Monday 29 October 2018

अबब! मनपा के लेखापरीक्षक और लेखापाल विभाग में सिर्फ एकही चार्टेड अकाउंटेंट

रु 27,258 करोड़ इतना बजट वाली मुंबई महानगरपालिका का खर्च होनेवाला पैसा और उसपर नियंत्रण रखने के लिए लेखापरीक्षक और लेखापाल ऐसे महत्वपूर्ण विभाग तो हैं लेकिन उस विभाग में सिर्फ एकही चार्टेड अकाउंटेंट होने की चौकानेवाली जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई महानगरपालिका ने दी हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई महानगरपालिका से जानकारी मांगी थी कि मनपा के लेखापरीक्षण विभाग में कार्यरत अधिकारी और कर्मचारियों में से कितने अधिकारी और कर्मचारी यह चार्टेड अकाउंटेंट हैं।सामान्य प्रशासन के उप प्रमुख लेखापाल ने अनिल गलगली को बताया कि उप प्रमुख लेखापाल ( वित्त) इनके विभाग में चार्टेड अकाउंटेंट अर्हता धारण करनेवाले राजपूत महेंद्रकुमार भगवानसिंह, वरिष्ठ लेखा परीक्षा एवं लेखा सहायक यह एकमात्र कर्मचारी हैं। इस विभाग में प्रमुख लेखापाल, उप प्रमुख लेखापाल ऐसे विभिन्न 18 पदनाम वालेे 1473 अधिकारी और कर्मचारी कार्यरत हैं। इसमें चार्टेड अकाउंटेंट अर्हता वाले एकमात्र अधिकारी हैं। 

महानगरपालिका मुख्य लेखापरीक्षक के विभाग में  559 पद हैं लेकिन इसमें एक भी पद धारण करनेवाले चार्टेड अकाउंटेंट नहीं हैं। बृहन्मुंबई महानगरपालिका में लेखापरिक्षण का काम बृहन्मुंबई महानगरपालिका के मुख्य लेखा परीक्षक विभाग से किया जाता हैं और प्रमुख लेखापाल ( वित्त ) यह भी काम देखते हैं। लेकिन इतने बड़े अमीर महानगरपालिका में चार्टेड अकाउंटेंट न होना बड़ी चिंताजनक होने की बात अनिल गलगली ने कही हैं। चार्टेड अकाउंटेंट की अर्हता रखनेवाले अधिकारी होंगे तो भ्रष्टाचार और अनियमितता की पोल खोल उसी वक्त हो सकती हैं और भविष्य में महानगरपालिका को लाभ हो सकता हैं, यह कहते हुुुुए अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र लिखकर उनका ध्यान आकर्षित किया हैं।

मुंबई महानगरपालिका में चार्टेड अकाउंटेंट न होना यह बात चिंताजनक होते हुए राज्य सरकार भी इस ओर नजरअंदाजी कर रही हैं।लेकिन राज्य सरकार द्वारा मुंबई महानगरपालिका के कामकाज पर ध्यान और नियंत्रण रखने के लिए भेजा गया  मुख्य लेखापरीक्षक यह भी चार्टेड अकाउंटेंट नहीं हैं। मुख्य लेखापरीक्षक इस पद की नियुक्ति राज्य सरकार द्वारा की जाती हैं।

अबब! पालिकेच्या लेखापरीक्षक आणि लेखापाल खात्यात अवघा एकच चार्टर्ड अकाउंटंट 

रु 27,258 कोटी इतका अर्थसंकल्प असलेल्या मुंबई महानगरपालिकेकडे खर्च होणारा पैसा आणि त्यावर नियंत्रण ठेवण्यासाठी लेखापरीक्षक आणि लेखापाल अशी महत्त्वाची खाती तर आहेत पण या खात्यात अवघा एकच अधिकारी हा चार्टर्ड अकाउंटंट असल्याची धक्कादायक माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई महानगरपालिकेने दिली आहे.


आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबई महानगरपालिकेकडे माहिती मागितली होती की पालिकेच्या लेखापरीक्षण खात्यात कार्यरत अधिकारी आणि कर्मचारी वृंदापैकी किती अधिकारी आणि कर्मचारी हे चार्टर्ड अकाउंटंट आहेत. सामान्य प्रशासनच्या उप प्रमुख लेखापाल यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की प्रमुख लेखापाल ( वित्त) यांच्या खात्यात चार्टर्ड अकाउंटंट अर्हता धारण करणारे राजपूत महेंद्रकुमार भगवानसिंह, वरिष्ठ लेखा परीक्षा व लेखा सहाय्यक हे एकमेव कर्मचारी आहेत. या खात्यात प्रमुख लेखापाल, उप प्रमुख लेखापाल अशी विविध 18 पदनाम असलेल्या ठिकाणी 1473 अधिकारी आणि कर्मचारी वृंद कार्यरत आहेत. यात अवघे एकमेव चार्टर्ड अकाउंटंट अर्हता असलेले अधिकारी आहेत.


महानगरपालिका मुख्य लेखापरीक्षकांचे खात्यात 559 पदे असून एकही पद धारण करणारा चार्टर्ड अकाउंटंट नाही. बृहन्मुंबई महानगरपालिकेत लेखापरिक्षणाचे काम बृहन्मुंबई महानगरपालिकेच्या मुख्य लेखा परीक्षक खात्यांकडून केले जाते आणि प्रमुख लेखापाल ( वित्त ) हे ही काम पाहतात पण इतक्या श्रीमंत असलेल्या महानगरपालिकेत चार्टर्ड अकाउंटंट नसणे ही बाब गंभीर असल्याची बाब अनिल गलगली यांनी नमूद केली आहे.  चार्टर्ड अकाउंटंट असलेले अधिकारी असले तर भ्रष्टाचार आणि अनियमितता ही त्याचक्षणी उघडकीस येऊ शकते आणि भविष्यात महानगरपालिकेला फायदा होऊ शकतो, असे सांगत अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस पत्र लिहीत याबाबीकडे लक्ष वेधले आहे.


मुंबई महानगरपालिकेत चार्टर्ड अकाउंटंट नसणे ही बाब चिंताजनक असताना राज्य सरकारचे याकडे दुर्लक्ष आहे कारण राज्य सरकारतर्फे मुंबई महानगरपालिकेच्या कामकाजावर लक्ष आणि नियंत्रण ठेवण्यासाठी पाठविण्यात आलेले मुख्य लेखापरीक्षक हे सुद्धा चार्टर्ड अकाउंटंट नाहीत. मुख्य लेखापरीक्षक या पदाची नियुक्ती राज्य सरकारकडून केली जाते.

MCGM's Audit and Accounts department has only one qualified Chartered Accountant

The MCGM which has an annual budget for Rs 27,258 crores has an audit and accounts department, but within them they have only one Chartered Accountant on its roll has been revealed through a shocking information provided by the MCGM to RTI Activist Anil Galgali.

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the MCGM's Audit department about the how many staff it has in its department and also amongst them how many are Chartered Accountants. The Dy Chief Auditor of the GAD dept informed Anil Galgali that, under the Cheif Accountant (Finance) only one person named Rajput Mahendra Kumar Bhagwan Singh, a senior Auditor & Accounts Assistant is a qualified Chartered Accountant. The department consists of an Cheif Accountant, Dy Chief Accountant, and 18 senior officials with various designations along with a total of 1473 officers and staff. Amongst them only one officer is an qualified Chartered Accountant. 

The MCGM'S Audit department consists of 559 staff, but none amongst them is a Chartered Accountant. The MCGM'S Audit work is overseen by the Cheif Auditor dept and the Cheif Accountant (Finance) also looks into, but amongst them there is only one Chartered Accountant is a very serious ignorance stated Anil Galgali. If more Chartered Accountant are appointed, the irregularities and corruption can be curbed and the MCGM'S can benefit in future stated Galgali in a letter addressed to CM Devendra Fadnavis in an attempt to draw the attention of the government on this lapse.

That the MCGM does not have in-house adequate Chartered Accountant is a very serious lapse, further the Cheif Auditor who is appointed by the state government to control and scrutinize the working of the MCGM too is not an Chartered Accountant. The Cheif Auditor is appointed by the State Government to oversee the working of the MCGM.

Friday 12 October 2018

आरटीआई कानून की धार को कमजोर करने की कोशिश

आम लोगों को न्याय दिलाने और अफसरशाही के कुचक्र से बाहर निकालने के लिए सूचना का अधिकार यानी आरटीआई कानून को आज से १३ वर्ष पूर्व पूरे देश में लागू किया गया। इस आरटीआई कानून को दूसरी आजादी बताकर सरकार ने इसे पेश तो किया लेकिन जब यह कानून उनकी सरकार के लिए सिरदर्द साबित होते ही इस कानून की धार को कमजोर करने की बार बार कोशिश की गई। पूरे देश में अब तक ६७ आरटीआई कार्यकर्ताओं की मौत और ३७० से अधिक हमलों से आरटीआई कानून ख़ौफ़नाक बन चूका हैं। 

सूचना का अधिकार को पाने के लिए देशवासियों को जो मशक्कत करनी पड़ी हैं उसपर नजर डाली जाए तो हम स्वीडन और अन्य देशों की तुलना में काफी पिछड़े हुए हैं। सूचना का अधिकार अर्थात राईट टू इन्फाॅरमेशन। सूचना का अधिकार का तात्पर्य है, सूचना पाने का अधिकार, जो सूचना अधिकार कानून लागू करने वाला राष्ट्र अपने नागरिकों को प्रदान करता है। सूचना अधिकार के द्वारा राष्ट्र अपने नागरिकों को अपनी कार्य और शासन प्रणाली को सार्वजनिक करता है। अंग्रज़ों ने भारत पर लगभग २५० वर्षो तक शासन किया और इस दौरान ब्रिटिश सरकार ने भारत में शासकीय गोपनीयता अधिनियम  १९२३ बनाया था जिसके अन्तर्गत सरकार को यह अधिकार हो गया कि वह किसी भी सूचना को गोपनीय कर सकेगी। लेकिन सूचना का अधिकार ने इस गोपनीयता को कुछ मामलों का अपवाद छोड़ा जाए तो खारिज करने का काम किया हैं। वर्ष १९४७ में भारत को स्वतंत्रता मिलने बाद २६ जनवरी १९५० को संविधान लागू हुआ, लेकिन संविधान निर्माताओ ने संविधान में इसका कोई भी वर्णन नहीं किया और न ही अंग्रेज़ो का बनाया हुआ शासकीय गोपनीयता अधिनियम १९२३ का संशोधन किया। आने वाली सरकारों ने गोपनीयता अधिनियम १९२४ की धारा ५ व ६ के प्रावधानों का लाभ उठकार जनता से सूचनाओं को छुपाती रही। सूचना के अधिकार के प्रति कुछ सजगता वर्ष १९७५ के शुरूआत में “उत्तर प्रदेश सरकार बनाम राज नारायण” से हुई। इस मामले की सुनवाई उच्चतम न्यायालय में हुई, जिसमें न्यायालय ने अपने आदेश में लोक प्राधिकारियों द्वारा सार्वजनिक कार्यो का व्यौरा जनता को प्रदान करने का व्यवस्था किया। इस निर्णय ने नागरिकों को भारतीय संविधान के अनुच्छेद १९ (ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दायरा बढ़ाकर सूचना के अधिकार को शामिल कर दिया। 

वर्ष १९८२ में द्वितीय प्रेस आयोग ने शासकीय गोपनीयता अधिनियम १९२३ की विवादस्पद धारा ५ को निरस्त करने की सिफारिश की थी, क्योंकि इसमें कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया था कि ’गुप्त’ क्या है और ’शासकीय गुप्त बात’ क्या है ? इसलिए परिभाषा के अभाव में यह सरकार के निर्णय पर निर्भर था कि कौन सी बात को गोपनीय माना जाए और किस बात को सार्वजनिक किया जाए।बाद के वर्षो में साल २००६ में ’वीरप्पा मोइली’ की अध्यक्षता में गठित ’द्वितीय प्रशासनिक आयोग’ ने इस कानून को निरस्त करने का सिफारिश किया। सूचना के अधिकार की मांग राजस्थान से प्रारंभ हुई। राज्य में सूचना के अधिकार के लिए १९९० के दशक में जनआंदोलन की शुरुआत हुई,जिसमें मजदूर किसान शक्ति संगठन द्वारा अरुणा राय की अगुवाई में भ्रष्टाचार के भांडाफोड़ के लिए जनसुनवाई कार्यक्रम के रूप में हुई। महाराष्ट्र में अण्णा हजारे ने अनशन और आंदोलन के जरिए बुलंद आवाज दी। वर्ष १९८९ में कांग्रेस की सरकार गिरने के बाद वीपी सिंह की सरकार सत्ता में आई,जिसने सूचना का अधिकार कानून बनाने का वायदा किया। ३ दिसंबर  १९८९  को अपने पहले संदेश में तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह ने संविधान में संशोधन करके सूचना का अधिकार कानून बनाने तथा शासकीय गोपनीयता अधिनियम में संशोधन करने की घोषणा की। किन्तु वीपी सिंह की सरकार तमाम कोशिश करने के बावजूद भी इसे लागू नहीं कर सकी और यह सरकार भी ज्यादा दिन तक न टिक सकी।

वर्ष १९९७ में केंद्र सरकार ने एच.डी शौरी की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित करके मई १९९७ में सूचना की स्वतंत्रता का प्रारूप प्रस्तुत किया, किन्तु शौरी कमिटी के इस प्रारुप को संयुक्त मोर्चे की दो सरकारों ने दबाए रखा। वर्ष २००२ में संसद ने ’सूचना की स्वतंत्रता विधेयक (फ्रिडम आॅफ इन्फाॅरमेशन बिल) पारित किया। इसे जनवरी २००३ में राष्ट्रपति की मंजूरी मिली, लेकिन इसकी नियमावली बनाने के नाम पर इसे लागू नहीं किया गया। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने न्युनतम साझा कार्यक्रम में किए गए अपने वायदे के तहत पारदर्शिता युक्त शासन व्यवस्था एवं भ्रष्टाचार मुक्त समाज बनाने के लिए १२ मई २००५ में सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ संसद में पारित किया,जिसे १५ जून २००५ को राष्ट्रपति की अनुमति मिली और अन्ततः १२ अक्टूबर २००५ को यह कानून जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू किया गया। इसी के साथ सूचना की स्वतंत्रता विधेयक २००२ को निरस्त कर दिया गया। इस कानून के राष्ट्रीय स्तर पर लागू करने से पूर्व नौ राज्यों ने पहले से लागू कर रखा था, जिनमें तमिलनाडु और गोवा ने १९९७,कर्नाटक ने २०००,दिल्ली २००१, असम,मध्य प्रदेश,राजस्थान एवं महाराष्ट्र ने २००२ तथा जम्मू-कश्मीर ने २००४ में लागू कर चुके थे।


देश में आरटीआई कानून लागू होने तक नागरिकों को जानने और सवाल पूछने का कोई विकल्प मौजूद नहीं था। देश के कई सारी जानीमानी हस्तियों और सामाजिक सरोकार रखनेवाले कार्यकर्ताओं ने सरकार पर दबाव बनाया ताकि आम जनमानस को उनके रोजमर्रा के जीवन में उपस्थित होनेवाले सवाल का फौरन जवाब मिल सके और जरुरतों को पूरा करने के लिए रास्ता बन सके। आरटीआई कानून को पूरे देश में लागू करने के पहले काफी विचार विमर्श हुआ और अन्य देशों में मौजूद इसतरह के कानून का अध्ययन कर एक मसूदा बनाया गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह की नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने इसे मंजूर कर आरटीआई कानून को लागू करवाया। इस कानून से भ्रष्टाचार मुक्त पारदर्शक प्रशासन की गारंटी तो दी गई साथ ही में सूचना की एक निश्चित सीमा तय भी की गई। इस कानून से किसे और कैसे लाभ हुआ? इस सवाल का जबाब उस हर व्यक्ति से मिलेगा जो अफसरशाही और रिश्वतखोरी से पीड़ित था और अपनी पहचान के लिए तरस रहा था। राशनकार्ड नहीं बन रहा हैं। बिजली का बिल अधिक आ रहा हैं। सड़क की मरम्मत क्यों नहीं हो रही हैं। तहसील से प्रमाणपत्र समय पर नहीं मिल रहा हैं। उत्तर पत्रिका देखनी हैं। मैरिज प्रमाणपत्र कब मिलेगा? न जाने कितनी छोटी समस्याओं का निराकरण एक आरटीआई अर्जी ने चुटकी बजाते ही कर दिया हैं। लेकिन सरकार येन केन प्रकारेण इसमें बदलाव करने के प्रयास में हैं।सूचना आयुक्तों की नियुक्ति समय पर नहीं होने से सूचना आयोग का काम प्रभावित हो रहा हैं और आरटीआई अपील की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हो रही हैं।  रिटायर्ड अफसरों को सूचना आयुक्त बनाकर सरकार इनसे अपरोक्ष अपेक्षा रखती हैं कि कोई ऐसा फैसला नहीं सुनाया जाए जिससे सरकार की छवि प्रभावित हो और जनता के बीच कोई गलत संदेश नहीं जाए। 

वर्तमान की सरकार हो या अन्य सरकार, सत्ता में आते ही इन्हें कानून से घृणा होने लगती हैं और सत्ता से जाते ही ये आरटीआई कानून के पैरोकार बन जाते हैं। यूपीए सरकार से लेकर एनडीए सरकार ने समय समय इस कानून के प्रावधानों में तब्दीली की ताकि उनकी सरकार इस कानून से कम प्रभावित हो सके। एक ऐसा कानून जो १२५ करोड़ देशवासियों को जानने, समझने और सवाल पूछने का अधिकार प्रदान करता हैं, ऐसे कानून में बार-बार संशोधन कर इसकी धार को कमजोर करने की कोशिश हो रही हैं जबकि इस कानून का इस्तेमाल करने के बाद जो नए नए मामले उजागर हो रहे हैं उससे सरकार को लाभ ही मिल रहा हैं। टैक्स चोरी से लेकर अगनित मामलों से सरकार की तिजोरी भर रही हैं और सरकारी यंत्रणा पर नजर रखने के लिए आम लोग तीसरी आंख बनकर काम कर रहे हैं। उल्टे सरकार को सभी राज्यों में आरटीआई कानून का इस्तेमाल कर लोक सहभागिता को बढ़ावा देनेवाले कार्यकताओं को राज्य और देश स्तर पर सम्मानित करना चाहिए। आरटीआई कानून से आज राजनेता हो या सरकारी बाबू, इनपर दबाव बन चूका हैं कि गलत और गैरकानूनी काम करेंगे तो आरटीआई अर्जी आ जाएगी और उनकी पोल खुलेगी। ऐसे धारदार कानून की मदद लेकर सरकार की उन लोगों पर शिकंजा कसना चाहिए जो देशहित को नजरअंदाज करते हैं और जिनकी लापरवाही एवं भ्रष्टाचार से आम आदमी को बेमतलब की परेशानी उठानी पड़ती हैं।

Wednesday 10 October 2018

बेघरों को अपनी लड़ाई खुद लड़नी पड़ेगी

मुंबई में बेघरों को अपनी आवाज खुद बुलंद करनी पड़ेगी और अपनी लड़ाई भी खुद ही लड़नी पड़ेगी। बुधवार को विश्व बेघर दिवस पर जेजे अस्पताल स्थित बेघरों के साथ मिलकर आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली और बृजेश आर्य ने उनकी समस्याओं और सरकार द्वारा मुहैय्या की गई सुविधाओं का जायजा लिया।

आज "विश्व बेघर दिवस" ​​है। मुंबई  में वर्ष 2011 जनगणना के आधार पर 57,416 लोग बेघर है जबकि अलग अलग संस्था/संगठनो  का मानना हैं कि मुंबई में 2 लाख से ज्यादा लोग बेघर हैं। जो आज भी रोटी कपडा मकान की सुविधा से वंचित हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने कहा कि आज बेघरों को भी सरकार द्वारा अलग- अलग योजनाओं के माध्यम से जो सुविधाओं मुहैय्या कराई गई हैं उसका लाभ लेना चाहिए। राशनकार्ड, वोटर आईडी और स्कूलों में मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए। पहचान के अध्यक्ष बृजेश आर्य ने कहा कि हाल ही में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की और उन्होंने सकारात्मक पहल करने का आश्वासन दिया हैं। पहचान की लीना पाटील, सुभाष रोकड़े, नसीम शेख, शीला पवार, शहजादी और मीरा यादव उपस्थित थे।

बेघरांना आपला लढा स्वतःच लढावा लागणार

मुंबईतील बेघरांस आपला आवाज उंचावणार लागणार आहे आणि आपली लढाई स्वतःला लढावी लागणार आहे. बुधवारी जागतिक बेघर दिनिम्मित जेजे रुग्णालयाच्या जवळील पदपथावर राहणा-या बेघर लोकांसमेत आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली आणि बृजेश आर्य यांनी त्यांच्या समस्या आणि आणि शासनाद्वारे उपलब्ध असलेल्या सुविधांबाबत चर्चा केली. 

आज "जागतिक बेघर दिन" ​​होता. मुंबईत वर्ष 2011 च्या जनगणना अनुसार 57,416 नागरिक बेघर आहेत पण प्रत्यक्षात विविध संस्था/संघटना यांच्यानुसार मुंबईत 2 लाख पेक्षा अधिक नागरिक बेघर आहेत. आज ते अन्न, नागरी आणि निवाराच्या सुविधांसाठी झगडत आहेत.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली म्हणाले की आज बेघरांना शासनातर्फे विविध योजनांच्या माध्यमातून ज्या सुविधा उपलब्ध केल्या आहेत त्याचा लाभ घेणे आवश्यक आहे.शिद्यावाटप पत्रिका, वोटर आयडी आणि शाळेत मोफत शिक्षण मिळाले पाहिजे. पहचान या संस्थेचे अध्यक्ष बृजेश आर्य म्हणाले की नुकतेच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांच्यासोबत झालेल्या बैठकीत त्यांनी सुद्धा सकारात्मक पुढाकार घेण्याचे आश्वासन दिले आहे. यावेळी लीना पाटील, सुभाष रोकड़े, नसीम शेख, शीला पवार, शहजादी आणि मीरा यादव उपस्थित होत्या.

Homeless should fight their own Battle

Homeless people in Mumbai have to be vocal and fight their own battle. On Wednesday, RTI activist Anil Galgali and Brijesh Arya met many homeless people outside JJ Hospital to take stock of the facilities provided by state government. 


Today is "World Homeless Day" . According to the census in 2011, in Mumbai there are 57,416 homeless people. However, the organisations and NGO's claims that city hve over 2 lakh homeless people. These people lives in very poor condition and struggling to get basic facilities like food, shelter and cloths.


RTI activist Anil Galgali said, "Homeless should also take benefits of various government run schemes. They should get ration card, voter ID and free education in schools.


President of NGO Pehchan, Brijesh Arya said that recently I met chief minister Devendra Fadnavis and he has shown positive approach and ensured that he will look into this. In the meeting Pahachan's Leena Patil, Subhash Rokade, Naseem Shaikh, Sheela Pawar, Shahjadi and Meera Yadav were present.


Friday 5 October 2018

मंत्रालय लोकशाही दिन पर राजस्व और नगरविकास विभाग की शिकायतें सबसे अधिक

 नागरिकों की शिकायत/ समस्याओं को तत्परता से न्याय मिलने के लिए सरकारी यंत्रणा यानी 'लोकशाही दिन' हैं। यह 'लोकशाही दिन' जिलाधिकारी, महानगरपालिका आयुक्त, विभागीय आयुक्त और मंत्रालय स्तर पर कार्यान्वित होता हैं। 110 वा मंत्रालय लोकशाही दिन पर 1505 स्वीकृत आवेदनों पर सुनवाई लेने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को महाराष्ट्र सरकार ने दी हैं। औसतन 13 आवेदन लोकशाही दिन पर मुख्यमंत्री के समक्ष आते हैं जिसमें से गत 69 महीनों में 494 आवेदनों में सबसे अधिक शिकायत यह राजस्व, नगरविकास, आदिवासी विकास ,गृह और मदद व पुनर्वसन विभाग की हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में आयोजित लोकशाही दिन की जानकारी मांगी थी। सामान्य प्रशासन विभाग की कक्ष अधिकारी शोभा महानूर ने अनिल गलगली को बताया कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की अध्यक्षता में दिनांक 5 सितंबर 2018 को 110 वा मंत्रालय लोकशाही दिन संपन्न हुआ इसमें अब तक 1505 स्वीकृत आवेदन पर सुनवाई ली गई। रेकॉर्ड पर वर्ष 2013 से अब तक कि जानकारी अनिल गलगली को मुहैया कराई गई। इस जानकारी पर गौर फ़रमाने पर गत 69 महीनों में 494 आवेदनों पर मुख्यमंत्री ने सुनवाई ली गई। विभाग स्तर पर लिस्ट बनाई गई हैं लेकिन कई सारे आवेदन यह विभिन्न विभाग से जुड़े होने से एक ही आवेदन की सुनवाई में एक से अधिक विभागों को सूचना और आदेश जारी करने की जानकारी सामने आई। पहिले 5 में राजस्व, नगरविकास, आदिवासी विकास, गृह और मदद व पुनर्वसन विभाग की हैं। राजस्व विभाग की कुल 88 शिकायतें हैं और 85 शिकायतें इस नगरविकास विभाग की हैं। उसके बाद आदिवासी विकास विभाग की 37 शिकायतें हैं और गृह विभाग की 34 शिकायतें हैं। मदद व पुनर्वसन विभाग की 22 शिकायतें हैं। उसके बाद सहकार विभाग 20, ऊर्जा विभाग 18, सामाजिक न्याय 16, उद्योग 11, कृषी 10 अश्या ऐसी शिकायतें हैं।

अनिल गलगली के अनुसार मुख्यमंत्री अध्यक्षता में मंत्रालय में आयोजित होनेवाले लोकशाही दिन पर नागरिकों की संख्या बढ़ रही हैं। राजस्व और नगरविकास यह राज्य के महत्वपूर्ण विभाग हैं यहां पर शिकायतों की संख्या सबसे अधिक होने से नागरिकों को सबसे अधिक परेशानी इसी विभाग से हो रही हैं। 

मंत्रालय लोकशाही दिनी महसूल आणि नगरविकास तक्रारीत अव्वल 

सर्वसामान्य जनतेच्या तक्रारी/ अडचणींना तत्परतेने न्याय मिळण्याची शासकीय यंत्रणा म्हणजे 'लोकशाही दिन' होय. हा 'लोकशाही दिन' जिल्हाधिकारी, महानगरपालिका आयुक्त, विभागीय आयुक्त आणि मंत्रालय स्तरावर राबविण्यात येत असतो. 110 वा मंत्रालय लोकशाही दिन संपन्न झाला असून 1505 स्वीकृत अर्जावर सुनावणी घेण्यात आल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस महाराष्ट्र शासनाने दिली आहे. सरासरी 13 अर्ज लोकशाही दिनी मुख्यमंत्री यांच्या समक्ष येत असून गेल्या 69 महिन्यात 494 अर्जापैकी सर्वाधिक तक्रारी या महसूल, नगरविकास, आदिवासी विकास ,गृह आणि मदत व पुनर्वसन  विभागाच्या आहेत.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी महाराष्ट्र शासनाकडे मुख्यमंत्र्यांच्या अध्यक्षतेखाली आयोजित लोकशाही दिनाची माहिती मागितली होती. सामान्य प्रशासन विभागाच्या कक्ष अधिकारी शोभा महानूर यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांच्या अध्यक्षतेखाली दिनांक 5 सप्टेंबर 2018 रोजी 110 वा मंत्रालय लोकशाही दिन संपन्न झाला असून आतापर्यंत 1505 स्वीकृत अर्जावर सुनावणी घेण्यात आली आहे. अभिलेखावर असलेली सन 2013 पासून आजमितीपर्यंतची माहिती अनिल गलगली यांस उपलब्ध करून देण्यात आली. या माहितीवर नजर टाकली असता गेल्या 69 महिन्यात 494 अर्जावर मुख्यमंत्र्यांनी सुनावणी घेतली. विभाग स्तरावर यादी बनविली असली तरी कित्येक अर्ज हे विविध विभागांशी संबंधित असल्यामुळे एकाच अर्जाच्या सुनावणीत एकाहून अधिक विभागांना सूचना आणि आदेश जारी झाले असल्याची माहिती समोर येत आहे. पहिल्या 5 मध्ये महसूल, नगरविकास, आदिवासी विकास , गृह आणि मदत व पुनर्वसन विभागाच्या आहेत. महसूल विभागाच्या एकूण 88 तक्रारी आहेत तर 85 तक्रारी या नगरविकास विभागाच्या आहेत. त्यानंतर आदिवासी विकास विभागाच्या 37 तक्रारी आहेत आणि गृह विभागाच्या 34 तक्रारी आहेत. मदत व पुनर्वसन विभागाच्या 22 तक्रारी आहेत. यानंतर सहकार विभाग 20, ऊर्जा विभाग 18, सामाजिक न्याय 16, उद्योग 11, कृषी 10 अश्या तक्रारी आहेत.

अनिल गलगली यांच्या मते मुख्यमंत्री अध्यक्षतेखाली मंत्रालयात होणाऱ्या लोकशाही दिन नागरिकांचा कळ वाढला आहे. महसूल आणि नगरविकास हे राज्यातील महत्वाचे विभाग असून येथील तक्रारीची संख्या सर्वाधिक असल्यामुळे नागरिकांना सर्वाधिक त्रास ही याच विभागाकडून होत आहे. 

Revenue and Urban development issues are the largest brought before the government on Lokshahi Divas

For prompt resolution of problems of the common man, the government's have created the system of Lokshahi Divas. This Lokshahi Divas system is implemented at the stages of the Collector, Municipal Commissioner, Divisional Commissioner, and the Mantralaya. Recently the 110th Lokshahi Divas was organised at the Mantralaya. And a total of 1505 hearings in totality has been undertaken as per the information provided by the state government to RTI Activist Anil Galgali. Approximately 13 applications are received by the CM in every Lokshahi Divas. In the past 69 months out of the 494 application received, maximum pertained to Revenue, Urban Development, Adivasi Development, Home and Relief & Rehabilitation department.

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the state government details of the Lokshahi Divas conducted under the Chairmanship of the CM. Shobha Mahanoor, Desk Officer of the General Administration department informed Galgali that, on the 5th September, 2018 the 110th Lokshahi Divas was organised under the leadership of CM Devendra Fadnavis, and uptill now a total of 1505 applications has been received and heard since inception. The details pertaining from year 2013 which was on record was provided by the GAD to Galgali. Going by the data it can be understood that, in the past 69 months, 494 applications were heard. It can be further understood that on the segregation done division wise it can be found that, the application pertains to different departments have been received, heard by different departments and have issued different orders on the same issue. The top 5 departments are Revenue, Urban Development, Adivasi Development, Home, Relief and Rehabilitation department. There are a total of 88 complaints pertaining to Revenue, 85 to Urban Development, 37 pertaining to Adivasi Development, 34 pertaining to Home, and 22 pertaining to Relief and Rehabilitation department, Thereafter 20 pertaining to Cooperative, Energy department 18, Social Welfare 16, Industry 11, Agriculture 10.

In a statement, Anil Galgali expressed that the applications of people in the Lokshahi Divas has increased and the Revenue and Urban Development Department have the maximum complaints and are the most important departments and hence people are facing maximum problems in issues pertaining to these departments.

Monday 1 October 2018

एम्स के तर्ज पर मुंबई सहित महाराष्ट्र में वैद्यकीय सुविधाओं से जुड़े लोगों को बायोमेट्रिक अटेंडेंस से बाहर करे

एम्स में वैद्यकीय सुविधाओं से जुड़े लोगों को बायोमेट्रिक अटेंडेंस से बाहर करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को एम्स ने दी हैं। मुंबई सहित महाराष्ट्र में वैद्यकीय सुविधाओं से जुड़े लोगों को एम्स की तर्ज पर बायोमेट्रिक अटेंडेंस से बाहर करने की मांग आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को लिखे पत्र में की हैं।


आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एम्स से जानकारी मांगी थी कि एम्स में डॉक्टरों को बायोमेट्रिक अटेंडेंस से बाहर रखा हैं और उसकी जानकारी दे। एम्स के कंप्यूटर विभाग के प्रोफेसर डॉ ए शरीफ ने अनिल गलगली को बताया कि एम्स में वैद्यकीय सुविधाओं से जुड़े हुए लोगों को बायोमेट्रिक अटेंडेंस से बाहर रखा हैं। अनिल गलगली के अनुसार मुंबई सहित महाराष्ट्र में आज बड़े पैमाने पर अधिकारी और कर्मचारियों की कमी और बड़े पैमाने पर मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसी स्थिती में डॉक्टर औरअन्य संबंधित कर्मचारियों को हालात के मद्देनजर काम करना पड़ता हैं और कभी कभी तो अधिक समय भी देने की जरुरत आन पड़ती हैं। लेकिन सरकार या महानगरपालिका ओवर टाईम नहीं देती हैं। इसलिए एम्स की तर्ज पर मुंबई सहित महाराष्ट्र के सरकारी, निम्म सरकारी और महानगरपालिका के अस्पतालों में बायोमेट्रिक अटेंडेंस का नियम रद्द किया जाए।  


एम्सच्या धर्तीवर मुंबई सहित महाराष्ट्रात वैद्यकीय सुविधासी संलग्न असणाऱ्याना बायोमेट्रिक हजेरीतून वगळा

एम्समध्ये वैद्यकीय सुविधासी संलग्न असणाऱ्याना बायोमेट्रिक हजेरीतून वगळण्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस एम्सने दिली आहे. मुंबई सहित महाराष्ट्रात वैद्यकीय सुविधासी संलग्न असणाऱ्याना एम्सच्या धर्तीवर बायोमेट्रिक हजेरीतून वगळण्याची मागणी आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस लिहिलेल्या पत्रात केली आहे. 


आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी एम्सकडे माहिती मागितली होती की एम्समध्ये डॉक्टरांना बायोमेट्रिक हजेरीतून वगळण्यात आले आहे आणि त्याची माहिती देण्यात यावी. एम्सचे संगणक विभागाचे प्रोफेसर डॉ ए शरीफ यांनी अनिल गलगली यांना कळविले की एम्समध्ये एम्समध्ये वैद्यकीय सुविधासी संलग्न असणाऱ्याना बायोमेट्रिक हजेरीतून वगळण्यात आले आहे. अनिल गलगली यांच्या मते मुंबई सहित महाराष्ट्रात आज मोठ्या प्रमाणात अधिकारी आणि कर्मचारी वृंदाची कमतरता आणि प्रचंड प्रमाणात रुग्णांची संख्याही वाढत चालली आहे. अश्या परिस्थितीत डॉक्टर आणि अन्य संबंधित कर्मचाऱ्यांना परिस्थितीच्या दृष्टिकोनातून काम करावे लागते आणि कधी कधी तर जास्त वेळ दयावा लागतो पण सरकार किंवा महानगरपालिका ओव्हर टाईम देत नाही. त्यामुळेच एम्सच्या धर्तीवर मुंबई सहित महाराष्ट्रातील सरकारी, निम्म सरकारी आणि महानगरपालिकेच्या रुग्णालयात बायोमेट्रिक हजेरेची जाचक अट रद्द करण्यात यावी.


Exemption from biometric attendance for  medical faculties in Maharashtra including Mumbai based on AIIMS

AIIMS has given information to RTI activist Anil Galgali, that they have exempted medical faculties from biometric attendance in AIIMS. RTI activist Anil Galgali has written a letter to Chief Minister Devendra Fadnavis seeking removal of Biometric attendance for medical faculties on the lines of AIIMS in Maharashtra including Mumbai.


RTI activist Anil Galgali had asked AIIMS for information regarding exemption from biometric attendance for doctors working as faculty in AIIMS. Professor Dr. A Sharif of AIIMS's Computer Department informed Anil Galgali that clinical faculties in AIIMS have been exempted from biometric attendance . According to Anil Galgali, in Mumbai and Maharashtra, the number of patients is increasing day by day as compared to available Doctors and other staff .In such a scenario,  the doctor and other related employees have to work according to the situation and sometimes have to spend more time than their regular duty hours, but the government or the municipality does not pay them for overtime. Therefore, based on information from AIIMS, the condition of compulsory biometric attendance for medical faculties working in government and municipal corporations  in Maharahtra including Mumbai should be cancelled.