मुंबई विद्यापीठ के ऑन स्क्रीन मार्किंगच्या सेवा (ऑनलाइन मूल्यांकन) के लिए निश्चित किया वार्षिक टर्नओवर की रकम तकनीकी मार्क कम करने का सनसनीखेज खुलासा आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को उपलब्ध कराए गए दस्तावेजों से हो रहा हैं। 100 करोड़ का टर्नओवर की शर्त को 30 करोड़ किया गया और 70 के बजाय 60 मार्क करने से यह सारी गड़बड़ी हुई और एक विशेष कंपनी को ठेका मिलने में सहायक साबित हुआ। अपरोक्ष तौर प्त मुंबई विद्यापीठ के ऑन स्क्रीन मार्किंग की सेवा के लिए टर्नओवर और तकनीकी मार्क में हुआ बदलाव से मेरिट ट्रक कंपनी लाभान्वित हुई।
आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने ऑनलाइन पेपर की जांच और अन्य मामलों की जानकारी मांगी थी। मुंबई विद्यापीठ के केंद्रीय मूल्यांकन केंद्र ने अनिल गलगली को उपलब्ध कराए हुए दस्तावेजों से स्पष्ट हो रहा हैं कि एक विशेष कंपनी को लाभ दिलाने के लिए 3 बार टेंडर जारी किया गया। मुंबई विद्यापीठ के मार्च 2017 के परीक्षाओं की उत्तर पत्रिका का ऑन लाइन मार्किंग ( OSM) के कंप्यूटर प्रणाली सेवा के लिए 28 फरवरी 2017 को जारी किए टेंडर को प्रतिसाद नहीं मिला। मुंबई विद्यापीठ ने 100 करोड़ का टर्नओवर की शर्त को सीधे 30 करोड़ किया और मार्क को 70 के बजाय 60 किया। प्रथम एक्सटेंशन 21 मार्च 2017 तक था जिसे 2 कंपनी ने प्रतिसाद दिया। तीसरी कंपनी न आने से फिर एक बार 27 मार्च 2017 तक एक सप्ताह का दूसरा एक्सेंटशन दिया गया। फिर तीसरी कंपनी न आने से डॉ विजय जोशी की नेतृत्व में तकनीकी टेंडर कमिटी का गठन किया गया। टाटा कन्सल्टन्सी सर्विसेस इस ठेकेदार की तकनीकी मार्क की संख्या 95 इतनी थी वहीं मेरिट ट्रक सर्विस प्रायवेट लिमिटेड की मार्क की संख्या 45 थी। विशेष यानी मेरिट ट्रक कंपनी तकनीकी टेंडर बैठक में उपस्थित नहीं था ना उस ठेकेदार ने कंप्यूटर प्रणाली को पेश किया था। तकनीकी टेंडर कमिटी के समक्ष न आने वाले मेरिट ट्रक कंपनी ने 28 अप्रैल 2017 को मुंबई विद्यापीठ के व्यवस्थापन परिषद के समक्ष प्रो सुरेश उकरंडे की मदद से संपूर्ण ब्यौरा दिया। इसके एक दिन पहले पहले 27 एप्रिल 2017 को परचेज कमिटी ने मेरिट ट्रक कंपनी को काम जारी किया। व्यवस्थापन परिषद में सरकारी प्रतिनिधी के तौर पर मौजूद सिद्धार्थ खरात , डॉ रोहिदास काळे और डॉ सुभाष महाजन इन तीनों ने इसका विरोध भी किया लेकिन वाईस चांसलर ने न जाने किसके दबाव में खुद की जिम्मेदारी पर निर्णय लिया, इसकी जांच होती हैं तो मुंबई से आंध्रप्रदेश तक इसका कनेक्शन मिल सकता हैं।
सिर्फ हर एक उत्तर पत्रिका का दाम अधिक होने से टाटा कन्सल्टन्सी सर्विसेस इस कंपनी को बाहर का रास्ता दिखाया गया। टाटा ने रु 49.90/- तो मेसर्स मेरिट ने रु 23.90/- इतना दाम मांगा था। लेकिन यहीं मेरिट कंपनी नियमों की पूर्तता न करने से इसके पहले 60 मार्क तक नहीं पहुंची थी। उस वक्त इसी कंपनी को सिर्फ 45 मार्क मिले थे। विशेष यानी 27 अप्रैल 2017 को चयन होते ही दूसरे दिन ही मेसर्स मेरिट ट्रक कंपनी को आशय पत्र दिया गया और 2 मई 2017 को कार्यादेश जारी किया गया। मुंबई विद्यापीठ ने 20 पन्ने का सामंजस्य करार 8 अगस्त 2017 को तैयार किया।
जिस तकनीकी कमिटी की अपरिपक्वता से मेसर्स मेरिट ट्रक कंपनी को काम जारी हुआ और गड़बड़ी हुई उस कमिटी पर विराजित डॉ विजय जोशी, प्रो सुरेश उकरंडे और राजेंद्र दानोळे को कुलपती ने अभयदान दिया हैं। 5 सदस्य होते हुए सिर्फ 3 सदस्यों ने एकमत से निर्णय लेने से उनपर भी कारवाई करने की जरुरत हैं।
अनिल गलगली ने राज्यपाल विद्यासागर राव को पत्र भेजकर टेंडर प्रक्रिया की जांच कर तकनीकी कमिटी के सदस्यों पर भी कारवाई करने की मांग की हैं।नियमों पर आधारित मार्कस को नजरअंदाज कर मुंबई विद्यापीठ ने पैसे बचाने के लिए मेसर्स मेरिट ट्रक कंपनी को काम देने का तर्क गड़बड़ वाला हैं इसकी जड़ें मुंबई से आंध्रप्रदेश तक होने की संभावना हैं। इस पुरे मामले की जांच सीआईडी से होती हैं तो निश्चित तौर पर बडा खुलासा हो सकता हैं।
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