मुंबई से दिल्ली तक चले मुकदमेबाजी में एमएमआरडीए प्रशासन ने बीकेसी में स्थित भूमि को कोर्ट के मामले में रु 1.09 करोड़ रुपए खर्च कर डाले है। वेणुगोपाल और कुंभकोनी जैसे जाने-माने वकीलों की फौज खड़ी करने के बावजूद, लीजहोल्डर्स ने केस जीत लिया और एमएमआरडीए अब भी हारती ही चली जा रही है। ताज्जुब की बात है कि मनियार श्रीवास्तव एसोसिएट्स को एक के बाद केस हारने के बाद भी सबसे अधिक 1 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने एमएमआरडीए प्रशासन के कोर्ट में दायर मुकदमे की जानकारी मांगी थी जिसमें एमएमआरडीए द्वारा रघुलीला बिल्डर्स, मेसर्स नमन होटल लिमिटेड, रिलायंस इंडस्ट्रीज, इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और अन्य बिल्डर को बकाया धनराशि को लेकर नोटिस जारी की थी।
एमएमआरडीए प्रशासन ने अनिल गलगली को सूचित किया कि एमएमआरडीए प्रशासन ने इस संबंध में विभिन्न मामलों में वकीलों को 1.09 करोड़ रुपये का भुगतान किया है। सबसे अधिक 96.43 लाख रुपये की राशि रघुलीला होटल्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ दायर किए गए मुकदमें में खर्च की गई है। एमएमआरडीए की ओर से केके वेणुगोपाल और रघुलीला बिल्डर्स की ओर से हरीश साल्वे और मुकुल रोतगी आमने सामने थे। मराठा आरक्षण का मुकदमा लड़नेवाले आशुतोष कुंभकोनी ने भी एक सुनवाई के लिए 1.50 लाख रुपये का शुल्क लिया लेकिन एमएमआरडीए प्रशासन को कोई राहत नहीं मिली। एमएमआरडीए ने हर एक सुनवाई पर लाखों रुपये पानी की तरह खर्च किए हैं।
मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, शहरी विकास मंत्री एकनाथ शिंदे और एमएमआरडीए आयुक्त आरए राजीव को लिखे पत्र में अनिल गलगली ने कहा कि लचीली नीति ने अदालत में जाने का मौका दिया क्योंकि एमएमआरडीए ने समय पर कार्रवाई नहीं की। गलगली ने अफसोस जताया कि प्रख्यात वकीलों की फ़ौज भी अप्रभावी थी और बकाया वसूलने के बदले, लोगों के कर से एकत्रित धन मुकदमें पर खर्च किया गया है। मुकदमा हारने के बाद भी उसी कंपनी को क्यों बरकरार रखा गया और निजी कंपनी को बाहर क्यों नहीं रखा गया? यह सवाल गलगली ने पूछा है।
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