Friday, 29 November 2024

ईवीएम की विश्वनीयता पर उठ रहे सभी तर्कों पर लगा पूर्णविराम!

ईवीएम की विश्वनीयता पर उठ रहे सभी तर्कों पर लगा पूर्णविराम!

इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम एक बार फिर सवालों के घेरे में है। हाल में हुए महाराष्ट्र के चुनावों में भाजपा प्रणीत गठबंधन की एकतरफा जीत से राजनीतिक दलों ने फिर से इसकी विश्वसनीयता पर प्रश्न उठाना शुरू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस पीबी वराले की बेंच ने बैलेट पेपर वोटिंग सिस्टम को दोबारा शुरू करने की मांग करने वाली याचिका खारिज कर ईवीएम की विश्वनीयता पर उठ रहे सभी तर्कों पर पूर्णविराम लगा दिया है। 


सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता से सवाल किया कि ईवीएम से पार्टियों को दिक्कत नहीं है, आपको क्यों है। ऐसे आइडिया कहां से लाते हो। इस पर याचिकाकर्ता केए पॉल ने कहा कि चंद्रबाबू नायडू और वाईएस जगन मोहन रेड्डी जैसे नेताओं ने भी इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन से छेड़छाड़ पर सवाल उठाए हैं। बेंच ने कहा, चंद्रबाबू नायडू या जगन मोहन रेड्डी जब चुनाव हारते हैं तो कहते हैं कि ईवीएम से छेड़छाड़ होती है और जब वे जीतते हैं तो वे कुछ नहीं कहते हैं। हम इसे कैसे देख सकते हैं। हम इसे खारिज कर रहे हैं। ये वो जगह नहीं है जहां आप इस सब पर बहस करें। 


दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो ईवीएम के खिलाफ आंदोलन छेड़ने और बैलट पेपर से वोटिंग की मांग कर दी है। शिवसेना पक्ष प्रमुख उद्धव ठाकरे ने फैसला किया है कि जिन मतदान केंद्र पर ईवीएम छेड़छाड़ का शक है, वहां पर 5 फीसदी वीवीपैट के रीकाउंटिंग की याचिका दायर की जाएगी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा है। इसके पहले सपा नेता अखिलेश यादव और बसपा प्रमुख मायावती ने केंद्र सरकार को बैलट से चुनाव कराने की चुनौती दी थी। हालांकि चुनाव आयोग ने एक बार फिर इन बातों को गंभीरता से नहीं लिया। तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ओमप्रकाश रावत ने तो यहां तक कहा कि ईवीएम को बलि का बकरा बनाया जा रहा है क्योंकि वह बोल नहीं सकती। जब राजनीतिक दल हार को हजम नहीं कर पाते तो ईवीएम पर ठीकरा फोड़ देते हैं। आयोग और राजनीतिक दलों की इस रस्साकशी से जनता भ्रम में पड़ गई है। महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव के पहले ही चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम में कोई गड़बड़ी नहीं होती। ईवीएम पूरी तरह सुरक्षित है। ईवीएम की बैटरी पर भी पोलिंग एजेंट के साइन होंगे। ईवीएम 3 लेयर की सिक्योरिटी में रहेगी। चुनाव आयोग ने कहा कि ईवीएम में सिंगल यूज बैटरी लगती है। ईवीएम में मोबाइल जैसी बैटरी नहीं होती है। 

ईवीएम कैसे आई भारत में?

ईवीएम का निर्माण भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगलुरु और इलेक्ट्रॉनिक कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद ने किया है। इसका पहली बार इस्तेमाल मई, 1982 में केरल के परूर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के 50 मतदान केंद्रों पर हुआ, लेकिन 1983 के बाद इन मशीनों का इस्तेमाल इसलिए नहीं किया गया कि सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव में वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल को वैधानिक रूप दिए जाने का आदेश दिया। दिसंबर, 1988 में संसद ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 में नई धारा-61 ए, जो चुनाव आयोग को वोटिंग मशीनों के इस्तेमाल का अधिकार देती है। इसका संशोधित प्रावधान 15 मार्च 1989 से प्रभावी हुआ। फिर केंद्र सरकार ने फरवरी, 1990 में अनेक मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय तथा क्षेत्रीय दलों के प्रतिनिधियों वाली चुनाव सुधार समिति बनाई और इस समिति को ईवीएम के प्रयोग पर विचार करने को कहा। इसके साथ ही सरकार ने एक विशेषज्ञ समिति का भी गठन किया, जिसने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन मशीनों से छेड़छाड़ संभव नहीं है।

24 मार्च 1992 को केंद्रीय विधि तथा न्याय मंत्रालय द्वारा चुनाव कराने संबंधी कानून, 1961 में आवश्यक संशोधन की अधिसूचना जारी की गई। नवंबर 1998 के बाद से आम चुनाव-उप-चुनावों में प्रत्येक संसदीय तथा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र में ईवीएम का इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत 2004 के आम चुनाव में देश के सभी मतदान केंद्रों पर 10.75 लाख ईवीएम के इस्तेमाल के साथ ही ई-लोकतंत्र में परिवर्तित हो गया। तब से सभी चुनावों में ईवीएम का इस्तेमाल जारी है। इन मशीनों से झटपट परिणाम आने के कारण चुनाव आयोग, राजनीतिक दलों और मतदाताओं ने इसे हाथोंहाथ लिया। पंचायतों तक के चुनाव में इनका प्रयोग शुरू हो गया। इनका चलन इतना बढ़ गया है कि बैलट पेपर बहुत पिछड़ी प्रणाली नजर आने लगी है। ईवीएम से वोट डालने में ज्यादा समय नहीं लगता और गिनती बड़ी आसानी से हो जाती है। इसके इस्तेमाल से फ़र्जी मतदान तथा बूथ कब्जे की घटनाओं में कमी का दावा किया गया है।

निरक्षर लोग ईवीएम को मतपत्र प्रणाली से अधिक आसान पाते हैं। मत-पेटिकाओं की तुलना में ईवीएम को पहुंचाने तथा वापस लाने में आसानी होती है। सबसे बड़ी बात है कि इनका इस्तेमाल बिना बिजली के किया जा सकता है क्योंकि मशीन बैटरी से चलती है। यदि उम्मीदवारों की संख्या 64 से अधिक न हो तो ईवीएम के इस्तेमाल से चुनाव कराए जा सकते हैं। एक ईवीएम मशीन अधिकतम 3840 वोट दर्ज कर सकती है। ऐसा नहीं है कि ईवीएम के खराब होने को लेकर आयोग सचेत नहीं रहा है। इसको ध्यान में रखते हुए ही एक अधिकारी को मतदान के दिन लगभग 10 मतदान केंद्रों को कवर करने के लिए ड्यूटी पर लगाया जाता है। वे अपने पास अतिरिक्त ईवीएम रखे रहते हैं ताकि खराब ईवीएम को नई ईवीएम से बदला जा सके। ईवीएम के खराब होने के समय तक दर्ज मत कंट्रोल यूनिट की मेमोरी में सुरक्षित रहता है।

ईवीएम के सुरक्षा प्रबंधों में रह गई खामियों के मद्देनजर उसमें समय-समय पर तब्दीलियां भी की गई हैं, लेकिन इस्तेमाल के थोड़े ही दिनों बाद ईवीएम की विश्वसनीयता पर विवाद शुरू हो गया। सबसे पहले दिल्ली हाईकोर्ट में इसकी विश्वसनीयता को चुनौती दी गई। तत्कालीन भाजपा नेता डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने कांग्रेस की लोकसभा में हुई जीत के बाद ईवीएम पर संदेह जताया था। भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिंहराव ने ‘डेमोक्रेसी ऐट रिस्क’ किताब में ईवीएम कैसे लोकतंत्र की हत्या करती है, इसका ब्यौरा पेश कर सनसनी फैलाई थी। भाजपा  के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी ईवीएम का विरोध किया था, लेकिन जब चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों को ईवीएम हैक करने की चुनौती दी तब कोई भी दल आगे नहीं आया। आज कांग्रेस भी भाजपा की तर्ज पर ईवीएम का विरोध करती नजर आ रही है।

मुंबई सहित महाराष्ट्र में ईवीएम को लेकर जिन उम्मीदवारों ने सवाल उठाए है उसपर चुनाव आयोग के जबाब से ईवीएम की विश्वसनीयता बढ़ गई है। मुंबई स्थित दहिसर विधानसभा क्षेत्र में ईवीएम में गड़बड़ी के एमएनएस उम्मीदवार राजेश येरुनकर के आरोपों को खारिज कर दिया। येरुनकर ने दावा किया था कि उन्हें मतदान केंद्र पर केवल दो वोट मिले, जबकि उनके परिवार के चार सदस्यों ने वहां मतदान किया था। उन्होंने वोटों की गिनती पर भी सवाल उठाए। मनपा द्वारा स्पष्ट किया कि येरुनकर को वास्तव में संबंधित मतदान केंद्र पर 53 वोट मिले थे, जिससे मतदान डेटा और ईवीएम संख्याओं के बीच विसंगतियों के उम्मीदवार के दावों का खंडन हो गया। चुनाव में मतदान प्रतिशत जल्दबाजी में दिखाने के चकल्लस में राजनीतिक दल हो या मीडिया ने उन पोस्टल वोट को नहीं जोड़ा। जिससे बाद में अतिरिक्त वोटों की वृद्धि पर सवाल उठाए गए।

मतदान होने के पश्चात क्या ईवीएम में छेड़छाड़ संभव है? इसपर कई कहानियां सामने आ रही है। मतदान के बाद स्ट्रांग रूम में ईवीएम को सुरक्षित रखा जाता है। पहले तो इस स्ट्रांग रूम के बाहर राजनीतिक दल के कार्यकर्ता 24 घंटे पहरा देते थे। अब यह परंपरा बंद हो गई है। लेकिन मुंबई, ठाणे जैसे क्षेत्र में उम्मीदवारों ने स्ट्रांग रूम के बाहर चौकस व्यवस्था रखी थी। अब यह सबसे बड़ा सवाल है कि क्या, मतदान के बाद सील की गई ईवीएम से छेड़छाड़ संभव है? इसपर कोई अधिकृत शिकायत चुनाव आयोग के पास दर्ज नहीं होने से चुनाव आयोग ने इसपर कोई राय नहीं रखी हैं।


महाराष्ट्र हो या झारखंड के विधानसभा चुनाव की दृष्टि से हर चुनावी कार्यालय में मतदान मशीनें तैयार करने की प्रक्रिया का जिला चुनाव अधिकारी निरीक्षण कर एक मशीन पर स्वयं मॉकपोल करते है। उसवक्त सभी राजनीतिक दल के प्रमुख कार्यकर्ता भी उपस्थित रहते है। मतदान के दिन भी इसीतरह की प्रक्रिया का अनुपालन होता है। वैसे सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर चुनाव आयोग ने मानक संचालन प्रक्रिया जारी की हैं। जो प्रत्याशी ईवीएम में वोटों के सत्यापन की मांग कर रहे हैं, उन्हें प्रत्येक ईवीएम सेट के निश्चित शुल्क अदा करना होता है। यह सबसे कारगर उपाय है। ईवीएम को कोसने के बजाय आज सभी दलों को मिल-बैठकर इस पर विचार करना चाहिए कि यह फूलप्रूफ कैसे ईवीएम बने। बेहतर होगा कि वे आयोग के साथ सहयोग करें।


अनिल गलगली
सूचना अधिकार कार्यकर्ता

ईव्हीएमच्या विश्वासार्हतेवरून सुरू असलेल्या सर्व वादांना पूर्णविराम!

ईव्हीएमच्या विश्वासार्हतेवरून सुरू असलेल्या सर्व वादांना पूर्णविराम!

इलेक्ट्रॉनिक व्होटिंग मशीन म्हणजेच ईव्हीएमवर पुन्हा एकदा प्रश्नचिन्ह निर्माण झाले आहे. नुकत्याच झालेल्या महाराष्ट्र निवडणुकीत भाजपच्या नेतृत्वाखालील आघाडीचा एकतर्फी विजय झाल्याने राजकीय पक्षांनी पुन्हा एकदा त्याच्या विश्वासार्हतेवर प्रश्न उपस्थित करण्यास सुरुवात केली आहे. न्यायमूर्ती विक्रम नाथ आणि न्यायमूर्ती पीबी वराळे यांच्या सुप्रीम कोर्टाच्या खंडपीठाने बॅलेट पेपर मतदान प्रणाली पुन्हा सुरू करण्याची मागणी करणारी याचिका फेटाळून लावत ईव्हीएमच्या विश्वासार्हतेवर उपस्थित होत असलेल्या सर्व युक्तिवादांना पूर्णविराम दिला आहे.

सर्वोच्च न्यायालयाने याचिकाकर्त्याला विचारले की, पक्षांना ईव्हीएममध्ये कोणतीही अडचण नाही, तुम्हाला ती का आहे? तुम्हाला अशा कल्पना कुठून येतात? यावर याचिकाकर्ते केए पॉल म्हणाले की चंद्राबाबू नायडू आणि वायएस जगन मोहन रेड्डी यांसारख्या नेत्यांनीही इलेक्ट्रॉनिक मतदान यंत्रांशी छेडछाड करण्यावर प्रश्न उपस्थित केले आहेत. खंडपीठाने म्हटले की, चंद्राबाबू नायडू किंवा जगन मोहन रेड्डी निवडणुकीत हरतात तेव्हा ते म्हणतात की ईव्हीएममध्ये छेडछाड झाली आहे आणि जिंकल्यावर ते काहीही बोलत नाहीत. आपण ते कसे पाहू शकतो. आम्ही ते नाकारत आहोत. हे सर्व वादविवाद करण्याचे ठिकाण नाही.

दुसरीकडे, काँग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खर्गे यांनी ईव्हीएम आणि बॅलेट पेपरद्वारे मतदानाच्या विरोधात आंदोलन सुरू करण्याची घोषणा केली आहे. ज्या मतदान केंद्रांवर ईव्हीएममध्ये छेडछाड झाल्याचा संशय आहे, त्या मतदान केंद्रांवर ५ टक्के व्हीव्हीपॅटची पुनर्गणना करण्यासाठी याचिका दाखल करण्याचा निर्णय शिवसेना पक्षप्रमुख उद्धव ठाकरे यांनी घेतला आहे. हे काही पहिल्यांदाच घडत नाही आहे. यापूर्वी सपा नेते अखिलेश यादव आणि बसपा प्रमुख मायावती यांनी केंद्र सरकारला मतपत्रिकेद्वारे निवडणुका घेण्याचे आव्हान दिले होते. मात्र, निवडणूक आयोगाने पुन्हा एकदा या गोष्टी गांभीर्याने घेतल्या नाहीत. तत्कालीन मुख्य निवडणूक आयुक्त ओमप्रकाश रावत यांनी तर ईव्हीएमला बोलता येत नसल्याने त्यांना बळीचा बकरा बनवले जात असल्याचे म्हटले होते. राजकीय पक्षांना पराभव पचवता येत नसताना ते ईव्हीएमला दोष देतात. आयोग आणि राजकीय पक्षांमधील या रस्सीखेचीमुळे जनता संभ्रमात पडली आहे. महाराष्ट्र आणि झारखंड निवडणुकीपूर्वीच निवडणूक आयोगाने ईव्हीएममध्ये कोणताही दोष नसल्याचे सांगितले. ईव्हीएम पूर्णपणे सुरक्षित आहे. ईव्हीएमच्या बॅटरीवर पोलिंग एजंटची सही असते. ईव्हीएम थ्री लेयर सिक्युरिटी अंतर्गत असतील. निवडणूक आयोगाने सांगितले की, ईव्हीएममध्ये एकल वापराच्या बॅटरी असतात. ईव्हीएममध्ये मोबाईलप्रमाणे बॅटरी नसतात.

EVM भारतात कसे आले?

ईव्हीएमची निर्मिती भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड, बेंगळुरू आणि इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, हैदराबाद यांनी केली आहे. मे 1982 मध्ये केरळच्या परूर विधानसभा मतदारसंघातील 50 मतदान केंद्रांवर याचा वापर करण्यात आला होता, परंतु 1983 नंतर या यंत्रांचा वापर करण्यात आला नाही कारण सर्वोच्च न्यायालयाने निवडणुकीत मतदान यंत्राचा वापर कायदेशीर करण्याचे आदेश दिले होते. डिसेंबर 1988 मध्ये, संसदेने लोकप्रतिनिधी कायदा 1951 मध्ये एक नवीन कलम 61A लागू केले, जे निवडणूक आयोगाला मतदान यंत्र वापरण्याचा अधिकार देते. त्याची सुधारित तरतूद 15 मार्च 1989 पासून लागू झाली. त्यानंतर फेब्रुवारी 1990 मध्ये केंद्र सरकारने अनेक मान्यताप्राप्त राष्ट्रीय आणि प्रादेशिक पक्षांच्या प्रतिनिधींचा समावेश असलेली निवडणूक सुधारणा समिती स्थापन केली आणि या समितीला ईव्हीएमच्या वापरावर विचार करण्यास सांगितले. यासोबतच सरकारने तज्ज्ञांची समितीही स्थापन केली, ज्याने या मशिन्समध्ये छेडछाड करणे शक्य नसल्याचे आपल्या अहवालात म्हटले आहे.

24 मार्च 1992 रोजी केंद्रीय कायदा आणि न्याय मंत्रालयाने निवडणूक कायदा, 1961 मध्ये आवश्यक सुधारणा करणारी अधिसूचना जारी केली. नोव्हेंबर 1998 पासून सार्वत्रिक निवडणुका-पोटनिवडणुकांमध्ये प्रत्येक लोकसभा आणि विधानसभा मतदारसंघात ईव्हीएमचा वापर केला जात आहे. 2004 च्या सार्वत्रिक निवडणुकीत देशातील सर्व मतदान केंद्रांवर 10.75 लाख ईव्हीएम वापरून भारताने ई-लोकशाहीकडे संक्रमण केले. त्यानंतर सर्वच निवडणुकांमध्ये ईव्हीएमचा वापर सुरू आहे. या मशिन्समधून झटपट निकाल लागल्यामुळे निवडणूक आयोग, राजकीय पक्ष आणि मतदारांनी त्याचा चांगलाच समाचार घेतला. पंचायत निवडणुकीतही त्यांचा वापर सुरू झाला. त्यांचा कल एवढा वाढला आहे की, बॅलेट पेपर ही अत्यंत मागासलेली यंत्रणा म्हणून दिसू लागली आहे. ईव्हीएमद्वारे मतदानाला जास्त वेळ लागत नाही आणि मतमोजणी अगदी सहज होते. त्याच्या वापरामुळे बनावट मतदान आणि बूथ कॅप्चरिंगच्या घटना कमी झाल्याचा दावा करण्यात आला आहे.

निरक्षर लोकांना बॅलेट पेपर प्रणालीपेक्षा ईव्हीएम सोपे वाटते. मतपेट्यांच्या तुलनेत, ईव्हीएम वाहतूक करणे आणि परत आणणे सोपे आहे. सर्वात मोठी गोष्ट म्हणजे ते विजेशिवाय वापरले जाऊ शकते कारण मशीन बॅटरीवर चालते. उमेदवारांची संख्या 64 पेक्षा जास्त नसेल तर ईव्हीएम वापरून निवडणुका घेता येतील. एक EVM मशीन जास्तीत जास्त 3840 मते नोंदवू शकते. ईव्हीएममधील बिघाडाबद्दल आयोग सतर्क झाला नाही असे नाही. ही बाब लक्षात घेऊन मतदानाच्या दिवशी सुमारे 10 मतदान केंद्रे कव्हर करण्यासाठी एक अधिकारी ड्युटीवर असतो. ते त्यांच्याकडे अतिरिक्त ईव्हीएम ठेवतात जेणेकरून दोषपूर्ण ईव्हीएम नवीन ईव्हीएमसह बदलता येतील. ईव्हीएममध्ये बिघाड होईपर्यंत रेकॉर्ड केलेली मते कंट्रोल युनिटच्या स्मरणात सुरक्षित राहतात.

ईव्हीएमच्या सुरक्षा व्यवस्थेतील त्रुटी लक्षात घेऊन वेळोवेळी बदल करण्यात आले, मात्र काही दिवसांच्या वापरानंतर ईव्हीएमच्या विश्वासार्हतेवरून वाद सुरू झाला. प्रथम त्याच्या विश्वासार्हतेला दिल्ली उच्च न्यायालयात आव्हान देण्यात आले. लोकसभेत काँग्रेसच्या विजयानंतर भाजपचे तत्कालीन नेते डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी यांनी ईव्हीएमवर शंका उपस्थित केली होती. भाजपचे तत्कालीन प्रवक्ते जीव्हीएल नरसिंह राव यांनी 'डेमोक्रेसी ॲट रिस्क' या पुस्तकात ईव्हीएममुळे लोकशाहीची हत्या कशी होते, याचा तपशील सादर करून खळबळ उडवून दिली होती. भाजपचे ज्येष्ठ नेते आणि माजी उपपंतप्रधान लालकृष्ण अडवाणी यांनीही ईव्हीएमला विरोध केला होता, मात्र निवडणूक आयोगाने सर्व राजकीय पक्षांना ईव्हीएम हॅक करण्याचे आव्हान दिले असताना कोणताही पक्ष पुढे आला नाही. आज भाजपच्या धर्तीवर काँग्रेसही ईव्हीएमला विरोध करताना दिसत आहे.

मुंबईसह महाराष्ट्रात ईव्हीएमबाबत प्रश्न उपस्थित करणाऱ्या उमेदवारांना निवडणूक आयोगाने दिलेल्या प्रतिसादामुळे ईव्हीएमची विश्वासार्हता वाढली आहे. मुंबई येथील दहिसर विधानसभा मतदारसंघातील मनसेचे उमेदवार राजेश येरुणकर यांनी ईव्हीएममध्ये छेडछाड केल्याचा आरोप फेटाळला. येरुणकर यांनी मतदान केंद्रावर केवळ दोन मते मिळाल्याचा दावा केला होता, तर त्यांच्या कुटुंबातील चार सदस्यांनी तेथे मतदान केले होते. मतमोजणीवरही त्यांनी प्रश्न उपस्थित केला. महानगरपालिकेने स्पष्ट केले की येरुणकर यांना संबंधित मतदान केंद्रावर प्रत्यक्षात 53 मते मिळाली होती, त्यामुळे मतदान डेटा आणि ईव्हीएम क्रमांकांमधील तफावत असल्याच्या उमेदवाराच्या दाव्याचे खंडन केले. राजकीय पक्ष असोत वा प्रसारमाध्यमे, निवडणुकीतील मतदानाची टक्केवारी घाईघाईने दाखवण्याच्या प्रयत्नात त्यांनी ती पोस्टल मते मोजली नाहीत. त्यामुळे नंतर अतिरिक्त मतांच्या वाढीवर प्रश्न उपस्थित करण्यात आले.

मतदानानंतर ईव्हीएममध्ये छेडछाड शक्य आहे का? यावर अनेक किस्से समोर येत आहेत. मतदानानंतर ईव्हीएम स्ट्राँग रूममध्ये सुरक्षित ठेवले जातात. पूर्वी या स्ट्राँग रूमबाहेर राजकीय पक्षाचे कार्यकर्ते २४ तास पहारा देत असत. आता ही परंपरा थांबली आहे. मात्र मुंबई, ठाणे आदी भागात उमेदवारांनी स्ट्राँग रूमबाहेर चोख बंदोबस्त ठेवला होता. आता सर्वात मोठा प्रश्न असा आहे की मतदानानंतर सीलबंद ईव्हीएममध्ये छेडछाड करणे शक्य आहे का? याबाबत निवडणूक आयोगाकडे कोणतीही अधिकृत तक्रार दाखल करण्यात आलेली नसल्याने निवडणूक आयोगाने याबाबत कोणतेही मत व्यक्त केलेले नाही.

महाराष्ट्र असो किंवा झारखंड, जिल्हा निवडणूक अधिकारी प्रत्येक निवडणूक कार्यालयात मतदान यंत्रे तयार करण्याच्या प्रक्रियेची तपासणी करतात आणि मशीनवर स्वत: मॉक पोल घेतात. त्यावेळी सर्व राजकीय पक्षांचे प्रमुख कार्यकर्ते उपस्थित होते. मतदानाच्या दिवशीही अशीच पद्धत अवलंबली जाते. मात्र, सर्वोच्च न्यायालयाच्या आदेशानुसार निवडणूक आयोगाने स्टँडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर जारी केली आहे. ईव्हीएममध्ये मतांची पडताळणी करू इच्छिणाऱ्या उमेदवारांना प्रत्येक ईव्हीएम सेटसाठी निश्चित शुल्क भरावे लागेल. हा सर्वात प्रभावी उपाय आहे. ईव्हीएमला शिव्याशाप देण्याऐवजी आज सर्व पक्षांनी एकत्र बसून या ईव्हीएम कसे फुलप्रूफ करता येतील याचा विचार करायला हवा. त्यांनी आयोगाला सहकार्य केले तर बरे होईल.


अनिल गलगली
माहिती अधिकार कार्यकर्ते