Monday 28 May 2018

एनएसई को- लोकेशन की जांच 12 महीने से प्रक्रिया में

किसी विशिष्ट ब्रोकरों को एनएसई में को-लोकेशन देने को बवाल मचा था और सेबी ने इस मामले की जांच भी शुरु की थी लेकिन आज 12 महीने के बाद जांच प्रक्रिया में होने का दावा कर भारतीय प्रतिभूति और विनियम बोर्ड यानी सेबी ने आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को जानकारी देने से इनकार किया। सेबी का दावा हैं कि यह जानकारी नियामक की सोच का खुलासा कर सकती हैं और नियामक के रणनीतिक निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं।

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने सेबी से जानकारी मांगी थी कि एनएसई को-लोकेशन को लेकर जारी जांच की जानकारी देते हुए इनमें शामिल उन दलालों के नाम और ब्यौरा दे। सेबी के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी नवीन सक्सेना ने अनिल गलगली को बताया कि एनएसई को-लोकेशन में चल रही जांच 11 मई 2017 को आरंभ हुई थी और कोर प्रोबे कमिटी के मामले की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं हैं। जबकि इस मामले का खुलासा वर्ष 2015 में हुआ था।

अनिल गलगली ने जानने की कोशिश की थी कि जिन स्टॉक ब्रोकरों को एनएसई ने वरीयता दी थी उनके नाम और उस दौरान अनुचित प्रवेश हुए लाभ की रकम को ब्यौरा दे। इसपर सेबी का तर्क था कि आपके द्वारा मांगी गई जानकारी विनियमित एजेंसी द्वारा नियामक को प्रदान की गई हैं।  जो नियामक इनपुट की प्रकृति में हैं और प्रकृति में अत्याधिक गोपनीय हैं और जो नियामक की सोच का खुलासा कर सकती हैं और नियामक के रणनीतिक निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं। सक्सेना ने आगे लिखा हैं कि इसतरह की सामारिक और गोपनीय जानकारी और भरोसेमंद क्षमता में प्राप्त जानकारी का खुलासा विशिष्ट रूप से प्रतिभूति बाजार के हित को प्रभावित करेगा और समझौता करेगा और देश के आर्थिक हितों को प्रभावित कर सकता हैं। इसलिए इसतरह की जानकारी का खुलासा आरटीआई अधिनियम 2005 की धारा 8(1) (क), 8(1) (घ) औऱ 8 (1)(ड) से छूट हैं। सेबी ने जारी की हुई शो कोज नोटीस और उसपर प्राप्त जबाब के अलावा ग़ैरव्यवहारिक व्यवहार और नियमों का उल्लंघन करनेवाली चीजों पाई गई थी उसकी भी जानकारी नहीं दी। जांच की मौजूदा स्थिति पर सेबी ने इतना ही कहा कि जांच प्रक्रिया में हैं।

अनिल गलगली का मानना हैं कि जांच शुरु होकर 1 वर्ष से अधिक का समय होने के बावजूद कोई निर्णय न लेना सीधे तौर पर उन ब्रोकरों तथा एनएसई को बचाने की रणनीति का ही हिस्सा हैं। इसतरह जांच प्रक्रिया में होने का तर्क बेतुका भी हैं और को-लोकेशन से जुड़े न सिर्फ ब्रोकर बल्कि अन्य लोगों को बचाने का काम हो रहा हैं।

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