प्रिंट मीडिया आज भी विश्वसनीय है
फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र की मौत की झूठी खबर ने एक बार फिर मीडिया की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया, यूट्यूब और कुछ तथाकथित न्यूज़ चैनलों पर सोमवार को अभिनेता धर्मेन्द्र के निधन की फेक न्यूज ने देशभर में हड़कंप मचा दिया। लाखों लोगों ने बिना सत्यापन किए इस खबर को आगे बढ़ाया, श्रद्धांजलि संदेश पोस्ट किए और भावनात्मक वीडियो बनाए। लेकिन हकीकत यह थी कि धर्मेन्द्र जी बिल्कुल स्वस्थ थे और बुधवार की सुबह 7:30 बजे उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल से छुट्टी मिली।
प्रिंट मीडिया ने निभाई अपनी ज़िम्मेदारी
जहाँ सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने खबर को बिना जांचे फैलाया वहीं प्रिंट मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी का परिचय दिया। समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रकाशित करने से पहले उसकी सत्यता की जांच की और जब पुष्टि नहीं मिली तो उसे प्रकाशित न करने का निर्णय लिया। यह निर्णय न केवल पत्रकारिता की मर्यादा का प्रतीक है, बल्कि समाज में विश्वसनीय सूचना देने का भी प्रमाण है।
TRP और व्यूज़ की दौड़ में मानवीयता भूल रहा है मीडिया
आज के डिजिटल युग में “पहले खबर दो, बाद में जांच करो” की प्रवृत्ति ने पत्रकारिता की जड़ों को कमजोर कर दिया है। TRP और क्लिक के लालच में कई प्लेटफॉर्म संवेदनशील खबरों को भी सनसनी में बदल देते हैं। धर्मेन्द्र जैसे लोकप्रिय कलाकार के बारे में बिना प्रमाण के मृत्यु की खबर चलाना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि यह एक व्यक्ति और उसके परिवार की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है।
परिवार और समाज पर मानसिक प्रभाव
ऐसी झूठी खबरें सिर्फ़ व्यक्ति की छवि को प्रभावित नहीं करतीं बल्कि उनके परिवार, मित्रों और प्रशंसकों को भी गहरा मानसिक आघात देती हैं। धर्मेन्द्र के परिवार ने इन खबरों को देखकर जो तनाव और पीड़ा झेली होगी उसे समझना मुश्किल नहीं है। अफवाहों का यह खेल, किसी के जीवन और सम्मान दोनों से खिलवाड़ है।
प्रिंट मीडिया की भूमिका सराहनीय
जब सारे डिजिटल प्लेटफॉर्म वायरल खबरों के पीछे भाग रहे थे तब प्रिंट मीडिया ने साबित किया कि "सत्यापन के बिना समाचार नहीं” यही असली पत्रकारिता है। आज भी अखबार समाज में विश्वसनीय सूचना का सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं। उनकी संपादकीय नीति, तथ्य-जांच प्रणाली और जवाबदेही उन्हें बाकी मीडिया से अलग बनाती है।
धर्मेन्द्र की फेक न्यूज ने एक बार फिर यह सिखाया है कि तकनीक के इस दौर में भी जिम्मेदारी, संयम और सत्य का मूल्य घटा नहीं है। अगर समाज को सही सूचना चाहिए, तो उसे फेक न्यूज की भीड़ से नहीं बल्कि जिम्मेदार पत्रकारिता से उम्मीद रखनी होगी।
🖋️ – अनिल गलगली
(मीडिया विश्लेषक एवं जनसूचना कार्यकर्ता)
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