Thursday 29 November 2018

एक आरटीआई के बाद महाराष्ट्र विधानसभा का उपाध्यक्ष का रिक्त पद पर होगी नियुक्ति

महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के बाद से आज तक महाराष्ट्र विधान सभा का उपाध्यक्ष पद रिक्त होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को महाराष्ट्र विधानमंडल सचिवालय ने दी थी। अनिल गलगली की एक आरटीआई के बाद सरकार नींद से जाग उठी और महाराष्ट्र विधानसभा का उपाध्यक्ष का रिक्त पद को न्याय मिल रहा हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र विधानमंडल सचिवालय से महाराष्ट्र विधानसभा का उपाध्यक्ष पद को लेकर जानकारी मांगी थी। महाराष्ट्र विधानमंडल सचिवालय के जन सूचना अधिकारी और अवर सचिव सुभाष नलावडे ने अनिल गलगली को बताया कि महाराष्ट्र विधानसभा के अक्टूबर 2014 के चुनाव के बाद बारहवीं विधानसभा 8 अक्टूबर 2014 को विसर्जित की गई और तेरहवीं विधानसभा 21 अक्टूबर 2014 से अस्तित्व में आई तबसे तेरहवीं विधानसभा का उपाध्यक्ष पद रिक्त हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 178 के तहत हर एक राज्य की विधानसभा जितना होगा उतना जल्द, विधानसभा के 2 सदस्यों को क्रमशः अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के तौर पर चुनेगी या अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होगा तब तब , विधानसभा अन्य सदस्य को अध्यक्ष या यथास्थिति, उपाध्यक्ष चुनेगी। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 180 के तहत अध्यक्ष का पद रिक्त होने की स्थिती में पद की जिम्मेदारी और अधिकार को निभाने का दायित्व उपाध्यक्ष की होती हैं।

वर्ष 1937 से वर्ष 2014 तक 22 सदस्य उपाध्यक्ष चुने गए थे।  मुंबई विधानसभा के उपाध्यक्ष पर नारायणराव गुरु जोशी, शनमुगप्पा अंगदी, शिवलिंगाप्पा कंठी उपाध्यक्ष थे। 1956 से 1960 के दौरान द्विभाषिक मुंबई राज्य विधानसभा के उपाध्यक्ष पद पर शेषराव वानखेडे और दिनदयाल गुप्ता थे। 1960 से लेकर 2014 तक उपाध्यक्ष पद पर दिनदयाल गुप्ता, कृष्णराव गिरमे, रामकृष्ण बेत, सय्यद फारुक पाशा, शिवराज पाटील, गजानन राव गरुड, सूर्यकांत डोंगरे, शंकरराव जगताप, कमलकिशोर कदम, डॉ पद्मसिंह पाटील, बबनराव ढाकने, अण्णा जोशी,मोरेश्वर टेमुर्डे, शरद तसरे, प्रमोद शेंडे, मधुकरराव चव्हाण, प्रा. वसंत पुरके चुने गए थे। 

अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार और विधानमंडल का आभार मानते हुए आरटीआई कानून की जीत बताई।

एका आरटीआयनंतर महाराष्ट्र विधानसभेचे रिक्त असलेले रिक्त पद भरणार

माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांच्या आरटीआय नंतर सरकारला जाग आली आणि सदर विधानसभेचे उपाध्यक्ष रिक्त असलेले पद भरले जाणार आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी महाराष्ट्र विधानमंडळ सचिवालयाकडे महाराष्ट्र विधानसभा उपाध्यक्ष पदाबाबत माहिती मागितली होती. महाराष्ट्र विधानमंडळ सचिवालयाचे जन माहिती अधिकारी आणि अवर सचिव सुभाष नलावडे यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की महाराष्ट्र विधानसभेच्या माहे ऑक्टोबर, 2014 मधील सार्वत्रिक निवडणूकीनंतर बारावी विधानसभा दिनांक 8 नोव्हेंबर 2014 रोजी विसर्जित करण्यात आली आणि तेरावी विधानसभा दिनांक 21 ऑक्टोबर 2014 पासून अस्तित्वात आली तेव्हापासून तेराव्या विधानसभेतील उपाध्यक्ष पद रिक्त आहे.तसेच उपाध्यक्षांच्या बाबतीत भारतीय संविधानातील  अनुच्छेद 178 अंतर्गत प्रत्येक राज्याची विधानसभा, शक्य होईल तितक्या लवकर, विधानसभेच्या दोन सदस्यांना अनुक्रमे आपला अध्यक्ष व उपाध्यक्ष म्हणून निवडील आणि अध्यक्षांचे किंवा उपाध्याक्षांचे पद रिक्त होईल तेव्हा तेव्हा, विधानसभा अन्य सदस्यास अध्यक्ष किंवा यथास्थिति, उपाध्यक्ष म्हणून निवडील. भारतीय संविधानातील अनुच्छेद 180 अंतर्गत अध्यक्षांचे पद रिक्त असताना, त्या पदाची कर्तव्ये उपाध्यक्षाला पार पाडावी लागतील.

वर्ष 1937 पासून वर्ष 2014 पर्यंत 22 सदस्य उपाध्यक्ष निवडले गेले.मुंबई विधानसभा उपाध्यक्ष पदावर नारायणराव गुरु जोशी, शनमुगप्पा अंगदी, शिवलिंगाप्पा कंठी निवडले गेले होते. 1956 पासून 1960 या दरम्यान द्विभाषिक मुंबई राज्य विधानसभा उपाध्यक्ष पदी शेषराव वानखेडे आणि दिनदयाळ गुप्ता निवडले गेले होते.  1960 पासून 2014 पर्यंत उपाध्यक्ष पदावर दिनदयाळ गुप्ता, कृष्णराव गिरमे, रामकृष्ण बेत, सय्यद फारुक पाशा, शिवराज पाटील, गजानन राव गरुड, सूर्यकांत डोंगरे, शंकरराव जगताप, कमलकिशोर कदम, डॉ पद्मसिंह पाटील, बबनराव ढाकने, अण्णा जोशी,मोरेश्वर टेमुर्डे, शरद तसरे, प्रमोद शेंडे, मधुकरराव चव्हाण, प्रा. वसंत पुरके निवडले गेले होते.

अनिल गलगली यांनी महाराष्ट्र शासन आणि विधिमंडळाचे आभार मानत हा आरटीआय कायद्याचा विजय असल्याचे सांगितले. 




Maharashtra Assembly's Dy Speaker's post to be filled after RTI expose

The post of Deputy Speaker of Maharashtra State Legislative Assembly has not been filled for 28 months now. The post has been vacant since present BJP Government came to power in Maharashtra in October 2014. It's revels in a query filed by RTI Activist Anil Galgali. Appointment to this post with constitutional powers and responsibilities has never been kept in abeyance ever since Legislative Assembly was formed in 1937, It was revealed. After an expose due to an RTI query filed by Anil Galgali, the government has woken from slumber and has decided to fill up the post of Dy Speaker lying vacant from a long time




RTI Activist Anil Galgali sought details about this unprecedented Constitutional vacancy from 'Maharashtra State Legislative Secretariat' . Public Information Officer and Under Secretary of State Legislative Secretariat Subhash Nalawade revealed that the preceeding 12th Maharashtra State Assembly was dissolved on completion of its term on 8th November 2014 & 13th Assembly came in to being on 21st October 2014. Maharashtra State Legislative Assembly does not have Deputy Speaker since that day. Article 178 of Constitution of India says that every Assembly should appoint two of its members as Speaker and Deputy Speaker as soon as possible. Article 180 of the Constitution proclaims that Deputy Speaker will take over duties and responsibilities of the speaker in his absence. 


Since 1937, a total of 22 persons have been elected as Deputy Speaker of Maharashtra Assembly. Narayan Guru Joshi, Shanmugappa Angadi and Shivlingappa Kanthi were the early Deputy Speakers to Bombay State Assembly. From 1956 to 1960 Sheshrao  Wankhede and Deendayal Gupta shouldered this responsibility in Bi-Lingual State of Bombay. After formation of State of Maharashtra- Deendayal Gupta, Krishnarao Girme, Ramkrishna Bet, Syed Farooq Pasha, Shivraj Patil, Gajananrao Garud, Suryakant Dongre, Shankarrao Jagtap, Kamalkishore Kadam, Padmasingh Patil, Babbanrao Dhakne, Anna, Joshi, Moreshwar Tembhurde, Sharad Tasre, Pramod Shende, Madhukarrao Chavan and Prof Vasant Purke have held post of Deputy Speakers till 2014.

Wednesday 28 November 2018

मुंबई में रोजाना ३ नागरिकों को होता हैं डेंगू

मुंबई महानगरपालिका अंतर्गत रोजाना ३ नागरिकों को डेंगू होता हैं वहीं ३७ नागरिक संदेहास्पद डेंगू महानगरपालिका के अस्पताल में भर्ती होते हैं। गत ३५ महीने ने ३८ मुंबईकरों को डेंगू से मौत होने की जानकारी सूचना का अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई महानगरपालिका ने दी हैं।

सूचना अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली ने गत ३ वर्षों में मुंबई महानगरपालिका कार्यक्षेत्र में डेंगू से प्रभावित मरीजों की जानकारी मांगी थी। मुंबई महानगरपालिका के सार्वज5 स्वास्थ्य विभाग ने अनिल गलगली को वर्ष २०१६, वर्ष २०१७, ११ नवंबर २०१८ इन ३५ महीनों की जानकारी दी। डेंगू के निश्चित मरीज और मौत हुए नागरिकों के आंकड़े दिए हैं। इसमें निश्चित डेंगू के मरीज वर्ष २०१६ में ११८०, वर्ष २०१७ में ११३४ वही १ जनवरी २०१८ से ११ नवंबर २०१८ तक ९४५  इतने थे वहीं वर्ष २०१६ में ०७ , वर्ष २०१७ में १७ और ११ नवंबर २०१८ तक १४ इतने मरीजों की मौत डेंगू से हुई।संदेहास्पद मरीजों की संख्या वर्ष २०१६ में १३२१३ , वर्ष २०१७ में १२९१३ वही इस वर्ष के ११ नवंबर २०१८ तक १३१३८ इतनी हैं।

कुल मिलाकर रोजाना ३ निश्चित और ३७ संदेहास्पद डेंगू के मरीज महानगरपालिका के अस्पताल में भर्ती हुए। गत ३५ महीने में ३८ मुंबईकरों की मौत डेंगू से हुई।  हर महीने को औसतन १ मरीज की मौत डेंगू से होती हैं। अनिल गलगली के अनुसार जिस तरह से सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग को जनजागरण करना चाहिए वह जनजागरण सही तरीके से नहीं होने से आम लोगों को डेंगू को लेकर सही एवं स्पष्ट जानकारी नहीं हैं।

मुंबईत प्रतिदिन ३ नागरिकांना डेंग्यूची लागण 

मुंबई महानगरपालिका अंतर्गत प्रतिदिन ३ नागरिकांना डेंग्यूची लागण होत आहे तर ३७ संशयित डेंग्यूचे महानगरपालिकेच्या रुग्णालयात दाखल होत आहेत. गेल्या ३५ महिन्यात ३८ मुंबईकरांचा डेंग्यूने मृत्यु झाल्याची माहिती माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस मुंबई महानगरपालिकेने दिली आहे.

माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी गेल्या ३ वर्षात मुंबई महानगरपालिका कार्यक्षेत्रात डेंग्यूच्या रुग्णाची माहिती मागितली होती. मुंबई महानगरपालिका सार्वजनिक आरोग्य खात्याने अनिल गलगली यांस वर्ष २०१६, वर्ष २०१७, ११ नोव्हेंबर २०१८ या ३५ महिन्यांची माहिती दिली. डेंग्यूचे निश्चित रुग्ण आणि मृत्युमुखी पडलेल्या नागरिकांची आकडेवारी दिली. यात निश्चित डेंग्यूचे रुग्ण वर्ष २०१६ मध्ये ११८०, वर्ष २०१७ मध्ये ११३४ तर १ जानेवारी २०१८ पासून ११ नोव्हेंबर २०१८ पर्यंत ९४५  इतके होते तर वर्ष २०१६ मध्ये ०७ , वर्ष २०१७ मध्ये १७ आणि ११ नोव्हेंबर २०१८ पर्यंत १४ इतके रुग्ण डेंग्यूने मृत्यूमुखी पडले. संशयीत रुग्णाची संख्या वर्ष २०१६ मध्ये १३२१३ , वर्ष २०१७ मध्ये १२९१३ तर यावर्षीच्या ११ नोव्हेंबर २०१८ पर्यंत १३१३८ इतकी आहे.

एकंदरीत प्रतिदिन ३ निश्चित आणि ३७ संशयित डेंग्यूचे महानगरपालिकेच्या रुग्णालयात दाखल होत आहेत. गेल्या ३५ महिन्यात ३८ मुंबईकरांचा डेंग्यूने मृत्यु झाला असून प्रत्येक महिन्याला सरासरी १ रुग्ण डेंग्यूने मृत्यु पावतो. अनिल गलगली यांच्या मते ज्या पध्दतीने सार्वजनिक आरोग्य खात्याने जनजागृती करणे आवश्यक आहे ती योग्य पध्दतीने होत नसल्यामुळे सामान्य नागरिकांना डेंग्यूच्या बाबतीत सरळ व स्पष्ट माहिती नाही. 


Dengue afflicts average 3 Mumbaikars daily

Within the jurisdiction of the Mumbai Municipal Corporation atleast 3 cases of confirmed dengue patients are reported each day and 37 cases of suspected dengue are reported daily as per the averages and information provided by the MCGM to RTI Activist Anil Galgali.

RTI Activist Anil Galgali had sought information about the details of patients afflicted by Dengue in the past 3 years. The MCGM's Public health department provided Galgali with information pertaining to years 2016, 2017 and upto 11th November 2018 a period spanning 35 months. It also provided the information about the confirmed dengue cases and those who died due the dengue. The details of confirmed dengue cases in year 2016 was 1180, in 2017 was 1134 and from 1st January 2018 to 11th November 2018 was 945. Out of which the casualties in 2016 was 7, in 2017 was 17 and in 2018 upto 11th November 2018 was 14. The cases of suspected dengue reported for the period of 2016 was 13213, 2017 was 12913 and 2018 upto 11th November was 13138.

As per the details it can be understood that, averagely daily 3 cases of confirmed dengue is being reported whereas 37 cases of suspected dengue are being recorded. In the past 35 months a total of 37 Mumbaikars fell casualty due to dengue making it average of 1 death per month. In a statement issued Anil Galgali has said that, a sustained awareness campaign which should have been conducted by the public health department of the MCGM is not being done leading to citizens being unaware of complete information related to causes of the disease.

Monday 26 November 2018

आरटीआई कानून की धार को कमजोर कर रही हैं सरकार- शैलेश गांधी

आरटीआई कानून यह देश के आम लोगों को प्राप्त हुआ उनके अधिकारों का कानून होते हुए भी आज बड़े पैमाने पर इस कानून की धार को कमजोर करने का प्रयास सरकारी स्तर पर हो रहा हैं, ऐसा आरोप करते हुए भूतपूर्व केंद्रीय सूचना आयुक्त शैलेश गांधी ने कहा कि आम जनता यही इस लोकतंत्र के सही मायने में राजा और रानी हैं। इस अधिवेशन में कर्मठ अधिकारी तुकाराम मुंढे और हाल ही में रिटायर्ड केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर अचर्यालु का अभिनंदन प्रस्ताव अनिल गलगली ने रखा जिसे सर्वसम्मति से मंजूरी मिली।

मुंबई के प्रभादेवी विभाग में भूपेश गुप्ता भवन में आरटीआई एक्टिविस्ट फोरम के द्वितीय अधिवेशन का शैलेश गांधी ने किया। इस मौके पर वरिष्ठ विचारवंत शिवाजी राऊत, समाजसेविका अंजली दमानिया, सूचना अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली, सुलेमान भिमाणी, सुधीर पराजंपे, कमलाकर शेणाय उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ विचारवंत शिवाजी राऊत ने कहा कि विभिन्न विषयों पर सूक्ष्म विवेचन अधिवेशन में हुआ हैं। अब इसके अमलीजामा और क्रियान्वयन पर जोर देते हुए पूरे देश में इसका जनजागरण करने की जरुरत हैं। शैलेश गांधी ने सरकार की प्रामाणिकता पर संदेह व्यक्त किया हैं। अंजली दमानिया ने आरटीआई कानून के इस्तेमाल की जानकारी देते हुए कहा कि सूचना मिलते ही संबंधित विभाग के पास शिकायत करने की जरुरत हैं। साथ ही जमीन खरीदी की जानकारी सरलता से प्राप्त करने के लिए किन किन वेबसाइट पर उसे तलाशने के लिए मौजूदा विकप्प की जानकारी दी। अनिल गलगली ने आरटीआई के अलावा सरकारी कामों में देरी का कानून पर प्रकाश डालते हुए अपील की लोग मौखिक के बजाय लिखित शिकायत करने पर अधिक जोर दे ताकि अधिकारियों को उसकी आदत होगी और उसने कार्रवाई नहीं की तो सरकारी कामों में देरी का कानून जा इस्तेमाल आसानी से किया जा सकता हैं। . 

बैंकिंग विशेषज्ञ विश्वास उटगी ने बैंकिंग क्षेत्र में होनेवाली लूट और सरकार की दोहरी भूमिका की विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि सिर्फ मुंबई में नहीं बल्कि महाराष्ट्र राज्य के जिला स्तर पर जाकर लोगों को वर्तमान माहौल समझाने की जरुरत हैं। मुंबई के पूर्व सहायक पुलिस आयुक्त विलास तुपे ने एन्टी करप्शन ब्यूरो के काम करने के दौरान मामलों की जानकारी देते हुए ऐसे मामलो में नागरिकों की मदद पर प्रबोधन किया।  सुलेमान भिमाणी ने एसएआर के तहत समस्याओं का निराकरण कैसे हो सकता हैं? उसपर बातें रखी। कमलाकर शेनॉय ने किस तरीक़े से एफआईआर दर्ज की जा सकती हैं उसकी जानकारी उदाहरणों से पेश की। सुधीर पराजंपे ने शिक्षा का अधिकार के तहत आर्थिक के तौर पर कमजोर लोगों को प्रवेश प्राप्त करने के लिए प्रक्रिया की जानकारी दी। फोरम के अध्यक्ष सुधाकर काश्यप ने अब तक फोरम का कामकाज और भविष्य में आनेवाली चुनौतियों पर बातें रखी। कार्यक्रम का सूत्रसंचालन एनडी खान ने किया वहीं प्रि. रमेश खानविलकर ने आभार माना। इस मौके पर स्वाती पाटील, संतोष सावर्डेकर, एड आम्रपाली मगरे, अनुप मधये, सुरेश लोखंडे, आयुब शेख, राजी सरोदे, सुफियान पेनकर, सतीश निकाळजे, चंद्रकांत कांबले, राजन पवार, गणेश उंडाले, संतोष पवार, आनंद इंगराजू मोरे, गणेश कांबले, राजेश मोरे, मुरलीधर परदेशी, योगेश कांबले आदी उपस्थित थे।

आरटीआई एक्टिविस्ट फोरम के दूसरे अधिवेशन में कर्मठ अधिकारी तुकाराम मुंढे और हाल में रिटायर्ड हुए केंद्रीय सूचना आयुक्त श्रीधर अचर्यालु का अभिनंदन प्रस्ताव आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने रखा। गलगली के प्रस्ताव को सभागार में उपस्थितजनों ने तालियों की गूंज में मंजूरी दी।

माहिती अधिकार कायदाची धार बोथट करत आहे सरकार - शैलेश गांधी

माहितीचा अधिकार कायदा हा देशातील सर्वसामान्यांना मिळालेला हक्काचा कायदा असला तरी आज मोठया प्रमाणात कायद्याची धार बोथट करण्याचा प्रयत्न सरकारी पातळीवर सुरु आहे, असा आरोप करत माजी केंद्रीय माहिती आयुक्त शैलेश गांधी यांनी प्रतिपादन केले की सर्वसामान्य जनता हेच लोकशाहीतील खरे राजा आणि राणी आहेत. या अधिवेशनात कर्तव्यदक्ष अधिकारी तुकाराम मुंढे आणि नुकतेच सेवानिवृत्त झालेल्या केंद्रीय माहिती आयुक्त श्रीधर आचर्यलू यांचा अभिनंदन ठराव अनिल गलगली यांनी मांडला.

मुंबईतील प्रभादेवी विभागातील भूपेश गुप्ता भवन येथे आरटीआय ऍक्टिव्हिस्ट फोरमच्या दुस-या अधिवेशनात शैलेश गांधी यांनी अधिवेशनाचे उदघाटन केले. यावेळीज्येष्ठ विचारवंत शिवाजी राऊत, समाजसेविका अंजली दमानिया, माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली, सुलेमान भिमाणी, सुधीर पराजंपे, कमलाकर शेणाय उपस्थित होते. कार्यक्रमाचे अध्यक्ष ज्येष्ठ विचारवंत शिवाजी राऊत यांनी प्रतिपादन केले की विविध विषयांवर सूक्ष्म विवेचन अधिवेशनात झाले असून आता अंमलबजावणी आणि आग्रहावर भर देत संपूर्ण देशात याबाबत जनजागृती करण्याची आवश्यकता सांगितली.  शैलेश गांधी यांनी सरकारच्या प्रामाणिकेतेवर शंका व्यक्त केली. अंजली दमानिया यांनी माहितीचा अधिकार कायद्याच्या वापराबाबत माहिती देताना सांगितले की माहिती प्राप्त झाल्यानंतर संबंधित खात्याकडे तक्रार करणे आवश्यक आहे. तसेच जमीन खरेदी बाबत माहिती सहजपणे मिळवण्यासाठी कोणकोणत्या संकेतस्थळावर त्या माहितीचा शोध घेण्यासाठी सद्यस्थितीला उपलब्ध असलेल्या पर्यायाची माहिती दिली.अनिल गलगली यांनी माहिती अधिकार कायदासोबत विलंबाच्या कायद्यावर प्रकाश टाकत आव्हान केले की नागरिकांनी तोंडी ऐवजी लेखी तक्रार करण्यावर भर दयावा जेणेकरुन अधिकारी वर्गास त्याची सवय होईल आणि कार्यवाही नाही केली तर विलंबाच्या कायदाचा वापर केला जाऊ शकतो. 

बँकिंग तज्ञ विश्वास उटगी यांनी बँकिंग क्षेत्रातील लूट आणि सरकारची दुटप्पी भूमिकेवर विस्तृत माहिती देत फक्त मुंबईत नव्हे तर महाराष्ट्र राज्यातील जिल्हा स्तरावर जात नागरिकांना सद्यस्थितीची जाणीव करुन देण्याची गरज असल्याचे सांगितले. माजी सहायक पोलीस आयुक्त विलास तुपे यांनी भ्रष्टाचार विरोधी ब्युरोत असताना केलेल्या केसेसची माहिती देत नागरिकांची अश्या प्रकरणात लागणारे सहकार्य बाबत प्रबोधन केले. सुलेमान भिमाणी यांनी एसआरए अंतर्गत तक्रार आणि समस्येवर निराकरण कसे होऊ शकते? यावर प्रकाश टाकला. कमलाकर शेनॉय यांनी कश्या पद्धतीने फौजदारी गुन्हा दाखल केला जाऊ शकते त्याची उदाहरणे दिली. सुधीर पराजंपे यांनी शिक्षणाचा अधिकार आणि आर्थिकदृष्ट्या सक्षम नसलेल्या नागरिकांना प्रवेश मिळण्याबाबत युक्त्या सांगितल्या. प्रास्तविक करताना फोरमचे अध्यक्ष सुधाकर काश्यप यांनी आतापर्यंतची फोरमची वाटचाल आणि भविष्यातील आव्हाने यावर भाष्य केले. कार्यक्रमाचे सूत्रसंचालन एनडी खान यांनी केले तर आभार प्रि. रमेश खानविलकर यांनी मानले. यावेळी स्वाती पाटील, संतोष सावर्डेकर, एड आम्रपाली मगरे, अनुप मधये, सुरेश लोखंडे, आयुब शेख, राजी सरोदे, सुफियान पेनकर, सतीश निकाळजे, चंद्रकांत कांबळे, राजन पवार, गणेश उंडाले, संतोष पवार, आनंद इंगळे, राजू मोरे, गणेश कांबळे, राजेश मोरे, मुरलीधर परदेशी, योगेश कांबळे आदी उपस्थित होते.

आरटीआय ऍक्टिव्हिस्ट फोरमच्या दुसऱ्या अधिवेशनात कर्तव्यदक्ष अधिकारी तुकाराम मुंढे आणि नुकतेच सेवानिवृत्त झालेल्या केंद्रीय माहिती आयुक्त श्रीधर आचर्यलू यांचा अभिनंदन ठराव माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मांडला. गलगली यांच्या ठरावाला सभागृहात उपस्थितजणांनी टाळयांच्या ध्वनीत संमती दर्शविली.

Government diluting provisions of the RTI act, Blame Shailesh Gandhi

Even though the RTI act is a useful tool beneficial to common man, attempts are being made by the government to dilute it's provision. Ita blame by Ex Central Information Commissioner Shailesh Gandhi. Gandhi further stated that in a real democracy, the real King and Queen is the common man and woman. A resolution to Congratulate Mr. Tukaram Munde and recently retired Central  Information Commissioner Mr. Sridhar Acharyalu was put forth by  RTI Activist Anil Galgali at the recently concluded conference.

The second annual conference of the RTI activist forum was inaugurated by Shailesh Gandhi at Bhupesh Gupta Bhavan, Prabhadevi. Present on the Occasion were Senior Social Activist Shivaji Raut, Social activist Anjali Damania, RTI Activist Anil Galgali, Suleman Buimani, Sudhir Paranjape and Kamlakar Shenoy.

Presiding over the function, Shivaji Raut stated that detalied deliberations on various aspects have taken place now is the need to create Nationwide awareness in general public with insistence on the implementation of the provisions of the RTI act. Shailesh Gandhi also raised the question about the sincerity of the government. Anjali Damania stressed upon the need to follow up upon the information obtained under RTI and also give information on how to obtain land records and various websites where such information is made available. Anil Galgali provided information with regards to the provision under Delay in Service Act 2005. Galgali  emphasized the need to make written complaints so that authorities can get used to provide timely response. In case of delays Galgali urged the applicants to invoke provisions under delaying the information.

Banking expert Vishwas Utgi highlighted the looting of banks and double standards of the government in this regard he also stressed to create awareness at district level amongst the civil society. Former Assistant Police Commissioner Vilas Tupe recounted the various anti corruption cases that he dealt with and informed the participants about the process to get help with corruption related matters. Suleman Bhimani spoke on the Slum Rehabilitation Scheme related grievances and their resolution process. Kamlakar Shenoy provided information as to how a formal police complaint can be registered. Sudhir Paranjape spoke on the Right to Education and provisions for the economically weaker sections and means to obtain benefits thereunder.
While introduction Sudhakar Kashyap, president of the forum briefed the audience about the work done by the forum since inception and the challenges of the future. N D Khan compered the program and vote of thanks was proposed by Principal Ramesh Khanvilkar. 

During the meet Anil Galgali proposed resolution Congratulating dedicated civil servant Mr Tukaram Munde and recently superannuated Central Chief Information Commissioner Mr. Sridhar Acharyalu, the proposal met with a thunderous applause from the audience.

Wednesday 21 November 2018

एकनाथ खडसे और गावित का बकाया किराया ५९ लाख फडणवीस सरकार ने किया माफ

एकनाथ खडसे और गावित का बकाया किराया ५९ लाख फडणवीस सरकार ने किया माफ

एकओर राज्य के खजाने में पैसों की कमी से राज्य कर्जबाजारी हो रहा हैं। ऐसी स्थिती में फडणवीस सरकार ने पार्टी के २ दिग्गज नेताओं का बकाया किराया के पूरे ५९ लाख माफ करने की जानकारी सामने आई हैं। सूचना अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली को दी हुई जानकारी में एकनाथ खडसे का १५.४९ लाख वहीं डॉ विजयकुमार गावित का ४३.८४ लाख माफ करने का आदेश फडणवीस सरकार ने सार्वजनिक निर्माण विभाग को दिए हैं।

सूचना अधिकार कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सार्वजनिक निर्माण विभाग से पूर्व राजस्व मंत्री एकनाथ खडसे और पूर्व मंत्री डॉ विजयकुमार गावित का बकाया किराया रकम की जानकारी मांगी थी। सार्वजनिक निर्माण विभाग के इलाखा शहर यूनिट ने अनिल गलगली को महाराष्ट्र सरकार द्वारा किराया की रकम माफ करने को लेकर जारी आदेश की कॉपी दी हैं। महाराष्ट्र सरकार ने भाजपा के इन दोनों वरिष्ठ विधायकों पर मेहरबानी करते हुए किराया की रकम माफ करने का अनुरोध मान्य करते हुए इसे "विशेष मामला" अंतर्गत ५९ लाख रुपए माफ किया और सामान्य प्रशासन विभाग ने आदेश जारी करते हुए उसतरह की सूचना सार्वजनिक निर्माण विभाग को दी हैं।
 
सरकारी निवासस्थान रामटेक बंगले में निवास करने पर बकाया किराया की रु १५,४९,९७४ इतनी रकम एकनाथ खडसे ने अदा नहीं की। सरकारी बंगला मंत्री पद पर बने रहने तक वितरित किया गया था। खडसे ने मंत्री पद से दिनांक ४ जून २०१६ को इस्तीफा दिया जबकि बंगला दिनांक १९ नवंबर २०१६ को रिक्त करते हुए सरकार को सौंपा। किराया माफ करने का अनुरोध करने पर २६ मार्च २०१८ को खडसे का अनुरोध विशेष मामला के तौर पर सरकार ने मान्य किया। वहीं आघाडी सरकार के वक्त मंत्री रहे डॉ विजयकुमार गावित ने ३३३० चौरस फुट की 'सुरुचि' सदनिका रिक्त नहीं की थी।  गावित ने २० मार्च २०१४ को मंत्री पद से इस्तीफा दिया और दिनांक २९ जुलाई २०१६ को सदनिका रिक्त की। उनके पर ४३ लाख ८४ हजार ५०० इतनी रकम गावित ने अदा नहीं की। किराया माफ करने का अनुरोध दिनांक २९ जुलाई २०१८ को करने के बाद २२ अक्टूबर २०१८ को गावित का अनुरोध विशेष मामला के तौर पर सरकार ने मान्य की हैं।

अनिल गलगली ने इसतरह लाखों रुपए का किराया माफ करने पर आश्चर्य व्यक्त किया। पैसों की कमी होते हुए लाखों रुपए का किराया माफ करना गलत हैं। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को भेजे हुए पत्र में अनिल गलगली ने विशेष मामला के तौर पर माफ किया हुआ किराया ब्याज सहित वसूल करने की मांग की हैं।

एकनाथ खडसे आणि गावितांचे निवासस्थान भाडे ५९ लाख रुपये फडणवीस सरकारने केले माफ

एकीकडे राज्याच्या तिजोरीत पैश्यांची चणचण भासत असून राज्य कर्जबाजारी झाले असताना फडणवीस सरकारने आपल्या पक्षातील दोन मातब्बर अश्या नेत्यांचे चक्क ५९ लाख रुपये माफ केल्याची माहिती समोर आली आहे. माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिलेल्या माहितीनुसार एकनाथ खडसे यांचे १५.४९ लाख तर डॉ विजयकुमार गावितांचे ४३.८४ लाख माफ केले असून तसे आदेसग सार्वजनिक बांधकाम खात्यास दिले आहेत.


माहिती अधिकार कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी सार्वजनिक बांधकाम खात्याकडे माजी महसूल मंत्री एकनाथ खडसे आणि माजी मंत्री डॉ विजयकुमार गावित यांस आकारलेल्या दंडाची रक्कम बाबत माहिती विचारली होती. सार्वजनिक बांधकाम खात्याच्या इलाखा शहर विभागाने अनिल गलगली यांस महाराष्ट्र शासनाने दंडाची रक्कम माफ करण्याबाबत जारी केलेल्या आदेशाची प्रत दिली. महाराष्ट्र शासनाने भाजपाच्या या दोन्हीही ज्येष्ठ आमदारांनी दंडात्मक रक्कम माफ करण्याची विनंती मान्य करत "विशेष बाब" अंतर्गत ५९ लाख रुपये माफ केले आणि याबाबतीत सामान्य प्रशासन विभागाने आदेश जारी करत तश्या सूचना सार्वजनिक बांधकाम खात्यास दिल्यात.


शासकीय निवासस्थान रामटेक बंगला वास्तव्यापोटी थकित भाडे रु १५,४९,९७४ इतकी रक्कम एकनाथ खडसे यांनी भरली नाही. शासकीय बंगला मंत्री पदावर असेपर्यंत वाटप करण्यात आला होता. खडसे यांनी मंत्री पदाचा राजीनामा दिनांक ४ जून २०१६ रोजी दिला आणि बंगला दिनांक १९ नोव्हेंबर २०१६ रोजी रिक्त करत शासनाच्या ताब्यात दिला. भाडे माफ करण्याची विनंती केल्यानंतर २६ मार्च २०१८ रोजी खडसे यांची विनंती विशेष बाब म्हणून शासनाने मान्य केली आहे. तर आघाडी सरकारच्या काळातील मंत्री डॉ विजयकुमार गावित यांनी ३३३० चौरस फुटाची 'सुरुचि'  सदनिका रिक्त केली नाही. गावित यांनी २० मार्च २०१४ रोजी मंत्री पदांचा राजीनामा दिला आणि दिनांक २९ जुलै २०१६ रोजी सदनिका रिक्त केली. त्यांच्यावर ४३ लाख ८४ हजार ५०० इतकी रक्कम गावित यांनी भरली नाही.भाडे माफ करण्याची विनंती दिनांक २९ जुलै २०१८ रोजी केल्यानंतर २२ ऑक्टोबर २०१८ रोजी गावित यांचे विनंती विशेष बाब म्हणून शासनाने मान्य केली आहे.

अनिल गलगली यांनी अश्याप्रकारे लाखों रुपयांचे भाडे माफ केल्याबद्दल आश्चर्य व्यक्त केले असून एकीकडे राज्य सरकारच्या तिजोरीत पैश्यांची चणचण असताना लाखों रुपयांचे भाडे माफ करणे चुकीचे आहे. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांसकडे पत्र पाठवित विशेष बाब म्हणून माफ केलेले भाडे व्याजासह वसूल करण्याची मागणी केली आहे.


Fadnavis govt waives Rent of Rs 59 lakhs recoverable from Eknath Khadse and Dr Vijaykumar Gavit

At the time when the state coffers are cash strapped and govt has huge burden of loans to be paid, the Devendra Fadnavis govt is showing largesse to its two prominent leaders by waiving Rs 59 lakhs recoverable from them by the government and has come to knowledge due to an response to an RTI query. In response to the RTI query filed by RTI Activist Anil Galgali, Rent amounting to Rs 15.49 Lakhs due on Eknath Khadse and Rd 43.84 Lakhs due on Dr Vijay Kumar Gavit was waived on an order issued to the PWD department.

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the PWD department about the penalty dues status of Former Revenue Minister Eknath Khadse and Former Minister Dr Vijayakumar Gavit. The City division of the PWD in a response to the query provided Galgali with the copy of the order issued by the government waiving the recoverable of penalty levied on the 2 leaders. The State Government waived the penalty amounting to Rs 60 lakhs payable by the two top BJP leaders as a 'special case' and the General Administration department issued orders to the effect to the PWD department.

Eknath Khadse was levied a penalty amounting to Rs 15,49,974/- for overstaying in the Ramtek bungalow beyond his allowed period post his resignation as Revenue Minister. Khadse had resigned as Minister on 4th June 2016 but vacated the bungalow on 19th November 2016. Khadse applied to the government seeking waiver of penalty on 26th March 2018 which was considered as a ' Special Case' . Similarly Dr Vijayakumar Gavit who was a Minister in the DF government had been allotted a flat admeasuring 3330 sq ft in the Suruchi building during his stint as minister, which was not vacated by him after ceasing to be a Minister. Gavit had resigned as Minister on 20th March 2014 but had continued to occupy the flat, which he eventually vacated on 29th July 2016. He was liable to pay a penal rent of Rs 43,84, 500/-, which he didn't pay. Finally he applied for a waiver form paying the charge vide an application dt 29th July 2018 and the same again was considered as a ' Special Case' on 22nd October 2018. 

Anil Galgali has expressed surprise over the largesse of waiver penalty granted by the government to the 2 BJP leaders and stated disappointment as the state coffers are empty and yet the government is waiving lakhs of rupees . In a letter addressed to CM Devendra Fadnavis, Galgali has demanded that the said dues waived as a 'Special Case' should be immediately recovered with interest.

Friday 16 November 2018

मुंबई डीपी प्लान तैयार करने पर १३.५९ करोड़ हुए खर्च

 बड़े लंबे इंतजार के बाद बनाई गई मुंबई शहर की डीपी (२०३४) को तैयार करने के लिए मुंबई महानगरपालिका प्रशासन ने अबतक १३.५९ करोड़ रुपए खर्च करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को दी हैं। इनमें सिर्फ विशेष कार्य अधिकारी रमानाथ झा के वेतन पर ४६.५५ लाख खर्च हुए हैं वहीं सूचना एवं आपत्ति जताने के लिए आयोजित सुनवाई के लिए 3 रिटायर्ड अफ़सरों पर 20 लाख खर्च हुए हैं।


मुंबई मनपा आयुक्त सीताराम कुंटे इनके समय में बनाया गया डीपी प्लान मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कैंसल किया था। आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई की डीपी यानी डेवलपमेंट प्लान (२०३४) की तैयारी को लेकर मनपा प्रशासन किए हुए खर्च की जानकारी मांगी थी। मुंबई महानगरपालिका प्रशासन के विकास नियोजन विभाग ने अनिल गलगली को जानकारी दी कि मुंबई की डीपी (२०३४) की पुर्नरचना के लिए अबतक १३ करोड़ ५९ लाख और ५६ हजार खर्च हुए हुए हैं। फरवरी २०१५ में प्रकाशित किए प्रारुप डेवलपमेंट प्लान (२०३४) पर ५ करोड़ ६० लाख ५ हजार खर्च हुए जिसमें २५ फरवरी २०१५ को प्रकाशित प्लान के काम के लिए नियुक्त सलाहकार मेसर्स इजिस जियोप्लान को ३.४२ करोड़ अदा किए। एमबी ग्राफिक्स और प्रिंटमोअर को ९६ लाख, मेसर्स एडीसीसी को १ करोड़ १३ लाख, वीके पाठक सलाहकार और इन्फॉरमल कमिटी सदस्यों को ७ लाख ९० हजार तथा मेसर्स विदर्भ इन्फोटेक को २०१५ में स्वीकार सूचना और आपत्ति डेटा एंट्री काम के लिए १६ लाख अदा किए हैं।


संशोधित प्रारुप डेवलपमेंट प्लान २०१५  में कुल १.९१ करोड़ खर्च किए गए हैं। विशेष कार्य अधिकारी रमानाथ झा को मई २०१५ से मई २०१६ इस कार्यकाल में वेतन पर १६.५५ लाख खर्च हुए और उनके लिए खरीदा गया नया कंप्यूटर पर ४६ हजार खर्च किया गया। कंसल्टेट फॉर डीसीआर टीम के कांजलकर को ३ लाख ७० हजार और इंफॉर्मल कमिटी सदस्यों को २ लाख दिए गए। मेसर्स अखिल भारतीय स्थानिक स्वराज्य संस्था द्वारा उपलब्ध कराए गए विभिन्न प्रकार के मनुष्यबल के लिए ३ करोड़ ३५ लाख ५५ हजार अदा किया हैं। बैटरी बैकअप के लिए मेसर्स एनएम सिस्टम को २९ हजार अदा किया गया हैं।


२७ मई २०१६ को प्रकाशित संशोधित प्रारुप डेवलपमेंट प्लान २०१४-२०३४ में ६ करोड़ ८ लाख ६ हजार खर्च हुए हैं। इसमें विशेष कार्य अधिकारी रमानाथ झा को जून २०१६ सितंबर २०१८ इस कार्यकाल में वेतन के तौर ओर ४० लाख अदा किए हैं। डीपी प्लान के अंतर्गत प्राप्त सूचना और आक्षेप पर आयोजित सुनवाई के लिए गठित कमिटी के ३ सदस्यों पर १९ लाख ९९ हजार ख़र्च किया गया हैं। इनमें गौतम चटर्जी, सुरेश सुर्वे और सुधीर घाटे का शुमार था। डीपी प्लान के विज्ञापन पर १४.८३ लाख खर्च हुए हैं वहीं भोजन पर २ लाख ८३ हजार खर्च हुए हैं। इसमें ३१ जुलाई २०१७ को मनपा की मंजूरी के लिए नगरसेवकों पर सिर्फ भोजन पर १ लाख ६५ हजार खर्च हुए हैं। मनपा की वेबसाइट पर डीपी प्लान को अपलोड करने के लिए लाइसेंस खरीदने के लिए मेसर्स आर्क जीआयएस सर्वर एंडहांस इंटरप्राइजेस को १ करोड़ २६ लाख अदा किए हैं। संशोधित डीपी २०३४ का नक्शा प्रिंटिंग के लिए ४६ लाख ९ हजार मेसर्स जयंत प्रिंटरी एलएलपी को अदा किया हैं। प्रारुप डेवलपमेंट प्लान २०३४ के तहत ताबड़तोड़ काम पर १० लाख ५७ हजार खर्च किए गए हैं।


अनिल गलगली के अनुसार यह रकम अधिक ख़र्चीली हैं। अगर पहला डीपी प्लान ठीक ढंग से बनाया जाता तो आम लोगों के टैक्स का पैसा बच जाता था।

मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा तयार करण्यासाठी १३.५९ कोटींचा खर्च

बहुप्रतिक्षित असा मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा (२०३४) तयार करण्यासाठी मुंबई महानगरपालिका प्रशासनाने आजमितीपर्यंत १३.५९ कोटी रुपये खर्च केल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिली आहे. यात फक्त विशेष कार्य अधिकारी असलेल्या रमानाथ झा यांच्या वेतनावर  ४६.५५ लाख खर्च झाले आहेत तर सूचना व हरकती सुनावणीसाठी आयोजित सुनावणीसाठी नेमलेल्या 3 माजी सेवानिवृत्त अधिका-यांच्या मानधन आणि सुविधावर २० लाख खर्च करण्यात आले आहे.

मुंबईचे आयुक्त सिताराम कुंटे यांच्या कारकिर्दीत तयार केलेला मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांनी रद्दबातल केला होता. आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा म्हणजे डीपी (२०३४) तयार करण्यासाठी मुंबई महानगरपालिका प्रशासनाला आलेल्या एकूण खर्चाची माहिती मागितली होती. मुंबई महानगरपालिका प्रशासनाने पालिकेच्या विकास नियोजन खात्याने अनिल गलगली यांस माहिती दिली की मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा (२०३४) पुर्नरचनेसाठी आजमितीपर्यंत १३ कोटी ५९ लाख आणि ५६ हजार खर्च करण्यात आले आहे. फेब्रुवारी २०१५ रोजी प्रकाशित केलेल्या मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडयावर (२०३४) ५ कोटी ६० लाख ५ हजार खर्च केले आहे ज्यात २५ फेब्रुवारी २०१५ रोजी प्रकाशित आराखडयाच्या कामासाठी नेमलेले सल्लागार मेसर्स इजिस जियोप्लानला ३.४२ कोटी अदा केले आहे. एमबी ग्राफिक्स आणि प्रिंटमोअर या कंपनीला ९६ लाख, मेसर्स एडीसीसीला १ कोटी १३ लाख, वीके पाठक सल्लागार आणि इन्फॉरमल समितीच्या सदस्यांना ७ लाख ९० हजार आणि मेसर्स विदर्भ इन्फोटेकला २०१५ मध्ये स्वीकारलेल्या सूचना आणि हरकतीच्या अनुषंगाने डेटा एंट्री कामासाठी १६ लाख  अदा केले आहे.

सुधारित मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा २०१५ मध्ये एकूण १.९१ कोटी खर्च केले गेले आहे. विशेष कार्य अधिकारी रमानाथ झा यांच्या मे २०१५ पासून मे २०१६ या कालावधीत वेतनावर १६.५५ लाख खर्च झाले आहे आणि त्यांच्यासाठी खरेदी केलेल्या संगणकावर ४६ हजार खर्च केले आहे. कंसल्टेट फॉर डीसीआर टीमचे कांजलकर यांस ३ लाख ७० हजार आणि इंफॉर्मल समितीच्या सदस्यांना २ लाख दिले आहे. मेसर्स अखिल भारतीय स्थानिक स्वराज्य संस्था तर्फे उपलब्ध केलेल्या विविध प्रकारच्या  मनुष्यबळासाठी ३ कोटी ३५ लाख ५५ हजार अदा केले आहे. बैटरी बैकअपसाठी मेसर्स एनएम सिस्टमला २९ हजार अदा केले आहे.

२७ मे २०१६ राजी प्रकाशित सुधारित मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा २०१४-२०३४ मध्ये ६ कोटी ८ लाख ६ हजार खर्च करण्यात आले आहे. यात विशेष कार्य अधिकारी असलेले रमानाथ झा यांस जून २०१६ पासून सप्टेंबर २०१८ या कालावधीत वेतन रुपाने ४० लाख अदा केले आहे. मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा अंतर्गत प्राप्त सूचना आणि हरकतीवर आयोजित सुनावणीसाठी नेमलेल्या समितीच्या ३ सदस्यांवर १९ लाख ९९ हजार ख़र्च करण्यात आले असून यात सर्वश्री गौतम चटर्जी, सुरेश सुर्वे आणि सुधीर घाटे यांचा समावेश आहे. मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा अंतर्गत जाहिरातींवर १४.८३ लाख खर्च करण्यात आले आहे तर जेवणावर २ लाख ८३ हजार खर्च करण्यात आले आहे. यात ३१ जुलै २०१७ रोजी महापालिकेच्या मंजूरीच्या अनुषंगाने महापालिका सदस्यांना भोजन व्यवस्थेवर १ लाख ६५ हजार खर्च करण्यात आले आहे.

 मुंबई महानगरपालिकेच्या संकेतस्थळावर मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा २०१४-२०३४ प्रदर्शित करण्यासाठी परवाना खरेदी करण्यासाठी मेसर्स आर्क जीआयएस सर्वर एंडहांस इंटरप्राइजेस या कंपनीला १ कोटी २६ लाख अदा करण्यात आले आहे. सुधारित मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा २०१४-२०३४ याचा नकाशा प्रिंटिंग करण्यासाठी ४६ लाख ९ हजार मेसर्स जयंत प्रिंटरी एलएलपी या कंपनीला अदा करण्यात आले आहे. मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा २०१४-२०३४ च्या अनुषंगाने तातडीच्या कामासाठी १० लाख ५७ हजार खर्च करण्यात आले आहे.

अनिल गलगली यांनी या खर्चास भरगच्च सांगत टीका केली की  पहिला मुंबईचा प्रारुप विकास आराखडा २०१४-२०३४ व्यवस्थित तयार केला गेला असता तर टॅक्सच्या रक्कमेतून उभारली जाणारी इतकी प्रचंड रक्कम खर्च झाली नसती.


Bmc spent 13.59 cr to prepare Mumbai's Revised DP plan

An RTI has found that Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) had to spent Rs 13.59 crore on various heads to come up with the revised Development Plan 2034, after the first plan presented in February 2015. 

The development plan prepared under the municipal commissioner Sitaram Kunte had drawn severe criticism from all the quarters and the chief minister Devendra Fadnavis had ordered civic body to come with new and revised development plan, by objections and suggestions from the public. 

The final footprint of this much awaited and debated revised plan was approved by the state government in this week only. 


According to the RTI, filed by RTI activist Anil Galgali has found that Rs 46.55 lakhs was paid to Ramanath Jha as remuneration who was appointed as the Officer on Special Duty (OSD) to come up with revised PD.

Information provided by the administrative officer of the Development Plan also says that it had to spend Rs 1.26 crore as the expense of uploading the draft development plan at BMC's website, while it had to spend Rs 46 lakhs for the printing of plan. 


Ex-IAS officer Gautam Chaterjee, Ex- chief engineer Sudhir Ghate and former deputy director (planning) were paid around Rs 20 lakhs for holding hearings, finalising objections and suggestions from the public. 

While Rs 3.35 crore was paid to Akhil Bhartiya Sthanik Swaraj Sanstha for hiring technical experts, planner and manpower," finds the reply. 

It also finds that BMC to spend Rs 10 lakh as contingency during the course of entire revision of planning. 

Terming this expenditure as "lavish" Galgali said that had the first plan been drafted well, then this huge money belonging to common tax payers.

Wednesday 14 November 2018

21 महीने से 17 प्रभाग कमिटी नामनिर्देशित सदस्य के बिना

मुंबई महानगरपालिका और 227 नगरसेवकों को 17 प्रभाग कमिटी पर प्रति प्रभाग 3 के हिसाब से नामनिर्देशित किए जानेवाले सदस्य शायद नहीं चाहिए। इसलिए गत 21 महीने से 17 प्रभाग कमिटी नामनिर्देशित सदस्य के बिना होने की जानकारी महानगरपालिका सचिव विभाग ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने दी हैं

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महानगरपालिका सचिव कार्यालय से मुंबई की प्रभाग कमिटी पर नामनिर्देशित सदस्यों की नियुक्ति की जानकारी मांगी थी।महानगरपालिका सच्ची5 कार्यालय के उप महानगरपालिका सचिव अब्दुल लतीफ काझी ने अनिल गलगली को बताया की 8 मार्च 2017 से अबतक सर्व 17 प्रभाग कमिटी पर नामनिर्देशित सदस्यों की आजतक नियुक्तियां नहीं हुई हैं। यह नियुक्ति के लिए महानगरपालिका सचिव विभाग विज्ञापन देकर प्रक्रिया का आरंभ करते हैं।

भारत की राज्य घटना ने स्थानिक स्वराज्य संस्था के प्रशासन को लोकापयोगी करने के लिए मुंबई महानगरपालिका अधिनियम, 1888 में संलग्नित धारा  50टट इस नई धारा में सुधार कर सत्ता का विकेंद्रीकरण किया। उसी के मद्देनजर मुंबई महानगरपालिका के इलाके में 17 प्रभाग कमिटी गठित की गई। प्रत्येक प्रभाग कमिटी में प्रभाग से चुनकर आए नगरसेवकों का समावेश होता हैं। प्रभाग कमिटी क्षेत्र में सामाजिक कल्याण कार्यक्रम में सक्रिय प्रतिष्ठीत बिगर शासकीय संस्था और सामाजिक संस्था के तीन से कम इतने सदस्य नगरसेवको द्वारा नामनिर्देशित करते हैं।

नगरसेवकों के कामकाज पर यह नामनिर्देशित सदस्य अंकुश रखकर गलत कामों को विरोध करेंगे और भ्रष्टाचार मामले में रोड़ा बनेंगे, इस डर से  इसके पहले चुनाव में पराजित पदाधिकारी और पंटरों को पिछले दरवाजे से प्रवेश भी दिलवाया था। 17 प्रभाग कमिटी पर  3 के हिसाब से 51 गैर राजनीतिक संस्था और सामाजिक संस्थाओं को काम करने का मौका मिल सकता था लेकिन मुंबई महानगरपालिका और ख़ासकर महानगरपालिका सचिव विभाग ने बरती नजरअंदाजी से अच्छा मौका गंवाने की टिप्पणी अनिल गलगली ने की हैं। नामनिर्देशित सदस्य नियुक्ति के मामले में महानगरपालिका आयुक्त ने ध्यान देते हुए भारतीय राज्य घटना का सम्मान करने की ज़रूरत बताते हुए अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र भेजकर नियुक्ति के मामले में जो भी अधिकारी जिम्मेदार होंगे उनपर कार्रवाई करने की मांग की हैं।

21 महिन्यांपासून 17 प्रभाग समित्या नामनिर्देशित सदस्यविना!

मुंबई महानगरपालिका आणि 227 नगरसेवकांना 17 प्रभाग समित्यांवर प्रत्येकी 3 प्रमाणे नामनिर्देशित केले जाणारे सदस्य नकोसे झाले आहेत. त्यामुळेच गेल्या 21 महिन्यांपासून 17 प्रभाग समित्या नामनिर्देशित सदस्यविना असल्याची माहिती महानगरपालिका चिटणीस विभागाने आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस दिली आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी महानगरपालिका चिटणीस कार्यालयाकडे मुंबईतील प्रभाग समितीवर नामनिर्देशित सदस्यांची नेमणूक बाबत विविध माहिती मागितली होती. महानगरपालिका चिटणीस कार्यालयातील उप महानगरपालिका चिटणीस अब्दुल लतीफ काझी यांनी अनिल गलगली यांस कळविले की 8 मार्च 2017 पासून सर्व 17 प्रभाग समित्यांमध्ये नामनिर्देशित सदस्यांची आजमितीपर्यंत नेमणूका करण्यात आली नाही. सदर नेमणूकीसाठी महानगरपालिका चिटणीस विभाग जाहिरात देत नेमणूक प्रक्रियेला प्रारंभ करतो.

भारताच्या घटनेने स्थानिक स्वराज्य संस्थांचे प्रशासन लोकापयोगी करण्याकरिता मुंबई महानगरपालिका अधिनियम, 1888 मध्ये संलग्नित असलेल्या कलम 50टट या नवीन कलमामध्ये सुधारणा करुन सत्तेचे विकेंद्रीकरण करण्यात आले. त्या अनुषंगाने मुंबई महानगरपालिकेच्या क्षेत्रामध्ये 17 प्रभाग समित्या तयार करण्यात आल्या. प्रत्येक प्रभाग समितीत प्रभागातून निवडून आलेल्या नगरसेवकांचा समावेश असतो. प्रभाग समिती क्षेत्रामधील सामाजिक कल्याण कार्यक्रमामध्ये व्यस्त असलेल्या प्रतिष्ठीत बिगर शासकीय संस्था आणि सामाजिक संस्थांचे तीनाहून कमी इतके सदस्य नगरसेवकांमार्फत नामनिर्देशित केली जातात.

नगरसेवकांच्या कामकाजावर हे नामनिर्देशित सदस्य अंकुश ठेवत चुकीच्या कामांस विरोध करतील तसेच भ्रष्टाचार प्रकरणात नाकीनऊ आणतील ही सुद्धा भीती असल्यामुळे यापूर्वी निवडणूक हरलेले पदाधिकारी आणि बगलबच्यांना मागील दारातून प्रवेश देण्याचे कृत्य ही करण्यात आले होते.  17 प्रभाग समित्यांवर प्रत्येकी 3 प्रमाणे 51 बिगर शासकीय संस्था आणि सामाजिक संस्थांच्या काम करण्याची संधी मिळाली असती पण मुंबई महानगरपालिका आणि विशेषतः महानगरपालिका चिटणीस विभागाने केलेल्या दुर्लक्षामुळे चांगली संधी हुकवली गेल्याची टीका अनिल गलगली यांनी केली आहे. नामनिर्देशित सदस्य नेमणूक प्रकरणात महानगरपालिका आयुक्तांनी लक्ष घालत भारतीय घटनेचा सम्मान करण्याची गरज असल्याचे सांगत अनिल गलगली यांनी मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस यांस पत्र पाठवित नेमणूक बाबतीत जे अधिकारी दोषी असतील त्यांसवर कार्यवाही करण्याची मागणी केली आहे.

Nominated Members posts in 17 Ward Councils (Prabhag Samitee) has been kept vacant for the past 21 months.

It seems the Mumbai Municipal corporation and the 227 elected municipal corporators have a dislike towards the Nominated members in the 17 Municipal Ward Councils, because these ward Councils are functioning without the 3 nominated Members for the past 21 months as per the information provided by the Municipal Secretary department to RTI Activist Anil Galgali.

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the Municipal Secretary department about various queries pertaining to nomination of the 3 members in the 17 Ward Councils. The Dy Municipal Secretary, Abdul Latif Kazi in a response to the queries informed that, since 8th March 2017 the position of  nominated members in the 17 Ward Councils have not been filled up. The position of Nominated members are filled up after the process is initiated by the Municipal Secretary department by issuing an Advt for the applications.

As per the constitutional provisions, and to ensure the devolution of powers in the Local Self government, the Section 50TT of the Mumbai Municipal corporation Act 1888 was ammended. After the ammendment the Municipal Corporation segregated the Greater Mumbai area into 17 Ward Councils, which includes the elected municipal corporators elected from the various wards comprised in the area under each Ward Council. Also as per ammendment, maximum 3 prestigious and respected person's engaged in various social activities through NGO's, Social Welfare organisation, etc are nominated to the Ward Councils as members.

There are always speculations that these nominated members act as stumbling block for the elected corporators as they keep a check on the various public activities carried out by the Municipal Corporation in those wards. To avoid this instances of nomination of those who lost their election  and close chamchas have also been found in the past, thereby creating a back door entry for such political workers. With 3 posts in the 17 municipal ward council each, a total of 51 seats meant for representative of NGO'S and social organisations have been deprived of opportunity to work for the welfare of the people in the area due to abject carelessness of the Mumbai Municipal Corporation in general and the Municipal Secretary office in particular alleged Anil Galgali. In a letter addressed to CM Devendra Fadnavis, Anil Galgali has demanded action against those officials responsible for the lapse and has appealed the Municipal Commissioner to uphold and respect the Constitutional provisions

Monday 5 November 2018

सरकारी क्वार्ट्स रिक्त न करनेवाले 15 अफ़सरों पर राज्य सरकार मेहरबान

सरकारी निवासस्थान में अनुज्ञेय समय के बाद अधिक निवास करनेपर दंडात्मक दर में एकओर वृध्दि करनेवाली राज्य सरकारनिवासस्थान रिक्त न करनेवाले 15 अफ़सरों पर मेहरबान होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को महाराष्ट्र सरकार ने दी हैं। इसमें प्रतिनियुक्ती और मुंबई के बाहर तबादला होने के बाद भी निवासस्थान में अधिक निवास करने की जानकारी सामने आई हैं।


आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार से सरकारी निवासस्थान में अनुज्ञेय समय के बाद अधिक निवास करनेवाले अफ़सरों की जानकारी मांगी थी। सामान्य प्रशासन विभाग ने अनिल गलगली को 15 अफ़सरों की जानकारी मांगी थी।  12 आईएएस और 3 आईपीएस अफसर हैं। आईएएस रश्मी शुक्ला का मुंबई के बाहर तबादला होने के बाद सरकारी निवासस्थान में रहने की मियाद बढ़ाते हुए वर्तमान में निवासस्थान नियमित किया गया हैं। सुरेंद्र बागडे मुंबई महानगरपालिका में कार्यरत हैं और उन्हें सरकारी निवासस्थान कब्जे में रखने की अनुमति दी हैं। विनित अगरवाल यह केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ती पर कार्यरत हैं और केंद्र सरकार का निवासस्थान प्राप्त होने तक राज्य सरकार का निवासस्थान कब्जे में रखने की अनुमति दी हैं। बलदेव सिंह भी केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ती पर कार्यरत हैं और उन्हें निवासस्थान दिनांक 31 मार्च 2019 तक कब्जे में रखने की अनुमति दी हैं। संजय चहांदे केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ती पर कार्यरत हैं और सरकारी निवासस्थान कब्जे में रखने की अनुमति सरकार ने दी हैं।


रिटायर्ड होने के बाद भी सरकारी निवासस्थान रिक्त न करनेवाले जे पी डांगे और वी गिरीराज यह 2 अफसर हैं। गिरीराज को दिनांक 30 अप्रैल 2018 तक सरकारी निवासस्थान में रहने की अनुमति दी गई थी। रिटायर्ड के बाद के पी बक्षी और दिलीप जाधव को क्रमशः महाराष्ट्र जलसंपत्ती नियमन प्राधिकरण पर अध्यक्ष और आपत्कालीन वैद्यकीय  सेवा प्रकल्प पर पुर्ननियुक्ति करने से उन्हें सरकारी निवासस्थान कब्जे में रखने की अनुमति दी हैं।

मुंबई के बाहर तबादला होने के बाद भी 6 अफ़सरों ने सरकारी निवासस्थान रिक्त नहीं किया हैं इसमें विजय सूर्यवंशी, अविनाश सुभेदार, कैलास शिंदे, किशोर राजे निंबालकर, राजेश देशमुख और मिलींद शंभरकर का शुमार हैं। मिलींद शंभरकर को दिनांक 30 अप्रैल 2018 तक मियाद बढ़ाकर दी गई थी वहीं राजेश देशमुख को दिनांक 31 मई 2019 तक निवासस्थान में रहने की अनुमति दी गई हैं। 

महाराष्ट्र सरकार ने गत 4 वर्ष में रिटायर्ड, प्रतिनियुक्ती और तबादले के बाद भी सरकारी निवासस्थान न छोड़नेवालों के लिए कड़ा नियम बनाकर दंडात्मक दर में वृद्धि की लेकिन दुर्भाग्य से हर बार सरकार ही ऐसे अफ़सरों को मदद कर उनपर मेहरबान होने का आरोप अनिल गलगली ने किया हैं। जिन अफ़सरों ने सरकारी जमीनपर बनाई गई बिल्डिंग या अन्य मार्ग से मकान हासिल किए हैं ऐसे ही अफसरों ने सरकारी निवासस्थानों पर कब्जा करने पर गलगली ने अफ़सोस जताया। दंडात्मक दर में वृद्धि कर सरकारी निर्णय एकओर निकालनेवाली सरकार दूसरीओर ऐसे अफ़सरों को बल देकर मेहरबानी क्यों कर रही हैं? ऐसा सवाल मुख्यमंत्री को भेजे हुए पत्र में अनिल गलगली ने पूंछा हैं।


शासकीय निवासस्थान रिक्त न करणाऱ्या 15 अधिका-यांवर राज्य शासन मेहरबान

शासकीय निवासस्थानात अनुज्ञेय कालावधीनंतर अधिक वास्तव्य करण्याबद्दल दंडनीय दरात एकीकडे वाढ करणारे दस्तुरखुद्द राज्य सरकार निवासस्थान रिक्त न करणाऱ्या 15 अधिका-यांवर मेहरबान असल्याची माहिती आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांस महाराष्ट्र शासनाने दिली आहे. यात प्रतिनियुक्तीवर आणि मुंबईबाहेर बदली झाल्यानंतरही निवासस्थानात अधिक वास्तव्य केले जात असल्याची बाब समोर आली आहे.

आरटीआय कार्यकर्ते अनिल गलगली यांनी महाराष्ट्र शासनाकडे शासकीय निवासस्थानात अनुज्ञेय कालावधीनंतर अधिक वास्तव्य करणाऱ्या अधिका-याची माहिती मागितली होती. सामान्य प्रशासन विभागाने अनिल गलगली यांस 15 अधिका-यांची यादी दिली ज्यात 12 भाप्रसे आणि 3 भापोसे या संवर्गातील अधिकारी आहेत. भाप्रसे रश्मी शुक्ला यांची मुंबई बाहेर बदली झाल्यानंतर शासकीय निवासस्थानात राहण्यास शासनाने मुदतवाढ दिली असून सद्या निवासस्थान नियमित करण्यात आले आहे. सुरेंद्र बागडे मुंबई महानगरपालिकेत कार्यरत असून शासकीय निवासस्थान ताब्यात ठेवण्यास परवानगी दिली आहे. विनित अगरवाल हे केंद्र शासनात प्रतिनियुक्तीने कार्यरत असून केंद्र शासनाचे निवासस्थान मिळेपर्यंत राज्य शासनाचे निवासस्थान ताब्यात ठेवण्यास परवानगी देण्यात आली आहे. बलदेव सिंह हे केंद्र शासनात प्रतिनियुक्तीने कार्यरत असून निवासस्थान दिनांक 31 मार्च 2019 पर्यंत ताब्यात ठेवण्यास परवानगी देण्यात आली आहे. संजय चहांदे केंद्र शासनात प्रतिनियुक्तीने कार्यरत असून शासनाचे निवासस्थान ताब्यात ठेवण्यास परवानगी शासनाने परवानगी दिली आहे.

सेवानिवृत्तीनंतरही शासकीय निवासस्थान रिक्त न करणारे जे पी डांगे आणि व्ही गिरीराज आहेत. गिरीराज यांस दिनांक 30 एप्रिल 2018 पर्यंत शासकीय निवासस्थानात राहण्यास मुदतवाढ देण्यात आली होती. सेवानिवृत्तीनंतर के पी बक्षी आणि दिलीप जाधव यांस अनुक्रमे महाराष्ट्र जलसंपत्ती नियमन प्राधिकरणावर अध्यक्ष आणि आपत्कालीन वैद्यकीय  सेवा प्रकल्पावर पूर्णनियुक्ती केली असून त्यांस शासकीय निवासस्थान ताब्यात ठेवण्यास परवानगी दिली आहे.

मुंबईबाहेर बदली झाल्यानंतरही 6 अधिका-यांनी शासकीय निवासस्थान रिक्त केले नसून यात विजय सूर्यवंशी, अविनाश सुभेदार, कैलास शिंदे, किशोर राजे निंबाळकर, राजेश देशमुख आणि मिलींद शंभरकर यांचा समावेश आहे. मिलींद शंभरकर यांस दिनांक 30 एप्रिल 2018 पर्यंत मुदतवाढ देण्यात आली होती. तर राजेश देशमुख यांस दिनांक 31 मे 2019 पर्यंत निवासस्थानात राहण्यास परवानगी दिली आहे.

महाराष्ट्र शासनाने गेल्या 4 वर्षांत सेवानिवृत्ती, प्रतिनियुक्ती आणि बदलीनंतरही शासकीय निवासस्थान न सोडणा-यांसाठी कडक नियम बनवित दंडनीय दरात वाढ केली पण दुर्दैवाने प्रत्येक वेळी शासनानेच अश्या अधिका-यांनास पाठीशी घालत मेहरबानी केल्याचा आरोप अनिल गलगली यांनी केला आहे. ज्या अधिका-यांनी शासकीय जमीनीवर बांधल्या गेलेल्या इमारतीत किंवा अन्य मार्गाने घरे मिळविली आहेत अश्या अधिका-यांनी शासकीय निवासस्थानात कब्जा केल्याची खंत अनिल गलगली यांनी व्यक्त केली आहे. दंडनीय दरात वाढ करत शासकीय निर्णय एकीकडे काढणारे शासनच दुसरीकडे अश्या अधिका-यांस बळ देत मेहरबानी का करत आहे? असा सवाल मुख्यमंत्र्यांना पत्र पाठविलेल्या पत्रात अनिल गलगली यांनी केला आहे.

Maharashtra government's benevolence on 15 Bureaucrats who are yet to vacate the official residence alloted to them

At a time when the state government has made a policy to levy penal charges on those over staying in the flats alloted to them, the government itself is acting benevolent on 15 Bureaucrats as per the information provided by the government to RTI Activist Anil Galgali. Of those 15 officials maximum are on deputation to central government or are posted out of Mumbai.

RTI Activist Anil Galgali had sought information from the state government seeking list of officials occupying government accommodation beyond the permitted period. The Government's General Administration department provided a list of 15 officials comprising of 12 IAS and 3 IPS officer's. IPS Rashmi Shukla has been posted out of Mumbai and apart from regularising her current accomodation has given extension for her Mumbai previously alloted flat. Surendra Bagade is on appointment with the Mumbai Municipal corporation and has been allowed to retain the state government accommodation. Vinit Agarwal is on deputation with the central government and he has been allowed to occupy the state government accommodation till he receives a central government accommodation. Baldev Singh is also on deputation to central government and has been allowed to retain the state accommodation till 31st March 2019. Sanjay Chahande too is on deputation to central government and has been allowed to retain the state accommodation.

We also have officers like J P Dange and V Giriraj who have not vacated their accommodation even after retirement. V Giriraj was given an extension upto 30th April 2018. After retirement, K P Bakshi and Dilip Jadhav have been reappointed to the State Water Conservation Commission and Emergency Medical Services respectively and they have been provided extension to the allotted government accommodation. 

The 6 officials namely, Vijay Suryavanshi, Avinash Subedar, Kailash Shinde, Kishore Raje Nimbalkar, Rajesh Deshmukh and Milind Shambarkar have been transferred out of Mumbai and have not yet vacated the government accommodation. Milind Shambarkar was given an extension to occupy the accommodation upto 30th April 2018 and Rajesh Deshmukh has been given extension upto 31st May 2019 to occupy the accommodation.

Anil Galgali has alleged that, the government has in the past 4 years made rules to increase the charges and levy penalty for those found not vacating the allotted flats after the period ends, but it is sad the government itself has been supporting and backing the officials. He also expressed regret that many officials have managed to get flats in buildings developed on government plots or some other means have been holding on the government accommodation as well. In a letter addressed to CM Devendra Fadnavis, Galgali has questioned the intention of the government for protecting such officials inspite of making rules to recover penal charges from those overstaying in government accommodations.