भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हो रहे विदेशी युवा : डॉ. चिन्मय पण्ड्या
पश्चिमी देशों के युवा अब तेजी से भारतीय संस्कृति और जीवनशैली की ओर आकर्षित हो रहे हैं। योग, ध्यान और आध्यात्मिकता उनके जीवन का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। यह विचार देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति एवं युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने व्यक्त किए। वे हाल ही में अपने 18 दिवसीय यूरोप, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड और लातविया प्रवास से लौटे हैं।
हरिद्वार में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. पण्ड्या ने बताया कि विदेशों में युवाओं के बीच भारतीय संस्कृति को लेकर नई जागरूकता और उत्सुकता का माहौल है। विशेषकर यूरोप और उत्तर अमेरिका में युवा वर्ग केवल योग और ध्यान को शारीरिक व्यायाम के रूप में नहीं देख रहा, बल्कि इसे एक समग्र जीवनशैली के रूप में अपना रहा है। वे संतुलित आहार, संयमित व्यवहार और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने को भारतीय जीवन दृष्टिकोण का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।
डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भौतिकतावादी जीवनशैली से उत्पन्न तनाव और अकेलापन विदेशों के युवाओं में गहराई से महसूस किया जा रहा है। ऐसे में भारतीय परंपरा में निहित आध्यात्मिकता, ध्यान और आत्मिक शांति का मार्ग उन्हें भीतर से मजबूत बनाने में सहायक हो रहा है।
उन्होंने बताया कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विश्वविद्यालय भारत सहित अनेक देशों में सेमिनार, योग शिविर और यज्ञीय आयोजनों के माध्यम से भारतीय मूल्यों को आगे बढ़ा रहा है। इससे विदेशी युवाओं को न केवल भारत की प्राचीन परंपराओं से परिचित कराया जा रहा है, बल्कि उन्हें आत्मविकास और मानसिक संतुलन का मार्ग भी दिखाया जा रहा है।
2026 में वंदनीया भगवती देवी शर्मा जी की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में भारत और विदेशों में “ज्योति कलश यात्रा” निकाली जा रही है। डॉ. पण्ड्या ने बताया कि शिकागो, कनाडा और विनिपेग जैसे शहरों में इस यात्रा में स्थानीय युवाओं की विशेष भागीदारी रही।
अपने विचार साझा करते हुए डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति का वैश्वीकरण कोई नया विषय नहीं है, लेकिन अब यह एक संगठित और उद्देश्यपूर्ण आंदोलन का रूप ले रहा है। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले वर्षों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता विश्व में और अधिक प्रभावशाली रूप से अपनी छाप छोड़ेगी और इसमें भारत की युवा पीढ़ी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।
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