Sunday, 31 August 2025

पूज्य श्री लोकेशानंद जी महाराज के सानिध्य में दिव्य श्रीमद्भागवत कथा संपन्न

पूज्य श्री लोकेशानंद जी महाराज के सानिध्य में दिव्य श्रीमद्भागवत कथा संपन्न

श्री जगन्नाथ जी के पावन सानिध्य में जगन्नाथपुरी धाम हॉलिडे रिसोर्ट में आयोजित दिव्य श्रीमद्भागवत कथा का तृतीय दिवस श्रद्धा और भक्ति भाव से संपन्न हुआ। कथा व्यास पीठ पर श्री नारायण भक्ति पंथ के प्रवर्तक एवं श्री श्री नारायणपुरम, शाहदा धाम के संस्थापक अनंत श्री विभूषित संत श्री लोकेशानंद जी महाराज ने भागवत प्रसंगों का रसपान कराते हुए नारायण नाम महिमा और संकीर्तन के महत्व पर प्रकाश डाला।

विशेष अवसर पर कथा में पधारे डॉ. संबित पात्रा (सांसद, पुरी एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा) ने अपने उद्बोधन में कहा कि “भगवान जगन्नाथ जी रथयात्रा के माध्यम से जनता के बीच दर्शन देने आते हैं, यह लोकतंत्र का श्रेष्ठ उदाहरण है। महाप्रभु को छप्पन भोग सहित जो भात, दाल और परंपरागत सब्ज़ियों का भोजन अर्पित किया जाता है, वह सदियों से वैसा ही है। आयातित अन्न या सब्ज़ियों (जैसे टमाटर, मूली, आलू आदि) का रसोई में प्रवेश वर्जित है। इससे बड़ा राष्ट्रीयता और सांस्कृतिक अस्मिता का संदेश और क्या हो सकता है!”

कथा में अयोध्या से पधारे महामंडलेश्वर श्री राघवाचार्य जी महाराज ने आशीर्वचन दिए। साथ ही पं. कैलाश जी (बगलामुखी तारा शक्ति पीठ, बिजाना, शाजापुर) तथा श्री अलीजा सरकार हनुमान मंदिर, इंदौर के महंत जी का भी पावन सानिध्य मिला।

कार्यक्रम के मुख्य यजमान महेंद्र पीडी अग्रवाल व प्राची अग्रवाल सुपुत्र युवराज रहे, जिन्होंने अतिथियों का आदरपूर्वक स्वागत किया। इस मौके पर श्री नारायण भक्त पंथ, मुंबई के अध्यक्ष अनिल गलगली, सचिव हितेश शेट्टी, भाजपा मध्यप्रदेश प्रवक्ता राजपाल सिंह सिसोसिया सहित अनेक मान्यवर उपस्थित रहे।

मुंबई, इंदौर, उज्जैन, रामपुरा, कल्याणपुरा, भोपाल, आलोट व शाहदा से आए नारायण भक्तों ने इस दिव्य कथा का धर्मलाभ लिया।

Monday, 25 August 2025

राष्ट्र के जागरण का समय आ गया : डॉ. चिन्मय पंड्या

राष्ट्र के जागरण का समय आ गया : डॉ. चिन्मय पंड्या

देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति एवं अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त युवा प्रेरक डॉ. चिन्मय पंड्या ने कहा कि अब समय आ गया है जब भारत को केवल स्वयं ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व का पथप्रदर्शन करना होगा। उन्होंने कहा कि जब देश का प्रत्येक नागरिक आत्मबल, नैतिकता और आध्यात्मिकता से युक्त होगा, तभी भारत का नवजागरण संभव है और उसके माध्यम से विश्व को नई दिशा मिलेगी।

नई दिल्ली स्थित भारत मंडपम में आयोजित एक ऐतिहासिक कार्यक्रम में बोलते हुए युवा आइकॉन डॉ. पंड्या, जो इन दिनों माता भगवती देवी शर्मा जी की जन्मशताब्दी वर्ष (2026) के अंतर्गत प्रव्रज्या पर हैं, ने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युग निर्माण आंदोलन के तीन प्रमुख स्तंभ — विचार क्रांति, चरित्र निर्माण और व्यसन मुक्ति — आज के समय की सबसे बड़ी आवश्यकता हैं। नई पीढ़ी को राष्ट्रभक्ति, कर्तव्यनिष्ठा और जीवन मूल्यों से जोड़ना ही राष्ट्र निर्माण का वास्तविक आधार है।

उन्होंने कहा कि राष्ट्र के जागरण का समय आ चुका है। अब केवल देखने और सुनने से काम नहीं चलेगा, बल्कि सक्रिय होकर तैयारी के साथ राष्ट्र निर्माण की भूमिका निभानी होगी।

इस अवसर पर उपस्थित युवाओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शिक्षकों और वरिष्ठ नागरिकों ने डॉ. पंड्या के विचारों को आत्मसात करते हुए यह संकल्प लिया कि वे अपने जीवन में स्वास्थ्य, सदाचार, समाजसेवा और राष्ट्रप्रेम को अपनाते हुए नवयुग के निर्माण में सहभागी बनेंगे।

समारोह में केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री एवं मप्र के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, केंद्रीय राज्य मंत्री दुर्गादास उईके ने भी अपने विचार साझा किए। सारस्वत अतिथि के रूप में स्वामी ब्रह्मबिहारी जी (प्रमुख – अंतर्राष्ट्रीय संबंध, स्वामीनारायण संस्थान) और स्वामी अक्षर वत्सल दास जी (अध्यक्ष, अक्षरधाम नई दिल्ली) ने भी सभा को संबोधित किया।

समारोह के दौरान युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पंड्या ने सभी विशिष्ट अतिथियों को तुलसी का पौधा एवं नवयुग का संविधान भेंट कर सम्मानित किया। यह प्रतीकात्मक भेंट पर्यावरण चेतना एवं सांस्कृतिक पुनर्जागरण का संदेश लिए हुए थी।

Tuesday, 12 August 2025

भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हो रहे विदेशी युवा : डॉ. चिन्मय पण्ड्या

भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हो रहे विदेशी युवा : डॉ. चिन्मय पण्ड्या

पश्चिमी देशों के युवा अब तेजी से भारतीय संस्कृति और जीवनशैली की ओर आकर्षित हो रहे हैं। योग, ध्यान और आध्यात्मिकता उनके जीवन का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। यह विचार देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति एवं युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने व्यक्त किए। वे हाल ही में अपने 18 दिवसीय यूरोप, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड और लातविया प्रवास से लौटे हैं।

हरिद्वार में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. पण्ड्या ने बताया कि विदेशों में युवाओं के बीच भारतीय संस्कृति को लेकर नई जागरूकता और उत्सुकता का माहौल है। विशेषकर यूरोप और उत्तर अमेरिका में युवा वर्ग केवल योग और ध्यान को शारीरिक व्यायाम के रूप में नहीं देख रहा, बल्कि इसे एक समग्र जीवनशैली के रूप में अपना रहा है। वे संतुलित आहार, संयमित व्यवहार और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने को भारतीय जीवन दृष्टिकोण का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।

डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भौतिकतावादी जीवनशैली से उत्पन्न तनाव और अकेलापन विदेशों के युवाओं में गहराई से महसूस किया जा रहा है। ऐसे में भारतीय परंपरा में निहित आध्यात्मिकता, ध्यान और आत्मिक शांति का मार्ग उन्हें भीतर से मजबूत बनाने में सहायक हो रहा है।

उन्होंने बताया कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विश्वविद्यालय भारत सहित अनेक देशों में सेमिनार, योग शिविर और यज्ञीय आयोजनों के माध्यम से भारतीय मूल्यों को आगे बढ़ा रहा है। इससे विदेशी युवाओं को न केवल भारत की प्राचीन परंपराओं से परिचित कराया जा रहा है, बल्कि उन्हें आत्मविकास और मानसिक संतुलन का मार्ग भी दिखाया जा रहा है।

2026 में वंदनीया भगवती देवी शर्मा जी की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में भारत और विदेशों में “ज्योति कलश यात्रा” निकाली जा रही है। डॉ. पण्ड्या ने बताया कि शिकागो, कनाडा और विनिपेग जैसे शहरों में इस यात्रा में स्थानीय युवाओं की विशेष भागीदारी रही।

अपने विचार साझा करते हुए डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति का वैश्वीकरण कोई नया विषय नहीं है, लेकिन अब यह एक संगठित और उद्देश्यपूर्ण आंदोलन का रूप ले रहा है। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले वर्षों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता विश्व में और अधिक प्रभावशाली रूप से अपनी छाप छोड़ेगी और इसमें भारत की युवा पीढ़ी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।

भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हो रहे विदेशी युवा : डॉ. चिन्मय पण्ड्या

भारतीय संस्कृति से ओतप्रोत हो रहे विदेशी युवा : डॉ. चिन्मय पण्ड्या

पश्चिमी देशों के युवा अब तेजी से भारतीय संस्कृति और जीवनशैली की ओर आकर्षित हो रहे हैं। योग, ध्यान और आध्यात्मिकता उनके जीवन का अहम हिस्सा बनते जा रहे हैं। यह विचार देवसंस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति एवं युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने व्यक्त किए। वे हाल ही में अपने 18 दिवसीय यूरोप, अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड और लातविया प्रवास से लौटे हैं।

हरिद्वार में एक संगोष्ठी को संबोधित करते हुए डॉ. पण्ड्या ने बताया कि विदेशों में युवाओं के बीच भारतीय संस्कृति को लेकर नई जागरूकता और उत्सुकता का माहौल है। विशेषकर यूरोप और उत्तर अमेरिका में युवा वर्ग केवल योग और ध्यान को शारीरिक व्यायाम के रूप में नहीं देख रहा, बल्कि इसे एक समग्र जीवनशैली के रूप में अपना रहा है। वे संतुलित आहार, संयमित व्यवहार और प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने को भारतीय जीवन दृष्टिकोण का अभिन्न हिस्सा मानते हैं।

डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भौतिकतावादी जीवनशैली से उत्पन्न तनाव और अकेलापन विदेशों के युवाओं में गहराई से महसूस किया जा रहा है। ऐसे में भारतीय परंपरा में निहित आध्यात्मिकता, ध्यान और आत्मिक शांति का मार्ग उन्हें भीतर से मजबूत बनाने में सहायक हो रहा है।

उन्होंने बताया कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय वैश्विक स्तर पर भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार में अग्रणी भूमिका निभा रहा है। विश्वविद्यालय भारत सहित अनेक देशों में सेमिनार, योग शिविर और यज्ञीय आयोजनों के माध्यम से भारतीय मूल्यों को आगे बढ़ा रहा है। इससे विदेशी युवाओं को न केवल भारत की प्राचीन परंपराओं से परिचित कराया जा रहा है, बल्कि उन्हें आत्मविकास और मानसिक संतुलन का मार्ग भी दिखाया जा रहा है।

2026 में वंदनीया भगवती देवी शर्मा जी की जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में भारत और विदेशों में “ज्योति कलश यात्रा” निकाली जा रही है। डॉ. पण्ड्या ने बताया कि शिकागो, कनाडा और विनिपेग जैसे शहरों में इस यात्रा में स्थानीय युवाओं की विशेष भागीदारी रही।

अपने विचार साझा करते हुए डॉ. पण्ड्या ने कहा कि भारतीय संस्कृति का वैश्वीकरण कोई नया विषय नहीं है, लेकिन अब यह एक संगठित और उद्देश्यपूर्ण आंदोलन का रूप ले रहा है। उन्होंने विश्वास जताया कि आने वाले वर्षों में भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता विश्व में और अधिक प्रभावशाली रूप से अपनी छाप छोड़ेगी और इसमें भारत की युवा पीढ़ी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होगी।

Saturday, 26 July 2025

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में ध्यान-साधना के साथ नवशैक्षणिक सत्र का शुभारंभ

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में ध्यान-साधना के साथ नवशैक्षणिक सत्र का शुभारंभ

देवसंस्कृति विश्वविद्यालय (देसंविवि), शांतिकुंज में नवप्रवेशी विद्यार्थियों ने नवीन शैक्षणिक सत्र का आरंभ आध्यात्मिक वातावरण में ध्यान-साधना के माध्यम से किया। विश्वविद्यालय की परंपरा के अनुरूप भारत व नेपाल सहित विभिन्न देशों से आए सैकड़ों विद्यार्थियों ने युगऋषि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य एवं वंदनीया माता भगवती देवी शर्मा जी की पावन समाधि स्थल पर सामूहिक ध्यान में भाग लिया।

इस अवसर पर विद्यार्थियों ने ‘ज्योति अवधारण साधना’ के माध्यम से आत्मचिंतन और आंतरिक अनुशासन की दिशा में अपने पहले कदम बढ़ाए। देसंविवि में अद्वितीय पाठ्यक्रमों के साथ-साथ जीवन मूल्यों और आध्यात्मिक संस्कारों पर बल दिए जाने के कारण यह संस्था आज की युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्रोत बनती जा रही है।

शांतिकुंज व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरि ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि शिक्षा केवल किताबी ज्ञान तक सीमित न रहे, बल्कि उसमें नैतिकता, आत्मविकास और सामाजिक उत्तरदायित्व का समावेश भी आवश्यक है। उन्होंने कहा कि देसंविवि शिक्षा के साथ संस्कारों को भी समाहित करता है, जिससे विद्यार्थी एक संपूर्ण व्यक्तित्व का निर्माण कर सकें।

उन्होंने युग निर्माण सत्संकल्प के 18 सूत्रों की चर्चा करते हुए विद्यार्थियों से आग्रह किया कि वे अपने जीवन के अभीष्ट लक्ष्य को सदैव स्मरण में रखें। इस अवसर पर  उदय किशोर मिश्रा, सौरभ मिश्रा आदि वक्ताओं ने भी युवाओं का मार्गदर्शन किया।

शैक्षणिक सत्र की इस आध्यात्मिक शुरुआत से विद्यार्थियों में उत्साह, आत्मविश्वास और एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार देखने को मिला। उल्लेखनीय है कि देसंविवि के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी स्वयं समय-समय पर कक्षाएं लेकर ‘जीवन प्रबंधन’, ‘गीता’, ‘रामचरितमानस’ आदि विषयों के माध्यम से विद्यार्थियों को जीवन के नवीन दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।

Wednesday, 23 July 2025

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘१००८’ की ऐतिहासिक घोषणा — धर्म मामलों के लिए 'धर्मनिर्णयालय' की स्थापना

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ‘१००८’ की ऐतिहासिक घोषणा — धर्म मामलों के लिए 'धर्मनिर्णयालय' की स्थापना

धर्म के निर्णय अब धर्माचार्य करेंगे, न्यायालय का भार होगा कम


परमाराध्य परमधर्माधीश उत्तराम्नाय ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानंदः सरस्वती ‘१००८’ ने आज एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए धार्मिक मामलों की सुनवाई के लिए ‘धर्मनिर्णयालय’ की स्थापना की औपचारिक घोषणा की है। मुंबई के बोरिवली स्थित कोरा केंद्र में आयोजित प्रेस वार्ता को वे संबोधित कर रहे रहे थे।

शंकराचार्य जी ने कहा कि "कोई समय था जब न राजा था, न न्यायाधीश, केवल धर्म ही समाज को नियंत्रित करता था। आज जब अदालतों में धार्मिक मामलों की गहराई को समझे बिना निर्णय होते हैं, तब यह आवश्यक हो गया है कि धर्म से जुड़े मुद्दों का निर्णय धर्माचार्य करें, न कि न्यायिक प्रोसीजर के अधीन।"



धर्मनिर्णयालय –एक नई पहल

शंकराचार्य जी ने स्पष्ट किया कि प्रयागराज कुम्भ पर्व के दौरान आयोजित परमधर्म संसद १००८ (26 जनवरी 2025) में धर्मनिर्णयालय की स्थापना का निर्णय लिया गया था। अब इसकी औपचारिक घोषणा की जा रही है। इस न्यायालय में धार्मिक विवादों का निपटारा धर्मशास्त्र, परंपरा और वेदों के आधार पर किया जाएगा।

‘गाय-गवय’ में भेद जरूरी

उन्होंने गाय और गवय के भेद पर भी विस्तार से बात की और सुप्रीम कोर्ट की उस टिप्पणी पर आपत्ति जताई जिसमें 'गाय में क्या भेद' कहा गया था।  “अगर सब दूध एक समान है, तो A2 और A1 मिल्क में भेद क्यों? गाय का दूध और कुत्ते का दूध बराबर क्यों नहीं माना जाता? जो मांसाहारी आहार लेने वाली संकर या विदेशी गायें हैं, वे भारतीय संस्कृति की दृष्टि से गौमाता नहीं कही जा सकतीं।”



गौमाता को राष्ट्रमाता घोषित करने की मांग

शंकराचार्य जी ने भारत सरकार से गौमाता को ‘राष्ट्रमाता’ घोषित करने की भी पुरज़ोर माँग की। इसके लिए 33 कोटि आहुति यज्ञ का आयोजन देशभर में चल रहा है और मुंबई में भी गो-प्रतिष्ठा महायज्ञ प्रारंभ हो चुका है।

निर्दोष छूटे, तो दोषी का नाम भी सामने आना चाहिए

उन्होंने 2006 मुंबई ट्रेन बम विस्फोट की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि “यदि 19 वर्षों बाद 11 आरोपी बरी हुए, तो असली अपराधी कहाँ हैं? जब निर्दोष को छोड़ा जाता है, तो दोषी को भी उजागर करना न्याय का ही हिस्सा है।”



कबूतरों के अस्तित्व को मिटाना क्रूरता

वर्तमान में मुंबई में कबूतरों को भगाने या दाना न डालने की नीति पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि “पक्षियों को दाना डालना परंपरा रही है। शासक का कर्तव्य है कि वह सभी प्राणियों के अस्तित्व और सह-अस्तित्व का सम्मान करे। चीन में चिड़ियों को मारने से खाद्य श्रृंखला टूट गई थी – हमें प्रकृति से यह सबक लेना होगा।”

धर्म, संस्कृति और प्रकृति – तीनों के संरक्षण की आवश्यकता पर बल देते हुए शंकराचार्य जी ने आज जो उद्घोषणा की, वह भारतीय समाज की आत्मा की पुनर्स्थापना की दिशा में एक कदम है। उनका यह ऐतिहासिक संदेश देश की सामाजिक, धार्मिक और न्यायिक चेतना को एक नई दिशा देने वाला सिद्ध हो सकता है।

Tuesday, 22 July 2025

देसंविवि का 45वां ज्ञान दीक्षा समारोह सानंद संपन्न

देसंविवि का 45वां ज्ञान दीक्षा समारोह सानंद संपन्न

विद्यार्थियों के जीवन में एक नई दिशा और चेतना का आरंभ है ज्ञानदीक्षा संस्कार :  डॉ चिन्मय पण्ड्या

यह समय नये युग के लिए कदम बढ़ाने का अवसर : महंत बालकनाथ योगी

कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या ने नवप्रवेशी विद्यार्थियों को किया दीक्षित



देवसंस्कृति विश्वविद्यालय शांतिकुज में 45वां ज्ञान दीक्षा संस्कार समारोह अत्यंत श्रद्धा, गरिमा एवं उत्साह के साथ सम्पन्न हुआ। समारोह का शुभारंभ यूपीईएस के कुलाधिपति डॉ सुनील राय, कुलपति शरद पारधी एवं प्रतिकुलपति डॉ. चिन्मय पण्ड्या द्वारा संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। ज्ञानदीक्षा समारोह में बिहार, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, गुजरात, केरल, उप्र, उत्तराखण्ड, राजस्थान आदि राज्यों तथा नेपाल सहित कई देशों के छात्र-छात्राओं ने प्रतिभाग किया।  


समारोह के मुख्य अतिथि बाबा मस्तनाथ विवि रोहतक के कुलाधिपति महंत बालकनाथ योगी ने कहा कि देवसंस्कृति विश्वविद्यालय में आधुनिक शिक्षा के साथ भारतीय संस्कृति, संस्कार और अध्यात्म को समान रूप से महत्व दिया जाता है। यहाँ का वातावरण विद्यार्थियों को समग्र विकास की ओर प्रेरित करता है। उन्होंने कहा कि यह समय नये युग के लिए कदम बढ़ाने का अवसर है। यहाँ प्राप्त सद्ज्ञान के प्रकाश तथा भारत के वैभव, संस्कृति को विश्व भर में फैलायेंगे, ऐसा विश्वास है। श्री योगी व्यक्ति के जीवन का मूल मंत्र को जानने, समझने के लिए विविध उपाय सुझाया।


युवा आइकॉन डॉ. चिन्मय पण्ड्या ने कहा कि ज्ञान दीक्षा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि विद्यार्थियों के जीवन में एक नई दिशा और चेतना का आरंभ है। यह संस्कार उन्हें विश्वविद्यालय के आदर्शों, अनुशासन और सेवा परंपरा से जोड़ता है। युवा आइकॉन ने कहा कि जीवन में जब भगवान आते हैं, तो सौभाग्य का अवतरण होता है और जो भगवान के सहयोगी बनते हैं, उनका नाम ही अमर होता है। कबीर, सुरदास, पं श्रीराम शर्मा आचार्य जी आदि इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। पेट्रोलियम एवं उर्जा अध्ययन विवि के कुलाधिपति डॉ सुनील राय ने श्रद्धा, प्रसन्नता और रूपरेखा को मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण बताया।  इससे पूर्व कुलपति शरद पारधी ने समारोह में उपस्थित सभी विशिष्ट अतिथियों, अभिभावकों और सहयोगीगण का स्वागत किया।
इस अवसर पर देसंविवि के कुलाधिपति श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या स्नातक, परास्तानक एवं पीएचडी के नवप्रवेशी छात्र-छात्राओं से वर्चुअल जुड़े और वैदिक मंत्रोच्चारण एवं विधिपूर्वक ज्ञान दीक्षा प्रदान की।


समारोह की शुरुआत वैदिक मंगलाचरण के साथ प्रज्ञागीत से हुआ, जिसमें सभी विद्यार्थियों ने भाग लिया। दीक्षा के माध्यम से विद्यार्थियों को शिक्षा के साथ-साथ जीवन मूल्यों, सेवा-भावना एवं भारतीय संस्कृति के आदर्शों का बोध कराया गया। इस दौरान युवा आइकॉन डॉ चिन्मय पण्ड्या ने अतिथियों को गायत्री मंत्र चादर, युगसाहित्य एवं विवि के प्रतीक चिह्न आदि भेंटकर सम्मानित किया। अतिथियों ने रेनांसा, अनाहद पत्रिका का विमोचन किया। इस अवसर पर शांतिकुंज व्यवस्थापक योगेन्द्र गिरि, विश्वविद्यालय के प्राध्यापकगण, अधिकारीगण, अभिभावक तथा छात्र-छात्राएँ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे।