Anil Galgali
Sunday, 9 March 2025
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Saturday, 8 March 2025
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Thursday, 20 February 2025
स्वराज्य और धर्म के सजग पहरेदार थे धर्मवीर संभाजी महाराज
"छावा" सिनेमा केवल एक ऐतिहासिक कहानी नहीं, बल्कि वीरता, बलिदान और अदम्य साहस का जीवंत चित्रण है। यह फिल्म धर्मवीर संभाजी महाराज के जीवन के अंतिम क्षणों को बेहद प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करती है, जिससे दर्शकों के मन में राष्ट्रप्रेम और गर्व की भावना जागृत होती है। फिल्म "छावा" के निर्माता लक्ष्मण उतेकर हैं और इसके निर्देशक दिनेश विजान हैं। यह ऐतिहासिक फिल्म धर्मवीर संभाजी महाराज के जीवन और बलिदान पर आधारित है। फिल्म "छावा" का संगीत मशहूर संगीतकार ए.आर. रहमान ने दिया है। उनकी धुनें ऐतिहासिक माहौल को और भी प्रभावशाली बनाती हैं, जिससे फिल्म का हर दृश्य भावनात्मक और जोशीला बन जाता है।
झकझोर देने वाला अंत
फिल्म का अंतिम दृश्य दिल दहला देने वाला है। मुगलों द्वारा किए गए अत्याचारों के बावजूद, धर्मवीर संभाजी महाराज ने निष्ठा से कभी समझौता नहीं किया। उनकी आंखें निकाल दी गईं, जुबान काट दी गई, फिर भी वे झुके नहीं। यह सिर्फ एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि स्वराज्य और धर्म के प्रति उनकी निस्वार्थ भक्ति का प्रतीक है।
कलाकारों का दमदार अभिनय
हर अभिनेता ने अपनी भूमिका को पूरी शिद्दत से निभाया है, जिससे यह फिल्म और भी प्रभावी बन जाती है। विकी कौशल ने संभाजी महाराज की भूमिका में जान डाल दी है। उनकी भाव-भंगिमाएं, संवाद अदायगी और युद्ध के दृश्यों में उनके अभिनय ने यह अहसास दिलाया कि अगर संभाजी महाराज स्वयं हमारे सामने होते, तो वे ऐसे ही अडिग और साहसी होते।
अक्षय खन्ना ने औरंगजेब की भूमिका में क्रूरता की चरम सीमा को छू लिया है। उनके अभिनय में औरंगजेब की निर्दयता और दुष्टता बखूबी झलकती है। खासतौर पर संभाजी महाराज की मृत्यु के बाद उनके भीतर की असहजता और सहनशीलता के अंत को प्रभावशाली ढंग से दिखाया गया है।
रश्मिका मंदाना ने येशुबाई की भूमिका में गजब का काम किया है। उनके संवादों में पति के प्रति प्रेम, अभिमान और वीरांगना का तेज झलकता है। उन्होंने इस किरदार को पूरी तरह से न्याय दिया है।
विनीत सिंह ने कवि कलश के रूप में उत्कृष्ट अभिनय किया है। उनकी कविताएं और संवाद हर दृश्य को प्रेरणादायक बनाते हैं। उनकी आवाज़ और अभिव्यक्ति ने इस चरित्र को एक अलग ऊंचाई दी है।
इतिहास का कड़वा सच – गद्दारी तब भी थी, और आज भी है
फिल्म यह भी दर्शाती है कि वीरों की राह में केवल युद्ध ही नहीं, बल्कि गद्दारी भी सबसे बड़ा खतरा होती है। तब भी कुछ स्वार्थी तत्वों के कारण संभाजी महाराज औरंगजेब के हाथों में पड़े थे, और आज भी समाज में ऐसे लोग मौजूद हैं जो अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी के भी साथ धोखा कर सकते हैं।
"छावा" सिर्फ एक फिल्म नहीं, बल्कि एक प्रेरणा
यह सिनेमा दर्शकों को इतिहास के उन स्वर्णिम और रक्तरंजित पलों से जोड़ता है, जब हिंदवी स्वराज्य की रक्षा के लिए एक सच्चे योद्धा ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह फिल्म केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक और प्रेरणादायक अनुभव है, जो हर भारतीय के दिल में गर्व और जोश भर देता है।
अनिल गलगली
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