महाराष्ट्र की आबादी 12.35 करोड़ हैं और सूचना का अधिकार कानून को यानी 'आरटीआई' को शत प्रतिशत जनमानस में पहुंचाने का काम सरकार का होता हैं लेकिन गत 7 वर्ष में आरटीआई के प्रचार-प्रसार पर महाराष्ट्र सरकार ने सिर्फ रु 33.75 लाख खर्च करने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को महाराष्ट्र सरकार ने दी हैं।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने महाराष्ट्र सरकार से सूचना का अधिकार कानून के प्रचार व प्रसार के लिए खर्च किए गए रकम की जानकारी मांगी थी। सामान्य प्रशासन विभाग की अवर सचिव श्वे प्र खडे ने अनिल गलगली को जानकारी दी कि सूचना का अधिकार अधिनियम का प्रसार करने के लिए वर्ष 2011-12 इस वित्तीय वर्ष में रु 9 लाख का प्रावधान किया था। इस रकम से सूचना अधिकार की 9,000 मार्गदर्शिका शासकीय मुद्रणालय, मुंबई से मुद्रित कर ली गई थीं। मुद्रित की मार्गदर्शिका राज्य के विभिन्न सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा वितरित की गई हैं। वर्ष 2012-13 में 2 लाख, वर्ष 2013-2014 में 5 लाख, वर्ष 2014-15 में 4.25 लाख, वर्ष 2015-16 में 3.50 लाख, वर्ष 2016-17 में 5 लाख और वर्ष 2017-18 में 5 लाख का प्रावधान मंजूर किया गया हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के सभी नागरिकों को सवाल पूछने की अपील तो करते हैं लेकिन केंद्र सरकार द्वारा सूचना का अधिकार कानून के प्रचार और प्रसार के लिए एक दमड़ी भी नहीं देने का सनसनीखेज खुलासा हुआ हैं। अनिल गलगली के अनुसार आज महाराष्ट्र के अधिकांश नागरिकों को सूचना का अधिकार कानून का व्यवस्थित ज्ञान नहीं होते हुए सरकार भी जनजागरण के लिए पहल नहीं करती हैं। गलगली ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को पत्र भेजकर मांग की हैं कि जिला स्तर पर सूचना का अधिकार कानून की जानकारी और महत्व समझाकर उसके इस्तेमाल करने के लिए प्रोत्साहन देने के लिए प्रयास करना चाहिए और अधिकाधिक निधी उपलब्ध कराए जाएं।
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