठाच्या बांधकाम स्थापत्य समितीचे सर्वेसर्वा दस्तुरखुद्द कुलगुरु असताना 17 महिन्याचा विलंबासोबत रु 2.47 कोटींच्या वाढीव खर्चाचा आर्थिक भुर्दंड समितीच्या सर्व सदस्यांकडून वसूल करण्याची मागणी गलगली यांनी केली आहे.

Mumbai University's Library project delayed by 17 months and cost escalation by Rs 2.47 crores

Mumbai University, for its prestigious Library project issued a contract worth Rs 24.86 crores in November 2015. Leave apart the completion of the project in the 9 Months, delayed by 17 months, the project is hit by cost escalation amounting to Rs 2.47 crores, as per the information provided by the University Engineering department to RTI Activist Anil Galgali.

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the Mumbai University about its Library project at its Kalina campus vide an RTI query dated 24th March 2017. In a response dt 7th April 2017, the Asst Librarian, informed Galgali that, at present the Library is situated in the Kalina campus and it has 7,70,364 books. It further transferred the query pertaining to other works to the University's Engineering department. The University Engineering department's Chief Mr Vinod Patil, in a response delayed by 2 months responded  that, the construction of Library started on 18th February 2015 and was slated to be completed in 9 months. The Library building was planned to consist of a ground floor plus 2 floors and provisions for a reading department, Study Room, Books section, E-Reading, Garden and other sitting areas in an area admeasuring 15,036.86 sq metres and could accommodate almost 450 students at a time. At the time of allotment of the work the estimated cost was Rs 24 crore 86 lakhs 30 thousand 125 and paise 30 only. The work period has been extended upto 3rd July 2017 and the cost escalation has been Rs 2 crore 46 lakhs 60 thousand 274 and paise 47 only taking the total cost upto Rs 27 crores 32 lakhs 90 thousand 400 and paise 27 only.

Due to the delay in the project, lakhs of students of the University are forced to make use of the Library which is operating from the old premises which is in a dilapidated condition thereby endangering their lives. Also the intention of the decision of a new library building and the cost incurred as of now remains in vain, which has further got escalated and  which now needs to be investigated, stated Galgali in a letter addressed to the Governor. Galgali in the letter, further demanded that, the recovery of the escalation cost of Rs 2.47 crores and the risks of lives due to delay in the Construction of the new library be recovered from the Construction Standing Committee member, and since the Vice Chancellor himself being the Head of the Construction Standing Committee, the VC and the committee members be made liable and the extra cost incurred and penalties for delay be recovered from them.

Monday 19 June 2017

मिठी नदी विकास को पीठ दिखाते मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव

मुंबई में 26 जुलाई 2005 की तूफानी बारिश ने मुंबईकरों की नींद जिस मिठी नदी से उड़ाई थी उस पर उपाययोजना के तौर पर राज्य सरकार ने मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण का गठन किया था। मुख्यमंत्री जैसा तगडा अध्यक्ष होते हुए भी मिठी नदी नमकीन होने के पीछे मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव की अनास्था सामने आई है जिन्होंने गत 32 महीने से एक भी बैठक न लेने का सनसनीखेज कबूलनामा मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली से किया है। 

पिछले 10 वर्ष से मीठी नदी का धीमी गती से चलनेवाला विकास काम और अन्य कामों को लेकर एमएमआरडीए और मनपा प्रशासन से फॉलो अप करनेवाले अथक सेवा संघ के अध्यक्ष और आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण से 1 नवंबर से आज तक हुई बैठक की जानकारी मांगी थी। प्राधिकरण के उप नियोजक और जन सूचना अधिकारी सौदीप कुंडू ने अनिल गलगली को बताया कि मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण का गठन दिनांक 19 अगस्त 2005 को किया गया और मुख्यमंत्री इस प्राधिकरण के अध्यक्ष हैं। गत 32 महीने में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एक भी बैठक नही ली है। इसके अलावा मुख्य सचिव अध्यक्षावाली मिठी नदी विकास व संरक्षण प्राधिकरण की शक्ती प्रदत्त समिती की बैठक भी नहीं ली गई हैं। मुख्य सचिव ने भी मुख्यमंत्री के पदचिन्हों पर चलते हुए शायद बैठक न लेने की प्रतिज्ञा लेने की बात दिख रही हैं। 

कुल 17.8 किलोमीटर वाली मिठी नदी में मनपा के अंतर्गत विहार तलाव से सीएसटी पूल दौरान 11.8 किलोमीटर और एमएमआरडीए के पास सीएसटी पूल से माहिम कॉजवे ऐसा 6 किलोमीटर तथा वाकोला नाले का हिस्सा आता है।मीठी नदी के प्रकोप के बाद महाराष्ट्र सरकार ने मीठी नदी क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण की स्थापना कर उसकी साफसफाई और विकास काम की जिम्मेदारी एमएमआरडीए और मनपा प्रशासन पर सौंपी है। मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव के अनास्था से 1400 करोड़ खर्च करने के बाद मिठी नदी का काम संतोषजनक नही होने की टिपण्णी अनिल गलगली ने करते हुए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से बैठक लेकर अबतक हुए काम का जायजा लेने की मांग की हैं। मुख्य सचिव मिठी नदी को सरकारी शक्ती प्रदान क्यों नही करती है? ऐसा सवाल अनिल गलगली ने करते हुए राज्य दरबार में मिठी नदी की होनेवाली उपेक्षा को रोकने की अपील मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव से की है।