Saturday 10 February 2018

RTI पर सरकार भिखारी

सरकार में बैठे सत्ताधीश हो या जनता के पैसे से वेतन पाने वाले सरकारी बाबू, हर कोई अपने काम को ठीक ढंग से नहीं कर रहा है. आरटीओ में व्याप्त भ्रष्टाचार को जनहित याचिका के जरिए सार्वजनिक करनेवाले पुणे के श्रीकांत कर्वे को एक लाख रुपए उनके उल्लेखनीय कार्य के लिए देने का आदेश मुंबई उच्च न्यायालय ने दिया था. जो काम सरकार को करना चाहिए था और सरकारी बाबुओं को, उसे #श्रीकांतकर्वे ने अंजाम दिया. #महाराष्ट्र में एेसे न जाने कितने कर्वे हैं, जो अपने पैसे से समय निकालकर सरकार की तिजोरी में पड़ने वाली डकैती को उजागर कर रहे हैं. लेकिन इसकी चिंता न सरकार को है और न ही सरकारी बाबुओं को. हाल ही में #केंद्रसरकार ने #आरटीआई के बजट पर कैंची चला दी है. महाराष्ट्र में भी आरटीआई के प्रचार व प्रसार पर सरकार जानबूझकर खर्च करने में कंजूसी बरतती है. इससे साफ होता है कि आरटीआई पर #सरकार की भूमिका किसी #भिखारी से कम नहीं है.

पुणे के श्रीकांत कर्वे ने 4 वर्ष पूर्व एक #जनहितयाचिका दायर कर #आरटीओ में व्याप्त #भ्रष्टाचार को उजागर किया था. कई सारी गाड़ियों को आरटीओ में से अवैध तरीके से फिटनेस सर्टिफिकेट जारी करने का गंभीर आरोप उन्होंने लगाया था. हमेशा अपनी मेहनत की कमाई का हिस्सा खर्च कर #पुणे से #मुंबई आने वाले कर्वे को सार्वजनिक हित उल्लेखनीय काम करने पर हुए खर्च की क्षतिपूर्ति के तौर पर 1 लाख रुपए देने का आदेश मुंबई उच्च न्यायालय ने दिया था. इस आदेश का पालन करने के बजाय इसे वापस लेने की मांग सरकार द्वारा परिवहन आयुक्त ने की. उस पर सुनवाई करते हुए #न्यायमूर्तिअभयओक एवं न्यायमूर्ति ए. के. मेनन की खंडपीठ ने आश्चर्य जताया. सरकार का तर्क था कि 1 लाख रुपए से उनकी तिजोरी पर बोझा पड़ेगा. खंडपीठ का तर्क था कि सरकारी यंत्रणा में व्याप्त भ्रष्टाचार और घोटाले को उजागर किया और अपरोक्ष तौर पर सरकारी तिजोरी का होने वाला बड़ा घाटा रोकने का काम किया. इसके बावजूद इस व्यक्ति को एक लाख रुपए देना सरकार को अतिरिक्त बोझ लगता है. यह सरकार की भूमिका सनसनीखेज ही नहीं आश्चर्यजनक भी है. यह गंभीर निरीक्षण करते हुए खंडपीठ ने सरकार का आवेदन खारिज कर दिया.

पुणे के श्रीकांत कर्वे के चलते फिर एक बार सरकार और सरकारी बाबुओं की अकर्मण्यता सामने आई है.  महाराष्ट्र में जिस भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, उसी पार्टी के #प्रधानमंत्री #नरेंद्रमोदी और उनकी सरकार काला धन रखने वाले लोगों की जानकारी देने पर ईनाम देने की बात कहते हैं. लेकिन उसी पार्टी की #महाराष्ट्रसरकार करोड़ों रुपए बचाने वाले श्रीकांत कर्वे को 1 लाख रुपए देने से कतराती है. श्रीकांत कर्वे जैसे न जाने अनगिनत लोग महाराष्ट्र में अपने पैसे खर्च कर भ्रष्टाचारियों का नकाब उतारने में लगे हुए हैं. अधिकांश समय सरकार को उन लोगों के चलते बड़ा लाभ भी होता है और सरकार में बैठे डकैतों की पोल भी खुलती है. मुंबई उच्च न्यायालय को आदेश देने की जरूरत क्या थी?

#मुख्यमंत्री #देवेंद्रफडणवीस को स्वयंस्फूर्त होकर कर्वे जैसे लोगों का नागरिक सम्मान करना चाहिए. इन जैसे लोगों को पैसे की लालच नहीं है, ना कोई बड़ा पद पाने की इच्छा. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस धन्यवाद भी कहते हैं, तो इनकी मेहनत सफल हो जाती. महाराष्ट्र में हमेशा सामाजिक कार्यकर्ता और आरटीआई एक्टिविस्ट को #ब्लैकमेलर कहनेवाले जनप्रतिनिधियों की जुबान क्यों सिली हुई है? आरोप लगाने के लिए चिल्ला-चिल्लानेवाले ये नेतागण कर्वे को शाबाशी देने के लिए आगे क्यों नहीं आ रहे हैं? हर बार चाहे न्याय पाना हो या शाबाशी, #न्यायालय को ही पहल क्यों करनी पड़ती है. इसका जवाब शायद नेताओं के पास नहीं होगा. क्योंकि कोई अच्छा करता हो और उससे समाज लाभान्वित होता हो, तो श्रेय लेने के लिए भी उदार मन और बड़े दिल की आवश्यकता होती है. अब हमें एेसे लोगों को ढूंढ़ने की जरूरत है. आरटीआई पर सरकार का यह भिखारीपन का रुख उनकी #पारदर्शिता और #भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने के दावे को खारिज करता है.

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