Tuesday 20 February 2018

मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने पुलिस बंदोबस्त का रु 13.42 करोड़ अदा नहीं किया

मुंबई पुलिस दल के हजारों पुलिस क्रिकेट वर्ल्ड कप के बंदोबस्त के लिए तैनात किए जाते हैं जिसका बंदोबस्त शुल्क देने से मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने बड़ी देरी की हैं। पिछले 17 क्रिकेट मैच को उपलब्ध कराई पुलिस बंदोबस्त का रु 13.42 करोड़ आजतक अदा न करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई पुलिस ने दी हैं। एनसीपी नेता शरद पवार और भाजपा नेता आशिष शेलार के पैनल का राज मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन पर होने से मुंबई पुलिस सावधानी बरत रही हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई पुलिस से गत 10 वर्ष में संपन्न हुए क्रिकेट प्रतियोगिता के लिए उपलब्ध कराई पुलिस बंदोबस्त और शुल्क की जानकारी मांगी थी। जन सूचना अधिकारी और सहायक पुलिस आयुक्त (समन्वय) तानाजी सुरुलकर ने बंदोबस्त शाखाने दी हुई जानकारी उपलब्ध करत माहिती दिली की  3 आयसीसी टी-20 क्रिकेट विश्वकप, महिला विश्वकप, प्रैक्टिस मैच, टेस्ट और वन-डे मैच असे 17 मैच खेले गए। इन मैच के शुल्क का 13 करोड़ 41 लाख 74 हजार 177 इतनी रकम अदा करना जरुरत थी लेकिन गत 62 महीने से यह रकम मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन ने अदा नहीं की हैं।

गत 62 महीने से बकाया करोडों की रकम वसूल करने की जो कार्यवाही शुरु की हैं उसपर आनेवाला ब्याज पर मुंबई पुलिस ने पानी छोड़ दिया हैं।  रु 13.42 करोड़ की बकाया रकम पर ब्याज न लेने की मुंबई पुलिस की भूमिका पर सवाल खड़ा किया जा रहा हैं।। इसके पहले वर्ष 2008 से 2011 के दरम्यान हुए मैच का बंदोबस्त शुल्क रु 34 करोड़ 33 लाख 44 हजार 618 अदा किया गया हैं। उसका शुल्क इंडिया विन स्पोर्ट्स प्राईवेट लिमिटेड ने किश्तों में पैसे अदा किए औऱ मुंबई पुलिस ने किसी भी तरह का ब्याज वसूला नहीं। अनिल गलगली ने इसके पहले 2016 में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और पुलिस आयुक्त को पत्र भेजा था लेकिन मुंबई पुलिस ने किसी भी तरह की कारवाई नहीं की। 

अनिल गलगली के अनुसार पुलिस बंदोबस्त की दम पर बड़े पैमाने पर प्रॉफिट कमानेवाली मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन को बंदोबस्त शुल्क ताबडतोब अदा करने की जरुरत हैं। सशस्त्र दल की लापरवाही से शुल्क वसूल नहीं किए जाने से पुलिस आयुक्त जिम्मेदार अधिकारियों पर नियमानुसार कारवाई करे और ऐसे मैच का शुल्क मैच खत्म होते ही वसूल करे या क्रिकेट की प्रतियोगिता के आयोजक से पहले ही शुल्क वसूल करे। जिससे पुलिस को बंदोबस्त का शुल्क वसूली करने में दिक्कत का सामना करने की नौबत नहीं आए।

मुंबई क्रिकेट एसोसिएशनने पोलीस बंदोबस्ताचे 13.42 कोटी थकविले

मुंबई पोलीस दलातील हजारों पोलीस क्रिकेट वर्ल्ड कपच्या बंदोबस्तासाठी जुंपले जात असून त्या बंदोबस्ताचे शुल्क अदा करण्यात मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन चालढकल करत आहे. मागील 17 क्रिकेट स्पर्धेकरिता पुरविण्यात आलेल्या पोलीस बंदोबस्ताचे रु 13.42 कोटी आजपर्यंत अदा केले नसल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई पोलीसांनी दिली आहे. एनसीपी नेते शरद पवार आणि भाजपा नेते आशिष शेलार यांच्या पैनलची निर्विवाद सत्ता मुंबई क्रिकेट एसोसिएशन यात असल्यामुळेच मुंबई पोलीस सावधगिरी बाळगत आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई पोलीसांकडे गेल्या 10 वर्षात संपन्न झालेल्या क्रिकेट स्पर्धेसाठी दिला गेलेला पोलीस बंदोबस्त आणि शुल्काची माहिती मागितली होती. जन माहिती अधिकारी आणि सहायक पोलीस आयुक्त (समन्वय) तानाजी सुरुलकर यांनी बंदोबस्त शाखेने दिलेली माहिती उपलब्ध करत कळविले की 3 आयसीसी टी-20 क्रिकेट विश्वकप, महिला विश्वकप, सराव सामने, टेस्ट आणि वन-डे सामने असे 17 सामने खेळले गेले. या सामनाच्या शुक्लापायी 13 कोटी 41 लाख 74 हजार 177 इतकी रक्कम अदा करणे आवश्यक होती पण गेल्या 62 महिन्यांपासून ही रक्कम मुंबई क्रिकेट असोसिएशनने अदा केली नाही.

गेल्या 62 महिन्यापासून थकबाकी असलेली कोटयावधीची रक्कम वसूल करण्यासाठी जी कार्यवाही सुरु आहे त्या रक्कमेवर मुंबई पोलीसांनी कोणतेही व्याज आकारले नाही. रु 13.42 कोटीच्या थकबाकी रक्कमेवर व्याज न आकारण्यामुळे मुंबई पोलिसांच्या भूमिकेवर प्रश्नचिन्ह निर्माण झाले आहे. यापूर्वी वर्ष 2008 पासून 2011 या दरम्यान मध्ये झालेल्या सामन्यांचे बंदोबस्त शुल्क रु 34 कोटी 33 लाख 44 हजार 618 अदा करण्यात आली आहे. या सामनाचे शुल्क इंडिया विन स्पोर्ट्स प्राईवेट लिमिटेडने वेळेवर अदा केले नसतानाही मुंबई पुलिस ने कोणत्याही प्रकारचे व्याज वसूल केले नाही.अनिल गलगली यांनी यापूर्वी 2016 मध्ये मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस आणि पोलिस आयुक्त यांस पत्र पाठवूनही मुंबई पोलिसांनी कोणतीही कारवाई केली नाही.

अनिल गलगली यांच्या मते पोलीस बंदोबस्ताच्या बळावर अफाट नफा कमविणा-या मुंबई क्रिकेट एसोसिएशनने बंदोबस्त शुल्क ताबडतोब अदा करणे आवश्यक होते. सशस्त्र दलाच्या निष्काळजीपणामुळे शुल्क वसूल केले नसून पोलीस आयुक्तांनी जबाबदार अधिकारीवर्गावर नियमाप्रमाणे कार्यवाही करत अश्या सामन्यांचे शुल्क सामना संपताच वसूल करावे किंवा क्रिकेट स्पर्धा आयोजकांकडून आधीच शुल्क वसूल करावे. जेणेकरुन पोलीसांस बंदोबस्ताचे शुल्क वसूलीचा मनस्ताप सहन करावा लागणार नाही.

MCA yet to clear Police dues of Rs 13.42  crores for bandobast provided for 17 matches

Mumbai Cricket Association (MCA) requires thousands of police personnel to man the security during the matches played out in MUMBAI, but when it comes to making payments for utilising the services, the attitude becomes lethargic. In an information provided to RTI Activist Anil Galgali by the police department, it has come to light that the department is yet to receive Rs 13.42 crores as charges for providing security for the last 17 matches. The Mumbai Police is on a cautionary mode as the MCA is controlled by NCP supremo Sharad Pawar and BJP leader Ashish Shelar's panel

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the Mumbai Police about details of security provided during matches to MCA and it's charges from last 10 years . The Public Information Officer and Asst Police Commissioner (Coordination) Tanaji Surulkar provided the information compiled by the Bandobast Division that, during the 3 ICC T-20 World cup, Women's World Cup, Test Match, Practice Match & One Day Match, 17 matches were played in Mumbai for which charged amounting to Rs 13 cr 41 Lakhs 74 Thousand and 177/- ,which is still due from the MCA. 

The dues of Rs 13.42 crores pending since past 62 months has not been charged interest as of now. The complacency the Police department towards recovery and the laxity exhibited by bot charging interest on the dues has raised questions on the working of the department. Prior to this,  the Police department was paid Rs 34 crores 33 lakhs 44 thousand 618 for providing bandobast during Year 2008 to 2011 by India Vin Sports Private limited Company But unfortunately Mumbai police not ask any interest nor charged on Indian Vin Sports Private limited Company. Anil Galgali already wrote letter in 2016 addressing Chief Minister vc Devendra Fadnavis & Police Commissioner but they not take it seriously. 

According to Anil Galgali, it was obligatory for the MCA to make immediate payment of the police dues for the security provided for the matches, which is a huge revenue earner for the MCA. Also the Police Commissioner should take action against the responsible officers of the Local Arms divisions for not pursuing the payment recovery of the services provided. They should also ensure that the payment henceforth be collected in advance or at least immediately on completion of the match, so that the department does not have to bear the stress for ensuring recovery of the dues.

Friday 16 February 2018

मेडिकल वीजा की जानकारी देने से भारत और पाकिस्तान के संबंध बिगड़ेंगे

पाकिस्तान और भारत के बीच आपसी संबंध अत्याधिक बिगड़ने से गत साल के मई महीने में विदेश मंत्रालय ने नई पॉलिसी की घोषणा करते हुए भारत में इलाज लेने के लिए पाकिस्तानी नागरिकों को तब मेडिकल वीजा दिया जाएगा जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री के सलाहकार सरताज अज़ीज़ की सिफारिश होगी। लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को दिए हुए जबाब से एक ही सवाल पूछा जा रहा हैं कि भारत या पाकिस्तान इस पॉलिसी का अनुपालन कर रही हैं या नहीं। भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद ने गलगली द्वारा मांगी हुई जानकारी ख़ारिज करते हुए विचित्र तर्क दिया कि मेडिकल वीजा की जानकारी देने पर भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी संबंध बिगड़ेंगे।

15 नवंबर 2017 को मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने विदेश मंत्रालय को 2 सवालों की जानकारी मांगी थी। इसमें 10 मई 2017 से 1 दिसंबर 2017 के दौरान कितने पाकिस्तानी नागरिकों को मेडिकल वीजा दिया गया और इसमें से कितने को पाकिस्तान के विदेश मंत्री के सलाहकार सरताज अज़ीज़ की सिफारिश थी।  दूसरे सवाल  में मौजूदा वीजा पॉलिसी में बदलाव की जानकारी मांगी थी। विदेश मंत्रालय ने हस्तांतरित किए अनिल गलगली के आवेदन पर जबाब देते हुए गृह मंत्रालय के विदेश विभाग ने बताया कि 380 पाकिस्तानी नागरिकों मेडिकल वीजा दिया गया हैं। वहीं दूसरे सवाल पर भारत सरकार ने सरकारी पॉलिसी में किसी भी तरह का बदलाव न करने की जानकारी दी। अज़ीज़ की सिफारिश पर कितने को मेडिकल वीजा दिया गया इसपर मौन साधा गया। गलगली ने प्रथम अपील दायर करते ही उनका आवेदन भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद को हस्तांतरित किया गया। भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद में द्वितीय राजकीय सचिव अविनाश कुमार सिंह ने अनिल गलगली की जानकारी को ख़ारिज करते हुए विचित्र तर्क दिया कि मेडिकल वीजा की जानकारी सार्वजनिक करने से भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध बिगड़ेंगे। 

मैने सिर्फ सिफारिश की जानकारी मांगी थी और उससे भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध कैसे बिगड़ेंगे? क्योंकि पॉलिसी सरकार ने खुद बनाई हैं, ऐसा सवाल करते हुए अनिल गलगली ने इन आंकडों को सरकार को खुद ब खुद सार्वजनिक करने की अपील सरकार से की हैं। भारत सरकार ने जिस पॉलिसी की घोषणा की हैं उसका अनुपालन पाकिस्ता ने नकारने से ही भारत सरकार जानकारी नहीं दे रही हैं।  पाकिस्तान और भारत के संबंध कभी भी सौहार्द के नहीं थे। इसलिए इस जानकारी से संबंध बिगड़ेंगे, यह तर्क हास्यापद होने की बात अनिल गलगली ने कही हैं।

Tuesday 13 February 2018

मेडिकल वीजा की जानकारी देने से भारत और पाकिस्तान के संबंध बिगड़ेंगे

पाकिस्तान और भारत के बीच आपसी संबंध अत्याधिक बिगड़ने से गत साल के मई महीने में विदेश मंत्रालय ने नई पॉलिसी की घोषणा करते हुए भारत में इलाज लेने के लिए पाकिस्तानी नागरिकों को तब मेडिकल वीजा दिया जाएगा जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री के सलाहकार सरताज अज़ीज़ की सिफारिश होगी। लेकिन आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को दिए हुए जबाब से एक ही सवाल पूछा जा रहा हैं कि भारत या पाकिस्तान इस पॉलिसी का अनुपालन कर रही हैं या नहीं। भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद ने गलगली द्वारा मांगी हुई जानकारी ख़ारिज करते हुए विचित्र तर्क दिया कि मेडिकल वीजा की जानकारी देने पर भारत और पाकिस्तान के बीच आपसी संबंध बिगड़ेंगे।

15 नवंबर 2017 को मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने विदेश मंत्रालय को 2 सवालों की जानकारी मांगी थी। इसमें 10 मई 2017 से 1 दिसंबर 2017 के दौरान कितने पाकिस्तानी नागरिकों को मेडिकल वीजा दिया गया और इसमें से कितने को पाकिस्तान के विदेश मंत्री के सलाहकार सरताज अज़ीज़ की सिफारिश थी।  दूसरे सवाल  में मौजूदा वीजा पॉलिसी में बदलाव की जानकारी मांगी थी। विदेश मंत्रालय ने हस्तांतरित किए अनिल गलगली के आवेदन पर जबाब देते हुए गृह मंत्रालय के विदेश विभाग ने बताया कि 380 पाकिस्तानी नागरिकों मेडिकल वीजा दिया गया हैं। वहीं दूसरे सवाल पर भारत सरकार ने सरकारी पॉलिसी में किसी भी तरह का बदलाव न करने की जानकारी दी। अज़ीज़ की सिफारिश पर कितने को मेडिकल वीजा दिया गया इसपर मौन साधा गया। गलगली ने प्रथम अपील दायर करते ही उनका आवेदन भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद को हस्तांतरित किया गया। भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद में द्वितीय राजकीय सचिव अविनाश कुमार सिंह ने अनिल गलगली की जानकारी को ख़ारिज करते हुए विचित्र तर्क दिया कि मेडिकल वीजा की जानकारी सार्वजनिक करने से भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध बिगड़ेंगे। 

मैने सिर्फ सिफारिश की जानकारी मांगी थी और उससे भारत और पाकिस्तान के आपसी संबंध कैसे बिगड़ेंगे? क्योंकि पॉलिसी सरकार ने खुद बनाई हैं, ऐसा सवाल करते हुए अनिल गलगली ने इन आंकडों को सरकार को खुद ब खुद सार्वजनिक करने की अपील सरकार से की हैं। भारत सरकार ने जिस पॉलिसी की घोषणा की हैं उसका अनुपालन पाकिस्ता ने नकारने से ही भारत सरकार जानकारी नहीं दे रही हैं।  पाकिस्तान और भारत के संबंध कभी भी सौहार्द के नहीं थे। इसलिए इस जानकारी से संबंध बिगड़ेंगे, यह तर्क हास्यापद होने की बात अनिल गलगली ने कही हैं।

मेडिकल व्हिसाची माहिती दिल्यास भारत आणि पाकिस्तानमधील संबंध बिघडतील 

पाकिस्तान आणि भारताचे आपसातील संबंध अत्याधिक बिघडल्याने गेल्या वर्षी मे महिन्यात विदेश मंत्रालयाने नवीन धोरणाची घोषणा करत भारतात उपचार घेण्यासाठी पाकिस्तानी नागरिकांना तेव्हाच मेडिकल व्हिसा दिला जाईल जे पाकिस्तानच्या विदेश मंत्र्यांचे सल्लागार सरताज अझीझ यांची शिफारस आणतील. पण आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिलेल्या उत्तराने एकच सवाल विचारला जात आहे की भारत किंवा पाकिस्तान धोरणाचे पालन करत आहेत किंवा नाही. भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद यांनी गलगली यांची मागणी फेटाळत विचित्र तर्क दिला की मेडिकल व्हिसाची माहिती दिल्यास भारत आणि पाकिस्तानमधील संबंध बिघडतील.

15 नोव्हेंबर 2017 रोजी मुंबईतील आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी विदेश मंत्रालयास 2 प्रश्नांची माहिती विचारली होती. यात 10 मे 2017 ते 1 डिसेंबर 2017 या दरम्यान किती पाकिस्तानी नागरिकांना मेडिकल व्हिसा देण्यात आला आणि यापैकी कितींना पाकिस्तानच्या विदेश मंत्र्यांचे सल्लागार सरताज अझीझ यांची शिफारस होती. दुसऱ्या प्रश्नात पाकिस्तानी नागरिकांना व्हिसा मंजूर करताना धोरण बदलण्याची माहिती मागितली होती. विदेश मंत्रालयाने हस्तांतरित केलेल्या अनिल गलगली यांच्या अर्जावर उत्तर देताना गृह मंत्रालयाच्या विदेश खात्याने कळविले की 380 पाकिस्तानी नागरिकांना मेडिकल व्हिसा देण्यात आला आहे. तर दुसऱ्या प्रश्नांवर भारत सरकारने धोरणात कोणताही बदल न केल्याची माहिती दिली. अझीझ यांच्या शिफारसीवर कितींना मेडिकल व्हिसा दिला गेला यावर मौन बाळगले गेल्यामुळे अनिल गलगली यांनी प्रथम अपील दाखल करताच त्यांचा अर्ज भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद येथे हस्तांतरित केला गेला.

भारतीय उच्चायोग, इस्लामाबाद येथील द्वितीय राजकीय सचिव अविनाश कुमार सिंह यांनी अनिल गलगली यांची मागणी फेटाळत विचित्र तर्क दिला की मेडिकल व्हिसाची माहिती दिल्यास भारत आणि पाकिस्तानमधील संबंध बिघडतील.मी फक्त शिफारस बाबत माहिती विचारली होती आणि यामुळे भारत आणि पाकिस्तान मधील संबंध कसे बिघडतील? कारण धोरण सरकारने स्वतःच बनविले होते. असा सवाल विचारत अनिल गलगली यांनी आकडेवारी सरकारने स्वतःच सार्वजनिक करण्याचे आवाहन केले आहे.

भारत सरकार ने ज्या धोरणाची घोषणा केली त्याचे अनुपालन पाकिस्तानने नाकारले असून यामुळेच भारत सरकार माहिती देत नाही. पाकिस्तान आणि भारताचे संबंध कधीच एकोप्याचे नसून सदर माहितीमुळे बिघडतील ही बाब पटण्यासारखी नसल्याचे मत अनिल गलगली यांनी व्यक्त केले.

If information about granting Medical Visas to Pakistani citizens is disclosed, then it could affect relationship between India and Pakistan

In May last year amid worsening relations with Pakistan, the External Affairs Ministry announced a new policy whereby it would grant Pakistani citizens seeking medical visas to get treated in India only if they have  a recommending letter by Pakistan Foreign Minister Adviser Sartaj Aziz. A RTI query filed by Anil Galgali has however put question marks on whether Pakistan or even India is following this policy. High Indian High Commission in Islamabad infomed that ‘the disclosure of this affection would prejudicially affect relations with a foreign state ie pakistan. This information was being denied to Anil Galgali under Section 8 of the RTI act.

The External Affairs Ministry had in May last year announced the new rule after relations soured between the two countries after Pakistan announced that it had sentenced to death Kulbushan Jadhav, who it alleges it has caught for spying in Pakistan. On 15 November 2017 , a Mumbai based RTI activist Anil Galgali had asked two questions from the External Affairs Ministry seeking details of how many Pakistani nationals have been given medical visa since May 10, 2017 to December 1,2017 and how many of these have got recommendations letters from Sartaj Aziz. The second question pertained to whether the policy towards granting medical visas to Pakistani nationals has changed.

In a RTI dated 8th December the Ministry of Home Affairs  (Foreigners Division) to whom the query was forwarded by the External Affairs Ministry responded to him saying that while 380 Pakistani nationals were given medical visas for the above mentioned period.  Responding to his second query it said that the Indian government had not changed its policy on granting of medical visas to Pakistani nationals.

It however stayed silent on how many of the 380 Pak nationals that got medial visas had recommendation letters from Aziz. “ I wrote a letter to the External Affairs ministry saying that the queries that I had specifically asked were not addressed. In response I have got a letter from the High Indian High Commission in Islamabad in February that ‘the disclosure of this affection would prejudicially affect relations with a foreign state’ this information was being denied to me under Section 8 of the RTI act.”said Galgali.

Galgali added, “ I have just asked how many of these Pakistani nationals had recommendation letters. How will it affect relations with Pakistan, when you yourself have announced such a new rule..  Why is the government unable to give the figures? Will disclosures of this information already worsen the situation between our two countries from what it is currently.”questioned Galgali.

Anil Galgali claimed that he filed the RTI because he has got the information that while the Indian government announced the policy, the Pakistani government refused to give recommendation letters. “ This is why they are not giving the information because it would be a embarrassment to the government.”said Galgali.

Monday 12 February 2018

रंगशारदा प्रतिष्ठान द्वारा किए गए म्हाडा जमीन के गैरइस्तेमाल पर जांच का प्रस्ताव सरकार ने अटकाया

नाटयमंदिर निर्माण के लिए म्हाडा ने ने दिए भूखंड पर हॉटेल और अन्य व्यवसायिक इस्तेमाल करनेवाली रंगशारदा प्रतिष्ठान की अनियमितता की जांच का प्रस्ताव सरकार ने अटकाने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को म्हाडा ने दिए हुए दस्तावेजों से स्पष्ट हो रही हैं। ताज्जुब की बात यह हैं कि 13 साल पहले मुंबई उच्च न्यायालय ने म्हाडा ने भाडेपट्टा करारनामा रद्द करने के आदेश को रद्द करते हुए उपाध्यक्ष या मुख्य कार्यकारी अधिकारी के समकक्ष अधिकारी से जांच करने के आदेश को नजरअंदाज किया गया। मराठी नाटक के लिए भूखंड का इस्तेमाल न करते हुए पंचतारांकित हॉटेल एवं उपहारगृह बनाने का मुख्य दोष लगाया हैं।  

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने म्हाडा प्रशासन से रंगशारदा प्रतिष्ठान की अनियमितता को लेकर जांच के प्रस्ताव की जानकारी मांगी थी। म्हाडा के मुंबई मंडल ने अनिल गलगली को दिए दस्तावेजों से सनसनीखेज जानकारी सामने आयी हैं। म्हाडा प्राधिकरण ने  6 जुलाई 1981 को रंगशारदा प्रतिष्ठान के साथ 90 साल के लिए जमीन का लीज अग्रीमेंट किया था। हर  30 साल के बाद किराया के शुल्क में बदलाव करने करण्याचे निश्चित किया गया।  म्हाडा की किसी भी तरह की अनुमति लिए बिना रंगशारदा प्रतिष्ठान ने बरती अनियमितता को लेकर म्हाडा ने कारणे बताओ नोटीस जारी की लेकिन रंगशारदा प्रतिष्ठान के संबंधित लोगों ने जबाब देने के बजाय पलायन शुरु किया और प्रभुदास लोटिया ने म्हाडा द्वारा मांगे दस्तावेजों की पूर्तता नहीं की। 29 अक्टूबर 2014 को यह भूखंड सामाजिक इस्तेमाल न करते हुए व्यापारीकरण के लिए इस्तेमाल करने का दोष मुंबई मंडल के  मुख्य अधिकारी ने सुनवाई में लगाया था।  

भूखंड के 50 प्रतिशत क्षेत्र पर ड्रामा थिएटर से जुडी निर्माण काम न करते हुए असल में सिर्फ  26 प्रतिशत क्षेत्र पर ड्रामा थिएटर का निर्माण करने और शेष 74 प्रतिशत क्षेत्रफल का इस्तेमाल व्यापारीकरण के लिए करने से  रु 54,01,704/ इतनी रकम अदा करने का आदेश दिया। इसके अलावा दस्तावेज पेश न करने पर कुल 2120.60 क्षेत्र के लिए रु 1,62,32,790/- इतनी रकम ना आपत्ति प्रमाणपत्र शुल्क ऐसे कुल मिलाकर रु 2,16,34,494/- इतनी रकम अदा करने का आदेश दिया था। जिसके खिलाफ  24 जनवरी 2005 को म्हाडा उपाध्यक्ष के समक्ष हुई सुनवाई में लीज अग्रीमेंट रद्द करते हुए भूखंड म्हाडा के अधिकार में लेने का आदेश जारी किया। इस आदेश के खिलाफ रंगशारदा प्रतिष्ठान ने मुंबई उच्च न्यायालय में दायर याचिका की सुनवाई में दिनांक 4 मई 2005 को न्यायमुर्ती डॉ चंद्रचूड ने म्हाडा का आदेश रद्द किया और उपाध्यक्ष या मुख्य कार्यकारी अधिकारी के समकक्ष अधिकारी से जांच का आदेश दिया था लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने गत 13 सालों से किसी भी तरह की अधिकृत भूमिका जाहीर नहीं की।द

मुंबई मंडल के मुख्य अधिकारी ने अनिल गलगली को बताया कि जांच अधिकारी नियुक्ति के मद्देनजर 30 मार्च 2016 और 30 दिसंबर 2017 को सरकार को जानकारी दी हैं। अनिल गलगली ने गत 13 साल से उच्च न्यायालय के आदेशानुसार कारवाई न करने वाले अधिकारियों पर कारवाई करने की मांग  मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भेजे हुए पत्र में की हैं। साथ ही में जल्द से जल्द भूखंड सरकार के अधिकार में लेते हुए  वर्तमान में हॉटेल का लाइसेंस रद्द कर व्यवसायीकरण उसे बंद करने की मांग की हैं। सरकार भूखंड को अपने अधिकार में लेते हुए मराठी भाषा और ड्रामा के लिए भव्य ड्रामा थिएटर निर्माण कर नाटक प्रेमियों के लिए सुअवसर प्राप्त होगा, ऐसा मत अनिल गलगली ने व्यक्त किया हैं।

रंगशारदा प्रतिष्ठानाच्या अनियमितताबाबत चौकशीचा प्रस्ताव शासनाने लटकविला

नाटयमंदिर बांधण्यासाठी म्हाडाने दिलेल्या भूखंडावर हॉटेल आणि अन्य व्यवसायिक वापर करणाऱ्या रंगशारदा प्रतिष्ठानाच्या अनियमितताबाबत चौकशीचा प्रस्ताव शासनाने लटकविला असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस म्हाडाने दिलेल्या कागदपत्रावरुन स्पष्ट होत आहे. विशेष म्हणजे 13 वर्षांपूर्वी मुंबई उच्च न्यायालयाने म्हाडाने भाडेपट्टा करारनामा रद्द करणेबाबत आदेश रद्द करत उपाध्यक्ष किंवा मुख्य कार्यकारी अधिकारी यांच्या समकक्ष अधिका-यांमार्फत चौकशीचे दिलेल्या आदेशाकडे दुर्लक्ष केले गेले आहे. मराठी नाटकासाठी जागेचा वापर न करता पंचतारांकित हॉटेल व उपहारगृह बांधण्यासाठी केल्याचा मुख्य ठपका आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी म्हाडा प्रशासनाकडे रंगशारदा प्रतिष्ठानाच्या अनियमितताबाबत चौकशीचा प्रस्ताव बाबत माहिती मागितली होती. म्हाडाच्या मुंबई मंडळाने अनिल गलगली यांस दिलेल्या कागदपत्रात धक्कादायक माहिती समोर आली.म्हाडा प्राधिकरणाने  6 जुलै 1981 रोजी रंगशारदा प्रतिष्ठानासोबत 90 वर्ष कालावधीकरिता भूभाडे करारनामा केला. प्रत्येक 30 वर्षांनंतर भूभाडे शुल्कात बदल करण्याचे निश्चित करण्यात आले. म्हाडाची कोणतीही परवानगी न घेता रंगशारदा प्रतिष्ठानाने केलेली अनियमितता बाबत म्हाडाने कारणे दाखवा नोटीस बजावली पण रंगशारदा प्रतिष्ठान संबंधित व्यक्तींनी पळवाट सुरु केली आणि प्रभुदास लोटिया यांनी म्हाडातर्फे मागितलेल्या कागदपत्रांची पूर्तता केली नाही. 29 ऑक्टोबर 2014 रोजी सदर भूखंड सामाजिक वापरात न आणता व्यापारीकरणासाठी केल्याचा ठपका मुंबई मंडळाचे मुख्य अधिकारी यांनी सुनावणीत ठेवला. 

भूखंडाच्या 50 टक्के क्षेत्रावर ड्रामा थिएटरशी निगडित बांधकाम न करता प्रत्यक्षात फक्त 26 टक्के क्षेत्रावर ड्रामा थिएटर बांधल्याने व उर्वरित 74 टक्के क्षेत्रफळाचा वापर व्यापारीकरणासाठी करत असल्याने रु 54,01,704/ इतक्या रकमेचा भरणा करण्याचे आदेश दिले. तसेच कागदपत्रे सादर न केल्यामुळे प्रचलित धोरणाप्रमाणे एकूण 2120.60 क्षेत्राकरिता रु 1,62,32,790/- इतकी रक्कम ना हरकत प्रमाणपत्र शुल्क अशी एकंदर रु 2,16,34,494/- इतक्या रक्कमेचा भरणा करण्याचे आदेश दिले ज्या विरोधात 24 जानेवारी 2005 रोजी म्हाडा उपाध्यक्ष यांच्या समोर झालेल्या सुनावणीत करारनामा रद्द करत भूखंड ताब्यात घेण्याचे आदेश जारी केले. या आदेशाविरोधात रंगशारदा प्रतिष्ठानाने मुंबई उच्च न्यायालयात दाखल केलेल्या याचिकेत दिनांक 4 मे 2005 रोजी न्यायमुर्ती डॉ चंद्रचूड यांनी म्हाडाचे आदेश रद्द केले आणि उपाध्यक्ष किंवा मुख्य कार्यकारी अधिकारी यांच्या समकक्ष अधिका-यांमार्फत चौकशीचे आदेश दिले होते ज्यावर महाराष्ट्र शासनाने गेल्या 13 वर्षांपासून कोणतीही अधिकृत भूमिका जाहीर केली नाही.

मुंबई मंडळाचे मुख्य अधिकारी यांनी अनिल गलगली यांस कळविले आहे की चौकशी अधिकारी नेमण्याच्या अनुषंगाने 30 मार्च 2016 आणि 30 डिसेंबर 2017 रोजी शासनास अवगत केले आहे. अनिल गलगली यांनी गेल्या 13 वर्षांपासून उच्च न्यायालयाच्या आदेशानुसार कारवाई न करणाऱ्या अधिकारीवर्गावर कारवाई करण्याची मागणी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस केली आहे तसेच लवकरात लवकर सदर भूखंड शासनाच्या ताब्यात घेत सद्यस्थितीत हॉटेल परवाना रद्द करत व्यापारीकरणावर बंदी घालण्याची मागणी केली आहे. शासनाने भूखंड ताब्यात घेत मराठी भाषा आणि नाटकांसाठी भव्य नाट्यगृह बांधल्यास नाटक प्रेमीसाठी एक चांगली संधी उपलब्ध होईल, असे मत अनिल गलगली यांनी व्यक्त केले आहे.