ईवीएम की विश्वनीयता पर उठ रहे सभी तर्कों पर लगा पूर्णविराम!
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम एक बार फिर सवालों के घेरे में है। हाल में हुए महाराष्ट्र के चुनावों में भाजपा प्रणीत गठबंधन की एकतरफा जीत से राजनीतिक दलों ने फिर से इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाना शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने बैलेट पेपर वोटिंग सिस्टम को दोबारा शुरू करने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर ईवीएम की विश्वनीयता पर उठ रहे सभी तर्कों पर पूर्णविराम लगा दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि ईवीएम से पार्टियों को दिक्कत नहीं है, आपको क्यों है। ऐसे आइडिया कहां से लाते हो। इस पर याचिकाकर्ता केए पॉल ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू और वाईएस जगन मोहन रेड्डी जैसे नेताओं ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ पर सवाल उठाए हैं। बेंच ने कहा, चंद्रबाबू नायडू या जगन मोहन रेड्डी जब चुनाव हारते हैं तो कहते हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ होती है और जब वे जीतते हैं तो वे कुछ नहीं कहते हैं। हम इसे कैसे देख सकते हैं। हम इसे खारिज कर रहे हैं। ये वो जगह नहीं है जहां आप इस सब पर बहस करें।
दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो ईवीएम के खिलाफ आंदोलन छेड़ने और बैलट पेपर से वोटिंग की मांग कर दी है। शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे ने फैसला किया है कि जिन मतदान केंद्र पर ईवीएम छेड़छाड़ का शक है, वहां पर 5 फीसदी वीवीपैट के रीकाउंटिंग की याचिका दायर की जाएगी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। इसके पहले सपा नेता अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने केंद्र सरकार को बैलट से चुनाव कराने की चुनौती दी थी। हालांकि चुनाव आयोग ने एक बार फिर इन बातों को गंभीरता से नहीं लिया। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओमप्रकाश रावत ने तो यहां तक कहा कि ईवीएम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है क्योंकि वह बोल नहीं सकती। जब राजनीतिक दल हार को हजम नहीं कर पाते तो ईवीएम पर ठीकरा फोड़ देते हैं। आयोग और राजनीतिक दलों की इस रस्साकशी से जनता भ्रम में पड़ गई है। महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के पहले ही चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं होती। ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित है। ईवीएम की बैटरी पर भी पोलिंग एजेंट के साइन होंगे। ईवीएम 3 लेयर की सिक्योरिटी में रहेगी। चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम में सिंगल यूज बैटरी लगती है। ईवीएम में मोबाइल जैसी बैटरी नहीं होती है।
ईवीएम कैसे आई भारत में?
ईवीएम का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद ने किया है। इसका पहली बार इस्तेमाल मई, 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर हुआ, लेकिन 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रूप दिए जाने का आदेश दिया। दिसंबर, 1988 में संसद ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61 ए, जो चुनाव आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। इसका संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ। फिर केंद्र सरकार ने फरवरी, 1990 में अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई और इस समिति को ईवीएम के प्रयोग पर विचार करने को कहा। इसके साथ ही सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन मशीनों से छेड़छाड़ संभव नहीं है।
24 मार्च 1992 को केंद्रीय विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानून, 1961 में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की गई। नवंबर 1998 के बाद से आम चुनाव-उप-चुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर 10.75 लाख ईवीएम के इस्तेमाल के साथ ही ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया। तब से सभी चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल जारी है। इन मशीनों से झटपट परिणाम आने के कारण चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और मतदाताओं ने इसे हाथोंहाथ लिया। पंचायतों तक के चुनाव में इनका प्रयोग शुरू हो गया। इनका चलन इतना बढ़ गया है कि बैलट पेपर बहुत पिछड़ी प्रणाली नजर आने लगी है। ईवीएम से वोट डालने में ज्यादा समय नहीं लगता और गिनती बड़ी आसानी से हो जाती है। इसके इस्तेमाल से फ़र्जी मतदान तथा बूथ कब्जे की घटनाओं में कमी का दावा किया गया है।
निरक्षर लोग ईवीएम को मतपत्र प्रणाली से अधिक आसान पाते हैं। मत-पेटिकाओं की तुलना में ईवीएम को पहुंचाने तथा वापस लाने में आसानी होती है। सबसे बड़ी बात है कि इनका इस्तेमाल बिना बिजली के किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैटरी से चलती है। यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक न हो तो ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव कराए जा सकते हैं। एक ईवीएम मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है। ऐसा नहीं है कि ईवीएम के खराब होने को लेकर आयोग सचेत नहीं रहा है। इसको ध्यान में रखते हुए ही एक अधिकारी को मतदान के दिन लगभग 10 मतदान केंद्रों को कवर करने के लिए ड्यूटी पर लगाया जाता है। वे अपने पास अतिरिक्त ईवीएम रखे रहते हैं ताकि खराब ईवीएम को नई ईवीएम से बदला जा सके। ईवीएम के खराब होने के समय तक दर्ज मत कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में सुरक्षित रहता है।
ईवीएम के सुरक्षा प्रबंधों में रह गई खामियों के मद्देनजर उसमें समय-समय पर तब्दीलियां भी की गई हैं, लेकिन इस्तेमाल के थोड़े ही दिनों बाद ईवीएम की विश्वसनीयता पर विवाद शुरू हो गया। सबसे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में इसकी विश्वसनीयता को चुनौती दी गई। तत्कालीन भाजपा नेता डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने कांग्रेस की लोकसभा में हुई जीत के बाद ईवीएम पर संदेह जताया था। भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिंहराव ने ‘डेमोक्रेसी ऐट रिस्क’ किताब में ईवीएम कैसे लोकतंत्र की हत्या करती है, इसका ब्यौरा पेश कर सनसनी फैलाई थी। भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी ईवीएम का विरोध किया था, लेकिन जब चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम हैक करने की चुनौती दी तब कोई भी दल आगे नहीं आया। आज कांग्रेस भी भाजपा की तर्ज पर ईवीएम का विरोध करती नजर आ रही है।
मुंबई सहित महाराष्ट्र में ईवीएम को लेकर जिन उम्मीदवारों ने सवाल उठाए है उसपर चुनाव आयोग के जबाब से ईवीएम की विश्वसनीयता बढ़ गई है। मुंबई स्थित दहिसर विधानसभा क्षेत्र में ईवीएम में गड़बड़ी के एमएनएस उम्मीदवार राजेश येरुनकर के आरोपों को खारिज कर दिया। येरुनकर ने दावा किया था कि उन्हें मतदान केंद्र पर केवल दो वोट मिले, जबकि उनके परिवार के चार सदस्यों ने वहां मतदान किया था। उन्होंने वोटों की गिनती पर भी सवाल उठाए। मनपा द्वारा स्पष्ट किया कि येरुनकर को वास्तव में संबंधित मतदान केंद्र पर 53 वोट मिले थे, जिससे मतदान डेटा और ईवीएम संख्याओं के बीच विसंगतियों के उम्मीदवार के दावों का खंडन हो गया। चुनाव में मतदान प्रतिशत जल्दबाजी में दिखाने के चकल्लस में राजनीतिक दल हो या मीडिया ने उन पोस्टल वोट को नहीं जोड़ा। जिससे बाद में अतिरिक्त वोटों की वृद्धि पर सवाल उठाए गए।
मतदान होने के पश्चात क्या ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है? इसपर कई कहानियां सामने आ रही है। मतदान के बाद स्ट्रांग रूम में ईवीएम को सुरक्षित रखा जाता है। पहले तो इस स्ट्रांग रूम के बाहर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता 24 घंटे पहरा देते थे। अब यह परंपरा बंद हो गई है। लेकिन मुंबई, ठाणे जैसे क्षेत्र में उम्मीदवारों ने स्ट्रांग रूम के बाहर चौकस व्यवस्था रखी थी। अब यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या, मतदान के बाद सील की गई ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है? इसपर कोई अधिकृत शिकायत चुनाव आयोग के पास दर्ज नहीं होने से चुनाव आयोग ने इसपर कोई राय नहीं रखी हैं।
महाराष्ट्र हो या झारखंड के विधानसभा चुनाव की दृष्टि से हर चुनावी कार्यालय में मतदान मशीनें तैयार करने की प्रक्रिया का जिला चुनाव अधिकारी निरीक्षण कर एक मशीन पर स्वयं मॉकपोल करते है। उसवक्त सभी राजनीतिक दल के प्रमुख कार्यकर्ता भी उपस्थित रहते है। मतदान के दिन भी इसीतरह की प्रक्रिया का अनुपालन होता है। वैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने मानक संचालन प्रक्रिया जारी की हैं। जो प्रत्याशी ईवीएम में वोटों के सत्यापन की मांग कर रहे हैं, उन्हें प्रत्येक ईवीएम सेट के निश्चित शुल्क अदा करना होता है। यह सबसे कारगर उपाय है। ईवीएम को कोसने के बजाय आज सभी दलों को मिल-बैठकर इस पर विचार करना चाहिए कि यह फूलप्रूफ कैसे ईवीएम बने। बेहतर होगा कि वे आयोग के साथ सहयोग करें।
अनिल गलगली
सूचना अधिकार कार्यकर्ता
कई प्रकार की जानकारियां उपलब्ध कराता सारगर्भित लेख।
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