Tuesday, 29 December 2015

एक ट्विटर की शिकायत पर आफताब खान के कर्णावर्त प्रत्यारोपण शस्त्रक्रिया का रास्ता साफ़

अली यावरजंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुंबई द्वारा कर्णावर्त तंत्रिका प्रत्यारोपण ( Cochlear Implants Surgery ) को लेकर 4 वर्षीय आफ़ताब आलम खान का परिवार इस प्रतिक्षा में है कि उसका बच्चा प्रत्यारोपण के बाद सुन सकेगा लेकिन लालफीताशाही के चलते गत 1 वर्ष से तारीख पर तारीख मिल रही हैं। इस पुरे मामले की शिकायत आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने ट्विटर पर केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत से करने के बाद कारवाई शुरु हुई और उसकी सर्जरी का रास्ता साफ़ हुआ हैं। अली यावरजंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान के निदेशक डॉ ए के सिन्हा ने दिनांक 28/12/2015 को केंद्रीय सामाजिक न्याय सशक्तीकरण मंत्रालय के सह सचिव अवनीश अवस्थी को भेजे हुए पत्र में अनिल गलगली द्वारा किए गए ट्विट का हवाला देकर सर्जरी की तारीख नायर अस्पताल से जल्द से जल्द तय की करने की बात का जिक्र किया हैं। इसके अलावा कल्याण स्थित निवासी शाकिर बेग का बेटा हसनेन को नायर अस्पताल और बेटी हमजा का मामला माजगाव डॉक द्वारा संचालित सीएसआर के पास सर्जरी के लिए भेजा गया हैं। मुंबई के साकीनाका निवासी अब्दुल रहीम खान का 4 वर्षीय बेटा आफ़ताब आलम खान गत 20 नवंबर 2014 से आज तक कर्णावर्त तंत्रिका प्रत्यारोपण (Cochlear Implants Surgery) के लिए भागदौड़ कर रहा हैं। अली यावरजंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुंबई को दिनांक 17 दिसंबर 2014 को उनके बेटे की सर्जरी को मंजूरी दी और दिनांक 12 फरवरी 2015 को पत्र भेजकर नायर अस्पताल स्थित डॉ बछि हाथीराम से संपर्क करने को कहा। वहां पर करीब 6 बार डॉ बछि और डॉ विकी ने देखा जिसके लिए 45 बार जाना पड़ा। यहाँ से उन्होंने एक रिपोर्ट बनाकर अली यावरजंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुंबई को भेज दी। फिर यहाँ पर नए सिरे से टेस्ट की गई। इसतरह एक छोटीसी सर्जरी के लिए गत 1 वर्ष से केंद्र सरकार का संस्थान अली यावरजंग राष्ट्रीय श्रवण विकलांग संस्थान, मुंबई दौड़ा रहा था । इसके अलावा कल्याण निवासी शाकिर बेग का बेटा हसनेन और बेटी हमजा को भी 8 महीने से दौड़ाया जा रहा हैं। अनिल गलगली के अनुसार अगर केंद्र सरकार की मदद करने की क्षमता नही है तो सीधे कहना चाहिए नाकि 4 वर्षीय बच्चे के जीवन से खिलवाड़ करना चाहिए। न जाने ऐसे कितने मामले होगे जो केंद्र सरकार की लचर व्यवस्था और लालफीताशाही की बलि न चढ़ जाए। यह तो विकलांगों से अन्याय समान हैं। ऐसे मामलों में समय अवधि तय होनी चाहिए ताकि विकलांग व्यक्ती अन्य विकल्प की तलाश कर सके, ऐसी मांग अनिल गलगली ने की हैं।

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