Friday, 29 April 2016
आदर्श' की सच्चाई जानने पर खर्च हुए थे 7.04 करोड़
साल 2010 में मुंबई में आदर्श सोसायटी घोटाले के सामने आने के बाद केवल महाराष्ट्र ही नहीं पूरा राष्ट्र हिल गया था। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चह्वाण को इस्तीफा देना पड़ा। बहुत हंगामा हुआ। जांच बैठी। और अब जबकि जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट सौंप दी है तब उस जांच दल की जांच पड़ताल की गई तो वह आदर्श सोसायटी से बड़े घोटाले के रूप में सामने आ रहा है। क्या आप उम्मीद कर सकते हैं कि सच्चाई की जांच के लिए बने इस जांच आयोग ने किस तरह पैसा खर्च किया होगा? इस आयोग पर 7.04 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
एक छोटा सा उदाहरण सुन लीजिए। मुंबई हाईकोर्ट में सुनवाई के लिए अकेले एक सीनियर वकील को फीस के तौर पर 1 करोड़, 48 लाख, 40 हजार रूपये अदा कर दीजिए।अगर घोटाले की तुलना इस जांच से करें तो यह घोटाले से बड़ा घोटाला है। और केवल एक वरिष्ठ वकील दीपन मर्चन्ट को ही इतनी मोटी फीस नहीं अदा की गई। जूनियर वकीलों को भी तीन साल में हजारों नहीं बल्कि लाखों में फीस अदा की गई क्योंकि हाईकोर्ट में दाखिल पीआईएल की सुनवाई के दौरान ये वकील वहां अपना पक्ष रखने जाते थे। सिर्फ वकीलों पर इस आयोग ने उनकी फीस के बतौर 3 करोड़ 96 लाख रूपये खर्च कर दिये।
मुंबई के आरटीआई एक्टिविस्ट अनिल गलगली द्वारा प्राप्त की गई जानकारी के अनुसार सरकार ने आदर्श जांच आयोग पर 842 दिनों में 7.04 करोड़ रूपये खर्च कर दिये। यानी सरकार ने प्रतिदिन घोटाले की जांच पर 83,605 रुपये खर्च किया। और अति तो यह है कि 7 करोड़ खर्च करके जो रिपोर्ट हासिल की गई उसकी एकमात्र प्रति प्रकाशित की गई और वह भी किसी प्रिंटिग प्रेस में नहीं बल्कि कम्प्यूटर से उसका प्रिंटआउट निकालकर इसी अप्रैल महीने में सरकार को सौंप दिया गया था।आदर्श सोसायटी की जांच के लिए 8 जनवरी 2011 को जांच आयोग के गठन का ऐलान किया गया था। जांच आयोग का अध्यक्ष हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज जे ए पाटिल को नियुक्त किया गया था जबकि आयोग के कार्यकारी सचिव पूर्व मुख्य सचिव पी सुब्रमण्यम को बनाया गया था। इनके अलावा इस आयोग में 14 अन्य स्टाफ भी नियुक्त किये गये थे। आयोग को 30 अप्रैल 2013 तक अपनी रिपोर्ट देनी थी। उसने रिपोर्ट तय समय से 12 दिन पहले दे भी दिया लेकिन इस दौरान आयोग ने जो खर्च किया वह ऐसे जांच आयोगों पर ही बड़ा सवाल उठाता है जो सच्चाई की जांच के लिए गठित किये जाते हैं।सिर्फ वकीलों को ही भारी भरकम फीस नहीं अदा की गई। आयोग के कर्मचारियों की सैलेरी पर भी 28 महीनों में 1 करोड़ 88 लाख रूपये खर्च किये गये। इसके अलावा 7 लाख 99 हजार टेलीफोन और बिजली पर खर्च कर दिये गये।
अनिल गलगली कहते हैं, आदर्श घोटाले में मुंबई मेट्रोपोलिटन रिजन डेपलमेन्ट अथारिटी (एमएमआरडीए) भी एक आरोपी था, लेकिन मजे की बात तो यह है कि इस आरोपी ने भी जांच पड़ताल पर जमकर धन खर्च किया है और कुल खर्चे में 1 करोड़ रूपये सरकार की ओर से एमएमआरडीए ने ही अदा किये हैं। इसके साथ ही एमएमआरडीए ने अपनी तरफ से आयोग को एक कर्मचारी भी मुहैया करा रखा था जो 'जांच में मदद' कर रहा था। आदर्श घोटाले की जांच करने के लिए बने इस आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट तो सरकार को सौंप दी है लेकिन आरटीआई के तहत सामने आई इस जानकारी के बाद अब इस जांच आयोग की जांच कौन करेगा?
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