Wednesday, 12 November 2025

प्रिंट मीडिया की भूमिका सराहनीय


प्रिंट मीडिया आज भी विश्वसनीय है


फिल्म अभिनेता धर्मेन्द्र की मौत की झूठी खबर ने एक बार फिर मीडिया की विश्वसनीयता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। सोशल मीडिया, यूट्यूब और कुछ तथाकथित न्यूज़ चैनलों पर सोमवार को अभिनेता धर्मेन्द्र के निधन की फेक न्यूज ने देशभर में हड़कंप मचा दिया। लाखों लोगों ने बिना सत्यापन किए इस खबर को आगे बढ़ाया, श्रद्धांजलि संदेश पोस्ट किए और भावनात्मक वीडियो बनाए। लेकिन हकीकत यह थी कि धर्मेन्द्र जी बिल्कुल स्वस्थ थे और बुधवार की सुबह 7:30 बजे उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल से छुट्टी मिली।

प्रिंट मीडिया ने निभाई अपनी ज़िम्मेदारी

जहाँ सोशल मीडिया और डिजिटल प्लेटफॉर्म्स ने खबर को बिना जांचे फैलाया वहीं प्रिंट मीडिया ने अपनी जिम्मेदारी का परिचय दिया। समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रकाशित करने से पहले उसकी सत्यता की जांच की और जब पुष्टि नहीं मिली तो उसे प्रकाशित न करने का निर्णय लिया। यह निर्णय न केवल पत्रकारिता की मर्यादा का प्रतीक है, बल्कि समाज में विश्वसनीय सूचना देने का भी प्रमाण है।

TRP और व्यूज़ की दौड़ में मानवीयता भूल रहा है मीडिया

आज के डिजिटल युग में “पहले खबर दो, बाद में जांच करो” की प्रवृत्ति ने पत्रकारिता की जड़ों को कमजोर कर दिया है। TRP और क्लिक के लालच में कई प्लेटफॉर्म संवेदनशील खबरों को भी सनसनी में बदल देते हैं। धर्मेन्द्र जैसे लोकप्रिय कलाकार के बारे में बिना प्रमाण के मृत्यु की खबर चलाना न केवल गैर-जिम्मेदाराना है बल्कि यह एक व्यक्ति और उसके परिवार की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है।

परिवार और समाज पर मानसिक प्रभाव

ऐसी झूठी खबरें सिर्फ़ व्यक्ति की छवि को प्रभावित नहीं करतीं बल्कि उनके परिवार, मित्रों और प्रशंसकों को भी गहरा मानसिक आघात देती हैं। धर्मेन्द्र के परिवार ने इन खबरों को देखकर जो तनाव और पीड़ा झेली होगी उसे समझना मुश्किल नहीं है। अफवाहों का यह खेल, किसी के जीवन और सम्मान दोनों से खिलवाड़ है।

प्रिंट मीडिया की भूमिका सराहनीय

जब सारे डिजिटल प्लेटफॉर्म वायरल खबरों के पीछे भाग रहे थे तब प्रिंट मीडिया ने साबित किया कि "सत्यापन के बिना समाचार नहीं” यही असली पत्रकारिता है। आज भी अखबार समाज में विश्वसनीय सूचना का सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं। उनकी संपादकीय नीति, तथ्य-जांच प्रणाली और जवाबदेही उन्हें बाकी मीडिया से अलग बनाती है।

धर्मेन्द्र की फेक न्यूज ने एक बार फिर यह सिखाया है कि तकनीक के इस दौर में भी जिम्मेदारी, संयम और सत्य का मूल्य घटा नहीं है। अगर समाज को सही सूचना चाहिए, तो उसे फेक न्यूज की भीड़ से नहीं बल्कि जिम्मेदार पत्रकारिता से उम्मीद रखनी होगी।

🖋️ – अनिल गलगली
(मीडिया विश्लेषक एवं जनसूचना कार्यकर्ता)

Monday, 10 November 2025

डॉ उमाकान्त बाजपेयी को श्रद्धांजलि

डॉ उमाकान्त बाजपेयी को श्रद्धांजलि


मुंबई महानगर में राजभाषा हिंदी के प्रचार-प्रसार के समर्पित सिपाही, “हिंदी का साथ, हिंदी का विकास और हिंदी पर विश्वास” के प्रतीक तथा आशीर्वाद संस्था के संस्थापक डॉ. उमाकान्त बाजपेयी की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन जुहू के क्लब मिलेनियम में किया गया।

इस अवसर पर शहर के साहित्यकार, पत्रकार, गायक, संस्कृति कर्मी, कलाकार एवं राजनेता उपस्थित रहे और सभी ने डॉ. बाजपेयी के योगदान को याद करते हुए श्रद्धा सुमन अर्पित किए।

कार्यक्रम में प्रमुख अतिथियों के रूप में पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह, मुंबई भाजपा अध्यक्ष विधायक अमित साटम, उपाध्यक्ष आचार्य पवन त्रिपाठी, नगरसेविका सुधा सिंह, रंगकर्मी ओम कटारे, साहित्यकार अभिलाष अवस्थी, डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय, महेश दुबे, डॉ. वागीश सारस्वत, डॉ. राधेश्याम गुप्ता, गायक उदित नारायण, बृज मोहन अग्रवाल, संपादक अभिजीत राणे, डॉ. बनमाली चतुर्वेदी, राजिल सयानी, मितुल प्रदीप, हरीश भिमानी, वीरेंद्र याग्निक, डॉ. मुकेश गौतम, कवि नारायण अग्रवाल, फिल्मकार अशोक पंडित, चैतन्य पादुकोण, एड. अरविंद तिवारी, एड. पुनीत चतुर्वेदी, एड. विजय सिंह, डॉ. प्रमिला शर्मा, लक्ष्मी यादव, गीतकार रासबिहारी पांडेय, अर्चना जौहरी, डॉ. शैलेश श्रीवास्तव, रजिया रागिनी, राम जवाहरानी, शायर सतीश शुक्ल ‘रकीब’, आफताब आलम, अनिल गलगली, अमर त्रिपाठी, रीमा राय सिंह, संगीता दुबे, राजीव रोहित, राज किशोर तिवारी, रवि यादव, रेखा बब्बल, चित्रा देसाई, एड. अंजनी सिंह, अशोक त्रिवेदी समेत शहर के अनेक प्रतिष्ठित नागरिक उपस्थित थे। सभी ने डॉ. बाजपेयी की हिंदी सेवा और समाज सेवा की मुक्त कंठ से सराहना की।

उल्लेखनीय है कि 87 वर्षीय डॉ. उमाकान्त बाजपेयी ने कुछ दिनों पूर्व अन्न-जल त्याग कर 6 नवंबर को स्वेच्छा से गोलोक गमन किया। कार्यक्रम में उनकी पुत्रियाँ — नीता, निरुपमा और संगीता तथा दामाद शेखर ने उपस्थित जनों के प्रति आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम का संचालन देवमणि पाण्डेय और राजेश विक्रांत ने किया।

इस अवसर पर कृपाशंकर सिंह ने डॉ. बाजपेयी की स्मृति को अक्षुण्ण रखने हेतु उन पर आधारित एक पुस्तक सृजन का सुझाव दिया। आशीर्वाद के पूर्व चेयरमैन राम जवाहरानी ने घोषणा की कि उनकी संस्था सहयोग फाउंडेशन डॉ. बाजपेयी की स्मृति में एक “डॉ. उमाकान्त बाजपेयी स्मृति पुरस्कार” प्रारंभ करेगी।

डॉ. बाजपेयी का जीवन हिंदी, साहित्य और समाजसेवा के प्रति समर्पित रहा। उन्होंने 1969 में ‘आशीर्वाद’ पत्रिका की स्थापना की और 1977 में आशीर्वाद संस्था की नींव रखी। वे भारतीय जीवन बीमा निगम में 1998 तक कार्यरत रहे।

उनके चार कहानी संग्रह — ‘एक था नर एक थी मादा’, ‘एक मृग सोने का’, ‘बैंड बाजा बुलेट’ और ‘जय राम जी की’ — हिंदी कथा-साहित्य में विशिष्ट स्थान रखते हैं।

उन्होंने 1974 और 1978 में अखिल भारतीय लेखक सम्मेलन का सफल आयोजन किया, जो मुंबई का पहला हिंदी लेखक सम्मेलन माना जाता है। 1978 से उन्होंने आशीर्वाद फिल्म अवार्ड प्रारंभ किया, जो पच्चीस वर्षों तक लगातार आयोजित होता रहा, जिसमें सिनेमा जगत की अनेक प्रसिद्ध हस्तियाँ शामिल होती थीं।

1991 से उन्होंने आशीर्वाद राजभाषा पुरस्कार एवं सम्मेलन का शुभारंभ किया, जो आज भी निरंतर जारी है।

डॉ. उमाकान्त बाजपेयी सचमुच हिंदी की आत्मा के साधक और साहित्य, समाज तथा संस्कृति को जोड़ने वाले सेतु थे। उनके कार्य हिंदी जगत में सदैव प्रेरणा के स्रोत बने रहेंगे।