Friday 9 March 2018

एमएमआरडीए की लेटलतीफी से आदिवासी पाड़ा के आदिवासियों का पुर्नवास लटका

जोगेश्वरी विक्रोली लिंक रोड के विकास के ऐवज में आईआईटी मुंबई और एमएमआरडीए प्रशासन में वर्ष 2007 में हुए अग्रीमेंट के तहत आज भी शत प्रतिशत पुर्नवास न होने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को आईआईटी मुंबई और एमएमआरडीए प्रशासन ने दी हुई जानकारी से सामने आई हैं। एमएमआरडीए प्रशासन की लेटलतीफी से पुर्नवास लटक गया हैं।

आरटीआई कार्यकर्ते अनिल गलगली ने आईआईटी मुंबई और एमएमआरडीए प्रशासन से आईआईटी पवई की जमीन पर स्थित आदिवासी पाडा के आदिवासियों के पुर्नवास की जानकारी मांगी थी। आईआईटी मुंबई के सहायक निबंधक एस एल धिवर ने अनिल गलगली को बताया कि आईआईटी मुंबई और एमएमआरडीए प्रशासन में वर्ष 2007 को अग्रीमेंट हुआ था जिसके लिए कोई रकम नहीं दी गई हैं। जोगेश्वरी विक्रोली लिंक रोड का विकास में आईआईटी मुंबई की 10559 वर्ग मीटर जमीन प्रभावित हुई थी उसके ऐवज में एमएमआरडीए प्रशासन ने किसी भी तरह का हर्जाना नहीं दिया हैं। एमएमआरडीए प्रशासन ने प्रभावित जमीन पर स्थित विभिन्न सेवा का स्थानांतरण के लिए आईआईटी मुंबई को  रु 3.16/- करोड़ अदा किए हैं।  एमएमआरडीए प्रशासन ने वर्ष 2011 में  99 झोपड़ों का स्थानांतरण किया।  घाटकोपर उप जिलाधिकारी ने वर्ष 2013 में पवई के पेरुबाग, भांगशीला इन इलाकों के झोपडों का सर्वे किया और  433 झोपड़ों की संख्या तय की।  आईआईटी मुंबई एमएमआरडीए प्रशासन से जमीन मुक्त करने और झोपड़ों का पुर्नवास के लिए पहल कर रहे हैं। इस इलाके में  हिंस्त्र जनावर और प्राणियों का संचार अधिक हैं। पुर्नवास होगा इसलिए सरकार भी आदिवासी पाडा के लोगों को सुविधा मुहैय्या नहीं करा रही हैं।

एमएमआरडीए प्रशासन को मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एमयूटीपी पुर्नवास पॉलिसी के तहत आदिवासी पाड़ा के लोगों का पुर्नवास करने का वर्ष 2016 को दिया था लेकिन एमएमआरडीए प्रशासन ने उसपर ताबड़तोब कार्रवाई नहीं की जिससे आदिवासियों के जान को खतरा पैदा हुआ हैं। गत 10 वर्ष से पुर्नवास लटकने से आईआईटी मुंबई ने पूरी जिम्मेदारी  एमएमआरडीए प्रशासन पर डाली हैं। अनिल गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से शिकायत कर एमएमआरडीए प्रशासन के कामकाज पर प्रश्नचिन्ह लगाया हैं। अनिल गलगली ने आदिवासी पाड़ा के आदिवासियों का पुर्नवास नाहूर या कांजूरमार्ग स्थित एमएमआरडीए की वसाहत में करने की मांग की हैं।

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