Tuesday, 26 April 2016

विज्ञापन खर्च की जानकारी चाहिए तो दिल्ली आए

पारदर्शकता और स्वच्छ सरकार चलाने का अरविंद केजरीवाल सरकार दावा तब खोखला साबित हुआ जब मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली को विज्ञापन खर्च की जानकारी आंकड़ो में देने के बजाय उन्हें दिल्ली स्थित सूचना एवं प्रचार निदेशालय में आकर फाइलों का निरीक्षण करने की सलाह दी गई हैं। दिल्ली सरकार द्वारा विज्ञापन खर्च की जानकारी संकलित रुप में उपलब्ध न होने का तर्क दिया गया हैं। मुंबई के आरटीआई कार्यकर्ता अनिल गलगली ने 8 मार्च 2016 को दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रसार संचालनालय से दिल्ली में वर्तमान सरकार गठित होने के 1 वर्ष पूर्ण होने पर जारी किए गए विभिन्न विज्ञापनों की जानकारी के साथ शीला दीक्षित सरकार के कार्यकाल में 1 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य में जारी किए विभिन्न विज्ञापनों की भी जानकारी मांगी थी। अनिल गलगली ने आगे यह भी जानने की कोशिश की थी कि सरकार दिल्ली में कार्यरत होते हुए दिल्ली के बाहर विज्ञापन देने के लिए आम दिल्लीवासियों की राय मंगाने के लिए की हुई पहल की जानकारी दे। दिल्ली सरकार के सूचना एवं प्रसार संचालनालय के उप निदेशक राजीव कुमार ने 15 मार्च 2016 को गलगली का आवेदन विज्ञापन, शब्दार्थ और क्षेत्रीय प्रचार यूनिट को हस्तांतरित किया गया। क्षेत्रीय प्रचार यूनिट के उप निदेशक एम सी मौर्य ने 17 मार्च 2016 को उनके कार्यालय स्थित रेकॉर्ड का निरीक्षण करने की सलाह देते हुए संबंधित विभाग के जन सूचना अधिकारी से स्वतंत्र तौर पर सूचना जमा करने को कहा। शब्दार्थ के जन सूचना अधिकारी ने 4 अप्रैल 2016 को उनका विभाग सूचना एवं प्रसार निदेशालय के आदेश पर विज्ञापन जारी करने की जानकारी देते हुए अन्य मांगी हुई सूचना उनसे संबंधित न होने का दावा किया। विज्ञापन की जन सूचना अधिकारी नलिन चौहान ने गलगली को जबाब दिया कि मांगी गई जानकारी संकलित रुप में उपलब्ध नही हैं। अत: आवेदक उनके कार्यालय में आकर संबंधित फाइलों का निरीक्षण कर सकता हैं जिससे मांगी गई जानकारी की फोटोप्रति भुगतान पर दी जा सके। अनिल गलगली ने केजरीवाल सरकार के इसतरह के जबाब पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें लगा था कि शायद उनकी केजरीवाल सरकार पारदर्शक और स्वच्छ कामकाज के तहत विज्ञापन की जानकारी और उसपर हुए खर्च के आंकड़े ताबड़तोब देगी लेकिन आंकड़े तो दूर की बात उन्हें दिल्ली बुलाकर फाइलों का निरीक्षण करने का जबाब सरासर आरटीआई कानून का उल्लंघन हैं क्योंकि उन्होंने अपने आवेदन में फाइल निरीक्षण का जिक्र तक नहीं किया था। गलगली ने मुंबई में प्रकाशित विज्ञापन पर होनेवाला खर्च फिजुलखर्च बताते हुए इसे सरकारी फंड का दुरुप्रयोग बताते हुए केजरीवाल से अपील की हैं कि कुछ तो पारदर्शक बने और विज्ञापन खर्च का एक एक पैसे का हिसाब जनता को देते हुए सार्वजनिक करे।

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