Thursday 10 November 2022

बक्सर में श्रीराम की लगेगी विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा- रामभद्राचार्य जी

बक्सर में श्रीराम की लगेगी विश्व की सबसे बड़ी प्रतिमा- रामभद्राचार्य जी

■ कथा में चित्रकूट स्थित तुलसी पीठाधीश्वर ने व्यक्त किया संकल्प

■ श्री वामनेश्वर कॉरिडोर व अहिल्या उद्धार मंदिर निर्माण की घोषणा


'अहिल्या धाम' में आयोजित सनातन संस्कृति समागम के श्रीराम कथा में तुलसी पीठाधीश्वर श्री रामभद्राचार्य जी ने कहा कि प्रभु श्रीराम विश्व के रत्न हैं। लिहाजा शख़्सियत के अनुसार उनकी पहचान भी होनी चाहिए। उन्होंने उनकी प्रथम कर्मभूमि सिद्धाश्रम की विश्वस्तरीय पहचान कायम करने के लिए बक्सर में भगवान श्रीराम की विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा स्थापित करने की घोषणा की।

अपनी 1357 वीं श्रीराम कथा में महाराज श्री ने बक्सर की अस्मिता को विश्व पटल पर स्थापित करने का संकल्प व्यक्त करते हुए कहा कि श्रीराम कर्मभूमि बक्सर में हम ताड़का और सुबाहु का वध करते हुए भगवान श्रीराम की इतिहास की सबसे बड़ी प्रतिमा स्थापित करेंगे। इसके साथ ही परम उन्होंने वामनेश्वर भगवान कॉरिडोर, अहिल्या माता मन्दिर का जीर्णोद्धार के साथ उन्हें उद्धार करते हुए श्रीराम की प्रतिमा स्थापित करने की वचनबद्धता भी दुहराई, ताकि श्रीराम जन्म भूमि का दर्शन करने वाले उनकी प्रथम कर्मभूमि को भी प्रणाम करने बक्सर आएं।

नौ-नौ रुपए से होगी राशि की व्यवस्था

स्वामी जी ने कहा की इस पावन कार्य को सिद्ध करने में मिनिस्टर से लेकर मिस्टर तक की भूमिका होगी। लिहाजा मंत्री अश्विनी चौबे के संसदीय क्षेत्र के प्रत्येक परिवार से 99 रुपये की राशि इकट्ठा कर इसमें बक्सर की जनता की भागदारी सुनिश्चित की जाएगी। उन्होंने कहा की भगवान श्रीराम का जन्म नवमी तिथि को हुआ था, लिहाजा 9 रुपये की राशि पूर्ण है। इस मौके पर स्वामी अभ्यानंद जी महाराज व स्वामी अगमानंद जी महाराज के अलावा समागम कार्यक्रम के संयोजक व मंत्री अश्विनी कुमार चौबे, विधान परिषद के पूर्व अध्यक्ष अवधेश नारायण सिंह, अर्जित शाश्वत चौबे व अविरल शाश्वत चौबे समेत अन्य लोग मौजूद थे।



सत्कर्म के लिए हर समय शुभ मुहूर्त: स्वामी अनंताचार्य

अहिल्या धाम अहिरौली में चल रहे सनातन संस्कृति समागम के चौथे दिन गुरुवार को वृंदावन से पधारे जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री अनंताचार्य जी महाराज ने श्रीमद्भागवत कथा की विधि व महत्व का वर्णन किया। जिसमें वैष्णवाचार्यो व कथावाचकों के गुणों का वर्णन करते हुए महाराज श्री ने कहा कि व्यास पीठ पर बैठने वालों को ईर्ष्या, द्वेष व अहंकार से स्वयं को दूर रखना चाहिए। उन्हें खुद को सबसे छोटा समझना चाहिए, क्योंकि सबसे छोटे को गिरने का भय नहीं होता। कथावाचक को काम, क्रोध, लोभ व मोह से भी मुक्त होना चाहिए। क्योंकि सांसार के सागर में डूबा व्यक्ति किसी दूसरे को इस मोह-माया के सागर से कैसे निकाल सकता है? श्रीमद्भागवत कथा श्रवण विधि का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा भगवान के नाम सुमिरन या उनके गुणगान सुनने के लिए किसी निश्चित समय की आवश्यकता नहीं होती है।




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