Tuesday, 13 June 2017

पोस्टल निदेशालय की मंजूरी न मिलने से अटका मुंबई जीपीओ का जीर्णोद्धार प्रस्ताव

प्लास्टर गिरने और इमारत का कुछ हिस्सा खतरनाक होने के बावजूद मुंबई जीपीओ की इमारत में कार्यरत 1000 से अधिक अधिकारी और कर्मचारी जान हथेली पर लेकर अपने कर्तव्य का निर्वाह कर रहे हैं। इस परिस्थिती के बाद भी मुंबई जीपीओ का संरक्षण, जीर्णोद्धार और रखरखाव के रु 47.58 करोड़ के प्रस्ताव को पोस्टल निदेशालय की मंजूरी गत 16 महीने से न मिलने की जानकारी आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को मुंबई जीपीओ ने दी हैं। दुर्घटना हमेशा होने से हजारों नागरिकों की जान भी खतरे में हैं। 

आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने मुंबई जीपीओ से मुंबई जीपीओ इमारत की रखरखाव की जानकारी मांगी थी। मुंबई जीपीओ के लीगल और इमारत विभाग ने अनिल गलगली को जानकारी दी कि मुंबई कार्यालय ने सबसे पहले 29 जनवरी 2016 को प्रस्ताव बनाया था और 10 मार्च 2016 को प्रशासकीय मंजूरी के लिए  पोस्टल निदेशालय के पास भेजा था। मुंबई जीपीओ का संरक्षण, जीर्णोद्धार और रखरखाव का प्रस्ताव 47 करोड़ 58 लाख 52 हजार 560 /- इतना हैं जो इंडियन नॅशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट अँड कल्चरल हेरिटेज से प्राप्त हुआ हैं। हर वर्ष 10 से 15 प्रतिशत खर्च में वृद्धि होना लाजमी हैं।यह संस्था पोस्टल विभाग के पॅनल पर हैं। पोस्टल निदेशालय ने सिर्फ 30 लाख का फंड आबंटित किया लेकिन मंजूरी अब तक नहीं दी हैं।

मुंबई शहर में जो 633 इमारत हेरिटेज हैं उसमें जो 4 हेरिटेज इमारत सही ढंग से संरक्षित नहीं की हैं उसमें मुंबई जीपीओ इमारत का भी शुमार हैं। वर्ष 2008-2009 में विख्यात आर्किटेक आभा लांबा और भारतीय पुरातनशास्त्र सर्वेक्षण विभाग से भी सलाह ली गई थी और दोनों की ओर से तत्काल मुंबई जीपीओ की इमारत का संरक्षण, जीर्णोद्धार और रखरखाव की जरुरत बताई गई। मुंबई जीपीओ इमारत में हमेशा दुर्घटना होती रहती हैं। एक पीड़ित व्यक्ती ने वर्ष 2012 में जीपीओ की लापरवाही के खिलाफ सिविल सूट भी कोर्ट में दायर किया हैं।  

अनिल गलगली ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भेजे हुए पत्र में गृहार लगाई हैं कि मुंबई जीपीओ इमारत का महत्व ऐतिहासिक हैं, ऐसी स्थिती में प्रस्ताव को मंजूरी न मिलने से 1000 अधिकारी और कर्मचारियों के अलावा रोजाना काम से आनेवाले नागरिकों की जान ख़तरे में हैं।।जिस अधिकारी के चलते यह प्रस्ताव 16 महीने प्रलंबित हैं उसकी जांच कर कार्रवाई की मांग अनिल गलगली ने की हैं।

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